नीना कोलकाता वापस जा रही थी। फ़्लाइट में बैठे हुए उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। अभी भी वह अपने-आप को मना नहीं पाई थी कि उसका निर्णय सही है या नहीं.. उसके ज़ेहन में सतीश की कुछ कही बातें घूम रही थीं।
नीना : “नहीं! मैं इसको पूरा करूँगी! यह मेरे करियर के लिए बहुत फ़ायदेमंद होगा.. एक पोर्ट्रेट ही तो है.. बना दूँगी.. पैसे बैंक में ट्रांसफ़र हो जायेंगे... फिर दिल्ली वापस...”
किसी भी फ़ैसले में ‘कभी हाँ, कभी ना’ वाली कशमकश कहाँ किसी का पीछा छोड़ती है।ऐसे ही ‘कभी हाँ कभी ना’ करते-करते नीना, कोलकाता लैंड करती है।
कोलकाता की आबो - हवा उसे जानी-पहचानी लगी। मानो यहाँ से उसका एक रिश्ता जुड़ गया हो। उसने खुली हवा में आँखें मूँद कर गहरी साँस ली और आँखें खोलीं तो एयरपोर्ट के बाहर, वही सिल्वर मर्सिडीज़ उसका इंतज़ार कर रही थी। इस बार नीना काफ़ी कॉन्फिडेंट लग रही थी। गाड़ी के पास पहुँचते ही ड्राइवर ने दरवाज़ा खोला और उसका स्वागत किया।
उसने मुस्कुराकर ड्राइवर के नमस्कार का जवाब दिया और पूछा,
नीना: “दादा, कैसे हैं आप?”
ड्राईवर ने मुस्कुराकर ‘सब ठीक है’ की मुद्रा में सर हिला दिया।
नीना दोबारा उन्हीं रास्तों से चौधरी बाड़ी जा रही थी।
यूँ ही नीना अपने मोबाईल पे, सत्यजीत चौधरी के साथ हुई चैट को दोबारा पढ़ने लगी।
हैलो मिस्टर चौधरी
मैं, इस हफ़्ते वापस आने का सोच रही हूँ।
मैंने कभी कोई काम अधूरा नहीं छोड़ा, तो ये भी नहीं छोड़ूँगी। आपको मिसिज़ चौधरी का सुंदर-सा पोर्ट्रेट, ज़रूर बनाकर दूँगी।
नीना
सत्यजीत उस वक्त अपने लाइब्रेरी में था। उन्हें किताबें पढ़ने का बहुत शौक़ था। ऐसी कोई किताब नहीं जो उन्होंने न पढ़ी हो। वैसे तो किताब पढ़ते वक़्त, वह अपनी मोबाईल से दूरी बनाकर रखते हैं। अबकी बार भूल गए। स्क्रीन पर नीना के नाम का नोटिफ़िकेशन देखते ही उन्होंने तुरंत मेसेज चेक किया। उनके चेहरे पर हल्की ख़ुशी छलकी। उन्होंने फ़ौरन अपने मैनेजर को कॉल किया और नीना की फ़्लाइट टिकट तुरंत बुक करने को कहा।फिर, वह दोबारा अपनी किताब में तल्लीन हो गए।
नीना ने सत्यजीत को सिर्फ़ 5 मिनट पहले मेसेज किया था। इतने बिज़ी इंसान से तुरंत कार्यवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती थी लेकिन ये सत्यजीत थे। उन्हें किसी काम में देरी पसंद नहीं थी। नीना की स्क्रीन ब्लिंक हुई। चौधरी साम्राज्य के मैनेजर का मेसेज था - उसने अगले दिन की फ़्लाइट टिकट बुक कर दी थी।
नीना: “ये मिस्टर कोलकाता इतना फ़ास्ट क्यों है? अभी तो मेरी पैकिंग भी नहीं हुई.. कल जल्दी उठकर, पहले सामान पैक कर लूँगी। आज जल्दी सो जाती हूँ, नहीं तो कल सुबह नींद नहीं खुलेगी।”
कोलकाता वापसी के लिए नीना सुबह जल्दी उठ गई। उसने जल्दी से अपनी चाय बनाई और पीते हुए अपने बेडरूम की तरफ बढ़ी।
वो अपने कपड़े, थोड़ी ज्वेलरी, थोड़ा मेकअप का सामान, कलर ट्यूबस, ब्रश वगैरह, सब याद करके रखने लगी। जल्दी से सफ़ेद टॉप के साथ ब्लू जीन्स पहने.. कान में छोटे-छोटे बुँदे डाले और बस, तैयार! कोलकाता, आ रही है नीना!
****
कार रुकने की आवाज़ से वह अपनी सोच से बाहर आयी ..
