“आख़िर ऐसा क्या था यहाँ, जिसके जलने से रणवीर इतना परेशान हो गया है?” आरव ने अपनी आवाज़ में उभरती हुई जिज्ञासा और शक को छुपाए बिना पूछा। उसकी आँखें अब भी उस जल चुके हिस्से की राख और धुएं की ओर गड़ी हुई थीं, जैसे वहाँ की हर परत में कोई रहस्य दबा हो।

विक्रम कुछ पल के लिए चुप रहा। उसकी नजरें कहीं दूर शून्य में टिक गईं, मानो अतीत के किसी भूले-बिसरे कोने में झाँकने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे बोलना शुरू किया।

“पता नहीं,” उसने कहा, “रणवीर तो यहाँ अपने सबसे करीबी लोगों को भी भटकने नहीं देता। इस जगह से उसका कुछ ऐसा रिश्ता है जिसे वो किसी के साथ बाँटना नहीं चाहता। मगर हाँ, कुछ कहानियाँ ज़रूर सुनी हैं मैंने। और उनमें से एक कहानी जो मुझे सबसे ज़्यादा believable लगती है... वो ये है कि—”

उसने हल्की आवाज़ में कहा, “रणवीर ने सालों पहले, बहुत कम उम्र में, जब उसने घर छोड़ दिया था, जब उसका कोई नाम-सहारा नहीं था, तब उसने बहुत कम से अपना बिज़नेस शुरू किया था। Digital data security की एक कंपनी थी उसकी। और आरव... he was extremely good, to be honest.”

आरव की भौंहें हल्की सी सिकुड़ीं, मगर उसकी आँखों में रुचि और बढ़ गई थी। विक्रम की आवाज़ अब थोड़ी गंभीर हो चली थी।

“वो बहुत परफेक्ट था उस काम में। छोटी से छोटी चूक उसे बर्दाश्त नहीं थी। उसके बनाए encryptions इतने advanced थे कि कई बड़े बड़े clients खुद उससे contact करते थे—police departments, legal firms, यहां तक कि कुछ international organisations भी। कुछ सालों में ही उसका नाम उस फील्ड में अलग पहचान बन गया था। मगर...”

विक्रम थोड़ी देर को रुका। उसकी नज़र अब उस काले पड़ चुके कोने पर पड़ी जहाँ दीवारें शायद कभी कम्प्यूटर सर्वर्स से भरी रहती थीं।

“फिर इसके टैलेंट को देखकर,” विक्रम बोलते-बोलते कुछ पल के लिए रुका, जैसे उसे शब्दों से ज़्यादा भावों को सहेजना पड़ रहा हो, “...इसे काफी सारे लोगों ने अप्रोच करना शुरू किया। और मेरा मतलब है—काफ़ी सारे गलत लोग।”

आरव ने आँखें संकरी कीं। “गलत लोग?”

विक्रम ने धीमे से सिर हिलाया, और उसकी आवाज़ में अब एक अजीब सी कड़वाहट घुल चुकी थी।

“हां... वो लोग जो अपने काले धंधों के लिए डाटा सिक्योरिटी चाहते थे। जिनकी दुनिया फाइलों में नहीं, छुपे हुए सर्वर्स और फर्जी पहचान में चलती है। ड्रग्स, हथियारों की डीलिंग, मनी लॉन्ड्रिंग—सब कुछ। उन्होंने देखा कि रणवीर एक ऐसा नाम है जो सिस्टम के loopholes को न सिर्फ समझता है, बल्कि उन्हें airtight भी बना सकता है। उन्हें ऐसा genius चाहिए था जो उनके राज़ों को डिजिटल तहखाने में दफना सके। और इसलिए... बार-बार ऑफर भेजे गए। एक से बढ़कर एक।”

“और रणवीर ने...?” आरव की आवाज़ अब और गहरी हो गई थी।

विक्रम ने तुरन्त जवाब दिया, “हर बार इंकार कर दिया। साफ़, सख़्त, बिना झिझके। चाहे जितना पैसा हो, जितनी धमकियाँ हों—वो कभी झुका नहीं। उसका उसूल साफ था—सच की रक्षा के लिए सिक्योरिटी, न कि झूठ की परछाईयों को छुपाने के लिए।”

