शमशेर ने सब कुछ बेबाकी से बयां कर दिया। उसने पूरे घटनाक्रम का सच, राठौर इंडस्ट्रीज की गुप्त साजिशें, और परिवार के अंदर छुपे गहरे राज़ मीडिया के सामने खोल दिए। उसके शब्दों में दर्द और सच्चाई का एक ऐसा मिश्रण था, जिसे सुनकर हर कोई स्तब्ध रह गया।

सबसे अहम बात यह थी कि शमशेर ने स्पष्ट रूप से घोषित किया कि राठौर इंडस्ट्रीज की संपत्ति का अगले वारिस अब आरव और सुहानी ही होंगे। यह घोषणा सुनकर माहौल में एक हलचल सी मच गई — क्योंकि यह दोनों ही उस परिवार के वो सदस्य थे जिनके लिए न्याय और सही हिस्सेदारी लाना बेहद जरूरी था।

और फिर शमशेर ने एक ऐसा राज़ भी बताया, जो अब तक किसी को पता नहीं था — एक ऐसा सरप्राइज जिसे उसने सिर्फ कैमरे के सामने स्वीकार किया। उसने खुलासा किया कि विशाल प्रताप, वही विशाल प्रताप जो दिग्विजय और मंदिरा का बेटा है और बरसों पहले रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया था, वही राठौर इंडस्ट्रीज के उस हिस्से का असली वारिस है जो दिग्विजय के वारिस के नाम होना था।

इस घोषणा ने पूरे राठौर परिवार की तसलीम और सत्ता के दावों को हिला कर रख दिया। शमशेर ने बड़ी हिम्मत से यह भी कहा कि उसने अपने पूरे अधिकारों को विशाल प्रताप के नाम कर दिया है, ताकि न्याय का पहिया सही दिशा में घूम सके और दिग्विजय जैसे भ्रष्ट और लालची लोगों का राज खत्म हो सके।

यह वह मोड़ था जिसने पूरे खेल को बदल कर रख दिया था — और अब राठौर इंडस्ट्रीज का भविष्य, आरव, सुहानी और विशाल प्रताप के हाथ में था।

शमशेर ने बड़ी संजीदगी और स्पष्टता के साथ बताया कि काजल का अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। शुरूआत में सबका मानना था कि काजल को रणवीर ने किडनैप किया होगा, क्योंकि उसके ऊपर पहले भी ऐसे आरोप लगे थे और अब भी उसने दिग्विजय को अपने कब्जे में रखा हुआ है। इसलिए, काजल और दिग्विजय दोनों की खोज लगातार जारी है। हर संभव जगह उनकी तलाश की जा रही है, लेकिन अभी तक कोई ठोस सुराग हाथ नहीं लगा है।

शमशेर ने आगे बताया कि जिन झूठे और साजिशपूर्ण आरोपों के कारण शिव प्रताप को जेल भेजा गया था, उन सभी आरोपों की पूरी जांच के बाद उन्हें बेबुनियाद साबित कर दिया गया है। अब अदालत ने शिव प्रताप को पूरी तरह से बरी करने का फैसला लिया है। इसका मतलब यह हुआ कि बहुत जल्द शिव प्रताप जेल से रिहा होकर अपने परिवार के पास वापस लौटेंगे।

इस बात की सूचना जैसे ही परिवार वालों को मिली, उनके चेहरे पर राहत और उम्मीद की चमक लौट आई। वर्षों की बेइंसाफी और झूठे इल्ज़ामों के बाद आखिरकार सच सामने आने लगा था। अब उन्हें विश्वास हो गया था कि न्याय मिलेगा और वे काजल को भी खोज निकालेंगे। यह खबर परिवार के लिए एक नई शुरुआत की तरह थी, जिसने उनके दिलों में एक बार फिर हिम्मत और जोश भर दिया था।

शमशेर ने अपनी बातों का अंत करते हुए, गहराई से सांस लेते हुए, अपने शब्दों में एक अटल विश्वास और दर्द दोनों को समेटते हुए कहा, “हमने आज यहां जो सच सामने रखा है, वह सिर्फ मेरे परिवार का ही नहीं, बल्कि उन हजारों मासूमों की भी कहानी है, जिनके साथ इन अपराधियों ने जो अत्याचार किए हैं, ये उनकी भी आवाज़ है। हम उम्मीद करते हैं कि हमारा देश, हमारी न्याय व्यवस्था, इन अमानवीय अपराधों का कड़े रूप से हिसाब करेगी।

