इतने साल में आज पहली बार हुआ था कि पानी भरने के लिए दिव्या और नंदिनी एक साथ उठे थे, वह भी अपनी बड़ी बहन संस्कृति से पहले। दोनों सच में बहुत ख़ुश थी। ससुराल वालों का प्यार उनके चेहरे पर भी चमक रहा था। वह दोनों जैसे ही पानी भरने हैंडपंप के पास पहुँची आस-पड़ोस की सभी औरतें उनके पास आ गईं। दोनों ने बड़ों के पैर छूकर प्रणाम किया। रिश्ते में जो भाभियों लगती थी उन्होंने मज़ाक-मज़ाक में ससुराल के बारे में पूछा। दोनों ही बहनें अपने ससुराल वालों के बारे में और अपने पति के बारे में शर्माते हुए बता रहीं थी। सभी औरतें उन दोनों से सिर्फ़ ससुराल के बारे में ही पूछती रहीं। किसी ने भी संस्कृति के हादसे का ज़िक्र नहीं किया। दोनों पानी भरकर वापस आ गए। संस्कृति और दशरथ जग चुके थे, उन दोनों ने दिव्या और नंदिनी को देखा तो ख़ुश हो गए। दशरथ को मन ही मन यह डर सता रहा था कि कहीं कोई पड़ोसी उनकी बेटियों को सच ना बता दे। ठीक यही चिंता संस्कृति के मन में थी।

संस्कृति (मन ही मन) - हे भगवान, मेरी दोनों बहनें बहुत ख़ुश हैं, शादी के बाद पहली बार घर आई है, मैं नहीं चाहती कि मेरे बारे में सुनकर वह दोनों दुःखी हो। बस कैसे भी करके उन तक यह बात न पहुँचने देना।

दशरथ (मन ही मन) - मेरी प्यारी बेटियों को कभी कोई दुःख मत देना भगवान। जीवन भर आपकी पूजा की है। आपने जो भी दिया है उसे मैंने स्वीकार किया है। मेरी बेटियों को सभी दुःखों से दूर रखना इन पर अपना आशीर्वाद बनाए रखना।

शादी से पहले दिव्या और नंदिनी बहुत ही आराम से उठती थीं लेकिन आज दोनों ही बहनें सबसे पहले पानी लेकर वापस आ चुकी थी। घर की रसोई में भी पहुँच चुकी थी। यह देखकर संस्कृति की आँख भर आई और दशरथ भी मुस्कुराने लगा।

दशरथ (ख़ुश होते हुए) - संस्कृति देख रही हो अपनी दोनों बहनों को, आज जीवन में पहली बार सबसे पहले उठी है दोनों और देखो इतने कम समय में कितना सारा काम भी निपटा लिया। सच में दोनों बड़ी हो गई हैं।

संस्कृति (हामी भरते हुए) - पापा! आप ठीक कह रहे हैं। यह तो मेरे लिए अच्छा हुआ अब तो मैं आराम से देर तक सो सकती हूँ। अब दोनों बहने ही घर संभालेंगी।

दशरथ और संस्कृति एक साथ हँस पड़े। जब तक दशरथ स्टेशन जाने के लिए तैयार हुआ तब तक दिव्या और नंदिनी ने खाना तैयार कर लिया था। खाना खाकर और टिफिन लेकर दशरथ स्टेशन की ओर चल दिया।

संस्कृति ने जब दशरथ को जाते हुए देखा

संस्कृति (मन ही मन) - आज कितने दिनों के बाद पापा ख़ुश दिखाई दे रहे हैं। भगवान उनके चेहरे पर यह मुस्कान हमेशा बनाए रखना कभी उन्हें कोई तकलीफ़ ना देना।

 

अचानक ही संस्कृति के मन में अपने पिता की रोज़ रोने की शक्ल सामने आ गई और वह काँप गई।

 

घर के सारे काम निपटाने के बाद दोनों बहने किताबें लेकर बैठ गईं। संस्कृति ने भी सारे काम खत्म करके उन्हें पढ़ाना शुरू किया।

इस बीच मोहल्ले के लोग दोनों से मिलने आते थे, लेकिन संस्कृति उन्हें एग्जाम के बारे में बता कर वापस जाने के लिए प्यार से मना लेती थी। संगीता बुआ भी जब दोनों से मिलने आई तब चाय पिलाने के बाद संस्कृति ने कहा - बुआ, इन दोनों का एग्जाम है। अभी दोनों घर पर ही रहेंगी। एग्जाम के बाद आप तसल्ली से दोनों से बात करना फिर मैं बिल्कुल भी नहीं टोकूंगी, लेकिन अभी इन दोनों का पढ़ना बहुत ज़रूरी है।

