प्रेताल की बुरी शक्तियों के प्रभाव से गाँव की सुकून भरी ज़िन्दगी ख़राब हो रही थी। गाँव के कुछ लोग आरु को इन सब मुसीबतों का ज़िम्मेदार मान रहे थे। भीमा समझ चुके थे कि अब अगर यज्ञ अनुष्ठान ना किया गया तो गाँव की समस्या और भी बढ़ती जायेगी। इसलिए उन्होंने सरपंच को कुटिया में बुलाया और बड़ा यज्ञ करने का इंतज़ाम करने के लिए कहा

भीमा-भंवर तुम तो जानते ही हो इन बुरी शक्तियों ने गाँव पर फिर से बुरा असर डालना शुरू कर दिया है, हमें एक और यज्ञ करना होगा

सरपंच-जी बाबा आप बताइए, क्या करना है अभी सारी व्यवस्था हो जायेगी।

भीमा-तुम्हें यज्ञ की अग्नि के लिए मैदान के बीच लगे 'ध्याम' वृक्ष की लकड़ियाँ लानी हैं और इस बात का ध्यान रखना है कि यज्ञ के समय गाँव के सभी लोग पूजा में शामिल रहें।

सरपंच-जी बिलकुल मैं सभी को बुला दूंगा, पर बाबा पिछली बार की तरह क्या इस बार भी हमें ...

इससे पहले कि सरपंच अपनी बात पूरी कहता, भीमा ने उसकी बात काटते हुए कहा

भीमा-उस बारे में हम बाद में बात करेंगे, तुम बस लकड़ियों का इंतज़ाम करो और गाँव वालों को बता दो कल यज्ञ होने वाला है।

सरपंच-जी मैं अभी सबको बता देता हूँ।

सरपंच की बात भीमा ने इस लिए काटी थी क्योंकि उनके पास आरु भी बैठा था, पर इस यज्ञ में कुछ तो ऐसा था, जो आरू से छिपाया जा रहा था। भीमा सरपंच को कुटिया के दरवाज़े तक छोड़ कर वापिस आये तो उन्होंने आरु का उदास चेहरा देख कर पूछा।

भीमा-क्या हुआ इतने उदास क्यों बैठे हो तुम।

आरू-ये सब परेशानी मेरी वज़ह से हुई है ना?

भीमा-नहीं किसने कहा, देखों तुम्हारे आने से पहले से ही ज़मीन बंजर हो रही थी, पर जब तुम आये तो ये फिर से हरी भरी हो गयी, नदी का जल भी साफ़ हो गया है।

आरू-हाँ अब फिर से गन्दा भी तो हो गया।

भीमा-अरे वह तो बस एक घाट ही था, जिसे भंवर ने अब साफ़ करवा दिया है, देखो आरु जीवन इसी का नाम है। अगर हम हर मुसीबत से ऐसे डरने लगे तो हम कभी एक अच्छा जीवन नहीं जी पाएंगे।

आरू-पर मेरे साथ कुछ अच्छा होता ही नहीं है।

भीमा-ये तुम कैसे कह सकते हो अच्छा नहीं हो रहा, मुझे ये बताओ की जो शक्तियाँ तुम्हारे पास है, क्या वह गाँव के किसी और बच्चे के पास हैं?

आरू-नहीं!

भीमा-जीव जंतुओं से बात करने की कला तुम्हारें अलावा किसी और बच्चे के पास है?

आरू-नहीं!

भीमा-तो उन बच्चों की नज़र से तुम ख़ुद को देखो, वह सब तुम्हें अपना नायक मानते हैं। वह सब बच्चें तुम्हारी तरह बनना चाहते है, जीवन में जो मिलता है उसका आनंद भी लेना चाहिए।

आरू-जी बाबा समझ गया, आगे से मैं कभी ऐसे उदास नहीं बैठूंगा।

आरु अब इतना समझदार तो हो ही गया था की, वह भीमा की बात का हर इशारा समझ जाता था। वह भी यज्ञ में मदद करने के लिए सरपंच के साथ जाकर लकड़ियाँ लेकर आया था। अगली सुबह सभी गाँव वालों को बुलाया गया और गाँव के एक खाली स्थान पर यज्ञ शुरू किया गया। यज्ञ के दौरान आरु ने एक चमत्कार होते देखा, उसे यज्ञ की अग्नि में कुलदेवी की आकृति दिखाई दी, उसने भीमा की तरफ़ देखा तो भीमा ने उसे चुप रहने का इशारा करते हुए मंत्र पढ़ना जारी रखा। यज्ञ के समाप्त होते ही हवन कुंड में पढ़ी भस्म का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा हर गाँव वाले को दिया गया और सभी ने अपने घर की दीवारों पर इस भस्म का टीका लगाया। भीमा ने एक थैले में बची हुई भस्म सरपंच को दी, इसे देखते हुए आरु ने भीमा से पूछा

आरू-आपने सबको थोड़ी-थोड़ी भस्म दी और सरपंच को इतनी सारी भस्म दी है, ऐसा क्यों किया?