ये लोग, जो इतने लंबे समय तक अपने अपराधों की आड़ लेकर मासूमों की ज़िंदगियाँ तबाह करते रहे, अब अपने कृत्यों से बच नहीं पाएंगे। कोई भी कानून का उल्लंघन इस तरह बिना सजा के नहीं जाने दिया जाएगा। हमें अपने देश के कानून और उसकी प्रक्रियाओं पर पूरा भरोसा है।

हमें यकीन है कि न्याय की ये लड़ाई ही हमारी जीत होगी, और ये अपराधी सख्त से सख्त सजा पाएंगे। ताकि भविष्य में न केवल हमारे परिवार, बल्कि कोई भी इंसान इस तरह के अत्याचारों का सामना न करे। हमारा समाज, हमारा देश इस क़ानून के भरोसे खड़ा है, और ये भरोसा हमें मजबूती देता है कि सच और न्याय हमेशा विजयी होंगे।

धन्यवाद।”

शमशेर के शब्द गूंज रहे थे—उनमें सिर्फ उम्मीद ही नहीं, बल्कि न्याय की वह आग भी जल रही थी, जो अब कभी बुझने नहीं वाली थी।

अब कुछ ही देर में मीडिया ट्रायल्स शुरू हो चुके थे। हर न्यूज़ चैनल पर अपडेटेड ब्रेकिंग न्यूज़ लगातार लाइव दिखाई जा रही थी। गौरवी गिरफ्तार हो चुकी थी। दिग्विजय को पुलिस ने घंटों तक ढूंढा, लेकिन वो कहीं नहीं मिला। अंततः शाम होते-होते उसने खुद आकर समर्पण कर दिया और अपने सारे गुनाह कुबूल कर लिए। उसने बताया कि रणवीर ने ही उसे अगवा किया था, लेकिन वह किसी तरह वहां से भाग निकला।

जलती हुई साइट से रणवीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उसने किसी प्रकार का विरोध नहीं किया, मानो उसने हार मान ली हो। उसके चेहरे पर बस एक करुण मुस्कान थी—जैसे वह अपनी फूटी हुई किस्मत पर हँस रहा हो। क्योंकि अब उसे सच्चाई पता चल चुकी थी—विक्रम ने आरव को जो कहानी सुनाई थी, वह बिल्कुल सच थी।

रणवीर यह जानता था कि जिन बड़े क्लाइंट्स का डेटा उसने गंवा दिया है, वे उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाएंगे। जैसे ही उन्हें खबर मिलेगी, वह दुनिया के किसी भी कोने में छुपा हो, वे उसे खोज निकालेंगे। अब कोई उसे बचा नहीं सकता।

तीनों अलग-अलग सेल में बंद थे। तभी पुलिस स्टेशन में एक साथ कई कदमों की तेज आवाज़ गूंजने लगी। तीनों ने अपने-अपने सेल से नज़रें उठाकर देखा—सामने से शमशेर, आरव, सुहानी, विक्रम, मीरा और प्रणव उनकी ओर बढ़ रहे थे। शमशेर को जीवित देखकर गौरवी और दिग्विजय की आँखें फटी की फटी रह गईं—जैसे किसी भूत को देख लिया हो। गौरवी की नज़र जब आरव पर पड़ी, तो वह अचानक रोने और नाटक करने लगी।

"आरव बेटा... अरे बेटा... देख क्या हाल कर दिया है इन लोगों ने मेरा। तू तो जानता है ना, मैं ये सब नहीं कर सकती। ये सब इन दोनों ने मिलकर किया है, बेटा! मुझे फंसाया गया है। तुझे तो सब पता है ना?" वह जेल की सलाखों के पीछे से हाथ निकालकर आरव का हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए भीख मांगने लगी।

"हाँ, मुझे सब मालूम है, गौरवी।" आरव ने शांत पर तीखे लहजे में कहा, और साथ ही अपना हाथ झटक लिया…गौरवी की आँखें स्तब्ध रह गईं।

“मुझे सब मालूम है, और सब याद है, गौरवी जी।”

अब तीनों की आँखों में अविश्वास और बेचैनी थी।

"मतलब, इतने दिनों से तुम हमें धोखा दे रहे थे?" दिग्विजय ने गुस्से से सलाखों तक आकर कहा।

