ज़िंदगी के कुछ पल ऐसे होते हैं, जो हर रोज़ के शोर-शराबे से अलग होते हैं। इन पलों में न कोई जल्दी होती है, न कोई हड़बड़ी और ऐसे ही एक पल का इंतज़ार संकेत मल्होत्रा कर रहा था।
पिछले कुछ दिनों से, उसके और श्रेया के बीच का रिश्ता और भी गहरा हो गया था। हर मुलाकात, हर मुस्कान उनके बीच एक नई कहानी जोड़ रही थी। लेकिन आज, संकेत ने कुछ अलग करने का फ़ैसला किया था।
वो श्रेया से मिलने के लिए पूरी तैयारी कर चुका था और इस बार उसका प्लान था—एक ऐसा इज़हार, जो श्रेया को हमेशा याद रहेगा।
संकेत :
"अरे श्रेया! तुम फ्री हो न आज शाम?"
श्रेया :
"क्यों? क्या प्लान है?"
श्रेया उसकी आवाज़ के इक्साइट्मन्ट को नोटिस कर चुकी थी। लेकिन संकेत ने उसके सवाल का सीधा जवाब देने की बजाय थोड़ा सस्पेन्स अंदाज़ अपनाया।
संकेत :
"बस, एक सरप्राइज़ है। कहीं चलना है! फ्री होगी तो पता चलेगा।"
श्रेया :
"सरप्राइज़? लेकिन कहाँ ले जा रहे हो?"
संकेत :
"इतना जान लो कि जगह खूबसूरत है... और थोड़ी अलग भी। बस मुझ पर भरोसा करो।"
श्रेया ने उसे थोड़ा शक भरी निगाहों से देखा। लेकिन अंदर ही अंदर, वह भी थोड़ी एक्साइटेड थी।
श्रेया :
"ठीक है, पर अगर ये सरप्राइज़ बोरिंग निकला, तो ईकनामिक्स के लेक्चर बंद!"
संकेत :
"डील। वैसे भी, तुम्हारा साथ हो तो कुछ बोरिंग हो ही नहीं सकता।"
और बस, इतना कहकर संकेत ने अपने प्लान को अंजाम देने की शुरुआत कर दी।
संकेत अपनी कार में श्रेया को साथ लेकर, एक अनजाने सफ़र पर निकल पड़ा। रास्ते में दोनों के बीच कोई भारी बातचीत नहीं हुई, लेकिन इस चुप्पी में भी एक comfortable कनेक्शन था।
श्रेया ने कर में बैठते हुए अपने बालों को समेटा और सामने के रास्ते को देखने लगी। संकेत ने पीछे उसकी ओर देखा और हल्के से मुस्कुराया। उसकी मुस्कान यह साफ़ बता रही थी कि वह अपने इस छोटे से एडवेंचर के लिए तैयार है।
रास्ता खुली हवा में गुजर रहा था, चारों तरफ़ हरियाली और ऊपर आसमान। वह दोनों जैसे इस भागती-दौड़ती दुनिया से थोड़ी देर के लिए दूर हो गए थे।
कुछ देर बाद, संकेत ने कार एक शांत, खूबसूरत जगह पर रोकी। वहाँ बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे एक छोटा-सा तालाब था और आस-पास की हवा में बसने वाली शांति ने जगह को और भी ख़ास बना दिया था।
श्रेया :
"यह जगह... ये कितनी सुंदर है, संकेत। तुमने इसे कैसे ढूँढा?"
संकेत :
"बस, एक्सप्लोर करते-करते मिल गई। फिर सोचा कि ऐसी जगह ईकनामिक्स पढ़ने में तो और भी मज़ा आएगा!"
दोनों एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए। चारों ओर हल्की-हल्की पत्तियों की सरसराहट और तालाब के पानी की धीमी-धीमी लहरों की आवाज़ थी।
कुछ देर दोनों के बीच खामोशी रही। लेकिन ये खामोशी अजीब नहीं थी। ये वह खामोशी थी, जिसमें शब्दों की ज़रूरत नहीं पड़ती।
संकेत ने महसूस किया कि ये सही वक़्त है। उसने अपनी धड़कनों को काबू में किया और थोड़ी देर तक तालाब के पानी को देखते हुए सोचा।
फिर उसने धीरे से अपनी नज़र श्रेया की तरफ़ घुमाई। श्रेया अपनी किताब से कुछ पत्ते उठाकर उनकी बनावट को ध्यान से देख रही थी। उसकी सादगी, उसकी हर छोटी हरकत... संकेत के दिल में एक सुकून और हलचल दोनों साथ चल रहे थे।
संकेत ने गहरी सांस ली और फिर, उसने धीरे से अपनी बात शुरू की।
संकेत :
"श्रेया... मुझे एक बात कहनी थी।"
श्रेया :
"हम्म? क्या हुआ?"
