हर हवेली में, कोई न कोई राज़ छुपे होते हैं। ऐसी बातें, जो आज भी दीवारों और दरवाज़ों के पीछे क़ैद हैं। उन कहानियों पर बनावटी सच का चादर चढ़ा दिया जाता है। चौधरी बागान बाड़ी में दिल्ली की आर्टिस्ट नीना, बतौर मेहमान रह रहीं हैं। नामचीन बिज़नेसमैन और चौधरी बागान बाड़ी के मालिक, सत्यजीत चौधरी ने नीना की ख़ातिरदारी में कोई क़सर नहीं छोड़ा। पर नीना का मन अभी भी अतृप्त है क्यूँकि उसे ऐसा कुछ दिखा, जिसके बारे में वो और ज़्यादा जानना चाहती थी।
सत्यजीत ने उसे पूरा चौधरी बागान बाड़ी दिखाया तो था, लेकिन ये कमरा क्यों नहीं? नीना के मन में सवाल कौंधा।
वो दबे कदमों से उस रूम की तरफ़ बढ़ी। वहाँ दूर से देखने पर पता चल रहा था कि अंदर काफ़ी अंधेरा है। अंधेरा अक्सर चीजों को और डरावना बना देता है। बाहर इतनी रोशनी है तो ये कमरा इतना अंधकारमय क्यों?
उसे डर तो लग रहा था, लेकिन नीना जिज्ञासा की जकड़ में थी। "डर के आगे जीत है" यही सुनते हुए बढ़ी हुई थी। सोचा, शायद आगे जीत के रूप में उसके सवालों के छुपे हुए जवाब मिल जाए। तभी उसे पीछे से, एक सुरीली धुन सुनाई दी। यह सुरीली धुन इतनी डरावनी थी कि नीना की रूह काँप गई। उसके कानों में वो धुन कुछ यूं गूंजने लगी जैसे कुछ बुरा होने को है। संगीत में अच्छा या बुरा महसूस करवाने की ताकत होती है, और इस संगीत ने नीना को कुछ बुरा होने का अंदेशा दिया..
उसने अपने कान पर हाथ लगाया, लेकिन इस मेलोडी को कानों के अंदर जाने से रोक पाना संभव नहीं था। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा। वो चाहकर भी आगे बढ़ नहीं पायी और वहीं थम कर रह गयी।
तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा जिससे वो बुरी तरह चौंक कर पलटी।
सत्यजीत: आप यहाँ क्या कर रही हैं?
नीना को वह धुन सुनाई देना बंद हो गया। उसने अपने हाथ कानों से हटाये। जहाँ उस धुन के डर से राहत मिली, वहीं सत्यजीत चौधरी को देख, एक नया डर उसके दिल में घर करना शुरू कर गया।
जवाब न पा कर सत्यजीत ने दोबारा वही सवाल किया….
सत्यजीत: आप यहाँ क्या कर रही है?
नीना ने लंबी सांस भरते हुए कुछ कहने कि कोशिश मगर उसके मूँह से केवल कुछ शब्दों के टुकड़े ही निकले।
वो सहमी हुई थी और सत्यजीत को देख, घबराहट में गलत सवाल पूछ बैठी
नीना: “यहाँ क्या है? आपने मुझे इस जगह के बारे मे क्यों नही बताया?”
नीना को यह सवाल पूछने का कोई हक नहीं था क्योंकि वो हवेली के मालिक से ऐसे सवाल-जवाब करने का अधिकार रखती ही नहीं थी लेकिन अभी 2 मिनट पहले जो हुआ उसके बाद तो कोई भी ऐसा सवाल पूछ ही लेता। उसने आज तक सुना था कि ऐसी पुरानी और बड़ी हवेलियों में कई राज़ दफ़न होते हैं, लेकिन पहली दफ़ा इस तरह के राज़ से उसका सामना हुआ।
सत्यजीत: “यहाँ कुछ दिखाने लायक कुछ नहीं था इसलिए नहीं दिखाया। बागान बाड़ी बहुत बड़ी है और मैं आपको हर जगह तो नहीं दिखा सकता। इन फैक्ट, आपने लाइब्रेरी भी तो नहीं देखी। बाकी जो ज़रूरी था, वो सब आप देख चुकी हैं। अब आप बताइए, आप यहाँ क्या कर रहीं थीं?”
