मुश्किलों के साथ रोहन ने पक्की दोस्ती कर ली थी। कॉलेज से निकलने के बाद रोहन के लिए ज़िंदगी इतनी आसान नहीं रही। उसके पापा योगेश का गायब हो जाना, मां हेमलता के ऊपर घर की सारी ज़िम्मेदारी और अकेलेपन का दर्द जो हेमलता ने रोहन के सामने कभी ज़ाहिर नहीं होने दिया। इन सब चुनौतियों के बीच रोहन की ज़िंदगी काफ़ी मुश्किल रही।  रोहन की माँ ने खुद को मज़बूत कर लिया था। उन्होंने रोहन से अपना दर्द कभी ज़ाहिर नहीं किया , वो बात और है कि जब आप किसी से दिल से जुड़े हों तो उस शख़्स की तकलीफें बिना कहे समझ आने लगती है। हेमलता की आंखों में रोहन को कामयाब बनाने का सपना था, लेकिन हर सपना सच हो जाए ये ज़रूरी नहीं होता इसलिए शायद रोहन आज उस रास्ते पर है जिस पर वो चलना ही नहीं चाहता था। रोहन जब छोटा था तो अक्सर अपने पापा को याद करता । रोहन के पापा योगेश की धुंधली यादें उसके जेहन में थी उनकी बातें, उनका हंसना, उनके साथ खेलना और उनके साथ जाकर आइस-क्रीम खाना रोहन को बहुत पसंद था। रोहन को होम वर्क कराते वक्त चुटकियों में प्रॉब्लम सॉल्व कर देना, रोहन को हमेशा लगता कि उसके पापा जीनियस हैं। उसके पापा का यूं चले जाना उसे हमेशा परेशान करता रहा। बचपन में रोहन जब भी अपनी मां से पापा का ज़िक्र करता तो उसकी मां हेमलता चुप हो जाती और बात बदलते हुए रोहन का ध्यान भटका देती अगर रोहन कोई जवाब नहीं देता तो फिर कोई दूसरी बात करती जिससे रोहन उस सवाल को भूल जाता। शायद उस सवाल का सामना हेमलता नहीं करना चाहती। क्या कहती रोहन को कि उसके पापा कहां चले गए ?? ऐसा करते हुए उन्हे रोहन का ख्याल क्यूं नहीं आया?? चलो मान लिया मुझसे नाराज़ थे लेकिन रोहन,  रोहन तो उनका अपना जिगर का टुकड़ा था।  जिसकी हंसी के लिए योगेश कुछ भी करने को तैयार थे।  

 

बाप बेटे की मस्ती से तो कभी-कभी हेमलता भी परेशान हो जाती। बाप बेटे की वजह से पूरे घर में रौनक रहती। अपने बेटे रोहन पे जान छिड़कते थे योगेश। योगेश के लिए रोहन ही सब कुछ था। उसकी एक हंसी के लिए वो कुछ भी करने को तैयार रहते। रोहन की जायज़ - नाजायज़ सभी ज़िद वो पूरी करते। रोहन की आंखों में आंसू आ जाए तो योगेश का दिल बेचैन हो उठता उस दिन बहुत तेज़ बारिश हो रही थी- ‘रोहन सो रहा था हेमलता रोहन के लिए टिफिन तैयार कर रही थी वैसे रोहन को स्कूल भेजने के लिए ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी लेकिन उस दिन जब हेमलता ने रोहन को उठाया तो वो बिस्तर छोड़ने को तैयार ही नहीं था। बार-बार स्कूल नहीं जाने की ज़िद करता। एक बिस्तर से उठ कर दूसरे बिस्तर पर सो जाता और ये सब कुछ योगेश देख रहे थे। जब रोहन ने अपने मां की बात नहीं मानी तो हेमलता ने उसे एक थप्पड़ लगा दिया। जिसके बाद रोहन ने पूरे घर को सर पर उठा लिया था। योगेश और हेमलता के बीच इस बात को लेकर काफी बहस भी हुई लेकिन हेमलता नहीं मानी जबरदस्ती रोहन को स्कूल भेज ही दिआ। हेमलता इस बात को लेकर खुद भी काफी परेशान थी कि उन्होंने अपने बेटे को मारा था लेकिन थोड़ी ही देर में ख़ुद को ये कह के समझा लिया कि हर मां अपने बेटे की भलाई के लिए ऐसा ही करती है। स्कूल से आने के बाद रोहन को बुखार हो गया था। योगेश ने इस बात को लेकर हेमलता से बहुत लड़ाई की थी। योगेश इस बात से साफ़ इनकार कर रहे थे कि रोहन मौसम के बदलने से बीमार हुआ था। पता नहीं क्यूँ उस दिन योगेश के दिमाग में ये बात बैठ गई थी कि हेमलता रोहन के साथ ज़्यादा सख़्ती से पेश आती है और रोहन उसकी वजह से बीमार हुआ है। उसने हेमलता से कहा - “ रोहन छोटा बच्चा है उसे प्यार से भी समझाया जा सकता है”  