संकेत ने थोड़ी देर अपनी बातों को तोलते हुए चुप्पी बनाए रखी। फिर उसने सीधे उसकी आँखों में देखा।
संकेत :
"मुझे तुम बहुत पसंद हो।
वो शब्द हवा में तैर गए। ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया उस पल के लिए रुक गई हो। श्रेया की आंखों में हल्की-सी हैरानी थी, लेकिन उसका चेहरा शांत था।
संकेत ने अपनी बात को आगे बढ़ाया।
संकेत :
"मैं ये बात बहुत दिनों से कहना चाहता था। हर दिन, तुम्हारे साथ बिताया हर पल मेरे लिए बहुत ख़ास है और ये सिर्फ़ दोस्ती नहीं है, श्रेया। ये उससे कहीं ज़्यादा है।"
श्रेया चुप थी। वह उसकी बातों को सुन रही थी, लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी। उसने अपनी नजरें थोड़ी देर के लिए नीचे कीं, फिर वापस संकेत की तरफ़ देखा।
संकेत का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे नहीं पता था कि श्रेया क्या जवाब देगी। लेकिन उसने जो कहना था, वह कह दिया था।
संकेत ने अपनी बात कह दी थी। हर शब्द, हर जज़्बात, उसके दिल से निकला था। लेकिन अब... अब श्रेया की तरफ़ से एकदम खामोशी थी। उसने कुछ नहीं कहा। उसकी आँखें झील की तरह शांत थीं।
और यही खामोशी... यही पल, संकेत के लिए सबसे भारी था। उसने महसूस किया कि उसकी धड़कनें अब उसके कानों में गूंज रही थीं। उसने श्रेया की तरफ़ उम्मीद से देखा, लेकिन जब कुछ मिनटों तक भी कोई जवाब नहीं आया, तो उसके अंदर हल्की घबराहट ने जगह बना ली।
अब, ऐसे मौकों पर लोग अक्सर दो तरीके से रिएक्ट करते हैं—या तो चुप रहकर इंतज़ार करते हैं, या फिर... बड़बड़ाने लगते हैं और संकेत? वह दूसरे ग्रुप में फिट होता था।
संकेत
"अरे, मतलब, देखो... ये सब मैंने सिर्फ़ इसलिए कहा क्योंकि मुझे लगा कि अब और देर करना ठीक नहीं। पर अगर तुम ऐसा कुछ नहीं सोचती तो, नो प्रॉब्लम! मैं समझ सकता हूँ और और... हमारी दोस्ती को लेकर कोई प्रेशर नहीं है। हाँ, मतलब... हम वैसे भी बहुत अच्छे दोस्त हैं, और..."
उसके शब्द एक के बाद एक निकलते जा रहे थे। मानो, वह ख़ुद अपनी बातों से इस खामोशी को भरना चाहता हो।
संकेत
"और देखो, अगर तुम्हें ये सब अजीब लग रहा है, तो... आई मीन, मैं इसे पूरी तरह इग्नोर कर सकता हूँ। हम वापस अपने 'इकोनॉमिक्स स्टडी सेशन्स' पर फोकस कर सकते हैं। जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हाँ, हाँ... बिल्कुल नॉर्मल। कोई दिक्कत नहीं! श्रेया?"
संकेत के चेहरे पर अब तक की सारी नर्वसनेस साफ़ झलक रही थी। वह अपनी बातों को घुमाकर सिचुएशन को संभालने की पूरी कोशिश कर रहा था। लेकिन... श्रेया अब भी शांत थी।
फिर, अचानक... श्रेया ने हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ़ देखा।
श्रेया :
"संकेत।"
संकेत :
"हाँ?"
श्रेया ने गहरी सांस ली और उसकी तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर अब भी वही हल्की मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और भी था—शायद एक सवाल, या शायद एक जवाब जो संकेत के सारे डर को शांत कर सकता था।
श्रेया :
"तुम इतना घबराओ मत।"
बस, इतना सुनना था कि संकेत को लगा जैसे किसी ने उसके ऊपर से एक भारी बोझ हटा दिया हो। उसने गहरी सांस ली, लेकिन अभी भी वह उस 'फाइनल जवाब' का इंतज़ार कर रहा था।
क्या श्रेया भी वही महसूस करती थी जो संकेत करता था? या ये मुस्कान महज़ उसकी नर्वसनेस को कम करने के लिए थी?