सत्यजीत के भारी आवाज़ से उसके इरिटेशन का पता लग चुका था नीना को। वो सोच में पड़ गई कि ये बात तो सही कर रहे हैं। घर का मालिक उतना ही घर दिखाएगा जितना वो दिखाना चाहे। अब नीना उसके सवाल का क्या जवाब दे, इसी सोच में वह उसे अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से टुकुर-टुकुर देखे जा रही थी। शी वॉज़ ब्लैंक! कोई जवाब सोच ही नहीं पाई।
सत्यजीत उसके इस तरह की तांका-झाँकी से थोड़ा असहज हुए, गुस्सा भी।
सत्यजीत: “नीना, बताइए आप यहाँ क्या करने आई हैं? और क्यों? वह भी मेरे पर्मिशन के बग़ैर। देखिए, आप इस तरह मेरे पर्सनल स्पेस में दखल नहीं दें सकतीं। ये मेरा घर है, कोई पब्लिक पार्क नहीं कि कहीं भी टहलने निकल जाओ। ”
सत्यजीत की आवाज थोड़ा हार्श थी। उसके कहे एक-एक शब्द नीना को सीधा चुभ रहे थे।
नीना शर्म से पानी-पानी हो रही थी। हाँ, उसको ऐसा तो क़तई नहीं करना चाहिए था, और इस सिचूऐशन में कुछ कहना, काफ़ी स्टूपिड लगेगा। कुछ कहने की कोशिश में उसने अपना मुँह तो खोला पर इस बार शब्दों ने उसका साथ नहीं दिया…
सत्यजीत: “कुछ कहेंगी या यूँ हीं बस सोचती रहेंगीं?”
नीना ने इस बार हिम्मत करके कह ही डाला…
नीना: “मुझे यहाँ सच में कुछ अजीब-सा महसूस हो रहा है”
हे भगवान! नीना! यही नहीं कहना था।
सत्यजीत : “अजीब मतलब?”
नीना : “मतलब, ऐसा लग रहा है कि कोई मुझे यहाँ तक खींच के लाया है... एक धुन... एक मेलोडी भी सुनाई दे रही थी…. सच में! काफ़ी हॉन्टिंग थी। न जाने क्यों पर मुझे एक नेगेटिव औरा फ़ील हो रहा है। कैसे समझाऊं आपको …”
सत्यजीत की नज़रें नीना पर गढ़ी हुई थीं और नीना वो महसूस कर पा रही थी।
सत्यजीत : “रबिश! नीना, मैंने आपको काम शुरू करने के लिए पिगमेंट भेज दिए थे, तो आप काम शुरू क्यों नहीं कर रही हैं? आप यहाँ-वहाँ घूम कर हम दोनों का समय बर्बाद कर रही हैं। आपका पता नहीं लेकिन आई डू नॉट वॉन्ट टु वेस्ट माइ टाइम!”
सत्यजीत ने पहली बार नीना से इस तरह कठोरता से बात की थी। नीना को उसका इतना कहना अच्छा नहीं लगा।
नीना : “मुझे थोड़ा समय चाहिए सोचने के लिए। आप मेरी वापसी की टिकट करवा दीजिए।”
सत्यजीत को अपनी कठोरता का आभास हुआ...
सत्यजीत: नीना, आप मेरी मेहमान हैं एण्ड आई डिडन्ट मीन टु बी रूड… आप जानती हैं कि मैंने वसुंधरा के पोर्ट्रेट के लिए आपका चुनाव ही क्यों किया?”
