संकेत मल्होत्रा... कॉलेज में सिर्फ़ दो हफ्ते हुए थे, वह पहले ही हर ग्रुप का सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बन चुका था।
संकेत के एक अजीब-सी चार्म था, जो उसे सबसे अलग बनाता था। वह जब भी किसी ग्रुप में खड़ा होता, उसकी बातें सुनाई देती थीं और बाक़ी लोग उसकी बातों पर हंस रहे होते, या उसे देखकर स्माइल कर रहे होते और लड़कियाँ? अरे, लड़कियाँ तो जैसे उसकी बातों पर फिदा हो जाती थीं।
उसकी बातें ऐसी होतीं, जैसे हर शब्द सोने में तौला गया हो। वह कॉमिक टाइमिंग में माहिर था, हर सिचुएशन को हल्का और मजेदार बना देता था और उसके मज़ाक सिर्फ़ हल्के-फुल्के नहीं होते थे, बल्कि उनमें एक ऐसा फ्लेवर होता था, जो सीधे दिल तक पहुँचता था।
कॉलेज के गार्डन में अक्सर उसे लड़कियों के ग्रुप के साथ देखा जाता था। कभी कोई उससे नोट्स मांग रही होती, तो कभी कोई उसके साथ लंच शेयर कर रही होती और संकेत? उसके लिए ये सब नॉर्मल था।
श्रेया ने ये सब दूर से देखा। उसे अब तक याद था कि कैसे संकेत ने पहले दिन उससे बात करने की कोशिश की थी। अब, जब उसने संकेत को हर दिन इस तरह घिरा हुआ देखा, तो कुछ अजीब-सा महसूस होने लगा।
श्रेया अक्सर लाइब्रेरी से आती-जाती उस गार्डन से गुज़रती थी। उसकी नज़र अनजाने में ही संकेत पर टिक जाती। वहाँ बैठी लड़कियाँ उसकी हंसी पर रिएक्ट करतीं, उसकी तरफ़ झुककर उससे बात करतीं। संकेत हर किसी को स्पेशल फील करवा रहा था।
और फिर, श्रेया के मन में एक सवाल उठा... "मुझे इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है?"
उसने ख़ुद को समझाने की कोशिश की। "मेरी नज़र बार-बार संकेत पर ही क्यूँ जाती है। नहीं नहीं, ये सिर्फ़ एक इत्तेफाक है और कुछ नहीं। उल्टा वह ही जब देखो तब क्लास के बाहर घूमता रहता है!"
ये इत्तेफाक हर रोज़ हो रहा था और हर रोज़, जब उसने संकेत को किसी और के साथ इतना कम्फर्टेबल देखा, तो उसके अंदर कुछ हलचल मचने लगी।
क्लास में भी यही हाल था। कोई उसे लेक्चर की डिटेल्स पूछ रही थी, तो कोई उससे ग्रुप प्रोजेक्ट में पार्टनर बनने की बात कर रही थी। संकेत की पॉपुलैरिटी अपने पीक पर थी।
और श्रेया? वह इस पूरी फ़िल्म को एक साइलेंट ऑब्जर्वर की तरह देख रही थी।
उस दिन जब क्लास ख़त्म हुई, तो श्रेया ने नोटिस किया कि संकेत किसी दूसरी लड़की के साथ कैंटीन की तरफ़ जा रहा था। लड़की उससे लगातार कुछ पूछ रही थी और संकेत हंसते हुए जवाब दे रहा था।
श्रेया का दिल हल्का-सा खिंच गया। "इस सब में, मैं जेलस क्यूँ फ़ील कर रही हूँ? उसे जिससे बात करनी हो वह कर सकता है!" उसने ख़ुद से पूछा।
उसने महसूस किया कि पिछले कुछ दिनों से उसके मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी। संकेत का इस तरह सबके साथ घुल-मिल जाना, उसकी बातों में खो जाना—ये सब उसे परेशान कर रहा था।
श्रेया ने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया था कि वह संकेत को इतना नोटिस करती है। अब, जब उसके आसपास की लड़कियाँ उसे घेरे रहती थीं, तो उसे ये सब खटकने लगा था।
क्या ये वही श्रेया थी, जो हमेशा अपने काम में डूबी रहती थी? जो किसी की परवाह नहीं करती थी? अब, संकेत के चारों ओर घूमती इन लड़कियों को देखकर उसके दिल में ये हल्की-सी चुभन क्यों हो रही थी?
क्या ये सच में जेलसी थी?
श्रेया ने ख़ुद से पूछा, "क्या मैं संकेत को लेकर कुछ फील करने लगी हूँ? या ये सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि मुझे उसका अटेंशन नहीं मिल रहा?"
