अब जबकि संकेत ने श्रेया की तरफ़ से थोड़ा-सा इंटरेस्ट महसूस कर लिया था, उसका दिमाग़ जैसे फुल स्पीड में दौड़ने लगा था। उसे लगने लगा था कि कहानी अब एक दिलचस्प मोड़ लेने वाली है। लेकिन यहाँ एक प्रॉब्लम थी—श्रेया।  

श्रेया किसी और तरह की लड़की थी। ना तो वह हर किसी से आसानी से खुलती थी और ना ही उसके साथ हर वक़्त रहने की ज़रूरत महसूस करती थी।

संकेत को ये पता था कि अगर उसे श्रेया के साथ ज़्यादा वक़्त बिताना है, तो सीधा-सीधा अप्रोच काम नहीं करेगा। उसे कोई प्लान बनाना होगा।

 

संकेत ने पहले ही पता लगा लिया था कि श्रेया अपना ज़्यादातर वक़्त लाइब्रेरी में बिताती है और लाइब्रेरी में श्रेया के पास पहुँचने का सबसे बढ़िया बहाना क्या हो सकता था? स्टडी से रिलेटेड कोई बहाना।

संकेत :

"अरे, श्रेया! तुम भी यहीं हो? अच्छी बात है, मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए थी।"

श्रेया :

"मेरी हेल्प? किस बारे में?"

 

संकेत ने मन ही मन अपनी एक्टिंग पर गर्व महसूस किया। उसने अपना स्टडी फोल्डर टेबल पर रखा और नोट्स दिखाने लगा।

संकेत :

"ये देखो, इकोनॉमिक्स का ये टॉपिक... मुझसे बिल्कुल समझ नहीं आ रहा। मुझे लगा तुमसे पूछ लूं। तुम इस ईकनामिक्स में प्रो हो न?"

 

श्रेया ने एक हल्की मुस्कान दी।

श्रेया :

"ठीक है, दिखाओ। कौन-सा टॉपिक है?"  

 

संकेत ने फोल्डर उसके सामने कर दिया और दोनों ने पढ़ाई के बहाने से बातचीत शुरू की। संकेत ने मन ही मन सोचा, 'ये तो बिल्कुल परफेक्ट शुरूआत है।'  

संकेत का प्लान बिल्कुल परफेक्ट चल रहा था। स्टडी का बहाना एकदम फुलप्रूफ था और अब, श्रेया का ध्यान पूरी तरह से उसके नोट्स पर था।

श्रेया :

"अरे, ये तो बहुत सिंपल है। देखो, यहाँ बेसिकली ये समझना है कि डिमांड और सप्लाई के बीच बैलेंस कैसे बनता है। तुमने शायद इस ग्राफ को ठीक से समझा नहीं।"

"देखो, अगर डिमांड बढ़ेगी और सप्लाई वही रहेगी, तो प्राइस बढ़ेगा। लेकिन अगर सप्लाई भी बढ़ती रहे, तो प्राइस स्टेबल हो सकता है। ये ग्राफ यही कान्सेप्ट एक्सपलैन करता है। समझे?"

 

संकेत ध्यान से सुनने की एक्टिंग करता है, लेकिन उसका ध्यान ग्राफ से ज़्यादा श्रेया के चेहरे पर है। श्रेया की बात ख़त्म होने के बाद भी वह उसे देखते हुए हल्का मुस्कुराता है।

श्रेया :

"संकेत? समझ आया, या आँखें इधर हैं और कान कहीं और?"

संकेत :

"अरे, नहीं नहीं, बिल्कुल समझ आ गया। तुम तो दुबे सर से भी बढ़िया एक्सपलैन करती हो!"

श्रेया :

"और तुम... किसी लापरवाह स्टूडेंट जैसे बिल्कुल ध्यान नहीं देते। पता नहीं, पूरे सेमेस्टर कैसे सर्वाइव करोगे।"

 

श्रेया की इस बात पर संकेत ने तुरंत एक मौका देख लिया। उसके दिमाग़ में पहले से ही अगला क़दम तैयार था।

संकेत :

अब से पूरे सेमेस्टर मैं तुम्हारे साथ ही इकोनॉमिक्स पढ़ूंगा। तुम्हारी गाइडेंस के बिना तो मेरा कुछ नहीं हो सकता।"

श्रेया :

"ओह, तो अब मैं तुम्हारी परमनेंट ट्यूटर बन गई हूँ?"

