संस्कृति पानी भर रही थी। आज पड़ोस की औरतें भी साथ खड़ी थीं। अभी भी बहुत सारे पड़ोसियों की नज़र संस्कृति के लिए अलग-सी थी। उन सभी के मन से उसके संस्कारहीन होने की बात तो पूरी तरह से नहीं मिटी थी, लेकिन उसके साथ ही उसकी आत्महत्या करने की कोशिश वाली बात छप गई थी। उनमें से भले ही कुछ लोग संस्कृति से जलते हो या उसके बारे में बुरा सोचते हो लेकिन कोई भी यह नहीं चाहता था कि उनकी किसी बात की वज़ह से संस्कृति को ऐसी तकलीफ़ हो कि वह जान देने की बात करने लगे। उनमें से कोई भी संस्कृति के मरने की वज़ह तो नहीं होना चाहता था।

उस रोज के बाद से पड़ोसियों ने भी कभी संस्कृति से किसी प्रकार की कोई शिकायत या कोई झगड़ा नहीं किया था। वह तो पहले भी किसी से लड़ाई नहीं करती थी, बस उनके ग़लत चीज़ों पर सवाल करती या उन्हें जवाब देती थी, लेकिन अब वह मुस्कुरा कर सबको देखा करती थी। शुरू-शुरू में न ही वह ख़ुद से नज़रे मिला पा रही थी और न ही अपने पिता से और ना ही पड़ोस के किसी भी इंसान से, लेकिन न जाने उसे स्टेशन पर उस लड़के की बात दिल में रह गई थी। उसे अचानक ही ऐसा लगा था मानों उसका जन्म किसी बड़े उद्देश्य के लिए हुआ हो और वह उस बात से अनजान है। उसके जीने का मकसद उसके उद्देश्य को ढूंढना ही।

अब वह दिन के छोटे-छोटे कामों में खो जाने के बजाय, अपने भीतर की आवाज़ को सुनने लगी थी। उसे लगता था जैसे उसे एक दूसरा मौका मिल गया हो और वह इस बार उसे पूरी तरह से जीना चाहती थी। उसका मन अब बहुत हल्का महसूस करता था और उसके दिल में एक अजीब सा उत्साह था।

इस समय संस्कृति की स्थिति से उसके पिता की परेशानी तो कम नहीं हो रही थी और न ही घर के हालात बदल रहे थे। वैसे उसे एक हौसला मिल चुका था कि वह इन सभी चीज़ों को बदल सकती है। कुछ दिन पहले जिस हालात ने संस्कृति के मन में निराशा भर दी थी, आज वही हालात उसे कुछ नया करने का उत्साह दे रहे थे।

संस्कृति घर के कामों में बिजी थी। उसने अपने कुछ पुराने कपड़े धोकर सूखने को रख दिए थे और रसोई घर की सफाई कर रही थी। उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला उसकी आँखें चमक उठी। सामने दिव्या और नंदिनी खड़े थे और उन दोनों के पीछे एक ऑटो खड़ा था।

संस्कृति (उत्साह में) - दिव्या! नंदिनी! आ गए तुम दोनों।

दोनों ही छोटी बहनें अपनी बड़ी बहन से आकर लिपट गई। तीनों बहनें ऐसी लिपटी जैसे इस वक़्त का इंतज़ार सदियों से कर रही हो। शादी के बाद वह दोनों पहली बार मायके आई थीं और पहली बार अपनी बड़ी बहन से मिल रही थी। एक दो बार फ़ोन पर फिर बातें हुई थी मगर सामने से गले लगा पाने का सुख पहली बार मिला था। न जाने क्यों फिर से तीनों बहनों की आँखों से आँसूं गिरने लगे।

तीनों बहनें गले लगे ही थे कि पीछे से ऑटो वाले ने सामान उतार कर रख दिया और वापस जाने लगा..