आरव के चेहरे पर हल्की सी सराहना की झलक आई, लेकिन उससे पहले ही विक्रम ने कुछ ऐसा कहा जिससे माहौल एकदम भारी हो गया।

“मगर फिर... जब दिग्विजय और गौरवी ने काजल को किडनैप कर लिया...” विक्रम की आवाज़ मानो कहीं अटक गई। उसने अपने जबड़े भींचे, और कुछ सेकेंड आँखें मूँद लीं। “...और फिर जो सब हुआ, जो काण्ड हुआ... उसने रणवीर के अंदर जैसे कुछ तोड़ दिया था। जैसे किसी मजबूत दीवार में अचानक दरार आ जाए।”

आरव अब भी चुप था, उसकी साँसें थोड़ी तेज़ चलने लगी थीं।

“उस हादसे के बाद,” विक्रम ने धीरे से कहा, “रणवीर ने पहली बार... हार मान ली। वो जो अब तक हर गलत ताक़त के सामने डट कर खड़ा रहता था, वो इस बार टूट गया। उसने... उनका ऑफर एक्सेप्ट कर लिया।”

आरव की आँखों में एकदम से झटका सा आया।

“क्या?” उसने धीरे से पूछा।

विक्रम ने उसकी ओर देखा, चेहरे पर गहरा अफसोस था।

“हां। उस समय वो सिर्फ़ एक भाई नहीं था... एक टूट चुका इंसान था। उसके लिए उस वक़्त सही-ग़लत का कोई मतलब नहीं रहा। बस बदले की आग थी, और काजल को हर हाल में पाने का जुनून। और इसके लिए... उसने वो रास्ता चुना, जिससे वो ज़िंदगी भर दूर भागता रहा था।”

आरव अब समझ रहा था कि क्यों इस जगह के जलने से रणवीर की आँखों में वो अजीब सी बेचैनी थी। ये सिर्फ़ कोई ऑफिस नहीं था। ये उसकी नैतिकता, उसका संघर्ष, उसकी हार और उसका दर्द सब कुछ समेटे हुए एक जगह थी।

विक्रम ने एक लंबी साँस ली, जैसे अब वो सबसे गहरी, सबसे छुपी हुई परत को खोलने वाला हो।

“तो रणवीर की बाकी कंपनी...” वो बोला, उसकी आवाज़ में अब एक अलग ही रहस्य घुला हुआ था, “...वो बस एक साफ़-सुथरी, socially acceptable image बनाने के लिए थी। एक ब्रांड जो लोगों की नजरों में हीरो बन सके—क्लीन, इनोवेटिव, inspiration का नाम। मगर असली धंधा... असली सिस्टम... वो सब कहते हैं यहाँ से चलता था।”

आरव ने दीवारों की ओर देखा। ये जली हुई ईंटें, राख में बदली हुई फाइलें, और जल चुके सर्वर्स... ये सब शायद उन अनकहे राज़ों की चुप गवाही दे रहे थे।

“मतलब?” उसने धीमे से पूछा।

विक्रम ने बहुत धीमी लेकिन ठोस आवाज़ में कहा, “मतलब ये कि इस जगह से उस नेटवर्क का संचालन होता था, जिसमें काले सफेद का कोई फर्क नहीं था—बस ताक़त और काबिलियत मायने रखती थी। और उस ताक़त की नींव पर खड़ा किया गया था एक पूरा इंटेलिजेंस सिस्टम... जिसे कोई कानून पकड़ नहीं सकता था, क्योंकि वो सिर्फ़ सिस्टम नहीं था—वो लोग थे।”

“लोग?” आरव की भौंहें उठीं।

विक्रम ने सर हिलाया, “हां…मैंने सुना है—शायद अफवाह हो, या शायद हकीकत—कि इस सिस्टम को चलाने के लिए रणवीर ने मार्केट से कुछ गिने-चुने, एक्स्ट्रीमली जीनियस बच्चों को ढूंढा। ऐसे बच्चे जो अपनी उम्र से ज़्यादा समझदार थे... जिनका दिमाग मशीनों से तेज़ चलता था... मगर जिनके पास सपने देखने की हैसियत नहीं थी।”

