ज़िंदगी के रास्ते इतने आसान कहां होते हैं, जिन पर  बिना गिरे चला जा सके? हर वक्त गिरने का डर रहता। यही सोचते रोहन पूरी रात बेचैन रहा। गुज़रे हुए वक्त की धुंधली यादें उसे घेरे रही और परेशान करता रहा एक सवाल, कहीं वो एसएचओ कर्मवीर के सवालों के सामने कमज़ोर न पड़ जाए? वो सच जिसे उसने अपने सीने में दबा रखा था , कहीं सब के सामने ज़ाहिर न हो जाए। पवन चौहान की मौत की गुत्थी एसएचओ कर्मवीर नहीं सुलझा पाया था। रोहन से पूछताछ के बाद ही पुलिस यह समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर पवन चौहान ने इतनी महंगी प्रॉपर्टी रोहन को क्यूं दी? इधर रोहन की मां हेमलता की तबियत ठीक हो गई थी पर बेटे की चिंता उन्हें अन्दर ही अन्दर खाए जा रही थी।  कंचन के साथ रहने से दिल का बोझ काम ज़रूर हो जाता, लेकिन उन्हें अच्छे से मालूम था कि कंचन आख़िर कितने दिन तक उनके साथ रहती। कोई रिश्ता थोड़ी न था कंचन के साथ… नौकरी कर रही थी, अपनी ज़रूरतों के लिए।  किसी दिन इससे बेहतर कोई काम मिलेगा तो कंचन चली जाएगी। कंचन के चले जाने का ख्याल उन्हें कमज़ोर कर देता।  रोहन अब रात में कम ही निकलता था। इस बात को कंचन ने भी महसूस किया लेकिन इसके पीछे कि वजह जानने कि कोशिश नहीं कि। इतना ज़रूर था कि कंचन, हेमलता के बहुत क़रीब हो गई थी। कंचन एक ही घर में रहकर भी रोहन को नहीं समझ सकी। ऐसा नहीं था कि उसे रोहन के अंदर छिपी अच्छाईयां मालूम नहीं थी..। उसके बावजूद कुछ तो ऐसा था, जो उसे रोहन के क़रीब जाने से रोकता रहा। रोहन के घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी लेकिन एक गहरी ख़ामोशी ने घर को कैद कर लिया था।  जहां रोहन ने रात में घर से ना निकलने का फ़ैसला किया, वहीं रोहन के इस फ़ैसले से विवेक परेशान था। काम में नुकसान हो रहा था, वही काम जिसके बारे में रोहन के अलावा सिर्फ़ विवेक को मालूम था।  विवेक जानता था कि रोहन के लिए इस वक्त काम पर ध्यान दे पाना मुश्किल है , लेकिन दिन पर दिन बढ़ती परेशानियों से वो अनजान नहीं था…

 

रोहन - अभी कुछ दिन मीटिंग फिक्स मत कर विवेक… देख रह  है मां परेशान हैं.. अब तो वो मुझसे भी कम बात करती हैं…मैं उन्हें इस तरह से नहीं देख सकता… जो भी कुछ मैं कर रहा हूं वो आफ्टर ऑल उन्हीं के लिए तो कर रहा हूं… अगर मेरी मां ही खुश नहीं, तो मेरा कुछ भी करना सब वेस्ट है…

 

विवेक  - रोहन सर मैं जानता हूं…. लेकिन इस तरह से हम घर बैठ गए, तो आप समझ रहे हैं आगे क्या होगा… अगर मेरी माने तो हमें अपना काम करते रहना चाहिए…  

 

रोहन  - जो भी होगा देखा जाएगा लेकिन इस वक्त मां से इम्पॉर्टन्ट मेरे लिए कुछ भी नहीं। एक बात समझ लो विवेक चाहे मेरा सब कुछ ही क्यू न चला जाए मुझे रत्ती भर भी परवाह नहीं….लेकिन अगर मेरी मां को कुछ हो गया तो मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा।  इसलिए जब तक मां ठीक नहीं हो जाती मैं उन्हें किसी और के सहारे नहीं छोड़ सकता…  