संस्कृति (ऑटो वाले को रोकते हुए) - अरे! कम से कम चाय तो पी लीजिए।

ऑटो वाले ने चाय के लिए मना कर दिया, उसे दिव्या के ससुराल से पैसे पहले ही भाड़ा मिल चुका था। इसलिए वह मुस्कुराते हुए वापस चला गया। संस्कृति ने दिव्या नंदिनी की बैग उठाने में मदद की और फिर घर के भीतर आ गए।

संस्कृति ने राहत की साँस ली और फिर एक पल के लिए चुप हो गई, जैसे उसकी आत्मा ने एक गहरी शांति को महसूस किया हो। घर के अंदर का माहौल अचानक से बदल गया। तीनों बहनें एक साथ थीं, यमुना की कमी तो थी फिर भी बहुत समय बाद घर में ख़ुशी की एक वज़ह आई थी।

संस्कृति (राहत की साँस लेती हुई) - यमुना होती तो और भी अच्छा लगता मगर तुम दोनों को देखकर भी बहुत सुकून मिल रहा है। तुम सभी के बिना तो यह घर इतना सूना हो गया था कि मानों काटने दौड़ता था। अब देखो इस घर को कितना हँसता खेलता लग रहा है।

शादी से पहले भी दिव्या और नंदिनी समझदार थी लेकिन शादी के बाद जिस तरह की ज़िम्मेदारी की बात वह कर रही थी मालूम पड़ता था कि एक उम्र गुज़र चुकी है।

संस्कृति (प्यार से निहारती हुई) - तुम दोनों तो बहुत समझदार हो गए हो। ऐसा लगता है घर की जिम्मेदारियां को बहुत ही अच्छे से संभाल लिया है तुम दोनों ने।

फिर थोड़ा रुक कर संस्कृति ने पूछा

संस्कृति( गंभीरता से)- तुम दोनों के साथ कोई ससुराल से क्यों नहीं आया?

जवाब में दिव्या और नंदिनी ने संस्कृति से कहा, बहुत काम रहता है अगर एक दिन भी काम नहीं करेंगे तो नुकसान ही होगा अब हम दोनों बहनें साथ आ ही सकती थी तो फिर साथ आ गई। एग्जाम के बाद वापस लेने कोई ना कोई ज़रूर आएगा। एग्जाम की बात सुनकर संस्कृति ने तुरंत ही कहा

संस्कृति (हड़बड़ाते हुए)- अरे! यह तो अच्छी बात याद दिलाई, मैं तो तुम दोनों के आने की ख़ुशी में भूल ही गई थी कि तुम दोनों की एग्जाम आने वाले हैं। जल्दी से तैयारी शुरू करो तुरंत कपड़े बदलो और फिर किताबें निकालो। मैं भी देखूं कि कितनी तैयारी की है तुम दोनों ने। शादी बाद कुछ पढ़ाई भी की है या फिर सिर्फ़ घर के कामकाज में ही लगी रह गई।

अपनी बड़ी बहन की बात सुनकर दोनों बहनों ने तपाक से जवाब देते हुए कहा कि उनकी तैयारी में कोई कमी नहीं है और फिर अपने कपड़े बदलने चली गई।

संस्कृति (मज़ाक करते हुए कहा) - हाँ वह तो अभी तुरंत पता चल जाएगा कि तुम दोनों ने कितनी पढ़ाई की है और कौन-सी पढ़ाई की है?

बात सुनते ही तीनों बहनें हँस पड़ीं। मोहल्ले के जिन भी लोगों को दिव्या और नंदिनी के आने की ख़बर लगी वह सभी एक-एक करके मिलने चले आए। दोनों को ख़ुश देखकर वे भी ख़ुश होते। दिव्या और नंदिनी अपने ससुराल वालों की बहुत ही बड़ाई कर रही थीं। संस्कृति ने देखा कि मोहल्ले के बहुत से लोग बार-बार आकर उन दोनों से मिल रहे हैं, उसे अच्छा लग रहा था लेकिन जब उसकी शादी की बात वह करते तो उसके अंदर कुछ चुभने लगता। वह किसी भी पड़ोसी से खुलकर बात नहीं कर सकती थी, इसलिए उनकी बात पर सिर्फ़ मुस्कुरा देती। अब संस्कृति के मन में उसकी ख़ुद की शादी को लेकर कोई भी बात नहीं थी और ना ही अपने पिता से कोई शिकायत थी। शाम को दशरथ जब घर आया। तब दिव्या और नंदिनी ने साथ में ही दरवाज़ा खोला। अपनी दोनों बेटियों को बहुत समय बाद देखकर दशरथ ने उन्हें ख़ुशी से गले लगा लिया।