वो थोड़ा रुका, जैसे सोच रहा हो कि आगे कैसे कहे।

“मतलब, वो बच्चे गरीब थे?” आरव ने पूछा।

“गरीब? उससे भी ज़्यादा। वो बच्चे सिर्फ़ भूखे नहीं थे... वो ‘भरोसे’ के भूखे थे। उन्हें किसी ने कभी नहीं कहा था कि तुम कुछ कर सकते हो। मगर रणवीर ने... उन्हें सिर्फ़ खाना या छत नहीं दी। उसने उन्हें सपने दिए, और वो हैसियत भी दी जिनसे वो सपने अपना हक़ बनाते हैं।”

आरव अब स्तब्ध था।

“वो सब बच्चे अब कहाँ हैं?” उसने धीरे से पूछा।

विक्रम ने हल्की सी मुस्कान के साथ कंधे उचकाए, “पता नहीं। कोई अमेरिका में होगा, कोई दुबई में, कोई शायद अब भी इंडिया में किसी गुमनाम पहचान के साथ। मगर एक बात पक्की है, आरव—रणवीर सिर्फ़ कोडिंग का मास्टर नहीं था... वो दिमागों को पढ़ने और उन्हें दिशा देने वाला खिलाड़ी था। वो बच्चों को मशीन नहीं बनाता था—वो उन्हें आग देता था... और फिर देखता था कि वो आग क्या जला सकती है—ख़ुद को, या पूरी दुनिया को।”

आरव अब इस राख और धुएँ से भरे कमरे को पहले से कही ज़्यादा भारी नज़रों से देख रहा था। उसे समझ में आ रहा था कि ये सिर्फ़ एक ऑफिस नहीं था—ये रणवीर की आत्मा का वो हिस्सा था, जिसे उसने दुनिया से छिपा रखा था।

विक्रम अब थोड़ा और गंभीर हो गया था। उसकी आवाज़ में एक ऐसा सन्नाटा था, जो सिर्फ़ तब आता है जब इंसान किसी बहुत बड़ी सच्चाई से टकराता है—या बहुत बड़ा डर छुपा रहा होता है।

“वो 10 लोग कौन हैं, मैं नहीं जानता,” उसने धीरे से कहा। उसकी निगाहें अब बुझती हुईं दीवारों पर थीं, जैसे वहाँ कुछ देख रहा हो जो बाकी दुनिया नहीं देख सकती।

“हैं भी या नहीं… ये भी नहीं जानता,” उसने हल्की सांस छोड़ी, “मगर इतना जानता हूं कि रणवीर... is gone, brother.”

उसके इस वाक्य ने आरव को जैसे भीतर तक हिला दिया।

Gone? क्या मतलब था उसका? 

विक्रम का चेहरा अब पूरी तरह गंभीर था। उसने सीधा आरव की आँखों में देखा।

“यहाँ जो भी था, जो भी सिस्टम, नेटवर्क, या... फिर कोई गुप्त साम्राज्य—वो अब जल चुका है, राख बन चुका है। और यकीन मानो, इस राख की महक अब बहुत दूर तक जाएगी। बहुत सारे खतरनाक लोग इसे सूंघ चुके होंगे... और अब वो सब इसके पीछे लगने वाले हैं। It’s just a matter of time.”

आरव की आँखों में अब सवाल और डर दोनों थे।

विक्रम ने सिर झुकाया और अपनी बात पूरी की, “और ऐसे में... सुहानी और तुम्हारा केस... तुम्हारी फीलिंग्स, तुम्हारी लड़ाइयाँ... भाई, वो अब जरूरी नहीं रहने वाला इसके लिए।”

आरव ने जैसे किसी गहरी खाई में झाँक लिया, उसकी सांस हल्की सी रुक गई।

“मतलब?” उसने पूछा, आवाज़ धीमी, मगर सख्त थी।

विक्रम ने उसे एक ठंडी नजर से देखा। “मतलब ये, आरव... कि अब ये खेल सिर्फ़ बदले, मोहब्बत या साज़िशों का नहीं रहा। अब ये survival का खेल है। अब अगर तुम इस आग से बचे रहना चाहते हो, तो तुम्हें वो सब भूलना पड़ेगा जो तुम्हें लगता है कि जरूरी था... क्योंकि अब जो आ रहा है, वो किसी की भी इंतज़ार नहीं करेगा।”