 

विवेक चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहा था। एक तरफ़ रोहन की मजबूरी थी तो दूसरी तरफ वो काम जिससे ज़्यादा दिनों तक दूर रहने का मतलब अपने लिए ख़ुद ही मुसीबत खड़ी करना। कुछ दिनों में रोहन की मां हेमलता , कंचन के साथ बाहर वॉक पर जाने लगी थी और जब वो वापस लौटते तो उनके चेहरे पर सुकून दिखता।  रोहन को अच्छा लगता कि मां कंचन के साथ खुश रहती हैं। इधर कंचन और हेमलता के घर में आ जाने से बबलू भी खुश रहने लगा था। जब देखो तो कंचन और हेमलता के आगे पीछे मंडराता रहता। जब से कंचन आई थी, घर का माहौल ही बदल गया था… कहने को तो ये घर रोहन का था, लेकिन कंचन ने इसे अपने हिसाब से ढाल लिया था। जो कुछ भी उसे वहां अच्छा नहीं लगता उसे कंचन ने हटा देती। घर में सारी चीज़ें कंचन ने अपने मन के मुताबिक लगा दी थी चाहे वो पर्दे हो या फर्नीचर... किचन का सामान हो या पौधे…रोहन का घर अब बदल गया था। बाबलू भी कंचन ने बाबलू को अपना भाई ही बना लिया था और इस बात को रोहन ने महसूस किया था…

 

रोहन  - क्यूं बबलू  देख रहा हूं तुझे अब मेरी याद बिल्कुल भी नहीं आती है… अब तो तू  आता भी नहीं है मेरे पास… क्यूं??  मुझे भूल गया?? याद कर मां और कंचन के आने से पहले तू  सिर्फ़ मेरे साथ ही रहता था… तब मेरे सिवा तेरा यहां कोई नहीं था…

 

बबलू - नहीं भईया, ऐसी बात नहीं है… कंचन दीदी और मां जी के आ जाने से घर में रौनक आ गई है...और कंचन दीदी... वो तो बहुत अच्छी हैं…

 

रोहन ने बात काटते हुए कहा…

 

रोहन  - तो क्या मैं अच्छा नहीं हूं… तुझे ऐसा क्यूं लगता है, मैं अच्छा नहीं हूं… मुझे तो ये पता ही नहीं था, मैं तेरे लिए अच्छा नहीं हूं…  

 

रोहन ऐसा सवाल बबलू से कभी करेगा, उसने सोचा नहीं था…

 

बबलू - नहीं भईया आप भी अच्छे हैं बल्कि बहुत अच्छे हैं… अगर अच्छे नहीं होते तो क्या मैं आपके साथ इतने दिनों तक रहता… मैं समझता हूं भईया आप पर काम का बोझ है… रात में जाते हैं और सुबह आते हैं।  

 

रात का ज़िक्र होते ही रोहन चौकन्ना हो गया। उसे लगा कहीं बबलू ने कंचन और उसकी मां से उसके बारे में सब सच न बता दिया हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि मां को सब कुछ पता चल गया हो इसलिए मुझसे बात नहीं कर रही?? रोहन को अचानक चुप देखकर बबलू को एहसास हो गया कि वो क्या सोच रहा है और उसने कहा …

 

बबलू - नहीं भईया! आप जैसा सोच रहे हैं वैसा नहीं है …आप बेफिक्र रहिए मैंने किसी से कुछ भी नहीं कहा। ऐसा कभी नहीं होगा, कि आपके बारे में मेरे मुह से कुछ भी गलत निकले।  

 