नीना ने कोई रिएक्शन नहीं दिया।
सत्यजीत: “मैंने कई एक्सिबिशन्स देखें हैं, लाखों आर्टिस्टों का काम देखा है लेकिन आपकी कला में एक सच्चाई दिखती है। ठीक वैसे ही जैसे वसुंधरा की आर्ट में दिखती थी। अगर आप उनका पोर्ट्रेट बनाएंगे, तो मुझे ही नहीं, उन्हें भी बेहद खुशी होगी। आप सोच लीजिए, बाकी आपकी कल की टिकट करवा दी जाएगी।”
नीना, बिना बात को आगे बढ़ाए अपने रूम की तरफ़ चल पड़ी।
सत्यजीत ने पलट कर उस हिडन रूम को देखा। वो काफ़ी परेशान नज़र आ रहा था। उसने खुद उस दरवाज़े को लॉक कियाऔर दोबारा अपने काम में तल्लीन हो गया। नीना अपने कमरे में पहुँच कर एक नाराज़ बच्चे की तरह मुँह फुला कर बिस्तर पर बैठ गई। फिर खुद को मन में समझाया कि उसे दिल्ली वापस जाना चाहिए.. इत्मीनान से सोच कर क़दम उठान चाहिए... इतनी जल्दी फ़ैसला लेना सही नहीं होगा।
जद्दोजहद में दिन गुजर गया और रात हो गई। आज नीना ने खाना भी अपने कमरे में ही खाया। उधर सत्यजीत के सेक्रेटरी ने नीना से डेट और टाइम कन्फर्म करके, उसके वापस जाने का प्रोग्राम फिक्स कर दिया।
नीना ने अपना समान पैक किया और खिड़की से बाहर देखने लगी। चाँदनी रात थी।तालाब के पानी में चाँद ऐसा लग रहा था मानो एक बड़ा-सा मोती हो! उसका बस चलता तो वो उसे समेट ही लाती। ज़िंदगी में कितने मुकाम आते है जहाँं हम हाँ और ना के बीच फंस कर, कोई भी डिसिशन ले लेते है। कई बार वो फैसले गलत होते हैं तो कई बार सही। नीना का फ़ैसला क्या होगा, वो तो बस, नीना ही जाने।
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रात का समय था... और बीच-बीच में दूर से किसी उल्लू की आवाज़ “हू हूउउउ” माहौल को भर रही थी। ये उल्लुओं के शिकार करना का समय था। बहुत तेज़-तर्रार होते हैं यह उल्लू! बड़े ही ख़ामोशी से बेख़बर जानवरों का शिकार करती है।
नीना इन सबके बीच चली जा रही थी, लेकिन कहाँ जा रही थी? उसके आगे एक औरत साड़ी पहने, चल रही थी, उसके पल्लू में बंधा चाबी का गुच्छा “छन-छन” की आवाज़ से उसके हर कदम का अंदाजा दे रहा था। वो औरत नीना को अपने पीछे चलने पर मजबूर कर रही थी। चलते-चलते वो एक ख़स्ताहाल खँडहर में पहुँची।
नीना अब सतर्कता से उस औरत का पीछा करने लगी। एक जगह पर, उस अनजान औरत ने रूककर, मुड़कर देखा। उसके चेहरे पर हलकी-सी लाइट पड़ रही थी। वो चेहरा देख, नीना के रौंगटे खड़े हो गए! वो औरत वसुंधरा थी!! वह जा कहाँ रही थी?नीना उसका पीछा क्यों कर रही थी? एक मिनिट…. वसुंधरा तो मर चुकी थी! तो क्या यह.......
तभी वसुंधरा ने हलके से कुछ कहा जो नीना को रात के सन्नाटे में साफ़-साफ़ सुनाई दिया
वसुंधरा: "आट-के"
फिर ज़ोर से हँसते हुए उसने नीना का हाथ कसकर पकड़ लिया.. नीना की चीख़ निकल गई। वो चीखते हुए उस खँडहर में ग़ायब हो गई। अब बस, उसकी कर्कश चीखें सुनाई दे रही थीं।
क्या ऐसा सच में नीना के साथ हो रहा था? या वो कोई सपना देख रही थी?
“आट-के” का क्या मतलब होता है?
वसुंधरा नीना से क्या कहने की कोशिश कर रही थी, और क्यों?
क्या नीना किसी भँवर में फँसने वाली थी?
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