संगीता बुआ ने भी पढ़ाई के नाम पर कुछ नहीं कहा। अपनी चाय खत्म करके चुपचाप वहाँ से लौट गई। वह थोड़ी-सी बीमार थी इसलिए संस्कृति ने उन्हें घर तक पहुँचाया।

वह जब घर लौट के आए तब देखा दिव्या और नंदिनी मोबाइल पर किसी से बात कर रहे हैं। मोबाइल लाउडस्पीकर पर था दूसरी तरफ़ यमुना थी।

यमुना की आवाज़ थोड़ी बदली हुई लग रही थी, लेकिन अपनी बहनों से बात करते समय उसमें उत्साह था। उसकी आवाज़ सुनकर संस्कृति को थोड़ा-सा अजीब लगा।

संस्कृति (सोचते हुए) - यमुना तू ठीक है, घर पर सब कैसे हैं? कल ही नंदिनी और दिव्या आई है, अगर तू भी आ जाती तो कितना अच्छा होता, हम सभी बहनें एक बार फिर मिल लेते हैं।

दूसरी तरफ़ से यमुना हामी भर रही थी। उसे भी अपने मायके आने का बहुत मन था। मगर अपने पति के काम के बारे में बताते हुए उसने कहा कि अभी कुछ महीने आना मुश्किल है। यमुना ने तीनों बहनों से कहा कि वह भी घर को, बहनों को और अपने पिता को बहुत मिस करती है। उसके ससुराल वाले अच्छे हैं और उसे बहुत ही प्यार से रखते हैं।

 

यमुना से बातचीत के बाद संस्कृति फिर से दोनों बहनों को पढ़ाने लगी। संस्कृति को पढ़ाई छोड़े काफ़ी वक़्त हो गया था फिर भी उसके बताने के तरीके से ऐसा मालूम पड़ता था जैसे उसने कल ही दसवीं की परीक्षा दी हो। आसपास में संस्कृति के मैथ्स जैसी किसी की भी मैथ्स नहीं थी। स्कूल में बहुत से टीचर है संस्कृति से कहा था कि उसे आगे साइंस लेकर पढ़ना चाहिए लेकिन घर की मजबूरियों के कारण संस्कृति आगे पढ़ाई नहीं कर पाई, लेकिन दसवीं की गणित और बाकी विषय उसके अंदर इतने अच्छे तरीके से थे कि हर सवाल का जवाब उसे मालूम था।

एग्जाम के एडमिट कार्ड आ चुके थे। हर भगवान की दया से उन दोनों बहनों का सेंटर कानपुर सेंट्रल स्कूल के पास ही एक स्कूल में था। एग्जाम के सेंटर से दशरथ और संस्कृति दोनों ख़ुश हुए। जैसे-जैसे एग्जाम के दिन नजदीक आ रहे थे दिव्या और नंदिनी बहुत ही परेशान दिखाई दे रहे थे। दिव्या को डर था कि अगर वह दसवीं की परीक्षा में किसी भी विषय में फेल हो जाएगी तो उसके ससुराल वाले उसे आगे की पढ़ाई नहीं करने देंगे और ना ही उसे दोबारा एग्जाम देने का मौका देंगे। उसने जो भी सपने देखे हैं वह उन्हें कभी पूरा नहीं कर पाएगी। वहीं नंदिनी के लिए दसवीं की परीक्षा पास करना उसे अपने ससुराल में और भी मान दिलाने जैसा था। नंदनी के पति ने मायके भेजते समय कहा था कि ज़रूरी नहीं है एग्जाम का रिजल्ट अच्छा आए या बुरा, ज़रूरी यह है कि उसने कितनी मेहनत की है, क्या उतनी मेहनत के अंक मिले हैं उसे। इसलिए नंदिनी, दिव्या से थोड़ी कम परेशान दिखाई पड़ती थी।

 

अपने पिता से ईमानदारी सभी बेटियों को विरासत में मिली थी, इसलिए उनके पास पढ़ने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। मोहल्ले के बाकी सभी बच्चे एक बार को परीक्षा में चीटिंग करने की सोच भी सकते थे, लेकिन दिव्या और नंदिनी के लिए यह विकल्प था ही नहीं।