भीमा-क्योंकि वह सबसे बड़ा है इसलिए, तुम बहुत सवाल पूछते हो!

आरू-हाँ पूछता हूँ, पर आप हर सवाल का जवाब भी तो नहीं देते ना!

भीमा-एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब तुम्हारे पास हर सवाल का जवाब होगा बस इंतज़ार करो।

अब रात हो चुकी थी, आरु खाना खा कर अपने कमरे में लेटा हुआ था की, अचानक उसे किसी के बात करने की आवाज़ सुनाई दी।

उसने अपने कमरे का थोड़ा-सा दरवाज़ा खोला और देखा की सरपंच और भीमा आपस में कुछ बात कर रहे थे। सरपंच के हाथ में भस्म का वही थैला था, जो भीमा ने उसे यज्ञ के बाद दिया था, कुछ देर बात करने के बाद वह दोनों कुटिया से बाहर चले गए। आरु को नींद नहीं आ रही थी, वह बस सोचे जा रहा था कि आख़िर भीमा और सरपंच गए कहाँ हैं, वह काफ़ी देर तक अपने कमरे में लेटा हुआ भीमा के आने का इंतज़ार करता रहा। 2 घंटे के लम्बे इंतज़ार के बाद कुटिया का सामने वाला दरवाज़ा खुलता है, आरु अपने कमरे से झांकते हुए देखता है कि भीमा अब वापस अपने कमरे में जा रहे थे। ये बात आरु के दिमाग़ में एक नया रहस्य छोड़ गयी थी कि आख़िर भीमा और सरपंच गए कहाँ थे। अगले दिन सुबह होते ही गाँव में एक सकारात्मक ऊर्जा का भाव महसूस किया गया। पक्षियों की मनमोहक आवाज़ से गाँव की हर गली गूंज रही थी। गाँव के सभी लोगों के चेहरे पर एक अलग-सी मुस्कान थी, भीमा ने कुटिया से बहार आकर कहा

भीमा-आज से आप सबको नदी के दक्षिण घाट पर जाने की ज़रूरत नहीं, आप अपने पुराने वाले घाट पर जाकर स्नान कर सकते हैं, वह घाट साफ़ और पवित्र हो गया है।

भीमा की ये बात सुनते ही सब गाँव वाले झूम उठे, हर तरफ़ ख़ुशी का माहौल था, भीमा के पीछे खड़े आरु ने पूछा।

आरू-बाबा आप तो अभी उठे हो, आपको कैसे पता के वह नदी का तट साफ़ और पवित्र हो गया है। मैंने रात को देखा था की, आप और सरपंच अंकल वह भस्म वाला थैला लेकर कहीं बाहर जा रहे थे।

आरु की ये बात सुनकर भीमा चौंक गए, वह कुछ कह पाते इस से पहले ही आरु ने अपनी बात रखते हुए कहा-

आरू-आप नदी में वह भस्म डालने गए थे है ना, बताओ मैं सही कह रहा हूँ ना?

भीमा ने राहत की साँस लेते हुए, आरु की बात के साथ सहमति जताते हुए कहा

भीमा-हाँ तुमने सही कहा, बहुत समझदार हो गए हो हर बात जान लेते हो!

