नीना दिल्ली के लिए उड़ान भर चुकी थी। उसकी निगाहें काले आसमान में खो सी गई थीं। उसे एक अजीब-सा भारीपन महसूस हो रहा था जैसे कुछ पीछे छूट गया हो, जैसे कुछ अधूरा रह गया हो। यह सोचते हुए उसने एक लंबी सांस ली, लेकिन घर वापसी के बारे में सोच कर, उसका मन थोड़ा शांत हुआ।    

दिल्ली में लैंड करते ही नीना को ऐसा लगा   जैसे वो अपनी ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा पीछे छोड़ आई हो। चौधरी बाड़ी से उसे एक अलग-सा जुड़ाव महसूस हो रहा था।  अजीब बात है   - वो सोचने लगी  ।   

उसने घर पहुँच कर अपना सामान बस जैसे-तैसे पटक दिया। उसे  अनपैक  करना इतना भारी   क्यों   लग रहा था ?  ऐसा   लग रहा था मानों उसके दो हिस्से हो चुके   हैं  , एक को वहीं कोलकाता छोड़ आई हो और दूसरा, बस नाम मात्र   के लिए   अपने साथ ले आई हो। सामान को यूंही रख कर   वह सोफ़ा पर लेटी और ऊपर चलते हुए पंखे को ताकने लगी।   

उसे दिल्ली वापस आकर सच में अच्छा नहीं लग रहा था।   उसने सतीश को कॉल करके अपने लौटने की खबर दी। अब   उसे भूख लगने लगी तो किचन में जाकर उसने गैस ऑन की। बर्तन में पानी लिया और उसे गर्म होने के लिए रखा। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके हाथ   सिर्फ़   चल रहे हैं, दिमाग नहीं।  

अचानक उबलते पानी की तेज़ आवाज़ से वो चौंकी!   उसका ध्यान चूल्हे पर चढ़े गर्म पानी पर था ही नहीं।  
 
नीना: उफ्फ़! सारा पानी गैस पर आ गया।"    
 
ऐसा कहते हुए उसने बर्तन उतारने के लिए हाथ बढ़ाया तो "  आह!  ” उसका हाथ जल गया। वह दौड़कर   अपने   बेडरूम में   गई और बर्नऑल    लगाया जिससे उसे थोड़ी राहत मिली।   

नीना:   “बैठे बिठाये चोट लग जाती है! ये खाना बनाना इतना कॉमप्लिकेटेड   क्यों है? अब पेंट कैसे करूंगी?”   

वह दोबारा किचन में गयी । गैस ऑन किया   और नूडल्स का पैकेट खोल कर गर्म पानी में डाला। उसके मन में, फ़िल्मों की तरह, बैक-टु-बैक सीन्स चल रहे थे - बागान बाड़ी, उसका कमरा, वसुंधरा की   तसवीरें, चाय की प्याली, पिगमेंट की बोतल, सत्यजीत का चेहरा, रात को डर से नींद खुलना, बागान बाड़ी की सुबह, वगैरह।   

उसने नूडल्स प्लेट में लिए और टीवी ऑन करके सोफ़े पर खाने बैठ गयी। सामने   सिर्फ़   नूडल्स देख कर उसे बागान बाड़ी में शंभू के बनाए पकवान याद आने लगे। इन दो दिनों में शंभू ने उसे क्या कुछ नहीं खिलाया! इतने अपनेपन की भावना विरले ही मिलती है।  

उसने फ़ॉर्क से कुछ नूडल्स उठाए ही थे कि उसकी  डोरबेल  बजी।   

नीना : “इस वक़्त कौन होगा ?”  

