"नहीं सर..." गार्ड ने काँपते हुए कहा, उसकी आवाज़ टूट रही थी, जैसे गले में कोई फँसी हुई सच्चाई बहुत मुश्किल से बाहर आ रही हो। रणवीर की आंखें अब न केवल क्रोध से, बल्कि असहनीय बेचैनी और आशंका से भी जल रही थीं।

“वो... हमने आपको बताया नहीं... ये सोच कर कि आप गुस्सा करेंगे।”

रणवीर ने उसे घूरा — जैसे उसकी नज़रों से ही उसका दम घुट जाएगा।

गार्ड ने जल्दी से आगे कहना शुरू किया, “कुछ देर पहले... दिग्विजय साहब यहाँ से भाग निकले थे। और... और उन्हीं को ढूंढने के लिए हम सब... एक-एक करके जंगल की ओर जाने लगे थे, अलग-अलग दिशाओं में। हम सब इतने डर गए थे सर... कि अगर आपको पता चल गया, तो आप क्या करेंगे... यही सोचकर... हमने कुछ भी नहीं बताया।”

अब गार्ड की आवाज़ काँपती हुई लगभग फूटने को थी। उसने नीचे देखा, खुद से भी नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

“इस डर में हम... इतने घबरा गए थे, कि हमें ये भी याद नहीं रहा कि किसी का यहाँ रुकना भी कितना ज़रूरी था।”

रणवीर का चेहरा अब सख्त पत्थर की तरह लग रहा था। उसकी आँखें जैसे कह रही थीं — “एक चूक... और सब बर्बाद हो गया।”

चारों तरफ़ कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। आग की लपटें अब पीछे धू-धू करके उठ रही थीं, और बीच में रणवीर की भारी साँसें — जैसे उस सन्नाटे को चीर रही हों।

आरव और विक्रम जो दूर खड़े ये सब देख रहे थे, उनके लिए यह सीन एक खुलासा था — रणवीर के ठिकाने पर दिग्विजय भी मौजूद था, मगर अब? अब शायद सब कुछ राख बन चुका था... या शायद कोई और साज़िश जन्म ले रही थी।

गार्ड ने कांपती हुई आवाज़ में अपनी बात पूरी की, जैसे दिल थामे खड़ा हो — शब्दों के हर टुकड़े में डर, शर्मिंदगी और पछतावे का जहर घुला था।

"और फिर... हम लोग जब जंगल में उन्हें ढूंढ रहे थे, तभी..." वो एक पल के लिए रुका, रणवीर की जलती आंखों से नज़र चुराते हुए बोला, “...किसी ने यहाँ आकर आग लगा दी, सर।”

रणवीर के चेहरे की मांसपेशियाँ तन गईं, मुट्ठियाँ भींच गईं। उसकी सांसें अब तेज़ चलने लगी थीं, जैसे भीतर का ज्वालामुखी अब किसी भी पल फटने को हो।

गार्ड ने जल्दी-जल्दी बात पूरी करने की कोशिश की, “जब तक हमें धुंआ दिखाई दिया और हम सब जंगल से लौटकर आए, तब तक तो आग ज़ोरों से भड़क चुकी थी। इतनी तेज़, कि कुछ समझ ही नहीं आया, सर... आग जैसे जानबूझकर लगाई गई हो — हर दिशा से।”

अब उसकी आवाज़ हकलाने लगी, “हमने... हमने अंदर जाने की कोशिश की, मगर वो तो जानलेवा हो जाता। कुछ दिख ही नहीं रहा था, धुंआ, लपटें... सब कुछ निगल रहा था। इसलिए... इसलिए हम ना आग बुझा पाए... ना अंदर जा पाए...”

वो रणवीर की ओर देखते हुए धीरे से बोला, “और फिर... हमने आपको कॉल किया, सर।”

इस पूरी बात के दौरान रणवीर की सांसें भारी होती जा रही थीं। उसके चेहरे पर अब सिर्फ गुस्सा नहीं, बल्कि हार का एक भयावह साया भी साफ झलक रहा था — जैसे कोई बहुत कीमती चीज़ उसके हाथों से फिसल गई हो। या फिर, कोई ऐसा राज़ जो अब राख में दब गया हो... या फिर उससे उजागर होने वाला हो।

पीछे जलते हुए उस गोपनीय ठिकाने की आग, अब सिर्फ लकड़ियों को नहीं, रणवीर की योजनाओं को भी भस्म कर रही थी।