संकेत :

"बिल्कुल और मेरा दिल इतना बड़ा है कि मैं तुमसे कोई फीस भी नहीं लूंगा। बस मेरी डिमांड ये है कि तुम मुझे हर बार इसी तरह अच्छे से समझाओ।"

 

श्रेया ने हल्के से अपनी आँखें घुमाईं, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि उसे ये "डील" इतनी भी बुरी नहीं लग रही थी।

श्रेया :

"ठीक है, लेकिन याद रखना—अगर तुमने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया, तो मैं तुम्हें क्लास में लास्ट बेंच पर बिठा दूंगी।"

संकेत :

"डील! वैसे भी, क्लास में पीछे बैठने से फोकस बेहतर होता है।"

 

बस, इस छोटी-सी बातचीत के साथ संकेत और श्रेया के बीच की दूरी और कम हो गई। संकेत का चार्म काम कर-कर रहा था और श्रेया भी अब उसके साथ कंफरटेबल फ़ील कर रही थी।

 

अब संकेत के लिए हर दिन का मकसद एक ही था—श्रेया के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त बिताना। तो क्या इस सेमेस्टर, संकेत और श्रेया सिर्फ़ इकोनॉमिक्स में ही नहीं, प्यार के सब्जेक्ट में अच्छे मार्क्स स्कोर करने वाले थे?

संकेत जानबूझकर पढ़ाई के बीच में रोमांटिक टोपिक्स से रिलेटेड बातें करने लगता था। शुरू-शुरू में तो श्रेया उसकी इन कोशिशों को entertain नहीं करती थी... लेकिन वह भी संकेत के चार्म से कब तक बच पाती?

अब ये तो तय था कि संकेत का हर स्टडी सेशन, इकोनॉमिक्स के बहाने शुरू होता था, लेकिन धीरे-धीरे वह किसी और "सब्जेक्ट" की तरफ़ मुड़ने लगता था और यही वह मोमेंट होता था, जब श्रेया उसकी चालाकियों को पकड़ लेती।

संकेत जानबूझकर डिस्कशन को हल्के-फुल्के अंदाज़ में मोड़ देता था।

एक दिन दोनों लाइब्रेरी में बैठे थे। श्रेया किसी टॉपिक को डीटेल में समझा रही है। संकेत सिर हिलाकर उसकी हर बात सुनने का दिखावा कर रहा है। लेकिन फिर...

संकेत 

"वैसे, श्रेया... तुमने कभी सोचा है कि अगर हम लोग किसी दूसरे टाइम पीरियड में पैदा हुए होते, तो हमारी ज़िंदगी कैसी होती?"

श्रेया :

"दूसरा टाइम पीरियड? मतलब?"

संकेत :

"मतलब, जैसे... 90s का रोमांस? बिना व्हाट्सएप, बिना इंस्टाग्राम। हर मुलाकात का अलग ही क्रेज़ होता। बस एक नज़र... और फिर उस एक मुलाकात का इंतजार।"

 

श्रेया ने उसकी इस बात पर पेन नीचे रखा और एक गहरी सांस ली। उसने संकेत को ऐसे देखा जैसे उसे ये सब समझ नहीं आ रहा था। लेकिन उसकी आंखों में हल्की-सी दिलचस्पी भी थी।

श्रेया :

"और ये सब इकोनॉमिक्स के किस चैप्टर में आता है?"  

संकेत :

"अरे, ये डिमांड और सप्लाई का नया थ्योरी है। जैसे अगर कोई स्पेशल इंसान कम दिखे, तो उसकी वैल्यू बढ़ जाती है। समझी?"