अगले कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। हर बार जब श्रेया ने संकेत को किसी और के साथ हंसते-मुस्कुराते देखा
पर इस जलन के पीछे की वज़ह अभी भी उसे समझ नहीं आ रही थी। वह ख़ुद से लड़ रही थी, इस नई फीलिंग को समझने की कोशिश कर रही थी।
शायद श्रेया के दिल ने वह बात समझ ली थी, जो उसके दिमाग़ ने अब तक नहीं मानी थी। संकेत मल्होत्रा सिर्फ़ एक दोस्त नहीं था और यही बात धीरे-धीरे उसके दिल में घर करने लगी थी।
दूसरी तरफ़ संकेत... भी तो उससे ज़्यादा बात नहीं कर रहा था! उस दिन कि कॉफी वाली मीटिंग के बाद दोनों के बीच कोई बात हुई थी। दोनों ने उस दिन एक दूसरे से नम्बर भी एक्सचेंज नहीं किए थे और कर भी लिए होते, तो श्रेया कहाँ पहले फ़ोन करने वाली थी।
दूसरी तरफ़ संकेत के दिमाग़ में अलग हलचल चल रही थी। वह श्रेया से रोज, जी भरकर बातें करना चाहता था। जब लड़के ऐसा करते हैं, तो लड़कियाँ उनसे दूर भागने लगती हैं और उन्हे क्रीप समझ कर उनसे फिर कभी बात नहीं करती।
संकेत ये चांस नहीं लेना चाहता था।
प्लस, संकेत ये भी देखना चाहता था कि क्या श्रेया को भी उससे बात करने का उतना ही मन है, जितना उसे श्रेया से बात करने में इंटेरेस्ट है?
यहाँ बात सिर्फ़ किसी "फ्लर्टी चार्म" की नहीं थी। हाँ, वह चार्म था और वह काम भी करता था। श्रेया के केस में, चीज़ें कुछ अलग थीं।
संकेत को ये बात समझ आ चुकी थी कि श्रेया बाक़ी लड़कियों से अलग है। वह किसी आम लड़की की तरह नहीं थी, जिसे वह अपने जोक्स से इम्प्रेस कर ले। श्रेया के पास अपना ही एक ऑरा था—साइलेंट, पावरफुल।
और यही वज़ह थी कि संकेत के दिमाग़ में हर वक़्त एक ही सवाल घूम रहा था—"श्रेया से अब क्या बात करूँ? कैसे करूँ? कब करूँ?"
अब देखो, लड़कों की ये प्रॉब्लम हमेशा की है। जब किसी लड़की से सही में बात करनी हो, तो सबसे बड़ा डर ये होता है कि कहीं ओवर डू न हो जाए। क्योंकि ज़्यादा जल्दी क्लोज़ होने की कोशिश करोगे, तो लड़कियाँ सीधा "क्रीप अलर्ट" पर चली जाती हैं और फिर?
आप हमेशा के लिए ब्लॉक।
संकेत के दिमाग़ में यही डर था। वह नहीं चाहता था कि उसकी बातें ग़लत इंटेंशन की तरह लगें। प्लस, उसके साथ हर वक़्त इतनी लड़कियाँ दिखती थीं कि अगर उसने कुछ ज़्यादा कोशिश की, तो श्रेया उसे किसी और तरह से जज कर सकती थी।
और हाँ, संकेत को ये भी समझना था कि क्या वह अकेला ही इतना इंवेसटेड है, या फिर श्रेया भी उसे उतना ही नोटिस करती है जितना वह उसे?
साफ-साफ कहें तो, संकेत बैसिक्ली एक छोटा-सा "रीऐलिटी चेक " चाहता था।
वो चाहता था कि चीज़ें नैचुरली फ़्लो करें। वह देखना चाहता था कि क्या कभी श्रेया ख़ुद पहल करेगी? क्या वह भी कभी उसकी तरफ़ बढ़ने की कोशिश करेगी?
अब आप सोच रहे होगे, "अरे, ये संकेत तो ईजी गोइन , कूल बंदा है। इसे क्या टेंशन लेनी?"
सच कहूँ, तो जब बंदा सच में किसी लड़की को पसंद करता है, तो यही कूल बंदा अंदर से एक बेवकूफ बन जाता है और संकेत अभी इसी फेज़ में था।
उसके दिमाग़ में एक अजीब-सी उलझन थी। वह श्रेया से बातें करना चाहता था, उसके साथ टाइम बिताना चाहता था। उसे डर था कि कहीं वह ज़्यादा फॉरवर्ड न लग जाए।
वो जानना चाहता था कि क्या श्रेया भी उससे बात करने के लिए इतनी ही इक्साइटिड है? क्या वह भी कभी कोई छोटी-सी बात लेकर आएगी, सिर्फ़ इसलिए ताकि वह दोनों बात कर सकें?
और यही बात थी जिसने संकेत को सोचने पर मजबूर कर दिया।
एक दिन संकेत कैंटीन में अकेला बैठा था, अपनी ब्लैक कॉफी को घूरते हुए। उसका दिमाग़ लगातार वही पुरानी उलझनों की गुत्थियाँ सुलझाने की कोशिश कर रहा था। "क्या श्रेया भी मुझे नोटिस करती है?" या फिर ये सब सिर्फ़ उसकी इमैजनैशन है? "
वो इन्हीं सवालों में खोया हुआ था, जब अचानक पीछे से एक आवाज़ आई—
श्रेया :
"ये सीट किसी ने रिज़र्व कर रखी है, या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ?"