श्रेया :
"तुमने जो कहा... मैं उसके बारे में सोच रही थी।"
संकेत की बेचैनी और बढ़ गई। लेकिन ये 'सोच रही थी' वाला जवाब उसे एक नई उम्मीद भी दे गया।
वो पल, जो पहले से ही ठहर चुका था, अब और भी गहरा हो गया। संकेत के दिल में कई सवाल उमड़ रहे थे, लेकिन वह अब बस एक बात समझ चुका था—श्रेया का जवाब... जल्द ही आने वाला था।
श्रेया :
"संकेत, पहले रिलैक्स करो।"
श्रेया के इन शब्दों ने संकेत की बड़बड़ाहट पर जैसे ब्रेक लगा दिया। उसने चुपचाप अपनी सांसों को काबू में किया और उसकी तरफ़ ध्यान से देखने लगा।
श्रेया ने थोड़ी देर तक शांत रहकर अपने thoughts को समेटा। उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन उसकी आँखों में एक गहराई थी।
श्रेया :
"संकेत, जो तुमने कहा... वह मेरे लिए बिल्कुल अनिक्स्पेक्टिड नहीं था।"
संकेत ने उसकी बात सुनकर हल्का-सा सिर झुकाया, मानो उसने उम्मीद की हो कि उसे ही ऐसा कुछ सुनने को मिलेगा।
श्रेया :
"तुम्हारे साथ वक़्त बिताना, तुम्हारी बातें सुनना, तुम्हारे साथ उन छोटे-छोटे पलों को एंजॉय करना... ये सब मुझे भी बहुत पसंद है।"
संकेत के दिल की धड़कन थोड़ी धीमी हुई। उसने देखा कि श्रेया के चेहरे पर अब एक हल्की-सी चमक थी।
श्रेया :
"और हाँ... मुझे भी लगता है कि हमारे बीच जो है, वह सिर्फ़ दोस्ती से थोड़ा ज़्यादा है।"
संकेत की आँखों में जैसे एक नई चमक आ गई। वह उस पल में ही जी रहा था, जब उसे वह सुनने को मिला जो वह इतने दिनों से महसूस कर रहा था।
लेकिन श्रेया ने अपने शब्दों को थोड़ी सावधानी से चुना। उसकी मुस्कान में एक हल्की-सी गंभीरता थी।
श्रेया :
"लेकिन संकेत... मैं ये भी जानती हूँ कि हर रिश्ता, चाहे वह कितना भी खूबसूरत क्यों न हो, उसकी अपनी जिम्मेदारियाँ होती हैं और मुझे नहीं पता कि मैं इस वक्त, उन जिम्मेदारियों को पूरी तरह निभा पाऊँगी या नहीं।"
श्रेया ने अपने मन की सारी बातें साफ़ शब्दों में कह दीं। वह संकेत से झूठ नहीं बोलना चाहती थी। उसके दिल में संकेत के लिए जगह थी, लेकिन उसका दिमाग़ अब भी अपने फैसले के हर पहलू को तोल रहा था।
श्रेया :
"इसलिए... मैं ये सब धीरे-धीरे आगे बढ़ाना चाहती हूँ। अगर तुम तैयार हो, तो हम इस रिश्ते को एक मौका दे सकते हैं। लेकिन बिना किसी जल्दबाज़ी के।"
संकेत ने उसकी बात को ध्यान से सुना। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई। उसने महसूस किया कि श्रेया जो कह रही थी, वह सही था।
और श्रेया का ये "हाँ" भले ही थोड़ी सावधानी के साथ आई थी—संकेत के लिए उस पल की सबसे बड़ी जीत थी।
संकेत :
"धीरे-धीरे? मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है। जितना भी वक़्त लगे, श्रेया। बस, तुम मेरे साथ रहो।"
श्रेया ने सिर हिलाया, उसकी आँखों में एक सुकून था। दोनों के बीच की खामोशी अब पहले जैसी नहीं थी। वह अब हल्की, प्यारी और एक नई शुरुआत का वादा लिए हुए थी।
तालाब के किनारे बहती हवा में जैसे उनके दिलों की गूंज सुनाई दे रही थी। ये वह पल था, जिसने उनके रिश्ते को एक नई दिशा दी।
संकेत और श्रेया, दोनों ने आज एक बड़ा क़दम उठाया था। उनकी कहानी अब दोस्ती की सीमा से आगे निकल चुकी थी। आगे का सफ़र आसान होगा या मुश्किल, ये तो वक़्त बताएगा। लेकिन आज, उस खूबसूरत शाम में, उन्होंने अपनी फीलिंग्स को एक नाम दिया था।
क्या श्रेया और संकेत की ये नई शुरुआत उनकी दोस्ती को और गहरा बनाएगी?
या उनके रास्ते में अब नई चुनौतियाँ आएंगी?
क्या धीरे-धीरे बढ़ने वाला ये रिश्ता उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा?
और... अगर कभी कोई मुश्किल आई, तो क्या ये दोनों साथ मिलकर उसे पार कर पाएंगे?
जानने की लिए पढ़िए "कैसा ये इश्क़ है..." का अगला एपिसोड।
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