उसने जाकर गेट   खोला तो सामने सतीश मौजूद था।    

सतीश : "  वह यार!   तू तो फ़ुल-ऑन बिज़नेसवुमन टाइप फ़ील   दे रही है... आपके पैर कभी इस शहर में तो कभी उस शहर में! ये सब उस रईसज़ादे  का जादू लगता है।"   

सतीश ने नीना को साइड करते हुए अंदर घुसा। सामने टेबल पर रखे नूडल्स पर उसकी नज़र पड़ी। नीना वहीं खड़ी उसे देख रही थी। नूडल्स देखकर सतीश बच्चों जैसा खुश हो गया!    

सतीश:   "वाह! तुझे मेरे आने की खबर कैसे मिल जाती है। तूने मेरे लिए नूडल्स बनाए?"   

उसने तुरंत नूडल्स उठाकर मुँह में डाले.... और उतनी ही तेज़ी से, मुँह से निकाल दिए! काफ़ी गर्म जो था।    

सतीश:   "आह!   बाप रे!   किसी   ज्वालामुखी से निकाल कर लायी है क्या? और वहाँ खड़ी मेरी मौत का नाच देख रही है.."    
 
सतीश ये सब नीना की मुस्कुराहट पाने के लिए कर रहा था । उसने दोबारा नूडल्स उठाए और फूँक मारके ठंडा करने लगा।  
पर तब तक उसने देख लिया था कि नीना कुछ खोयी-सी लग रही थी..  
नीना उसके बाजू में बैठ गयी और उसके हाथ से फ़ॉर्क लेकर, खुद खा  ने लगी।   

सतीश: "हद है, भई! ये मैंने अपने लिए ठंडा किया था।"   

नीना: "तो और बना ले... थोड़ा काम कर लेगा तो मर नहीं जाएगा  ।”  

सतीश: “वाउ! नई नीना वर्ज़न 2 पॉइंट O! वो मेरी   पुरानी वाली को क्या कलकत्ते छोड़ आई है? ”  

नीना: क्या? किसे   छोड़ आई ?”        

सतीश: सच में सटक गयी है क्या?    
नीना: यार, जब से आई हूँ, कुछ अच्छा नहीं लग रहा.. जैसे पीछे कुछ   छूट गया हो  , या कुछ अधूरा... जिसे मुझे पूरा करना था।  

सतीश: मतलब?  

नीना: वहाँ चौधरी बागान बाड़ी में कुछ अजीब - सा लग रहा था,   इसलिए   वापस आ गई    और अब घर आकार बस वहीं के बारे में सोच रही हूँ।”   

उसने फ़िलहाल सत्यजीत से जुड़ी कोई बात नहीं की। सतीश ने कुछ कहा जो नीना के बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। वह   किसी सोच में   खोई   हुई थी।     

नीना: मुझे उस पेंटिंग को वहीं   बनाना है  , लेकिन वहाँ सब कुछ बहुत रहस्यमय था। अजीब तरह के सपने आ रहे थे...  अजीब धुन सुनाई   दे   रही थी... एक छुपा हुआ कमरा...   

सतीश ही था जिससे वो अपनी हर बात कह सकती थी, अपना हर डर शेयर   कर सकती थी। सतीश ने नीना को तसल्ली देते हुए कहा कि ऐसा होना नॉर्मल-सी बात है। नॉर्मल लोग कहाँ कवेली में रहते हैं? उसने नीना को समझाया कि वह इसके पहले इस तरह की दुनिया में कभी गई ही नहीं थी। रही उस धुन की बात, तो वह उस हवेली में कहीं से गूँजते हुए सुनाई दे गई होगी। होगा, कोई फ़िज़िक्स का नियम कि वही धुन सुनकर नीना बहाल हो गई थी! नीना, सतीश को ध्यान से सुन रही थी।    

नीना: हम्म.. पॉइंट तो है.. मुझे लगता है जो तू कह रहा है.. वैसा ही हुआ होगा।   अरे, तुझे पता है... वहाँ एक दिन में कितना खाना बनता है? जितना हम  7  दिन में खाते हैं... उतना! तरह-तरह के व्यंजन.. और मिठाई.. और शंभू कितने प्यार से खाना सर्व करता है, क्या ही बताऊँ..”   