उसने देखा कि वह चौधरी बागान बाड़ी पहुँच चुकी है। वह उतरी और इस बार शंभू के कुछ कहने से पहले ही, उसने उसे कहा, “शुभो शोंधा शंभू-दा”! इसका अर्थ अब उसे पता था।
नीना: “आपके खाने की, सच में, बहुत याद आई।”
शंभू ने एक बहुत बड़ा स्माइल देते हुए कहा की अबकी बार वो उसे और भी बढ़िया बंगाली खाना खिलायेगा।
नीना को अपने कमरे तक का रास्ता पता था। वो आगे-आगे चल पड़ी। ऐसा लग रहा था कि नीना वहीं रहती हो! उसका कमरा बिल्कुल तैययर था। रजनीगंधा के फ़्रेश फूल उसका स्वागत कर रहे थे और एक बड़े भगौने में चंपा के फूल तैर रहे थे। नीना कमरे में घुसी और एक गहरी सांस ली - मानों उसे यहाँ का नशा-सा हो गया हो। कमरे में, एक ऐन्टीक साइड टेबल पर एक वुडन बॉक्स रखा देख नीना समझ गई कि इसमें जरूर चौधरी साहब का ख़त होगा। उसने तुरंत उसे खोला और उसमें से ख़त निकला।
नीना चहकी और बुदबुदाई कि उसे अब सत्यजीत का स्टाइल पता चल गया है!
ख़त, हैन्ड-रिटन था। उसमें से जानी पहचानी महक आ रही थी.. वो ख़त खोल कर पढ़ने लगी..
हैलो नीना जी
आज, फिर से, मैं आपसे मिल नहीं पाऊँगा. एक बिज़नेस मैन कि ज़िंदगी कुछ ऐसी हो होती है - हमेशा बिज़ी! बिज़नेस के सिलसिले में, मैं हैदराबाद में हूँ। मुझे यक़ीन है कि मेरा स्टाफ़ आपका भरपूर ध्यान रखेंगे। आप अपना काम शुरू कर सकती हैं। सारा बंदोबस्त कर दिया गया है। आपके सप्लाइज़, कैन्वस, ईज़ल वगैरह स्टूडियो में रखवा दिया है। वहाँ, आपको वसु की तस्वीर भी मिलेगी जिसका पोर्ट्रेट बनाना है। एक बात और - पिगमेंट की शीशी भी आपको वहीं दिख जाएगी। किसी भी चीज़ की ज़रुरत हो तो मेरे मैनेजर को कह दीजियेगा।
सी यू सून।
एस. सी.
नीना: स्टाइल तो है मिस्टर एस. सी. का! कीजिये! आप हैदराबाद में काम कीजिये, मैं यहाँ अपना काम करूंगी!
सत्यजीत ने उसके लिए पूरा इंतज़ाम करवा रखा था। बागान बाड़ी में गेस्ट रूम के पास ही उसका स्टूडियो तैयार था .. चित्रों और रंगो से सजा वो स्टूडियो, धीमी रोशनी में बड़ा शानदार लग रहा था। उसके लिए खूब सारे पेंटिंग सप्लाइज़ रखवाया हुआ था। वसुंधरा की तस्वीर भी अलग से ट्राइपॉड पर रखा गया था। कहना तो पड़ेगा, की वसुंधरा थीीं बहुत खूबसूरत! घुंघराले, काले बाल, बिलकुल किसी देवी जैसे नैन-नक़्श और पहनावे में राजकीय, गाढ़ा हरे रंग का गाउन! क्या खूब लग रही थी! नीना थोड़ी देर तो वसुंधरा को देखती रही! उसने दबे स्वर में खुद से कहा, “उफ्फ़! कितनी सुंदर है!”
फिर नीना की नज़र पड़ी एक ख़ास शीशी पर। उसमें वही पिगमेंट था जिससे वसुंधरा को कैन्वस पर उभारना था। चित्रकारों का रंगों से गहरा नाता होता है। नीना का भी था लेकिन उसे इस पिगमेंट से एक विशेष खिंचाव महसूस हो रहा था।
खिंचाव शब्द, बड़ा ही जादुई है - जो अपनी ओर आकर्षित करे! एक ऐसा भाव जो प्रलोभन या लालसा से भरी हो! हाँ, नीना को कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा था उस पिगमेंट को देखकर जैसे की वो उसे अपनी तरफ़ लुभाने की कोशिश कर रहा हो! इतनी इक्साइटमेंट क्यों हो रही थी नीना को? नीना को भी थोड़ा अजीब लग रहा था। उसने अपने दिमाग में चल रहे भावों को साइड किया, क्योंकि अब उससे कंट्रोल ही नहीं हो रहा था!
