“तो काजल माँ को किडनैप किया किसने?” 

ये कहते हुए आरव ने गाड़ी की चाबी घुमाई। इंजन की आवाज़ जैसे उस थम चुके पल को फिर से चालू कर गई। उसने धीरे से एक्सीलेटर दबाया और कार को आगे बढ़ाते हुए सड़क पर ले आया। पीछे छूटता हुआ मलबा, राख और जले हुए सपनों की बदबू अब भी हवा में घुली हुई थी।

विक्रम ने एक आखिरी बार पीछे मुड़कर देखा… और फिर चुपचाप सिर झुका लिया। पीछे… उस ढह चुकी जगह के सामने, रणवीर अब भी खड़ा था।

बिल्कुल स्थिर…बिल्कुल बेजान। उसकी आँखों में जैसे कोई पिघल चुका सपना पलकों से लटक रहा था। चेहरे पर सिर्फ़ राख थी… और भीतर कोई गहरी हार। उसकी आंखें उस राख हुए महल पर जमी थीं — उसकी मेहनत, उसकी ताक़त, उसका राज… सब वहीं जलकर खाक हो चुका था। रणवीर अब हार चुका था और ये हार सिर्फ़ किसी लड़ाई की नहीं थी… ये हार थी अपने बनाए हुए उस अंधेरे से, जिससे वो दूसरों को तो लड़वाता रहा… मगर खुद कभी उभर नहीं सका।

कार अब धीमे-धीमे सुनसान सड़क पर बढ़ रही थी। आरव और विक्रम—दोनों अब पूरी तरह से अपने ख्यालों में डूबे हुए थे। शब्द जैसे गले में अटक गए हों, और ज़हन में अभी-अभी घटे हुए हादसों की गूंज किसी तूफान की तरह घूम रही थी।

हर बीतता सेकेंड — भरा हुआ था राख की गंध, पुराने ज़ख्मों की टीस, और उन सवालों से जिनके जवाब अभी अधूरे थे। कार की खिड़की के बाहर सब शांत था। मगर अंदर… दोनों के भीतर एक बेचैनी थी, जो किसी भी शब्द से ज़्यादा शोर कर रही थी।

तभी, अचानक — विक्रम के फोन पर एक हल्की सी वाइब्रेशन हुई।

“ट्र्र्र्र… ट्र्र्र्र…”

फोन स्क्रीन पर SOS ग्रुप की नोटिफिकेशन फ्लैश हुई। आरव और विक्रम—दोनों ने एक साथ एक-दूसरे को देखा, फिर एक साथ मुड़े फोन की स्क्रीन की ओर।

विक्रम ने फोन उठाया, स्क्रीन अनलॉक की… और फिर स्क्रीन पर जो मैसेज था, वो पढ़ते ही उसकी सांस थोड़ी रुक गई।

“It’s done guys. And it's live now.”

— सुहानी।

एक सीधी, साधारण सी लाइन… लेकिन उसमें छिपा था एक तूफ़ान। आरव ने भी स्क्रीन की ओर झाँका…सुहानी का नाम पढ़ते ही उसकी आँखों में हलचल सी दौड़ गई। चेहरा भावहीन था, मगर अंदर कुछ हिल गया था।

दोनों कुछ पल वैसे ही बैठे रहे… बिना कुछ कहे, क्योंकि वो जान चुके थे — अब खेल की अगली चाल सुहानी ने चल दी है। और अब, पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं बचा था।

और फिर… धीरे-धीरे दोनों के होंठों पर एक हल्की, मगर गहरी मुस्कान उभर आई— वो मुस्कान जो सिर्फ़ तब आती है, जब कोई बहुत लंबी लड़ाई जीत के किनारे पर खड़ा होता है। 

सालों की तपिश, चुपचाप सहे गए ज़हर, गले में अटकी हुई वो चुप्पियाँ — जिन्हें कोई कभी समझ न सका, अब आखिरकार रंग लाने लगी थीं। महीनों की मेहनत, कूटनीति, रिस्क, झूठ, चालें और इमोशनल कीमतें अब जवाब देने लगी थीं।

आरव की आंखों में एक चमक थी—ठंडी, शांत… लेकिन साफ़। जैसे किसी अंतहीन रात के बाद पहली बार सूरज को देखा हो।

विक्रम ने सीट पर सिर टिकाया और गहरी साँस ली…“Finally…” उसने बस इतना कहा, जैसे दिल का बोझ उतर गया हो।

