भूषण(ठानते हुए)- मैं ब्रेक लूँगा.... 

यही कहा था बस भूषण ने, जब अविनाश ने उसका आगे का प्लान पूछा था। अविनाश से काम के बारे में जानकर उसे राहत महसूस हुई थी और बिना कुछ आगे बताए उसने फोन काट दिया था।अब इसके आगे उसके मन में क्या था या ब्रेक लेने से उसका क्या मतलब था, यह तो सिर्फ वही जानता था। उसने कुर्सी पर बैठते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं और बार-बार अपने मन में बस यही सोच रहा था कि कभी-कभी हमें ब्रेक लेना चाहिए। ऐसा लग रहा था जैसे रिज़ॉर्ट का हर कोना उसे यही कहने की कोशिश कर रहा हो। भूषण ने उठकर उस लिफ़ाफे को मेज़ पर रख दिया, और जैसे ही पीछे मुड़ा, उसने दरवाज़े पर मंदिरा को खड़ा पाया, जो उसे देखकर मुस्कुरा रही थी। मंदिरा के हाथ में एक बैग था और वह चेहरे से थोड़ी थकी हुई लग रही थी। भूषण ने उसकी तरफ मुस्कुराकर देखा और पूछा, ‘’तुम यहाँ? मैं तो तुम्हें बाहर पार्टी में ढूंढ रहा था…''

 

भूषण के सवाल पर मंदिरा अन्दर आई और भूषण की मेज़ पर एक एनर्जी ड्रिंक रखते हुए हँसकर बोली, ‘’और मैं तुम्हें वहां नहीं मिली! मुझे उम्मीद है लेकिन, कि तुम्हें तुम्हारी अमानत मिल गयी होगी।  तो फिर आप तैयार हैं जाने के लिए? मैंने आनंद श्री जी के सेक्रेटरी से बात की उन्होंने...''

 

मंदिरा आगे कुछ कहती, उससे पहले ही भूषण ने उसकी बात काटते हुए कहा, ‘’नहीं नहीं, आपको उनसे बात करने की ज़रूरत नहीं, मेरा मतलब है अभी नहीं...दरअसल ऑफिस का इशू सोल्व हो गया है, और मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी कावेरी...मतलब मेरी जूनियर जिसने वह इशू create किया और फिर उसे solve किया, उसकी तरह एक छोटा सा ब्रेक लूँ.. तो मैं सोच रहा हूँ कि  यह  रिसोर्ट अच्छा ऑप्शन हो सकता है...''

 

मंदिरा भूषण की बात पर मुस्कुरा दी और भूषण की मेज़ से वह लिफ़ाफ़ा उठाते हुए बोली, ‘’इसका मतलब मैं इन टिकट्स को ले जाऊं? मुझे बहुत अच्छा लगा कि तुमने अपने लिए यह  फैसला किया... और मैं यही उम्मीद कर रही थी कि तुम यह  चीज़ खुद से decide करो कि तुम्हें यहाँ रहना है या नहीं... न कि किसी के दबाव में, या किसी की एडवाइस पर। anyway, i am proud of you, कि तुमने यह फैसला खुद लिया..और मुझसे इस smile  के साथ बात की....वरना अब तक तो तुम सिर्फ मुझसे नाराज़ थे..''

 

मंदिरा की बात सुनकर भूषण थोडा झेंप गया और फिर हंसने लगा। भूषण को यूँ असहज होता देख मंदिरा ने कहा, ‘’अरे! प्लीज तुम फिर से चुप मत हो जाओ.. by the way अब जब तुमने यहाँ रुकने का मन बना लिया है, तो तुम्हें यहाँ के हर session को attend करना होगा, और कल हमारा फ्रेशर्स इंट्रोडक्शन सेशन है, जहाँ तुम्हारी एक टीम बनाई जाएगी और उस टीम के सभी लोग अपनी-अपनी कहानी, यानी जिन वजहों से वह यहाँ है, वह बतायेंगे। तैयार रहना, और यह एनर्जी ड्रिंक थैंक्यू कहने के लिए , डीजे बनने के लिए। चलो.. मैं चलती हूँ.…''

 