संस्कृति ने भी जी-जान लगाकर दोनों बहनों को पढ़ाया। कभी-कभी पढ़ते समय उसे अपनी दसवीं की परीक्षा याद आती थी, वह पढ़ने में कितनी होशियार थी, उसके कितने ही सपने थे। अब वह जब भी सपनों के बारे में सोचती थी तो निराश होने की बजाए, उन्हें एक दिन पूरा करने के लिए हिम्मत जुटाने की ठानने लगती।

परीक्षा के एक दिन पहले ही जब दिव्या और नंदिनी पानी भरने के लिए गई थी तभी किसी ने उनसे संस्कृति की तबियत के बारे में पूछा और साथ ही उसके आत्महत्या करने की कोशिश के बारे में भी बता दिया।

संस्कृति और दशरथ चाहते थे कि यह बात उन्हें अगर पता भी चले, तो एग्जाम के बाद पता चले, ताकि उन दोनों पर इसका कुछ ग़लत असर ना हो। जैसे ही दोनों बहनों को इस बारे में पता चला वह तुरंत ही पानी लेकर घर वापस आ गईं।

संस्कृति (मुस्कुराते हुए) - तुम दोनों आ गई पानी भर के। चलो अभी बाकी के काम में संभाल लूंगी तुम दोनों पढ़ाई शुरू करो।

संस्कृति के खाने के बाद भी दिव्या और नंदिनी उसके सामने खड़ी रहीं और उसे निहारती रहीं। उनके चेहरे पर ख़ुशी का कोई नामोनिशान नहीं था। संस्कृति ने ध्यान से देखा दोनों बहनों की आँखों में आँसूं थे। संस्कृति बोली कि परीक्षा पर ध्यान दो और डरने की कोई बात नहीं है। वो जानती है कि उसकी बहनें बहुत ही अच्छे अंक से दसवीं की परीक्षा पास करेंगी, नहीं तो उसके टीचर की तो नाक ही कट जाएगी।

अगले ही पल दिव्या और नंदिनी दौड़कर संस्कृति के पास आए और उसे गले लगा लिया। संस्कृति को समझ में नहीं आया कि दोनों बहनें इस समय क्यों रो रही है? दशरथ भी मोहल्ले का एक चक्कर लगाकर वापस आ चुका था। उसने तीनों बेटियों को देखकर ख़ुशी से कहा

दशरथ (ख़ुशी से) - अरे! अब क्या हो गया क्यों रो रहे हो तुम तीनों।

दिव्या ने सिसकते हुए धीमी आवाज़ में संस्कृति से कहा आपने हमें बताया क्यों नहीं, अगर आपने हमें बताया होता तो हम बहुत पहले ही आपके पास आ जाती। आपको अकेला छोड़कर कभी न जाते हैं। दिव्या की बात सुनकर संस्कृति को सब समझ में आ गया आख़िर जिस बात से वह डर रहे थे वह हो ही गया, वह भी परीक्षा के एक दिन पहले।

संस्कृति (भावुक होते हुए) - तुम दोनों पागल हो, देखो मुझे कहाँ कुछ हुआ…मैं तो तुम्हारे सामने हूँ।  मुझे माफ़ कर देना मैंने जो भी कदम उठाए उसके लिए लेकिन अब सच कहती हूँ मैं कभी भी ऐसा नहीं करूँगी जिससे पापा को या तुम सभी को कोई दुःख हो। मैं सब कुछ बदल दूंगी।

दिव्या और नंदिनी फूट-फूट कर रो रही थी। थोड़ी देर पहले उन्हें अपनी बहन के बारे में सुनकर बहुत दुःख हो रहा था लेकिन साथ ही साथ एक ख़ुशी भी थी कि उनकी बहन उनकी नज़रों के सामने खड़ी थी। जिंदा थी हँस रही थी, ख़ुश थी। दशरथ भी तीनों बेटियों को ऐसे प्यार से गले लगा देख ख़ुश हो गया उसे लगा जैसे उसके घर में ख़ुशियां आनी अब शुरू हुई हैं।

संस्कृति अपने आप को अपना रही थी। अपनी ज़िन्दगी की सच्चाई को फिर से अपनाकर वह अपने पिता की मदद कर पाएगी? आख़िर कैसे करेगी वह अपने परिवार की मदद?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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