बाहर, दिन का सूरज जैसे अब कुछ और कह रहा था। फिर उन्होंने स्क्रीन पर वो वीडियो चलाया —  शमशेर का मीडिया के सामने आकर सब कुछ बोल देना। वो इंटरव्यू, जिसमें उसने अपने गले में अटकी हर सच्चाई को दुनिया के सामने रख दिया था —

“जिसे आप एक बेहतरीन बिज़नेस मैन कहते हैं, उसने ही हमारे पूरे जीवन को उथल पुथल कर के रख दिया था…”

और फिर… मीरा का वो हैकर दोस्त — जिसने सही समय पर अपनी स्क्रीनों से इतिहास बदल दिया। उसने सारे सबूत — बैंक ट्रांज़ेक्शन्स, रिकॉर्डिंग्स, CCTV फुटेज और कॉल डेटा — सब कुछ पब्लिक कर दिया था। एक के बाद एक मीडिया चैनल, ट्विटर ट्रेंड्स, न्यूज़ पोर्टल्स सब सुर्खियों से जलने लगे थे।

“#RathoreFilesExposed”

“Who is the Real Villain?”

“Shocking Revelations: Digvijay & Gauravi Behind the Mask”

हर जगह, अब उन्हीं की कहानी चल रही थी — लेकिन इस बार, उनकी जुबान से नहीं… बल्कि सच्चाई की आवाज़ में।

कार अब भी सड़क पर चल रही थी… लेकिन अब उनका रास्ता साफ़ था। अब डर नहीं था, अब सिर्फ़ एक अगला कदम था — आखिरी मोड़ की तरफ़।

सुहानी के मैसेज के कुछ ही मिंटो बाद— पूरे देश की नज़र अब एक ही खबर पर थी। हर न्यूज़ चैनल, हर मोबाइल स्क्रीन, हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बस एक ही नाम गूंज रहा था…“The Rathore Scandal”

गौरवी और दिग्विजय के उन सभी अड्डों पर पुलिस के छापे शुरू हो चुके थे, जहाँ से वो अपने काले धंधों को चलाते थे। हर कोने से, हर तहखाने से बेगुनाह लोगों को निकाला जा रहा था, वो मासूम जिनकी ज़िंदगी उन दोनों की हवस और ताकत की भूख की भेंट चढ़ी थी।

पुलिस की गाड़ियों का काफिला अब राठौर हवेली के सामने आ खड़ा हुआ था। हर गेट पर सुरक्षाबल। कैमरामैन दौड़ते हुए नज़र आ रहे थे। मीडिया का हुजूम और अंदर — गौरवी राठौर। उसके चेहरे से पहली बार वो आत्मविश्वास और चालाकी का नकाब उतर चुका था। उसकी आँखों में अब सिर्फ़ एक डर था — एक खुलती हुई सच्चाई का डर।

इसी बीच, शमशेर राठौर का इंटरव्यू लाइव चला।

कैमरे के सामने बैठा, वो आदमी अब भी वही था — मगर उसकी आंखों में वर्षों का साया था। उसका चेहरा थका हुआ था, मगर आवाज़ में सच्चाई की गूंज थी।

“मैं शमशेर राठौर… आज उन सवालों के जवाब देने आया हूँ, जो मेरी चुप्पी ने सालों तक अनसुने रखे।”

“लोग पूछते हैं, मैं अगर ज़िंदा था, तो मैं कहाँ था? मैं क्यों छुपा? तो सुनिए — मैं छुपा नहीं था, मैं बस ज़िंदा रहने के लिए खुद को बचा रहा था, खुद को इस दिन के लिए तैयार कर रहा था…क्योंकि मेरे अपने भाई — दिग्विजय — और मेरी बाद में बनी दूसरी पत्नी ने मिलकर मेरी बीवी को मुझसे छीन लिया।

मेरी पूर्वी… मेरी दुनिया थी वो, उन्होंने उसे मुझसे छीन लिया था। और मेरे दोनों बच्चों में से एक को मारने की कोशिश भी की…लेकिन वो बच गया — और फिर… उसे उन लोगों ने तहखाने में बंद कर दिया, सालों तक। मेरा ही बेटा… और मैं कुछ नहीं कर सका। और इसके पीछे मेरे दूसरे भाई — रणवीर का हाँथ था।