रणवीर ने गार्ड की बात सुनी तो उसके चेहरे पर जैसे किसी ने ज़हर छिड़क दिया। उसकी आँखें एक पल के लिए चौड़ी हो गईं। वह चुपचाप दो कदम पीछे हटा, मानो सच को स्वीकार करने में उसके पैर जवाब दे रहे हों। फिर उसने सिर पर हाथ रखा, अपनी उंगलियाँ बालों में धंसा दीं और गहरी साँस लेते हुए, उन शब्दों को दोहराने लगा जो गार्ड ने अभी बोले थे।

उसके भीतर जैसे एक विस्फोट हो रहा था।

"मतलब..." रणवीर की आवाज़ अब काँप रही थी, मगर उसमें भयंकर गुस्से की आग थी। “...तुम लोगों के रहते... वो यहाँ से भाग निकला?”

अब उसने धीरे-धीरे गार्ड की ओर बढ़ना शुरू किया, उसकी आँखें जल रही थीं।

"फिर तुम सब एक-एक करके... उसे ढूंढने के लिए... जंगल की ओर चले गए?" रणवीर अब हर शब्द के साथ नज़रों से उन्हें चीर रहा था।

“यहाँ कोई भी नहीं रुका? इस जगह को... जिसे मैंने खुद अपने हाथों से तैयार किया था, सालों से छुपा कर रखा था... जिसे मैं अपना सबसे बड़ा हथियार मानता था... उसे ऐसे ही बिना किसी सिक्योरिटी के छोड़ कर तुम लोग चले गए?”

उसकी आवाज़ अब गरजने लगी थी।

“और किसी ने भी मुझे... बताया तक नहीं?”वो गहरी सांस लेकर पलटा, फिर दोबारा उन पर झपटा, जैसे अपने गुस्से को काबू में रखना उसके लिए नामुमकिन हो गया।

"और फिर... कोई आकर इसे आग लगाकर चला गया? इतने आराम से?" रणवीर का चेहरा अब तपते लोहे जैसा लाल हो चुका था।

"और तुम लोग..." उसकी आवाज़ तेज़ होती चली गई, “...जब लौटे, तब भी आग को रोक नहीं पाए? एक भी आदमी अंदर नहीं जा सका? एक बूंद पानी नहीं गिरा सके?”

वो अब तमतमाते हुए गार्ड की ओर बढ़ा और उसकी कॉलर कसकर पकड़ ली।

"मतलब..." उसने दाँत भींचते हुए कहा, “...मैंने जो सिक्योरिटी रखी थी, इस पूरे एस्टेट के लिए... वो ना मेरा एस्टेट बचा सकी... ना उस एक इंसान को... जिसके लिए मैंने खासतौर पर कहा था कि उस पर नज़र रखना!”

उसका चेहरा अब गार्ड के बिल्कुल पास था। फिर वह दहाड़ा— “उल्लू के पट्ठों!!”

गार्ड की आँखों में डर सजीव हो उठा। बाकी लोग सिर झुकाए खड़े रहे — न कोई जवाब, न कोई हिम्मत। रणवीर की सांसें अब हाँफने लगी थीं। उस जलते ठिकाने की लपटों के पीछे, उसकी योजनाएँ, उसका गुस्सा, और उसका नियंत्रण — सब जल रहा था।

रणवीर अब गुस्से की उस हद पर पहुँच चुका था, जहाँ इंसान सोचने की ताक़त खो देता है। उसकी आँखों में लहू उतर आया था, और चेहरा पसीने और गुस्से से भीग चुका था।

वह बेकाबू होकर दाँत भींचते हुए गरजा — “तुम लोगों को… एक-एक करके मार डालूंगा!"

उसके गले की नसें तन गई थीं। उसने चारों ओर खड़े गार्ड्स को देखा, जो सिर झुकाए कांप रहे थे।

“अगर मैं तुम सब के ऑर्गेन्स भी बेचूं ना… तुम्हारी आँखें, तुम्हारा लीवर, तुम्हारी हर एक हड्डी अलग-अलग बाज़ार में...तो भी इस एस्टेट के एक दरवाज़े का भी खर्चा नहीं निकलेगा उससे!”

उसने ज़मीन पर ज़ोर से पैर पटका, जैसे खुद को संभालना मुश्किल हो रहा हो।

“और तुम लोग उसे — उसे! — ऐसे ही छोड़ कर चले गए? बग़ैर किसी सुरक्षा के?"