"‘धोखा’ शब्द आप लोगों के मुंह से अच्छा नहीं लगता। यही धोखा आप सालों से पूरी दुनिया को, अपने परिवार को, एक-दूसरे को और खुद को देते आए हैं," आरव का स्वर अब तेज और आक्रोशित हो गया था।

"शमशेर भाई, आपने तो हमें पूरी तरह चकमा दे दिया। अच्छा खेल खेला आपने," रणवीर ने आगे बढ़कर व्यंग्य में कहा।

"ये खेल तुम्हारे लिए था, रणवीर और मुझे अपनी गंदी ज़ुबान से ‘भाई’ कहकर इस शब्द का अपमान मत करो। अब असली खेल तो वो लोग खेलेंगे, जिन्होंने अपने काले धंधों को लेकर तुम पर भरोसा किया था। जल्द ही वो तुम्हें ढूंढ़ ही लेंगे," शमशेर ने ठंडी लेकिन चेतावनी देती आवाज़ में कहा।

रणवीर का चेहरा फीका पड़ गया। फिर भी उसने अपनी जेब में हाथ डालते हुए एक उदास मुस्कान के साथ कहा, “मुझे मालूम है मेरे साथ अब क्या होने वाला है। मैंने अपने नसीब को स्वीकार कर लिया है।”

"खैर, हम यहाँ एक खास काम से आए हैं," शमशेर ने गंभीरता से कहा।

"अफसोस, कि इस काम के लिए हम तुम्हारे अलावा किसी और के पास नहीं जा सकते," शमशेर ने आगे कहा, “तो बताओ, काजल और सावित्री की किडनैपिंग के बारे में क्या जानते हो?”

"पहले तो नहीं जानता था," रणवीर बोला, “जब मुझे खबर मिली कि मेरी काजल जिंदा है, तो मैं उसे लेने गया था—पर उससे पहले कोई और वहां पहुँच चुका था। उसी ने काजल और सावित्री को अगवा कर लिया….बहुत खोजा, बहुत सोचा—मगर कुछ हासिल नहीं हुआ।”

"लेकिन अब, जब मैं यहाँ बैठा हूं, अपनी मौत का इंतज़ार करते हुए, तो दिमाग पूरी तरह साफ है। और इसी सफाई में एक ख्याल आया, एक ऐसा किस्सा, जिसे जानकर सुहानी का दिल दहल जाएगा। उसे असली धोखे का मतलब समझ आएगा," रणवीर ने सुहानी की तरफ देखते हुए एक कटु मुस्कान के साथ कहा।

"मतलब?" सुहानी ने उलझन में पूछा।

"मतलब ये, सुहानी," रणवीर बोला, “सालों पहले जब काजल और मंदिरा उस गाड़ी में निकले थे, तो मुझे ये खबर किसने दी थी... ये सवाल तुम्हारे दिमाग में भी कई बार आया होगा, है ना?”

सुहानी की धड़कनें तेज़ हो गईं।

“वो कोई और नहीं, तुम्हारा बाप—शिव प्रताप—ही था।”

सुहानी के कदम लड़खड़ा गए। “नहीं... नहीं... बाउजी ऐसा नहीं कर सकते। वो ऐसा क्यों करेंगे?”

“क्योंकि तुम्हारा बाप जितना शरीफ दिखता है, उतना है नहीं। उसे हमेशा से शक था कि काजल का मेरे साथ रिश्ता चल रहा है। उसे तो ये भी लगता था कि तुम मेरी बेटी हो। वह तुमसे नफरत करता था और जब उसे हमारे खिलाफ गौरवी और दिग्विजय की साज़िशों का पता चला, और उसके चलते मेरे बाप ने तुम्हारा नाम वसीयत में जोड़ दिया—तब जाकर तुम उसके लिए एक ‘एसेट’ बन गईं।

लेकिन काजल लालची नहीं थी। जब उसने इस डील के बारे में सुना, तो साफ मना कर दिया। जब काजल मुझसे मिलने आई और उसने मंदिरा और विशाल को मेरे साथ देखा, तो गुस्से में उन्हें चुपके से साथ ले गई। तुम्हारे पापा इससे खुश नहीं थे। और जब उन्हें ये पता चला कि विशाल दरअसल दिग्विजय का बेटा है, तब उसे लगा उसकी डबल लॉटरी लग गई है।