सतीश: हम्म, लगता है रईस  ज़ा  दे का जादू चल चुका है..    लेकिन मुझे लगता है उससे दूर रहने में ही तेरी भलाई है।  

नीना: “उसका नहीं, उसके घर का... क्या आलीशान घर है उसका.. इन फ़ैक्ट, घर बोलते हुए बुरा लगता है! हाहाहाहा! ओल्ड वर्ल्ड चार्म!!!          

सतीश: ओह-हो! थोड़ी देर पहले घर में मिस्टीरीयस   चीज़ें हो रही थीं और   अब दिल आ गया?  

नीना: मिस्टीरीयस ही तो रोमांटिक होता है, बाबू मोशाय!  

सतीश: “क्या बात है! फ़ुल बंगालन बन गई है तू!”  

सतीश ने, वाक़ई, नीना का मूड चेंज कर दिया था। पर वह नीना को जानता था.. वह किसी काम को आधा-अधूरा छोड़ने वालों में से नहीं थी। उसको अंदेशा था कि नीना चौधरी बागान बाड़ी वापस ज़रूर जाएगी। उसने नीना को पूछ ही लिया कि क्या वह सच में वापस जाएगी? नीना ने सतीश की तरफ़ देखते हुए, हौले से मुस्कुरा दिया। वह वापस ज़रूर जाएगी। सतीश ने आखिरी बार उसको डिसिशन बदलने को कहा। पर नीना ने यह कहते हुए बात टाल दी कि उसको भी वहाँ आना चाहिए। बागान बाड़ी में की गेस्ट रूम्स की कमी नहीं है, सो रहने-खाने की कोई दिक्कत नहीं होगी।    

सतीश: चल हट, मुझे नहीं रहना तेरे रईस  ज़ा  दे के घर में..      

नीना: अरे रे रे! मेरे रईसज़ादे से जलन!  

सतीश: ओह प्लीज़! और नूडल्स पड़े हैं क्या?   

दोनों की ना रुकने वाली चिट-चैट और हँसी से नीना का घर गूँज उठा था।   सतीश ने सलाह दी कि नीना वहाँ किसी पछड़े में ना पड़े।  

दोनों ने साथ बैठकर नूडल्स खाए और फिर थोड़ी देर बाद, सतीश वहाँ से जाने के लिए उठा। जाते-जाते उसने नीना को एक नए आर्ट एक्सिबिशन में आने का न्योता दिया! यह कहते उसकी नज़र नीना के कलाई पर बने निशान पर पढ़ी।    

 सतीश:  “ ये तेरा हाथ लाल कैसे हुआ?”  

नीना:  “अरे ये उंगली नूडल्स बनाते वक़्त जल गया..”  

सतीश :  “उंगली नहीं कलाई देख.. लाल क्यों हुआ पड़ा है?    

नीना: “कलाई ?”    
नीना की कलाई के आसपास, वाक़ई, किसी की पकड़ के निशान थे।   

नीना:   “ये निशान किस चीज़ का है?”   

वह ये भूल गई थी कि कल रात सपने में किसी ने उसका हाथ पकड़ा था। सतीश ने उसके चेहरे की उड़ती हवाइयाँ देख उसे समझाया कि वह किसी डॉक्टर को दिखा ले। यह कहते हुए सतीश चला गया। पर   नीना अपनी कलाई के लाल दाग़ को लेकर काफ़ी देर अटकी रही। आखिर उसे याद आ ही गया कि यह निशान कैसे पड़ा लेकिन वो तो सिर्फ़ सपना था। क्या सपने में लगी चोट रियल लाइफ़ में ट्रान्स्फर हो जाता है ?  

नीना को वो सपना याद आ चुका था। सपने में, वसुंधरा ने उससे क्या कहा था..  
नीना: हाँ! उसने “फेंशे गेली” कहा था..  इसका मतलब क्या होता है?   