 

संकेत का ये तर्क सुनकर श्रेया ने आँखें घुमाईं, लेकिन इस बार उसकी मुस्कान छुपी नहीं रह सकी।

श्रेया :

"तुम्हारी इस  'स्पेशल' थ्योरी को सिर्फ़ तुम ही इम्प्लीमेंट कर सकते हो, संकेत। लेकिन मुझसे पढ़ाई के बहाने रोमांटिक बातें करने की कोशिश मत करो। मैं इन ट्रिक्स से इंप्रेस नहीं होती।"

संकेत :

" मैं तो सिर्फ़ पढ़ाई के नए एंगल खोजने की कोशिश कर रहा था औरतुमने मुझ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगा दिया।"

 

लेकिन संकेत को इस बात का पूरा यक़ीन था कि उसकी ये बातें श्रेया को कहीं न कहीं छू रही थीं।

फिर एक दिन दोनों कॉलेज के गार्डन में बैठे हुए नोट्स पर डिस्कशन के साथ-साथ इधर-उधर की बातें कर रहे हैं।

शुरुआत में, श्रेया ने संकेत की इन हल्की-फुल्की बातों को ज़्यादा सीरियसली नहीं लिया। लेकिन धीरे-धीरे, उसे महसूस हुआ कि संकेत के साथ बिताया हर पल, उसे थोड़ा और स्पेशल फील करवा रहा है।

संकेत के जोक्स, उसकी टेढ़ी-मेढ़ी थ्योरीज और हर बार पढ़ाई से हटकर की गई बातें—सब कुछ अब श्रेया के चेहरे पर मुस्कान लाने का एक नया तरीक़ा बन गया था।

श्रेया, जो अब तक हमेशा फोकस्ड और सीरियस रहती थी, धीरे-धीरे संकेत के साथ अपना गार्ड डाउन करने लगी।

संकेत :

"तुमने कभी सोचा है, श्रेया... अगर हमारी मुलाकात किसी और सिचुएशन में होती, तो क्या हम तब भी ऐसे ही दोस्त बनते?"

श्रेया :

"किसी और सिचुएशन में? जैसे?"

संकेत :

"जैसे... अगर हम किसी फ़िल्म की तरह किसी ट्रेन में मिले होते। तुम खिड़की वाली सीट पर बैठी होती और मैं लोगों से अपने लिए बैठने की जगह मांग रहा होता।"

श्रेया :

"तुम्हारी इमैजनैशन  कुछ ज़्यादा ही फ़िल्मी है, संकेत और वैसे भी, मैं ऐसे लोगों को सीट नहीं देती जो बिन बुलाए बैठने की कोशिश करें।"

 

संकेत ने फ़िल्मी स्टाइल में दिल पर हाथ रखा, जैसे श्रेया की इस बात से उसे गहरी चोट पहुँची हो।

संकेत :

"कितनी बेरहम हो, श्रेया। मुझे लगा था तुम कम से कम एक बार मेरी फ़िल्मी स्क्रिप्ट में इंटरेस्ट दिखाओगी।"  

श्रेया :

"पढ़ाई के अलावा तुम हर जगह स्क्रिप्ट लिखने की कोशिश कर रहे हो और मैं यहाँ सिर्फ़ पढ़ाई के लिए तुम्हारी हेल्प कर रही हूँ, याद है?"

संकेत :

"पढ़ाई के बहाने ही सही, पर वक़्त तो साथ में बिता रहे हैं। यही तो मेरी जीत है।"  

 

श्रेया ने इस बात पर कुछ नहीं कहा। लेकिन उसकी मुस्कान और उसकी चुप्पी, दोनों ने संकेत को वह जवाब दे दिया था जिसकी उसे तलाश थी।

संकेत धीरे-धीरे अपने मकसद में कामयाब हो रहा था। वह और श्रेया अब सिर्फ़ स्टडी पार्टनर्स नहीं रह गए थे। उनके बीच अब एक अलग-सा कनेक्शन बनने लगा था।  

और श्रेया, जो कभी अपनी भावनाओं को लेकर श्योर नहीं थी, अब संकेत के साथ हर छोटी मुलाकात को सेक्रेटली  एंजॉय करने लगी थी।  

लेकिन बात सिर्फ़ श्रेया के इमोशन्स की नहीं थी। संकेत के अंदर भी अब एक नई बेचैनी घर कर रही थी। वह हर दिन श्रेया के साथ बिताने का बहाना ढूँढता, हर बातचीत को थोड़ा लंबा खींचने की कोशिश करता।

लेकिन ये छोटे-छोटे पल अब उसके लिए काफ़ी नहीं थे।  

संकेत को एहसास हो गया था कि जो वह श्रेया के लिए महसूस करता है, वह सिर्फ़ एक दोस्ती नहीं है। ये उससे कहीं ज़्यादा गहरा था।  