भूषण ने मंदिरा की बात पर अपना सिर हिलाया और एक मुस्कान के साथ उसे अलविदा कहा, लेकिन उसके जाने के बाद जैसे ही वह अपने बेड की तरफ मुड़ा, उसने देखा कि वह अपना फ़ोन देना तो भूल ही गया था। उसने एक बार कमरे से बाहर जाकर देखा लेकिन मंदिरा वहां नहीं थी। उसने खुद से ही कहा, ‘अब इसे कल खुद जाकर submit कराना पड़ेगा....फिर से वह बूढ़े अंकल मिलेंगे... वैसे कल का यह  इंट्रोडक्टरी session, क्या होगा इसमें?’

 

भूषण अपने इन्हीं अनसुलझे सवालों के साथ सो गया। उसके मन की बेचैनी आज थोड़ी कम जरुर हुई थी, लेकिन उसकी आँखों में नींद सुबह होने से कुछ ही देर पहले आई।  उसके सोने के कुछ ही देर बाद सूरज धीरे-धीरे पहाड़ों के पीछे से बाहर झांकने लगा, आसमान गुलाबी और सुनहरी किरणों से भरा हुआ था, ठंडी हवा हल्के-हल्के फूलों की खुशबू लिए बह रही थी। हरी घास पर पड़ी ओस की बूंदें, चमक रही थीं। चिड़ियों की चहचहाहट उस खामोशी को सुकून से भर रही थी। भूषण की नींद खुली और उसने कमरे की खिड़की से झांकते हुए बाहर के इस नज़ारे को देखा। वैसे तो उसकी आँखों में थकान, और सिर में हल्का दर्द था, लेकिन फिर भी भूषण के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति उसे शांत करने की कोशिश कर रही हो। उसने बीते कल की सारी बातों को ध्यान में रख कर खुद से कहा, ‘’चलो, आज बस अपने लिए जीने की कोशिश करते हैं।''


भूषण ने कमरे से बाहर निकलने का फैसला किया, वह रिज़ॉर्ट के लॉन में गया और वहाँ बनी एक लकड़ी की बेंच पर बैठ गया। उसके सामने एक अधेड़ उम्र की औरत बैठी थी, जो किसी किताब में डूबी हुई थी। भूषण ने उसकी ओर देखा, और उसकी किताब का टाइटल पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा, ‘’the inner voice''
 

भूषण की आवाज़ सुनकर उस औरत ने भूषण की ओर देखा और मुस्कुराई और कहा, “यह किताब मेरी सबसे अच्छी साथी है। जब जीवन में कुछ समझ नहीं आता, तो यह जवाब देती है” भूषण ने मुस्कुराते हुए सिर तो हिला दिया, लेकिन वह जवाब में कुछ नहीं कह सका। उसकी चुप्पी को उस औरत ने समझा और अपनी बात आगे बढाते हुए कहा “आप परेशान लग रहे हैं, साथ में थके हुए भी। नींद नहीं आती आसानी से, लगता है .. शायद सवाल और शिकायत बहुत हैं आपके मन में... लेकिन अब यहाँ आए हैं तो थोड़ा अपने मन को आराम दीजिए। हर सवाल का जवाब तुरंत मिल जाए, यह ज़रूरी नहीं होता” औरत की बातें सुनकर भूषण ने एक लंबी सांस ली। वह उन बातों में डूबने लगा, उसे महसूस हुआ कि शायद यह रिज़ॉर्ट सिर्फ आराम करने की जगह नहीं, बल्कि खुद को खोजने का जरिया भी है। कुछ देर बाद भूषण वहाँ से उठकर रिज़ॉर्ट की मुख्य लॉबी की ओर बढ़ा जहाँ एक बोर्ड लगा था, उसने उसे पढ़ते हुए कहा, ‘’वेलकम freshers.. सुबह 8  बजे: गेस्ट इंट्रोडक्टरी सेशन''

 