स्टूडियो में एक सन्नाटा सा छा गया था, कैमरामैन की आंखें नम थीं और देश… सन्न। हर देखने वाला अब सोच रहा था — कौन सच में राक्षस था, और कौन शिकार। गौरवी की गिरफ़्तारी अब महज़ एक प्रक्रिया बन गई थी। वो घबराई नहीं थी, बस थकी हुई लग रही थी — जैसे जानती हो, ये दिन कभी न कभी आना ही था।

बाहर पुलिस ने उसे हथकड़ी लगाई। वो पीछे नहीं मुड़ी, ना उस हवेली के लिए जहां आने के लिए उसने बरसों पहले अपनी ही बहन को मौत के घाट उतार दिया था और ना किसी और के लिए…अब कहानी हाथ से निकल चुकी थी।

राठौर हवेली की दीवारें, जो बरसों से झूठ की गवाही दे रही थीं, अब पहली बार सच्चाई की गूंज को सुन रही थीं। इंटरव्यू की मेज़ पर बैठा शमशेर अब पूरी तरह खुल चुका था। ना कोई डर, ना कोई परवाह। सिर्फ़ एक दास्तान... जो वर्षों से दिल में दबी हुई थी।

“मैं जानता हूँ… बहुत देर कर दी मैंने, लेकिन अब और नहीं। आज मैं सब बताऊँगा — काजल की पहली किडनैपिंग से लेकर आज तक का हर सच।”

शमशेर की आवाज़ भले धीमी थी, मगर हर शब्द लोहे की तरह बरस रहा था।

“काजल को जब पहली बार किडनैप किया गया था, मैंने अपने भाइयों पर शक नहीं किया। मुझे लगा कोई दुश्मन होगा… कोई बाहर वाला। मगर नहीं — वो अपहरण अंदर से ही रचा गया था। उस अपहरण के बाद जब वो लौटी… वो पहले जैसी नहीं थी, टूट चुकी थी। और फिर… उसपर जानलेवा हमला हुआ।

शायद किसी को डर था कि वो सच ना उगल दे। और उसी हमले में मंदिरा की मौत हो गई… एक मासूम, जो सिर्फ़ काजल के साथ थी, उसका कोई कसूर नहीं था।”

शमशेर का गला भर्रा गया। कैमरे थोड़ी देर के लिए रुकने लगे, मगर उसने हाथ से इशारा कर दिया — “No, चलने दो।”

“फिर जो कुछ भी सुहानी और आरव के साथ किया गया… वो देखकर मैं अंदर से मरता रहा, लेकिन कुछ कर नहीं सका। दिग्विजय और गौरवी की हैवानियत…उन्होंने उन दोनों बच्चों की ज़िंदगी को अपनी सत्ता का मोहरा बना दिया। उन्हें घेर लिया — अपने लालच और अपनी नफरत से।”

“और वो काले कारनामे…” शमशेर का चेहरा अब अंधकार की परछाई में डूबा हुआ लग रहा था।

“बच्चों और मासूमों के जीवन के साथ खिलवाड़, डेटा मैनिपुलेशन, अवैध हथियारों के सौदे, और वो अंडरग्राउंड नेटवर्क… सब… सब यहीं से चलता था। गौरवी का पागलपन अब हदें पार कर चुका था। उसे किसी की परवाह नहीं रही — ना रिश्तों की, ना इंसानियत की।

दिग्विजय… उसका लालच किसी गहरी खाई जैसा था, जिसमें हर दिन वो और नीचे गिरता जा रहा था। और रणवीर…”

शमशेर थोड़ी देर के लिए रुका, फिर बोला — “रणवीर कभी बहुत अच्छा इंसान हुआ करता था। मगर उस एक हादसे ने उसे अंदर से कुछ ऐसा तोड़ा… कि उसने अपने अंदर के राक्षस को खुली छूट दे दी। उस राक्षस ने सिर्फ़ बाहर की दुनिया ही नहीं, उसे खुद को भी निगल लिया। वो अब खुद नहीं जानता कि वो क्या बन चुका है।”

स्टूडियो में अब पूरी तरह सन्नाटा था। हर शब्द देश के दिल में गूंज रहा था…शमशेर ने कैमरे की तरफ़ देखा — एक आख़िरी बार।

“मैंने चुप रहकर गुनाह किया, लेकिन अब मैं चुप नहीं रहूंगा। जो हुआ, उसके लिए मैं तैयार हूँ…मगर सच अब दफ़न नहीं होगा।”