सोचते हुए उसने अपना मोबाइल निकाला और सर्च करने लगी..  

नीना: मिल गया.. इसका मतलब है.. “फँस गई”   लेकिन कौन फँस गया और कहाँ?  

यहाँ अकेली रही तो  ऐसे सोच-सोच कर वो पागल हो जाएगी। उसने तय किया वो अपने काम में लग जाएगी ताकि उसका दिमाग ऊल - जलूल बातों में ना लगे..  देखते-देखते दो दिन बीत गए और नीना का खालीपन बढ़ता जा रहा था उसने सोचा घर से बाहर निकल कर थोड़ा शॉपिंग किया जाए वरना उसे पागल होने से कोई नहीं रोक सकता। सब कुछ भूल कर वह तैयार होने लगी।   

पिंक कुर्ता डालकर वो खुद को आईने में निहारने लगी.. कानो में सिल्वर झुमके और बिंदी लगाते हुए सोचा, “लोग तारीफ़ करते हैं झुमकों की , 
उसने बिंदी लगा कर हमें अपना कायल ही बना दिया..” ! 

नीना की मोबाइल पर नोटिफ़िकेशन का टोन बजा। सत्यजीत का मेसेज था।  

हैलो नीना 
उम्मीद है आप सफ़ेली पहुँच गई होंगी। कल के अपने व्यवहार के लिए मैं माफ़ी माँगना चाहता हूँ। मैं, आखिरी बार आपसे रीक्वेस्ट करना चाहूँगा  कि आप वसुंधरा का पोर्ट्रेट बना दीजिए। आई विल बी एवर ग्रेटफ़ुल टू यू। आपको  जब भी वापस आने का मन हो, तो मेसेज कर दीजिएगा।  
टेक केयर  
सत्यजीत   

नीना को ये मेसेज पढ़ कर अच्छा लगा। क्यूँ? इसका जवाब अभी वो नहीं दे सकती थी लेकिन इतने बड़े आदमी को उसकी कला की वैल्यू है। वैसे भी नीना, वसुंधरा का पोर्ट्रेट बनाना चाहती थी। अब तो उसे सत्यजीत का मेसेज़ भी आ चुका था।  खुशी से उसने अपना पर्स उठाया और शीशे में अपने-आप को देखा।   

नीना : ‘येस मिस्टर चौधरी, आई विल बी बैक सून..  पर आपको इतनी जल्दी जवाब नहीं दूँगी।  

 वह  निकल पड़ी शॉपिंग के लिए। नीना ने ऑटो-रिक्श लेकर मेट्रो स्टेशन का रुख किया। मेट्रो में पहले तो उसे सीट नहीं मिली।  बाद में जब उसे सीट मिली तो उसकी नज़र, सामने खड़े एक शख़्स पर पड़ी जो बार-बार उसे चोर-निगाहों से देखे जा रहा था। इस आदमी को तो उसने अपने घर के बाहर ऑटो पकड़ते वक़्त भी देखा था! यह इत्तेफ़ाक़ भी तो हो सकता है। उसने उसे इग्नोर किया और अपने एयर-पॉड्स पर गाने सुनने लगी।  

नीना मार्केट तक चलते-चलते, बीच-बीच में मुड़कर यह देख रही थी कि कहीं वह बंदा उसका पीछा तो नहीं कर रहा। जब वह उसको नहीं दिखा, तो आश्वस्त होके वो अपने शॉपिंग पर ध्यान देने लगी। नीना अपने फ़ेवरिट दुकान पहुँची झुमके खरीदने के लिए, तो उसने देखा कि वही शख़्स, साथ वाले दुकान पर कुछ देख रहा था। अब नीना घबरा गयी! साफ़ बात थी कि वह आदमी नीना को फॉलो कर रहा था।   

कौन था वो बंदा जो नीना को फॉलो कर रहा था?   

क्यों पीछा कर रहा था? 

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