संकेत ने जल्दी से पलट कर देखा और वही हुआ, जो शायद वह पिछले कुछ दिनों से सेक्रेटली चाह रहा था।
वहाँ श्रेया खड़ी थी, अपने बैग की स्ट्रैप को कंधे पर ठीक करते हुए, हल्की-सी मुस्कान के साथ।
और संकेत? उसका दिल जैसे एकदम टॉप गेयर में चला गया। "ये क्या हो रहा है?" उसने ख़ुद से पूछा।
संकेत :
"अरे, नहीं नहीं। आओ न, बैठो।"
श्रेया उसकी टेबल के सामने की सीट पर बैठ गई। उसने अपने बैग से पानी की बॉटल निकाली और एक घूंट लिया। फिर उसकी आंखें सीधे संकेत पर टिक गईं। संकेत ने महसूस किया कि उसकी धड़कनें और तेज़ हो रही थीं। अब यहाँ से चीज़ें इन्टरिस्टिंग होने वाली थीं। संकेत के मन में हज़ारों सवाल घूम रहे थे। उससे पहले कि वह कुछ कहता, श्रेया ने ख़ुद ही बात शुरू कर दी।
श्रेया :
"तुम पिछले कुछ दिनों से काफ़ी बिज़ी लग रहे हो, हाँ? जब भी दिखते हो, लड़कियों के ग्रुप के बीच घिरे हुए दिखते हो।"
बस, यही वह क्लू था जिसकी संकेत को तलाश थी।
संकेत ने एकदम से समझ लिया कि श्रेया भी उसे नोटिस कर रही है और सिर्फ़ नोटिस ही नहीं, बल्कि उसे ये बात शायद थोड़ी खटक भी रही है।
संकेत :
"ओह, तो तुम मुझे नोटिस करती हो? मतलब, क्या मैं अन्डर आब्ज़र्वैशन हूँ ?
श्रेया :
"आब्ज़र्वैशन ? हाँ, क्यों नहीं? वैसे भी, तुम पूरे कॉलेज के सेंटर ऑफ अट्रैक्शन हो कि न चाहते हुए भी दिख ही जाते हो।"
संकेत का चेहरा ये सुनकर थोड़ा और ब्राइट हो गया। श्रेया के इस कंमेंट ने उसे साफ़ कर दिया था कि वह भी उसे ध्यान से देखती है।
संकेत :
"अच्छा? और ये सब देखकर क्या तुम्हें... कोई फ़र्क़ पड़ता है?"
ये सवाल तो एकदम सीधे निशाने पर था। श्रेया ने हल्के से उसकी ओर देखा और एक पल के लिए उसकी मुस्कान थोड़ी गहरी हो गई।
श्रेया :
"फर्क? मुझे? शायद। वह तो इस बात पर डेपेनड करता है कि मैं तुम्हें कितना सीरियसली लेती हूँ।"
Narrator:
ये छोटा-सा मोमेंट था, इसमें छिपे शब्दों ने संकेत के दिल की सारी उलझनों को लगभग सुलझा दिया था। श्रेया ने indirectly ये बात मान ली थी कि वह उसे नोटिस करती है और शायद, उसे ये बात पसंद नहीं आती थी कि वह बाक़ी लड़कियों के साथ इतना कंफर्टेबल है।
संकेत के लिए ये मोमेंट बहुत ख़ास था। वह अब तक कन्फ्यूज़ था कि क्या सिर्फ़ वही इस कनेक्शन को महसूस कर रहा है। . श्रेया के इस छोटे से क्लू ने उसे समझा दिया कि वह भी इस दोस्ती से कहीं ज़्यादा कुछ महसूस कर रही है।
संकेत :
"वैसे, अगर मैं कहूँ कि मैं सारी लड़कियों का नहीं, बल्कि किसी एक स्पेशल लड़की का अटेन्शन चाहता हूँ, तो?"
श्रेया ने हल्की मुस्कान के साथ उसे देखा। उसने कोई जवाब नहीं दिया, बस उसकी ओर देखते हुए अपने बैग से फ़ोन निकालने लगी। उसकी आंखों में वह चमक थी, जो संकेत के लिए काफ़ी थी।
अब संकेत के दिमाग़ में सवाल कम हो चुके थे, इक्साइट्मन्ट ज़्यादा। उसने ख़ुद से कहा, "श्रेया भी मुझे नोटिस करती है और शायद... उसे भी मेरी उतनी ही परवाह है जितनी मुझे उसकी।"
शायद ये बस शुरुआत थी, ये शुरुआत इस कहानी को अपने सही रास्ते पर ले जाने वाली थी।
क्या श्रेया का नोटिस करना काफ़ी था? संकेत तो इससे काफ़ी आगे कि सोच रहा था न? अब संकेत श्रेया के साथ और ज़्यादा वक़्त बिताने के लिए कौन से बहाने ढूँढेगा? क्या श्रेया उसके बहानों में फँसेगी।
इन सवालों में उलझे हुए, सोचते रहिए... क्या होगा “कैसा ये इश्क है..” के अगले एपिसोड में!
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