 

हेमलता - तुम्हें क्या लगता है योगेश तुम ही रोहन से प्यार करते हो मैं नहीं??? तुम ये बात भूल गए हो कि मैंने ही उसे जन्म दिया है, तुमने नहीं। सिर्फ़ प्यार करने से हमारा बच्चा बिगड़ सकता है। ये बात तुम समझते क्यूं नहीं हो!! मैं उसकी दुश्मन नहीं हूं। एक बात कान खोलकर सुन लो… तुम अपनी तरह तुम रोहन को मत बिगाड़ो योगेश। वैसे भी रोहन बहुत बिगड़ गया है, देख रहे हो उसकी हरकतें आजकल , हर बात पर बहस करता है, मेरी बात नहीं सुनता… एक तुम क्या कम थे, जो अपने बेटे को भी अपने जैसा बना लिया।  

 

ये सुनते ही दोनों बाप बेटे ने खिलखिला कर हंस दिया। दोनों की हंसी की गूंज आज भी हेमलता को सुनाई पड़ती है और आंखें नम हो जाती है।  

अस्पताल से वापस आने के बाद हेमलता बदल गई थी। पहले की तरह ज़्यादा नहीं बोलती। अपने कमरे में रहती और कुछ ज़रूरत हो तो कंचन और बबलू से कह देती। रोहन कुछ पूछता भी तो हां या ना में जवाब देकर चुप हो जाती।  हेमलता का यूं चुप हो जाना अब रोहन को दर्द देने लगा था। अब उसके पास माया भी नहीं थी जो उसे समझाती डांटती और कहती…  

 

माया - रोहन इतना क्यूं सोचते हो?? इतना सोचोगे तो कैसे काम चलेगा?? टेक इट ईज़ी  … तुम्हारे ज़्यादा सोचने से दिखने वाला रास्ता भी बंद हो जाएगा बुद्धू  

 

 

रोहन को हमेशा यही लगता कि माया की लाइफ कितनी कूल है उसको कोई प्रॉब्लेम नहीं है और अगर है भी तो वो बड़े आराम से प्रॉब्लेम का सोल्यूशंस ढूंढ लेती है मुझसे ऐसा क्यूं नहीं होता? रोहन को याद है जब उसकी माँ हेमलता बीमार रहने लगी थी और घर में पैसे पैसे नहीं थे। उस वक़्त रोहन के पास ऐसा कोई काम नही था जिससे घर आसानी से चल सके। कई बार माया ने पैसे देने की कोशिश भी की लेकिन रोहन ने मदद लेने से साफ़ मना कर दिया। उसे तो ऐसा रास्ता निकालना था जिससे कोई भी परेशानी उसकी ज़िंदगी में कभी लौट कर ना आए।  

 

माया - देखो  रोहन मैं जॉब करती हूँ। ये मेरे पैसे हैं इसे मैं जैसे चाहूं वैसे खर्च कर सकती हूं। हम दोनों अलग नहीं हैं समझ रहे हो न… देखो मैं जानती हूं तुम्हें हेल्प लेना अच्छा नहीं लगता, लेकिन पैसों के बग़ैर कैसे अपनी मां का इलाज़ करवाओगे रोहन??? समझ रहे हो ना मैं क्या कह रही हूं…  