 

उस रात, जब चारों ओर सन्नाटा था और खिड़की के बाहर ठंडी हवा चल रही थी, संकेत का मन एक गहरे समंदर की तरह था—ऊपर से शांत, लेकिन अंदर से लहरों में हलचल। उसके चेहरे पर एक उलझन साफ़ दिखाई दे रही थी।

हर मुलाकात, हर मुस्कान, हर छोटी-छोटी बात अब उसे अंदर से खींच रही थी। वह समझ चुका था कि ये एहसास सिर्फ़ दोस्ती से कहीं ज़्यादा था। ये उन फीलिंग्स में से था, जिसे आप जितना दबाने की कोशिश करें, वह उतना ही तेज़ उभरकर सामने आती हैं।  

वो ये बात जानता था कि श्रेया उसकी हर मुलाकात की सबसे खूबसूरत याद बन चुकी है। लेकिन ये भी सच था कि उसने कभी उससे अपनी फीलिंग्स के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं की थी। वह सिर्फ़ उसके पास रहना चाहता था, बस उसकी बातें सुनना चाहता था। मगर अब ये चुप्पी और नहीं झेली जा रही थी।

फिर एक ख़्याल उसके ज़ेहन में आया—"कब तक ऐसे ही चलेगा?" ये अनकही फीलिंग्स, ये अनकहे लम्हे, जो धीरे-धीरे उसके दिल पर बोझ बनते जा रहे थे। हर हंसी के पीछे, हर कैज़ुअल बातचीत के नीचे, एक अनकहा सवाल छिपा हुआ था। और यही सवाल अब उसे सोने नहीं दे रहा था। क्योंकि जब आप किसी से अपने दिल की बात नहीं कहते, तो हर बीतता दिन आपके और उस पल के बीच एक दीवार खड़ी करता जाता है। संकेत को अब ये एहसास हो चुका था कि उसे ये दीवार तोड़नी होगी। ये फीलिंग्स उसके अंदर अब ऐसी हो गई थीं, जैसे एक बंधा हुआ तूफान और इस तूफान को रोकने का अब कोई तरीक़ा नहीं था। लेकिन फिर, एक दूसरा ख़्याल भी उसके मन में आया। "उसने मन कर दिया तो? क्या होगा अगर श्रेया उसे सिर्फ़ एक दोस्त ही मानती हो?" यह सवाल उसे अंदर तक झकझोर गया। लेकिन फिर भी, इस डर से ज़्यादा बड़ी एक और चीज़ थी—वो पछतावा, जो उसे तब होता, जब उसने कभी अपनी बात ही नहीं कही होती।

 

क्योंकि सच्चाई यही थी—प्यार, चाहे एकतरफा हो या दोतरफा, अपने इज़हार का हक़ मांगता है और संकेत अब समझ चुका था कि उसे अपनी फीलिंग्स को बिना किसी डर के सामने रखना होगा।

उसके मन ने उसे कह दिया था—"बस अब और नहीं।"

जो कहना है, अब कह देना चाहिए।

 

कई बार, ज़िंदगी में सबसे बड़ा रिस्क होता है, रिस्क न लेना और संकेत ने अब ये रिस्क लेने का फ़ैसला कर लिया था।

 

अब वह जल्द से जल्द श्रेया से मिलेगा और इस बार, वह सिर्फ़ पढ़ाई या मज़ाक में बात नहीं करेगा।

इस बार, वह अपने दिल की बात, अपने अनकहे जज़्बात, साफ-साफ शब्दों में कहेगा।

 

क्या ये दोनों के दिल एक ही राह पर चल रहे हैं, या ये कहानी एकतरफा है?

क्या श्रेया भी वही महसूस करती है, जो संकेत करता है?

क्या श्रेया भी वही महसूस करती है, जो संकेत करता है?

या फिर ये पल उनके बीच की दोस्ती को हमेशा के लिए बदल देगा?

 

क्या ये वही पल होगा, जिसका संकेत इतने दिनों से इंतज़ार कर रहा था?

या फिर... ये पल उसकी सबसे दर्द भरी याद बनकर रह जाएगा? 

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