वह काजल को रास्ते से हटाना चाहता था और इसलिए उसने जानबूझकर हमें वो खबर दी, जिससे हम काजल और मंदिरा को उस गाड़ी में उड़ा दें। मगर जब उसे पता चला कि काजल ज़िंदा है, तो वह डर गया। क्योंकि उसने गौरवी और दिग्विजय से तुम्हारी शादी आरव से करवाने के लिए पूरे सौ करोड़ लिए थे।”

सुहानी की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली। सालों का विश्वास, पलभर में चकनाचूर हो गया। आरव ने उसके कंधों पर हाथ रखकर उसे संभाला।

"और इसी वजह से तुम्हारे बाप ने तुम्हारी मां और उससे पहले सावित्री अम्मा को किडनैप किया था," रणवीर बोला।

"नहीं... नहीं... प्लीज़ कहो ये सब झूठ है... मेरे बाउजी अच्छे इंसान हैं!" सुहानी गिड़गिड़ाने लगी।

"अगर ये झूठ है, तो जाओ पूछो अपने बाप से। तुम्हारी मां लोगों की आंखों से झूठ पहचान लेती थी। अगर तुम उसकी बेटी हो, तो अपने बाप की आंखों का झूठ भी पहचान लोगी," रणवीर ने कहा।

लेकिन इस पूरे समय दिग्विजय का ध्यान एक बात पर ही अटका था।

"विशाल... मेरा और मंदिरा का बेटा है?" उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसने अपने बेटे की ओर हाथ बढ़ाया।

लेकिन विशाल ने अपने कदम पीछे खींच लिए और सुहानी को गले से लगा लिया। जैसे दुनिया को यह बता रहा हो कि हमारे बापों ने चाहे जो भी किया हो, लेकिन हम भाई-बहन एक-दूसरे के सच्चे रिश्ते को नहीं टूटने देंगे।

"भाई... ये झूठ बोल रहे हैं ना?" सुहानी के इस सवाल पर विशाल क्या जवाब देता, जब वो खुद वर्षों से इसी उलझन में जी रहा था। उसे भी अपने पिता शिव प्रताप के इरादे सच्चे नहीं लगते थे। और जब उसने सुहानी की शादी राठौर परिवार में कर दी, तो उसका शक ठोस होने लगा था।

उसने कुछ नहीं कहा, बस अपनी बहन को कसकर गले लगा लिया—जैसे कह रहा हो, “मैं हूं ना।”

कुछ दिन बाद…

रणवीर की बातें सच साबित हुईं। पुलिस ने शिव प्रताप से सच उगलवा लिया। सुहानी ने फिर कभी उससे मिलने की कोशिश नहीं की….उसके लिए वह इंसान मर चुका था।

अब उसके लिए मां और बाप, दोनों सिर्फ काजल थी—जो अब राठौर हवेली में उनके साथ रहती थी।

जब पुलिस ने एक बंद हो चुकी फैक्ट्री से काजल और सावित्री अम्मा को बरामद किया, तो दोनों की हालत बेहद खराब थी। खासकर सावित्री अम्मा की, लेकिन काजल ने उन्हें बड़ी मुश्किल से जिंदा रखा था।

सावित्री अम्मा को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। काजल को कुछ दिन निगरानी में रखने के बाद अपनी बेटी के पास जाने की इजाज़त मिल गई। अब सुहानी और विशाल दोनों अपनी मां के साथ घंटों वक्त बिताते थे। काजल, विशाल को उसकी मां की कमी कभी महसूस नहीं होने देती थी।

शमशेर भी अब अपने दोनों बेटों और दोनों बहुओं के साथ अपनी हवेली में शांति और सुकून से जीवन बिता रहा था।

हाँ, दो बहू…क्योंकि उसी हादसे के कुछ समय बाद, प्रणव ने मीरा को प्रपोज कर दिया।

मीरा की आंखों में आंसू थे—पछतावे के, दर्द के और राहत के। उसने जितनी गलतियाँ की थीं, उतनी ही बार सुधरने की कोशिश भी की थी। मगर उसे यकीन नहीं था कि वो माफ़ी की हक़दार है।

"क्या तुम मुझे एक मौका दोगी, मीरा?" प्रणव ने पूछा था, अपने घुटनों पर बैठकर।

मीरा कुछ देर चुप रही, फिर धीमे स्वर में बोली—"अगर तुम मुझे हमेशा सही रास्ते पर लेकर चलोगे… तो मैं भी तुम्हारे साथ कदम से कदम मिला कर चलूंगी।”