बोर्ड पढकर भूषण को कुछ अजीब सा महसूस हुआ। वह अब भी वहाँ जाने को लेकर दुविधा में था। कुछ समय बाद, भूषण ने खुद को वहाँ जाने के लिए तैयार कर लिया। हॉल में दाखिल होते ही उसने देखा कि वहाँ कई लोग बैठे थे। हर चेहरा अलग कहानी कहने के लिए तैयार। वह सारे चेहरे उसके लिए अनजान थे, लेकिन वहां एक मुस्कुराता हुआ हंसता हुआ पहचाना चेहरा भी था… वह थी मंदिरा! मंदिरा ने भूषण के आने के बाद session को शुरू करते हुए कहा, ‘’मेरी टीम आ चुकी है, लेकिन क्योंकि मेरी टीम में आज सिर्फ एक ही नए मेम्बर हैं, (भूषण को देख) तो मुझे आप सब पुराने मेम्बर्स को अपनी कहानी सुनाने का मौका देना होगा… तो शुरू करते हैं। मैं आप सबका यहाँ तहे दिल से स्वागत करती हूँ.. और अब जैसा कि आप सब समझ गये होंगे, हमें बताना है कि हम सब यहाँ क्यों है?''

 

मंदिरा की बात सुनकर सभी लोगों के चेहरे पर एक झिझक भरी मुस्कान थी, जो उनके डर और उनकी हिचकिचाहट को बयाँ कर रही थी। मंदिरा का इशारा मिलने ही पहले एक अधेड़ आदमी ने अपनी कहानी सुनाई, उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने परिवार के दबाव में अपनी पसंद का काम छोड़ दिया था। उनकी आवाज़ में पछतावे का दर्द साफ झलक रहा था। उनके बाद एक जवान लडकी खड़ी हुई उसने बताया कि कैसे उसने एक बुरी रिलेशनशिप से निकलकर अपने लिए एक नई शुरुआत की, और हिम्मत जुटाकर वह यहाँ आई। उसकी कहानी सुनकर हॉल में बैठे हर शख्स की आँखों में एक चमक आ गई। भूषण ने मन ही मन कहा, ‘’इन सब की कहानियाँ मेरी कहानी जैसी ही तो हैं, बस उनके किस्से अलग हैं लेकिन जिस दौर से यह  गुजरें, जिन चीज़ों से यह लड़े, वह सब वैसी ही हैं.. चाहे वह अकेलापन हो या उम्मीद का खो जाना…''

 

भूषण को हर कहानी से ऐसा ही लग रहा था कि जैसे हर कोई उसे यह समझाने की कोशिश कर रहा हो, वह अकेला नहीं है। भूषण अपने ख्यालों में खोया था कि तभी एक बूढ़ी औरत उठीं…  उनकी चाल थकी हुई थी, लेकिन आवाज़ दमदार थी। उन्होंने एक गहरी सांस ली और कहा, “मैंने अपने जीवन के 40 साल अपने पति के साथ बिताए, लेकिन उन सालों में मैंने खुद को खो दिया। मैं उनकी हर बात मानती रही, एक अच्छी पत्नी बनी, माँ बनी, बहु बनी..  लेकिन एक दिन जब मैं आईने में खुद को देख रही थी, तो मैंने पूछा, तुम कौन हो? मुझे इस सवाल का जवाब नहीं मिला। मेरी पहचान इन रिश्तों की मोहताज हो गयी थी...बस उसी दिन मैंने तय किया कि अब मैं अपने लिए जियूँगी। यह रिज़ॉर्ट मेरी नई शुरुआत की जगह है” भूषण की आँखें उस बूढ़ी महिला की बातों पर टिक गईं। उसकी कहानी सुनकर वह भीतर से हिल गया। उसे लगा जैसे उसकी खुद की ज़िंदगी में भी वही सवाल गूँज रहा हो। भूषण ने अपने मन में सवाल को दोहराते हुए कहा, ‘’शायद मिसेज बत्रा को भी ऐसा ही कुछ लगा हो.. क्या पता वह रिश्तों के नाम से परेशान हो गयी हों, इसलिए उन्होंने मुझे छोड़ दिया...और मैं.. मुझे भी तो नहीं पता कि मैं कौन हूँ?