यह बात रोहन को अच्छी तरह मालूम थी कि बबलू कभी उसे धोखा नहीं देगा। एक बबलू ही था जो अकेलापन में उसके साथ रहा। न कभी कोई सवाल पुछा और  न ही कभी कुछ जानने की कोशिश की। कहने को तो बबलू रोहन के घर में काम करता था लेकिन उसकी हर अनकही बातें रोहन समझ जाता था। पिछले महीने ही तो जब रोहन एक रात घर से निकलने वाला था तो उसने बबलू को फ़ोन पर बात करते सुना …

 

बबलू - तुमने पहले क्यूं नहीं बताया?? इतना सब कुछ हो गया लेकिन तुम फिर भी चुप रही…

 

रोहन बबलू की बातें सुन रहा था और रेडी भी हो रहा था …

 

बबलू - पैसों की ज़रूरत थी तो मुझे क्यूं नहीं बताया… मैं देखता, कोई इंतज़ाम करता…

 

फ़ोन के दूसरे तरफ़ से आवाज़ आई... जिसे सुनकर बबलू थोड़ी देर के लिए चुप हो गया…

 

बबलू - क्या?? पचास हज़ार रुपए चाहिए!! देखो  इतने पैसे तो अभी मेरे पास नहीं हैं लेकिन तुम परेशान मत हो, कोई न कोई रास्ता निकालता हूं… ज़्यादा सोचो मत.. भगवान हमारे साथ हैं सब ठीक हो जाएगा…

 

फ़ोन कट गया था…बबलू घर में इधर से उधर टहलता रहा था।  उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि 50 हज़ार रुपए वो कहां से लाएगा…तभी कार में बैठने से पहले रोहन ने बबलू को बुलाया ..

 

रोहन - बबलू मैं जा रहा हूं…

 

बबलू का कोई जवाब नहीं आया जबकि बबलू चंद कदमों की दूरी पर था… रोहन ने दुबारा से पुकारा..

 

रोहन  - कहां खोया है?? मैं जा रहा हूं…

 

बबलू - जी भईया….  

 

रोहन - यह रख पचास हज़ार रुपए.. तुझे ज़रूरत है ना.. अपना काम कर…

 

उस वक्त बबलू ने सोचा भी नहीं था कि रोहन बिना मांगे उसे पचास हज़ार रुपए दे देगा।  

 

बबलू - नहीं भईया.. आप रखिए.. मुझे नहीं चाहिए रुपए..

 

रोहन - अभी तो तू कह रहा था कि कोई इंतज़ाम करेगा… मुझसे पैसे लेने में तू छोटा हो जाएगा…

 

बबलू - नहीं भईया… इतने पैसे आपको कैसे लौटाऊंगा…

 

रोहन  - वापस देने की ज़रूरत नहीं… अपना काम कर और हां जाकर सो जा.. सुबह आऊंगा वापस…

 

ऐसा था रोहन... बबलू की नज़रों में। रोहन सबकी बात सुन लेता था जबकि सब को यही लगता कि उसको किसी का ख्याल नहीं। उस दिन के बाद से बबलू, रोहन के बेहद करीब हो गया था। रोहन और बबलू बात कर ही रहे थे कि तभी एसएचओ कर्मवीर की गाड़ी घर के सामने आके रुकी।  बबलू भागकर गया और गेट खोल दिया… रोहन ने खिड़की से सब कुछ देख लिया था। इस बार एसएचओ कर्मवीर उससे पूछताछ करने के लिए उसके घर आया। इस बार रोहन अकेला नहीं था पूछताछ के लिए... उसकी मां, कंचन और बबलू भी थे अगर किसी सवाल पर  इनमे से कोई भी अटका तो,  रोहन के ऊपर सवालों की तलवार लटक जाएगी।  

किन सवालों के जवाब लेने आया है एसएचओ कर्मवीर ?  

क्या रोहन कि सच्चाई आ जाएगी उसकी माँ और कंचन के सामने ? 

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