 

दशरथ (ख़ुशी में)- तुम दोनों कब पहुँचे। कैसे हो मेरे बच्चों।

दोनों बेटियों के चेहरे पर चमक थी। बेटियों के चेहरे चमकते को देखकर दशरथ बहुत ख़ुश हुआ। दोनों से बिना पूछे ही उसे समझ में आया की बेटियां ससुराल में ख़ुशी से हैं।

अपनी बेटियों को इतना ख़ुश देखकर

दशरथ (मन ही मन में)- देखो अनुराधा, हमारी बेटियां कितनी नसीब वाली है।

रात का खाना दशरथ ने अपनी बेटियों के साथ ही खाया। दशरथ को पहले पता रहता कि आज उनकी दोनों बेटियां आने वाली हैं तो शायद वह कुछ और पकवान बनाने का सामान लेकर आता। घर में जो सामान था उसी से संस्कृति ने खाना बनाया था। सभी ने साथ में मिलकर खाना खाया। बेटियों की ख़ुशी के कारण आज घर भी मानों ख़ुशियों से भर गया था, लेकिन सभी यमुना को बहुत ही याद कर रहे थे। दिव्या के पति ने उसे एक एंड्रॉयड फ़ोन दिया था। जिससे वह पढ़ाई भी करती थी। जब सभी साथ में खाना खा रहे थे तब दिव्या ने यमुना के ससुराल कॉल लगाया, लेकिन दूसरी तरफ़ किसी ने भी कॉल रिसीव नहीं किया।

 

दो-तीन बार ट्राई करने के बाद जब फ़ोन रिसीव नहीं हुआ।

 

दशरथ (सोचते हुए) - अभी रात हो गई है ऐसा लगता है कि सभी सो गए होंगे कल सुबह कोशिश करना।

 

संस्कृति (हामी भरते हुए) - पापा आप ठीक कहते हो।

कल आपके जाने से पहले ही फ़ोन कर लेंगे यमुना को। उसे भी बहुत अच्छा लगेगा। अभी तक दिव्या और नंदिनी को किसी ने भी संस्कृति के आत्महत्या की कोशिश वाली बात नहीं बताई थी। दोनों अपने मायके आकर बहुत ख़ुश थीं। सोने से पहले संस्कृति ने अपने दोनों बहनों को बोर्ड की परीक्षा के लिए पढ़ाना शुरू किया।

संस्कृति (समझाते हुए) - देखो एग्जाम में सबसे पहले वही सवाल बनाना जो तुम्हें आते हो उसके बाद ही उन सारे सवालों को अटेम्प्ट करना जो थोड़े से कठिन हो।

संस्कृति की मैथ्स बहुत ही अच्छी थी, इसलिए उसने दोनों बहनों को पहले दिन मैथ्स ही पढ़ाया। दिव्या को फिजिक्स के बहुत सारे सवाल बहुत मुश्किल लगते थे।

संस्कृति (समझाते हुए) - इस ड्राइंग को ठीक से देखो प्रकाश के परावर्तन को समझना बहुत ही आसान है सबसे पहले तो यह समझो कि जो भी किरणें किसी सतह पर पड़ रही हैं, वही वापस जाएंगी इस माध्यम में। जिस कोण से आएगी उसी कोण से भी वापस जाएगी।

अपनी बहनों को पढ़ने के बाद संस्कृति जब सोने गई तो रात भर उसके मन में प्रकाश का परावर्तन चला रहा।

संस्कृति (ऊंघते हुए) - हमारा जीवन भी तो प्रकाश के परावर्तन के नियम से चलता है, जिस तरह के काम हम करते हैं, वह हम तक उसी तरह वापस लौट कर आता है और अब मुझे अपनी जिंदगी में बहुत ही अच्छे काम करने जिससे मेरे घर की परेशानियां पूरी तरह दूर हो जाए।

यही सोचते-सोचते न जाने उसे कब नींद आ गई, लेकिन संस्कृति के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि क्या वह वाकई अपनी ज़िंदगी को कोई नया आयाम दे भी पाएगी या नहीं?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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