इस बार, रिश्ते दिल से जुड़े थे—किसी मजबूरी या साज़िश से नहीं। राठौर हवेली अब बदल चुकी थी, जहाँ पहले सिर्फ सत्ता और दिखावे का रौब था, अब वहाँ रिश्तों की गर्माहट और सच्चाई की खुशबू थी।

आरव और सुहानी के बीच की दीवारें धीरे-धीरे गिरने लगी थीं। उन दोनों ने बहुत कुछ खोया था, लेकिन अब वे एक-दूसरे में सुकून खोजने लगे थे।

सुहानी जब भी अपनी माँ के पास बैठती, तो काजल उसका माथा चूमकर कहती— “जिस आग में मैं जली थी, उसी राख से तूने नई दुनिया रच दी। मुझे गर्व है तुम पर सुहानी बेटा।”

और सुहानी मुस्कुरा कर आरव की ओर देखती… क्योंकि उसने भी अपनी मोहब्बत में सच्चाई का वो रंग देखा था, जो उम्र भर नहीं छूटता।

 

कुछ महीने बीत चुके थे।

आरव अब पूरी तरह ठीक हो चुका था। शरीर से भी, और मन से भी।

उसके चेहरे पर अब फिर से वही ठहराव था… पर अब वो ठहराव ठंडा या नीरस नहीं था। उसमें एक नमी थी, एक गर्माहट… और सबसे बड़ी बात—सुहानी के लिए एक अघोषित अपनापन।

सुबह की चाय अब दोनों एक साथ पीते थे। बातें अब कम नहीं, बल्कि धीमी और गहराई वाली हो गई थीं। आरव अब ज़्यादा सुनता था… और सुहानी अब ज़्यादा मुस्कुराती थी। आरव अक्सर अनकहे में उसकी मदद करता—कभी रिपोर्ट्स संभाल देता, कभी उसकी पसंदीदा ग्रीन टी कप उसके टेबल पर रख देता। और कभी-कभी बस चुपचाप पास बैठ जाता, बिना कोई सवाल किए।

और सुहानी? वो अब उसकी आँखों में वो शिकायतें नहीं खोजती थी… क्योंकि अब वहाँ एक जवाब रहता था—"मैं हूं, अब हमेशा तुम्हारे साथ हूं।"

एक शाम, राठौर हवेली की छत पर…आरव और सुहानी साथ बैठे थे। हवा में ठंडक थी, लेकिन उनके बीच एक अजीब सी गर्माहट।

"हम बहुत दूर घूम आए, है न?" आरव ने कहा।

"हाँ… और अब जब ठहराव मिला है, तो लगता है जैसे सबकुछ नया है," सुहानी ने जवाब दिया।

"क्या तुम चाहोगी कि ये कहानी यहीं पूरी हो जाए?" आरव ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा।

सुहानी मुस्कुराई, फिर बोली— “नहीं… अब कहानी शुरू हुई है। इस बार बिना झूठ के, बिना साज़िश के… बस सच और हमारे साथ के साथ।”

आरव ने उसका हाथ थाम लिया। उन दोनों की कहानी अब सिर्फ बदले या मजबूरी की नहीं थी—बल्कि 'रिश्तों का कर्ज़' चुका देने के बाद मिले प्यार की ईमानदार शुरुआत थी।

“सब कुछ पहले जैसा हो गया, है न?”

आरव ने थोड़ी देर आसमान को देखा, जहां सूरज ढलते-ढलते भी एक आखिरी उजाला छोड़ गया था। फिर उसने उसकी तरफ देखा… और धीरे से कहा, “नहीं… पहले जैसा नहीं… अब उससे भी बेहतर।”

सुहानी की आंखों में चमक आ गई…वो मुस्कुरा दी—वही पुरानी, प्यारी मुस्कान।

आरव ने उस मुस्कान को ऐसे देखा… जैसे कोई भटके मुसाफ़िर को अपना घर दिख जाए।

हाँ, अब सब कुछ ठीक था…घाव भर गए थे, बातें खुल गई थीं, और एक टूटा हुआ रिश्ता… अब फिर से धड़कने लगा था।

 

लेकिन…वो आने वाले तूफ़ान से अनजान थे। जो एक बार फिर से उन सब के जीवन में एक भयानक उथल पुथल लाने वाला था। 

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