 

भूषण इन सवालों के जाल में उलझता हुआ अपने ही ख्यालों में खोया रहा। सेशन खत्म होने के बाद भूषण धीरे-धीरे डाइनिंग हॉल की ओर बढ़ा। उसके भीतर एक अजीब सा सुकून था, जैसे किसी ने उसके कंधों का बोझ हल्का कर दिया हो। हालाँकि इन कहानियों ने उसे एक नई दिशा में सोचने पर मजबूर किया था, लेकिन वह अब भी अपनी उलझनों के जवाब नहीं पा सका था। डाइनिंग हॉल में हल्की-हल्की संगीत की धुन सुनाई दे रही थी। वहाँ बैठकर खाना खा रहे लोगों की हंसी-मज़ाक और बातचीत उस जगह को गर्माहट दे रहे थे। भूषण ने अपनी नजरें घुमाईं, तभी उसकी नजर एक कोने में बैठे राघव पर पड़ी। राघव अकेला बैठा था। उसकी कुर्सी खिड़की के पास थी, और वह बाहर देख रहा था। उसकी आँखों में एक गहरी उदासी झलक रही थी। जैसे ही उसने भूषण को हॉल में आते देखा, उसने तुरंत अपनी नजरें झुका लीं। शायद वह अब भी अपनी कल की हरकतों से शर्मिंदा था, लेकिन  भूषण के चेहरे पर कोई शिकवा नहीं था। उसने एक हल्की मुस्कान के साथ राघव के पास की कुर्सी खींची और उसके सामने बैठ गया और राघव से मुस्कान के साथ पूछा, ‘’तुम्हारी तबीयत कैसी है?


राघव ने धीरे-से सिर उठाया, उसकी आँखों में पछतावे की परछाई थी, उसने गहरी सांस लेते हुए धीमे से कहा, ‘’भूषण... मुझे माफ कर दो। मैंने जो किया, वह ग़लत था। कल का वह सारा ड्रामा... दरअसल, मुझे अवंतिका से मिलने जाना था। वह दूसरी बिल्डिंग में रहती है, और…''


भूषण ने उसकी बात बीच में ही रोकते हुए मुस्कुराकर कहा, ‘’रहने दो। जानता हूँ अवन्तिका रहती नहीं, रहता है....''


राघव ने उसकी ओर हैरानी से देखा। वह समझ नहीं पा रहा था कि भूषण इस पूरी घटना को इतनी आसानी से कैसे ले रहा है। राघव ने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा, ‘’तुम यह क्या कह रहे हो?''

 

भूषण- राघव मैं तुम्हें जज नहीं करने वाला... आज मैंने कई कहानियाँ सुनीं और महसूस किया कि हर किसी के पास कहने के लिए कुछ न कुछ होता है। अगर तुम चाहो, तो मुझे अपनी कहानी बता सकते हो। मैं ज्यादा बोलता नहीं, लेकिन मैं एक अच्छा लिसनर हूँ, so go ahead....


भूषण की यह बात सुनकर राघव कुछ पल चुप रहा। वह खिड़की के बाहर देखने लगा, जैसे खुद समझने की कोशिश कर रहा हो कि उसे यह बात कहनी चाहिए या नहीं। फिर उसने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, ‘’तुम सुनना चाहते हो? ठीक है... बताता हूँ, लेकिन यह कोई कहानी नहीं, मेरी ज़िन्दगी है। मैं अहमदाबाद से हूँ, मेरे पप्पा एक आईपीएस ऑफिसर हैं, मेरे लिए भी उनके कुछ ऐसे ही सपने थे कि मैं भी नाम कमाऊं, कुछ अच्छा करूं...वह हमेशा कहते थे कि उनका बेटा मर्द बनकर दिखाएगा। उनके लिए मर्दानगी ताकत, हिम्मत और कठोरता में थी, लेकिन मैं... मैं हमेशा खुद को अलग महसूस करता था। बचपन से ही मुझे गेम्स में नहीं, बल्कि आर्ट्स specially डांस में दिलचस्पी थी, लेकिन पापा को यह सब नापसंद था। उन्हें लगता था कि मैं कमजोर हूँ... ‘’