 

 

रोहन - समझ रहा हूं लेकिन मैं तुमसे हेल्प नहीं ले सकता… सॉरी माया… बुरा मत मानना… कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा  

 

माया - इसका मतलब तुम मुझे अपना नहीं समझते…  

 

रोहन - समझता हूं माया… लेकिन तुम भी मेरी बात समझो प्लीज। अभी मुझे ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा…  

 

माया - अगर रास्ता नहीं निकला तो अपनी मां का इलाज़ नहीं करवाओगे???  

 

इस सवाल का जवाब उस वक़्त रोहन के पास नहीं था। उसकी ख़ामोशी में भी उसकी लाचारी और बेबसी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। माया और रोहन अब कम ही मिलते। कभी-कभी माया ही कॉल कर लेती।  दोनों के बीच का प्यार धीरे-धीरे कम पड़ने लगा था।  ये बात दोनो महसूस कर रहे थे और दूसरी तरफ़ रोहन कि मां हेमलता ज़्यादा बीमार रहने लगी। डॉक्टर कि फीस, दवाई का ख़र्चा बहुत ज़्यादा था। उस पर से रोहन के पास कोई काम न होना और उसकी माँ का ये कहना…  

 

हेमलता- क्यूं परेशान होता है बेटा?? मैं ठीक हूं… ये मौसम बदल रहा है ना बस इस वजह से प्रॉब्लेम है…  डोन्ट वरी .. तुम अपना ध्यान रखो खाना पीना भी छोड़ दिया है।  देखो तो कितना कमज़ोर हो गए हो। कल से तुम्हारी मनमानी ख़त्म… बिल्कुल अपने पापा पर गए हो…  

 

इतना कहते ही हेमलता चुप हो गई सालों बाद उसकी मां की ज़ुबान पर उसके पापा का ज़िक्र आया। कैसे और क्यूं शायद वो भी नहीं जानती लेकिन पापा का नाम इस घर में दुबारा सुनना रोहन को उन दिनों में खींचकर ले गया जब उसके पापा उसके साथ थे। यादों ने पुकारा तो ज़ख़्म भी हरे हो गए। माया के साथ रहते हुए रोहन कहीं न कहीं ये समझ चुका था कि दो प्यार करने वालों के बीच मजबूरियां भी रहती हैं,  तो क्या पापा की भी मजबूरियां रही होंगी?? कैसी मजबूरी??? एक दिन मां की डायरी रोहन को मिल गयी थी, जिसमें रोहन को उसके सारे सवालों के जवाब मिलने लग गए थे। मां हेमलता ने उन दिनों का ज़िक्र किया था, जब उसके पापा योगेश और हेमलता करीब आने लगे थे। उनकी नजदीकियां प्यार में बदल गई थी और फिर जीवन भर साथ रहने का फैसला किया था।  

 

हेमलता को पता न चल जाए, इसलिए रोहन रात को छिप-छिप के मां की डायरी पढ़ने लगा। रोहन उस बात को जानने लगा है जिसे छिपाने की हेमलता सारी उम्र कोशिश करती रही। आज रोहन को अपने पापा का ख्याल रह रह कर आ रहा था। रात में रोहन पुरानी यादों को टटोल रहा था कि तभी पीछे से बबलू ने कहा…  

बबलू - भैया आज कहीं जाना नहीं है??  

 

रोहन - नहीं आज कहीं नहीं जाना… तुम जाकर सो जाओ, मैं भी नीचे आता हूं  

 

रात भर रोहन छत पर अकेला कभी ख़ुद से , कभी माया से तो कभी अपने पापा से बातें करता रहा। उस वक़्त अकेला रोहन बिल्कुल इस दुनिया से बेखबर था।  

क्या था रोहन के पिता का सच?  

कौन सी यादों ने रोहन को बेचैन कर दिया था ? 

आखिर क्यों माया का नाम धुंधला हो गया था रोहन की ज़िंदगी से?  

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