वो एक पल के लिए चुप हुआ। उसकी सांसें तेज़ थीं, आँखें जल रहीं थीं, और हाथ काँप रहे थे।

“तुम सबकी वजह से मेरी सालों की मेहनत, मेरी प्लानिंग, मेरा पूरा दांव… आज जलकर राख हो गया।”

उसकी आँखों में अब केवल गुस्सा नहीं, अपमान की आग थी — जैसे उसका आत्मसम्मान कुचल दिया गया हो, और उसका धैर्य अब पूरी तरह से टूट चुका हो।

गार्ड का शरीर काँप रहा था, पसीना माथे से बहकर गर्दन तक आ चुका था। उसकी आवाज़ भी उसके डर को नहीं छिपा सकी।

“हम लोग… सब डर गए थे, सर,” उसने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “हमें लगा… आप ना जाने क्या करेंगे…”

रणवीर की आँखों में आग भड़क उठी। उसकी पलकों के नीचे से झलकती नफरत और उबलता हुआ गुस्सा साफ़ दिख रहा था। वो गार्ड की तरफ झुकते हुए, बेहद खतरनाक लहजे में गुर्राया — “सोच तो तुम सही ही रहे थे…” उसने अपने जबड़े भींचे, हर शब्द में ज़हर भरा हुआ था, “डरना तो चाहिए ही था तुम लोगों को…क्योंकि जो किया है तुमने — उसका अंजाम सिर्फ़ मौत है।”

वो एक पल को रुका, जैसे शब्दों को ज़हर की तरह चख रहा हो, फिर फट पड़ा — “मैं जान से मार डालूंगा तुम सबको…एक-एक को। जो गलती की है तुमने, उसकी कोई माफ़ी नहीं है। समझे?”

उसकी आवाज़ अब गूँजकर गार्ड्स के दिलों में उतर चुकी थी। सब एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे, जैसे मौत सिर पर खड़ी हो।

रणवीर ने उन्हें दूर धकेलते हुए दहाड़ा — “अब जाओ! ढूंढो उसे! ज़मीन खोद डालो, जंगल उलट दो, लेकिन वो मुझे वापस चाहिए! अभी के अभी!”

वो बुरी तरह हाँफ रहा था, आँखों से आग बरस रही थी उसकी, और उसका दिल किसी तूफान की तरह भीतर ही भीतर फटने को तैयार था।

गार्ड अभी भी बुरी तरह डरा हुआ था, लेकिन रणवीर के चिल्लाने और जान से मारने की धमकी के बीच उसने हिम्मत जुटाकर एक सवाल पूछ लिया — उसकी आवाज़ बेहद धीमी और काँपती हुई थी, “क… किसे मालिक? आपके भाई को… या जिसने ये आग लगाई उसको?”

रणवीर की आँखों की पुतलियाँ एक पल को फैल गईं। उसका चेहरा तमतमाने लगा। ऐसा लगा जैसे उसके भीतर ज्वालामुखी फट गया हो।

एक पल को वो स्थिर खड़ा रहा, फिर अचानक उसने गुस्से में अपना जूता उतारा — और बिना एक सेकंड की देरी किए, पूरी ताक़त से वही जूता उस गार्ड के मुँह पर दे मारा।

“दोनों को, गधे!” रणवीर दहाड़ उठा।

गार्ड लड़खड़ाते हुए पीछे गिरते-गिरते बचा। उसके चेहरे पर जूते की चोट से शर्म और डर दोनों पसीने की तरह बह रहे थे।

रणवीर अब पूरी तरह अपना आपा खो चुका था। उसकी साँसे तेज़ थीं, बाल बिखरे हुए थे, और चेहरा खून की तरह लाल था। वो बुरी तरह हाँफ रहा था।

“अब अगली बार सवाल पूछा ना… तो जूता नहीं, गोली मारूंगा!” उसने आगबबूला होते हुए कहा।

गार्ड ने काँपते हुए सिर हिलाया और तुरंत पीछे हट गया, जैसे ज़मीन में समा जाना चाहता हो।

“दोनों को जाकर ढूंढ़ कर लाओ।”

इस बार रणवीर की आवाज़ पहले जैसी गूंजती हुई नहीं थी — वो धीमी थी, भारी थी… जैसे उसके भीतर से निकली हो, किसी टूटे हुए आदमी की तरह, जिसने अब सब कुछ खो देने की हद पार कर ली हो।