शमशेर की आवाज़ अब भारी हो चुकी थी। उसने अपनी आंखें नीचे झुका लीं, फिर धीरे-धीरे कहा, “जिस दिन काजल की गाड़ी को उस भीषण धमाके से उड़ा दिया गया था, उस दिन जो हुक्म दिग्विजय ने दिया था… उस दिन का मास्टरमाइंड भी रणवीर ही था।”

उसकी बातों में जैसे एक ठंडक फैल गई।

“लेकिन उस दिन की त्रासदी केवल काजल और मंदिरा तक सीमित नहीं थी। उस हमले में… तीन और मासूम ज़िंदगियाँ भी उजड़ गईं। वो बम लगाने वाला… जो उस दिन सारे बदले की आग के पीछे था, वह कोई और नहीं, बल्कि विक्रम मल्होत्रा के पिता — चेतन मल्होत्रा थे।”

शमशेर की आवाज़ कांप रही थी।

“लेकिन उस हादसे के बाद… चेतन मल्होत्रा चैन से नहीं जी पाया। दिन-रात वही हादसा उसकी आंखों के सामने घूमता रहता था। वो पल, जब उसकी वजह से किसी निर्दोष की जान चली गई। उस दिन की गलती ने उसे अंदर से तोड़ दिया था… और उसकी हर सांस उसके लिए एक सज़ा बन गई थी।

जब चेतन मल्होत्रा की पत्नी, पुष्पा मल्होत्रा को ये दर्दनाक सच पता चला, तो वह उस हकीकत को सहन नहीं कर पाई। उनके लिए यह एक ऐसा झटका था, जिसे झेलना नामुमकिन था। पर सबसे ज्यादा क्रूर बात यह थी कि ये सच्चाई बताने वाला कोई और नहीं, बल्कि रणवीर खुद था।

रणवीर ने ये कड़वी हकीकत पुष्पा के सामने रखी थी, लेकिन उसकी मंशा साफ़ थी — उसे डर था कि चेतन कभी भी पुलिस के सामने जाकर सच बोल सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो सारे राज़ फूट सकते थे और रणवीर समेत कई लोग फंस सकते थे।

रणवीर ने पुष्पा को इस बात पर इतना भड़काया, इतना उलझाया कि उसने अपने पति चेतन के खिलाफ गहरी नाराजगी और गुस्सा पाल लिया। और उसी ग़ुस्से और हताशा में, जब चेतन घर लौटा, तो पुष्पा ने एक पल के आवेग में, अपने ही पति की हत्या कर दी। ये घटना उस परिवार के लिए एक अँधेरे से भरा एक दर्दनाक मोड़ था — जहां सच ने लोगों को आपस में लड़वाया, और रिश्तों को तोड़ डाला।

और फिर कुछ ही दिनों में, पुष्पा मल्होत्रा की मानसिक हालत पूरी तरह से बिगड़ गई। जिस दर्द, धोखे और टूटन को वह झेल रही थी, उसने उसके दिमाग़ को ऐसा झकझोर दिया कि उसने अपनी सारी सुध-बुध खो दी।

आज के दिन भी, वह सालों से एक पागलखाने में बंद है, जहां उसकी ज़िंदगी उस अंधेरे में गुजर रही है, जिसे शायद कोई समझ भी नहीं सकता। इस हादसे का सबसे गहरा असर हुआ उस बच्चे विक्रम पर, जो उस परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य था। वो बच्चा जिसने अपने मां-बाप को इस दर्दनाक तरीके से टूटते, अपने जीवन को खत्म होते देखा था।

वो मासूम जिसने अपने बचपन की खुशियों को खो दिया, और जिसे ज़िंदगी की सबसे पहली सीख़ उस त्रासदी से मिली। सोचिए, उन राक्षसों की वजह से, जिनकी चालाकी और लालच ने कई परिवारों को तहस-नहस किया, कितनी मासूम और नाजुक ज़िंदगियाँ उनकी वजह से बर्बाद हो गईं। 

कितने परिवारों के सपने टूटे, और कितने बच्चों की हँसी को चुराया गया। ये केवल एक कहानी नहीं, बल्कि उन हजारों जख्मों की गाथा है, जो छुपे हुए हैं हर एक दिल के अंदर। और अब, ये ज़ख्म भरने के लिए लड़ाई शुरू हो चुकी है — एक ऐसी लड़ाई जिसमें सच और इंसाफ़ की जीत तय करनी है।

 

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

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