ये बात कहते हुए राघव का गला भर आया, उसने पानी का गिलास उठाया और एक घूंट भरा और कहा, ‘’जब मैं 14 साल का था, तब मैंने समझा कि मैं बाकी लड़कों जैसा नहीं हूँ, मुझे लडके पसंद हैं।  यह बात मुझे अंदर तक तोड़ गई। मैं खुद को लेकर उलझा हुआ था कि मैं कौन हूँ? यह सवाल मुझे दिन-रात सताता था... (गहरी सांस लेकर) लेकिन मैं अपने पापा को कभी यह नहीं बता सका। मैं जानता था कि वह इसे एक्सेप्ट नहीं करेंगे... मैंने कोशिश की, भूषण, बहुत कोशिश की, लेकिन मैं खुद को बदल नहीं पाया। मुझे हमेशा ऐसा लगता रहा कि मैं अपने पापा के लिए एक असफल इंसान बन जाऊँगा...मैं इसी डर में जी रहा था कि तभी मेरी ज़िन्दगी में अनमोल आया... उसने मुझे अहसास कराया कि मुझ जैसा होने में कोई शर्म की बात नहीं लेकिन मेरी एक गलती की वजह से उसे अपनी जान देनी पड़ गयी.. और मेरी वही गलती मुझे यहाँ तक ले आई…''

 

भूषण राघव की बातों को ध्यान से सुन रहा था। राघव को भी भूषण के सामने यह सब कहकर अपने बोझ को हल्का करने का मौका मिल गया था। वहीं दूसरी ओर मुंबई में रिनी का हाल बिल्कुल उल्टा था, वह सुकून से नहीं, बल्कि बेचैनी से जी रही थी। रिनी अपने ख्यालों में गुम, ऑफिस के केबिन में बैठी थी। उसके सामने कुछ लोग खड़े थे, जिनके हाथों में महंगे गहने और डिजाइनर ड्रेसेस थीं, लेकिन रिनी की नजरें उन गहनों या ड्रेसेस पर नहीं थीं। वह अपने फोन को हाथ में लेकर बैठी हुई थी, तभी उसका फोन बजा। रिनी ने बिना स्क्रीन देखे ही कॉल उठा लिया और बोली, ‘’हाँ अंकुश, बोलो। पता चला उस लड़की के बारे में? वह मुझे धमकाने की कोशिश कर रही है। जल्दी से यह  सब संभालो, मैं और इंतजार नहीं कर सकती।''

 

रिनी आगे कुछ बोलने ही वाली थी कि अगले ही पल कुछ ऐसा हुआ कि रिनी रुक गई। उसके चेहरे पर हड़बड़ाहट और हैरानी एक साथ उभर आई, फोन की दूसरी तरफ से जो आवाज़ आई, उसने उसके होश उड़ा दिए, क्योंकि फ़ोन पर दूसरी तरफ क्षितिज था... क्षितिज की आवाज सुनते ही रिनी के हाथ से फोन गिरते-गिरते बचा। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था, उसने तुरंत संभलते हुए फोन को कसकर पकड़ा और घबराते हुए कहा, ‘’बेबी... बेबी... तुम?''

 

रिनी की बात पर क्षितिज ने कहा “हाँ… और जो कुछ तुमने किया है, वह सब मुझे पता चल चुका है। तुम्हें क्या लगा था? मुझे यह सब कभी पता नहीं चलेगा कि तुम क्या कर रही हो? ” क्षितिज की बात सुनकर रिनी की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन उसकी घबराहट उसकी आवाज़ में साफ झलक रही थी। वहीँ दूसरी तरफ, भूषण राघव से बात करने और खाना खाने के बाद फ़ोन लौटाने के लिए एडमिन ऑफिस चला गया लेकिन एडमिन ऑफिस में कदम रखते ही भूषण की नज़र वहां बैठे शख्स पर गयी जिसे देखकर भूषण हैरान रह गया.. उसने हैरानी से कहा, ‘’यह… यह यहाँ क्या कर रहे हैं?''

आखिर कौन था यह शख्स? क्या भूषण भी कर पायेगा अपनी कहानी सुनाने की हिम्मत? क्या किया रिनी ने? जानने के लिए पढ़िए अगला भाग. 

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