उसका चेहरा भावशून्य हो चुका था, मगर आँखों में एक ऐसी आग थी, जो किसी भी वक़्त किसी को भी जला सकती थी।

वो धीरे-धीरे अपने पैरों के पंजों पर झुक गया… दोनों हाथ सिर पर रख लिए… जैसे उसकी पूरी दुनिया ढह गई हो, और अब सिर्फ़ बदला ही एकमात्र मक़सद बचा हो।

कुछ सेकंड की चुप्पी के बाद, उसने अपनी गर्दन झुकी हुई ही रखी और उसी मुद्रा में बेहद ख़तरनाक लहज़े में बोला — धीरे, मगर हर शब्द किसी खंजर की तरह चुभता हुआ,

“दोनों को ढूंढ़ कर मेरे सामने लाओ… तीन घंटे हैं तुम्हारे पास…उनके साथ आओगे, तो भी मारूंगा… और उनके बिना आओगे, तो भी मारूंगा…”

वो अब उठकर सीधा खड़ा हो गया। उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था, मगर उसकी आँखें पहले से कहीं ज़्यादा खतरनाक लग रही थीं।

“और सुन… तुझे बहुत confusion होती है ना?” उसने उसी गार्ड की ओर इशारा किया जो कुछ देर पहले उसके जूते का स्वाद चख चुका था।

“तेरे लिए clear कर देता हूँ…”

वो उसके पास आया, उसकी कॉलर फिर से कसकर पकड़ी और बेहद शांत मगर कंपकंपा देने वाले स्वर में कहा, “अगर तुम लोग लौटे ही नहीं… तो सालों ढूंढ़-ढूंढ़ कर मारूंगा तुम लोगों को। एक-एक को….समझे?”

गार्ड की साँस जैसे हलक में ही अटक गई। उसने तुरंत सिर हिलाया और पीछे हटने की कोशिश की।

रणवीर का चेहरा अब बिल्कुल पत्थर हो चुका था। गुस्से से नहीं, बल्कि एक ऐसी क्रूरता से भरा हुआ, जो तब आती है जब इंसान सब कुछ हार चुका होता है… मगर फिर भी हार मानने को तैयार न हो।

गार्ड्स ने जैसे ही रणवीर की धमकियां सुनी, वे बिना एक पल गँवाए इधर-उधर भाग खड़े हुए। कोई दाएँ जंगल की ओर दौड़ा, तो कोई बाएँ तरफ़ झाड़ियों में घुस गया। कुछ ने हथियार संभाले और कुछ बस डर के मारे अंधाधुंध दौड़ पड़े — जैसे कुछ देर के लिए जान बचाने की होड़ हो।

रणवीर खड़ा होकर यह सब देखता रहा… उसका माथा झुका हुआ और मुट्ठियाँ कसी हुई थीं। और जब उसने देखा कि एक भी गार्ड उस जलती हुई साइट के पास नहीं ठहरा — उसका गुस्सा जैसे उबाल मार गया।

“अरे! फिर सब के सब क्यों भाग रहे हो?”

उसकी आवाज़ ज़मीन को हिला देने वाली थी, और हवा जैसे कुछ पल के लिए ठहर गई।

वो दो कदम आगे बढ़ा और ज़ोर से चिल्लाया — “इधर कौन खड़ा रहेगा, तुम्हारा बाप? कुछ गार्ड्स यहाँ रुको… बेवकूफ़ों की फौज!”

उसका चेहरा अब सिर्फ़ गुस्से का नहीं, निराशा का भी प्रतीक बन गया था। ऐसा लग रहा था जैसे रणवीर खुद को अकेला महसूस कर रहा हो — अपने ही लोगों की नालायकी के बीच।

गार्ड्स जो दूर भाग चुके थे, उनमें से कुछ रुक गए… धीरे-धीरे घबरा कर मुड़े… और रणवीर के क्रोध से बचने की कोशिश में वहीं किनारे-किनारे खड़े हो गए। किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि उसकी आँखों में आंखें डालकर बोले।

रणवीर अब भी खड़ा था, उस जली हुई साइट की ओर देखते हुए… और शायद मन ही मन ये सोच रहा था कि उसने इतने सालों में जिसे सबसे ज़्यादा सुरक्षित रखा… वो आज उसकी ही आँखों के सामने पल भर में राख हो गया।

 

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये रिश्तों का क़र्ज़।

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