नीना को पोर्ट्रेट शुरू करना था! पहले, उसने अपने हाथो से बालों को सलीके से ऊपर करके, एक जूड़ा बनाया। फिर अपने एयर पॉड्स लगाए। ऐप्रन डाला। वसुंधरा की तस्वीर को ऐड्जस्ट किया स्टैन्ड पर.. कैन्वस को ईज़ल पर बिठाया.. लाइट को अपनी तरफ़ मोड और साथ रखे एक टेबल को खींचकर अपने साथ लगाया। उसपर कलर के ट्यूबस, ब्रश और मिक्सिंग पैलेट निकाल कर रखा। बेहद खूबसूरत दृश्य था। कोई भी कलाकार अपने काम को शुरू करने के पहले जो तैयारी करता है, वो बड़ा ही अनोखा होता है। जैसे कोई संगीतकार अपना साउन्ड-चेक करता है। नीना ने अपना रंगों का संसार बिछा लिया और अब वो पेंट करने के लिए तैयार थी।
नीना ने चारकोल के एक हल्का-सा आउट्लाइन बना लिया। उसके हाथों का कैन्वस पर चलना, बस देखने लायक था! फिर उसने एक क़दम पीछे हटकर अपने आउट्लाइन का ब्यौरा किया। अब रंगों की थी बारी। जैसे ही उसने वो पिगमेंट अपने रंग के साथ मिक्स किया तो उसे महसूस हुआ कि यह काफ़ी गाढ़ा था । नॉर्मल कलर में मिलाते ही मानो उस रंग में कोई जादुई शक्ति आ गई हो! आम रंगों से से इसका टेक्स्चर भी काफ़ी अलग था। जैसे इसमें कोई खास चीज़ मिलाकर बनवाया गया हो। यहाँ जो कुछ भी हो रहा था वो बिल्कुल आम बात थी, सिवाय उस पिगमेंट के जो मानो नीना को अपने वश में कर चुका हो। नीना को जल्दी मच रही थी उस पिगमेंट को कैन्वस पर लगाने के लिए।
नीना ने अपने ब्रश को अच्छे से उस बनाए हुए रंग में डुबोया और फिर, उसने जैसे ही पहला स्ट्रोक मारा, उसे लगा कि जैसे ये अपने-आप ही हो गया हो! वो दोबारा अनुभव करना चाहती थी उस फ़ीलिंग को, सो फिर से, रंग को अपने ब्रश से उठाकर, उसने उसी जगह पर दोबारा स्ट्रोक लगाया। ब्रश का हर एक बाल से रंग का खिंचाव उसको साफ़-साफ़ दिख रहा था। उस वक़्त, आस-पास का सबकुछ धुँधला होते जा रहा था, स्टूडियो का कमरा पता नहीं कहाँ पिघलकर ग़ायब हो गया था… नीना को अगर कुछ नज़र आ रहा था तो बस, वो रंग! उस रंग का रंग! अब घंटो का हिसाब लगाना मुश्किल पड़ रहा था.... नीना का हाथ, हाथ में पकड़ा हुआ उसका ब्रश, ब्रश से लिपटा हुआ वो गहरा रंग - सब कुछ एक हो गए थे!
**
रात का समय था .. नीना अपने कमरे में सो रही थी।
अचानक नीना को लगा जैसे किसी ने उसका दरवाजा खटखटाया। नीना उठी तो देखा, एक बच्चा दौड़टे हुए जा रहा है। उसी तरफ़ कुछ दूरी पर रखी काँच की बोतल में कोई पदार्थ, अंधेरे में चमक रहा था... मानों किसी काँच की बोतल में जुगनू भर दिये गए हो। नीना उसकी तरफ़ हौले-हौले बढ़ने लगी। उसे नीचे बागान से बच्चों की आवाज सुनाई दी.. इतने सारे बच्चों की आवाज़? और इतनी रात को? सोचते हुए उसने नीचे झांका तो उसने देखा वसुंधरा, दो बच्चों के साथ खेल रही थी। आखिर किसके बच्चे है ये? वसुंधरा यहाँ क्या कर रही है? सोचते हुए उसने दोबारा उस चमकदार पदार्थ से भरी बोतल को देखा लेकिन एक बच्चा वो बोतल लेकर बागान की तरफ़ भाग गया । जब वो नीचे पहुंची तो वहाँ कोई नहीं था। अचानक, पीछे से किसी ने उसे हाथ लगाया और उस पर वो पिगमेंट डाल दिया! नीना ने, खुद को बचाने के लिए दोनों हाथ चेहरे पर लगा कर वहीं गिर पड़ी..
नीना नींद से घबराकर जागी, तो सुबह हो चुकी थी। पर्दों से रोशनी छन कर कमरे तक पहुँच चुकी थे। लगता है कि वह ऐप्रन पहनकर ही सो गई थी। उसने ऐप्रन को हाथ लगाया कि उसकी नज़र अपने हाथों पर गयी। उसने अपने हाथों को देखा जो कि रंग से पूरी तरह सने हुए थे। "उफ्फ़! ये क्या हुआ?”
यह कैसा रंग था नीना के हाथों पर?
इन सपनों के पीछे क्या राज़ था?
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