पर ये सच नहीं था, भीमा और सरपंच नदी पर नहीं गए थे वह उस रात कहाँ गए थे, समय के साथ आरु को उसका भी पता चलने वाला था। फ़िलहाल गाँव में ख़ुशी का माहौल था, जिस खेत पर काले कीड़ों का साया था, वह खेत अब हरे भरे हो गए थे, वहाँ एक भी काला कीड़ा नहीं था। हर तरफ़ भीमा बाबा की जय जयकार हो रही थी, क्योंकि उनके अनुष्ठान से गाँव में फिर से खुशियाँ आ गयी थी। अनुष्ठान के कुछ दिन बाद गाँव में आयी नयी ऊर्जा का स्वागत करने के लिए कुलदेवी की पूजा के साथ जश्न की तैयारी भी की गयी।

आज गाँव में जश्न का माहौल था। रात होते ही पूजा ख़त्म होने के बाद गाँव के लोग गाना गाते हुए आग के आस पास घूमते हुए नाच रहे थे। आरु भी बच्चों के साथ खेल रहा था और दूसरी तरफ़ इस जश्न से थोड़ा दूर खड़े हुए भीमा और सरपंच आपस में कुछ बातें कर रहे थे

भीमा-भंवर उस रात आरु ने तुम्हें और मुझे भस्म ले जाते हुए देख लिया था।

सरपंच तो क्या उसे पता चल गया के हम कहाँ गए थे?

भीमा-नहीं नहीं उसे लगता है कि हम दोनों ने वह भस्म नदी में डाल दी है, जिस से नदी का सारा पानी साफ़ हो गया है।

सरपंच-पर उसे अभी सच नहीं पता चलना चाहिए।

भीमा-हाँ वह चंचल स्वभाव का है, जिस बात का मना करो वही बात करता है। इसलिए मैंने उसे कुछ नहीं बताया

भीमा और सरपंच को बातें करता देख। आरू भी उनके पास आकर पूछता है-

आरू-आप दोनों मुझसे बहुत कुछ छिपाते हो, अब मैं बड़ा हो गया हूँ, आप मुझे हर बात बता सकते हैं, देखो मेरा कद पहले से बड़ा हो गया है और अब तो कुछ सालों तक मैं सरपंच जी जितना बड़ा हो जाऊंगा।

भीमा-हाँ तुम इससे भी बहुत बड़े हो जाओगे।

आरू-अच्छा तो फिर बाबा ये बताओ, अब तो गाँव में सब कुछ अच्छा-अच्छा हो रहा है, तो क्या मेरे साथ भी सब-सब कुछ अच्छा होगा?

भीमा-हाँ बिलकुल, अब तुम्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है, तुम्हें कोई भी परेशान नहीं करेगा।

भीमा के अनुष्ठान के बाद उन काली शक्तियों का प्रकोप गाँव से चला गया था, पर ख़तरा हमेशा के लिए नहीं टला था। प्रेताल शांत ज़रूर हुआ था, पर उसने भी भविष्य के लिए अपनी तैयारी जारी रखी थी। जश्न के कुछ दिन बाद, आरु को शिक्षा देते समय भीमा बाबा उस अनुष्ठान के कुछ रहस्य बता रहे थे।

भीमा-आरु उस दिन तुम्हें यज्ञ में कुल देवी के दर्शन हुए थे?

आरू-हाँ बाबा।

भीमा-पर याद रखना तुम्हें किसी को कभी भी ये नहीं बताना है कि, हमारी कुल देवी दिखती कैसी हैं। भविष्य में भी कभी यज्ञ करते हुए अगर तुम्हें देवी के दर्शन हो, तो तुम्हारे आस पास बैठे लोगों को भी तुम भनक मत लगने देना की तुम्हें देवी दिखाई दे रहीं हैं।

आरू-पर वह क्यों बाबा?

भीमा-वो इसलिए के देवी के दर्शन सिर्फ़ तुम्हें और मुझे ही होते हैं और इस यज्ञ की मर्यादा के अनुसार हम देवी के बारे में किसी को भी बता नहीं सकते। नहीं तो हमें देवी का क्रोध भी झेलना पड़ सकता है।

आरू-जी बाबा, पर उस प्रेताल और साये का क्या हुआ? क्या वह हमेशा के लिए भाग गए हैं?

भीमा-नहीं बेटा प्रेताल भागने वालों में से नहीं है। पर उसकी शक्तियों को अभी सीमा में बाँधा जा सकता है। लेकिन भविष्य में उसकी शक्ति कौन-सा विकराल रूप लेगी ये कहना अभी संभव नहीं है। तुम फ़िक्र मत करो बस अपनी शिक्षा पर ध्यान दो बाकी मैं संभाल लूंगा।

कुछ समय के लिए ही सही पर गाँव में खुशहाली आयी और आरु को यज्ञ की ताकत का पता चला, पर जैसे कि भीमा ने बताया के प्रेताल को शांत करना संभव नहीं है। इसका मतलब की प्रेताल फिर कोई नई चाल चलने वाला है? आख़िर कौन जीतेगा काल की जंग?

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