विक्रम ने गहरी सांस ली। दीवारों की राख उड़ती जा रही थी, और हर उड़ती हुई राख के कण में मानो कोई राज़ छिपा हो। उसकी आँखें आरव की ओर थीं, मगर जैसे ज़हन कहीं और भटक रहा था—अतीत के किसी धुएँ में।

“मतलब ये कि… इनकी तो लग गई, आरव।” विक्रम की आवाज़ में पहली बार एक कटाक्ष और डर का मिला-जुला असर था। “अब ये खुद से कई गुना खूंखार लोगों से अपनी जान बचाएगा या फिर तुम्हारी जान के पीछे पड़ेगा… कहना मुश्किल है।”

आरव चुप रहा, उसके सीने में कोई सिहरन सी दौड़ गई थी। लेकिन शायद वो सुकून था।

“और जिसने भी ये किया है,” विक्रम ने कहा, जैसे अब उसकी बात की धार और भी तेज़ हो गई हो, “उसने हमारी मदद ही की है। और रणवीर से कोई बहुत बड़ी दुश्मनी निभाई है। बहुत ही पर्सनल बदला लिया है ये, और वो जो भी हो— ये काम उसी ने किया है जो उसे सबसे अंदर तक जानता था। वरना इतनी प्लानिंग और टाइमिंग कोई यूँ ही नहीं करता।”

आरव की भौंहें सिकुड़ गईं। उसके चेहरे पर संदेह की लकीरें खिंचने लगीं। फिर उसने धीरे से सिर हिलाया… जैसे कोई गहरी बात उसके दिमाग़ में उतर आई हो, मगर वो उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा हो।

“मगर एक बात मुझे समझ नहीं आ रही है, विक्रम…” उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर शब्दों में वजन था। “…इतनी अहम जगह पर… जहां रणवीर किसी को भी नहीं आने देता… वहाँ वो दिग्विजय को क्यों छुपाकर रखता?”

उसके इस सवाल ने जैसे पल भर को हवाओं को रोक दिया। राख की गंध अब भी हवा में थी… मगर अब उन दोनों के बीच सिर्फ़ ख़ामोशी थी।

विक्रम ने कुछ कहने के लिए होंठ खोले… मगर फिर कुछ न कह सका। क्योंकि अब सवाल सिर्फ़ 'किसने किया' का नहीं था… सवाल अब 'क्यों किया' का भी था। और वो जवाब... शायद रणवीर के साथ ही राख बन चुका था।

आरव की आंखों में अचानक एक तेज़ चमक आई — जैसे किसी उलझी हुई पहेली की गुत्थी एकदम से सुलझ गई हो। वो फौरन विक्रम की तरफ़ मुड़ा, और लगभग फुसफुसाते हुए, मगर आत्मविश्वास से भरी आवाज़ में बोला — “लेकिन… इससे तुम्हारी थ्योरी प्रूफ हो गई, विक्रम।”

विक्रम ने सवालिया नज़रों से उसकी तरफ देखा।

“दिग्विजय को भले ही इसने किडनैप किया हो,” आरव ने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा, “मगर काजल माँ को… नहीं। उन्हें इसने नहीं… किसी और ने किडनैप किया है। वरना वो भी यहीं होती। और होती तो वो उन्हें केवल ढूंढने का आदेश नहीं देता, वो उस आग में उन्हें ढूंढने के लिए खुद भी जल जाता।”

विक्रम आगे कहता है। 

“बात तो तुम सही कह रहे हो, आरव। काजल आंटी यहाँ होती, तो अभी तक रणवीर अपने दो तीन गार्ड्स को तो गोली ही मार चुका होता।” 

“मगर सवाल है, कि अगर इसने उन्हें किडनैप नहीं किया, तो आख़िर किसने किया है?” आरव की आवाज़ में इस सवाल की गूंज थी। 

लेकिन उसके सवाल का जवाब कहीं और था….सलाखों के पीछे। 

सलाखों के पीछे किसी के चेहरे पर एक कटु मुस्कान छाई हुई थी। जो टीवी पर आ रही ताज़ा ख़बरों को सुन कर मुस्कुरा रहा था। राठौर परिवार के काले धंधों का कांड। वो तीन राठौर जिन्होंने सालों तक आतंक मचाया था, अब उनके ताश के पत्तों का महल ढेह चुका था। 

और जेल में बैठा वो कोड़ी मुस्कुराते हुए गा रहा था, बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए…

 

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

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