उस कमरे में कुछ देर मौन सन्नाटा पसरा रहा, इतनी गहरी शांति कि अगर वहां एक सुई भी गिरती तो उसकी आवाज किसी बम बिस्फोट की भांति सुनाई पड़ती। बलवंत इस समय बहुत भावुक था, नाजायज बेटी के प्यार में इतना पागल हो गया था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि राघव से क्या कहे?
वैसे सुमेधा लोगों की नजरों मे एक अनाथ लड़की थी, जिसका खर्चा बलवंत उठाते थे बलवंत के लिए यह राहत की बात थी कि सुमेधा की शक्ल बलवंत पर नहीं गई थी.…वरना लोगों को शक हो जाता। बलवंत को इससे चुनावी फायदा भी बहुत हुआ था, कि वे एक अनाथ लड़की की अपनी बेटी की तरह परवरिश करते हैं, अपने बेटों की कलाई पर उन्होंने सुमेधा से राखी भी बंधवाई थी, अनजाने में ही सही कम से कम बलवंत के दोनों बेटे सुमेधा को अपनी बहन तो मानने ही लगे थे।
जतिन, बलवंत की बात पर हल्के से मुस्कुरा दिया था…अगर वह राघव के बारे में जानता तो ऐसा कभी नहीं कहता। राघव का दिल जरूर टूटा था पर राघव मीरा को बिल्कुल नहीं भूला था इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि राघव की तरह मीरा भी अभी सिंगल थी, उसने राघव से रिश्ता टूटने के पांच साल बाद भी किसी को अपने दिल में जगह नहीं दी थी, पर राघव और जतिन को नहीं पता था कि कोई धीरे-धीरे मीरा के दिल में जगह बना रहा था।
रात हो चली थी, प्लान के मुताबिक अब राघव को काम शुरू कर देना था। बलंवत से विदा लेकर जतिन ने राघव को उस इलाके के शुरू होने से पहले ही उसे एक सुनसान जगह उतार दिया। राघव ने अपने पास कुछ जरूरी छोटे मोटे हथियार रख लिए....छोटे-छोटे चाकू, ब्लेड, कुछ नशीली दवाइयों से भीगे रूमाल और मिर्च स्प्रे....जतिन ने राघव को पहले ही आगाह कर दिया था कि चाहे जो भी हो जाए किसी को जान से नहीं मारना है…केवल बेहोश करना है या घायल करना है, और एक गुप्त रास्ता जिसे जतिन के खुफिया एंजेटों को पता था, उनकी सहायता से बाहर निकलना है।
राघव ने मैप में दिखाए रास्ते को अपने दिमाग में अच्छी तरह फिट कर लिया था, अगर वह मैप साथ में रखता तो अपराधियों द्वारा पकड़े जाने पर शायद जान से मार दिया जाता। जतिन के जाने के बाद राघव उस इलाके की ओर बढ़ गया, जहां पर आम आदमियों का जाना अपनी मौत को दावत देने के बराबर था। जानकारी के मुताबिक सुमेधा यहां से करीब ढाई किलोमीटर दूर बांस के बड़े-बड़े पेंड़ों से घिरे एक झोपड़ी में रखी गई थी।
राघव ने अपने हथियार को फिर से टटोला, साथ रखे खाने के डिब्बे को ठीक से कंधे पर टांगा और आगे बढ़ गया। इस इलाके में अपराधियों का दबदबा होने के कारण आधुनिक सुविधाएं न के बराबर थी। दिल्ली जैसे शहर का हिस्सा होन के बाद भी यहां कच्चे पक्के खपरैल वाले मकान थे। किसी किसी घर में बल्ब जल रहे थे पर ज्यादातर घरों में लालटेन और दीए ही टिमटिमा रहे थे, इस इलाके के बारे में कहा जाता है कि यहां के लोग खुद ही नहीं चाहते थे यहां बिजली विभाग वाले आए, यहां स्कूल बने और हास्पिटल बने, ये लोग खुद ही ये सारी सुविधाएं नहीं चाहते थे।
कुछ लोगों का मानना था कि यह सब यहां मौजूद अपराधियों के कारण होता था, वे नहीं चाहते थे कि यहां के लोग बाकी की दुनिया से जुड़े...यह ऐसा पहाड़ी और उबड़-खाबड़ इलाका था कि अगर कोई अपराधी किसी पहाड़ के पीछे छुप जाए तो पुलिस उसे सात जन्मों तक नहीं ढूंढ सकती थी।
राघव आसपास के घरों का मुआयना करते हुए चला जा रहा था...कुछ घरों से एकाध दो लोग झांकते हुए भी दिख रहे थे, यह उनके लिए आश्चर्य की बात थी कि इस खतरनाक इलाके में यह अजनबी कैसे आ गया। हो ना हो, जैसा जतिन ने बताया था कि तुम्हारे इस इलाके में एंट्री करते ही वहां बैठे आकाओं को सबकुछ पता चल जाएगा। हो सकता है कि तुम्हें उठाकर किसी अनजान जगह ले जाएं, या फिर हो सकता है कि तुम सुमेधा तक पहुंच ही जाओ, दोनों ही स्थितियों में तुम्हें क्या करना है यह तुम जानते हो।
राघव किसी भी स्थिति के लिए एकदम तैयार हो गया...उसने अपनी कलाई में बांधी सस्ती घड़ी में टाइम देखा और अंदाजा लगाया कि वह लगभग एक किलोमीटर तो चला आया होगा। मैप के हिसाब से वह एकदम सही जा रहा था, एक किलोमीटर होते ही गाय और भैंस का एक बड़ा तबेला दिखाई देगा...उस तबेले के पास एक बड़ी सी बाउंड्री है, बाउंड्री में एक आदमी के निकलने भर का छेद है, उसी छेद से बाहर निकलकर एक पगडंडी को पकड़कर सीधे चलते चले जाना है, उसके बाद बांसो का जंगल शुरू हो जाएगा उसी जंगल में किसी झोपड़ी में सुमेधा को रखा गया है।
काश यह सब सोचने में जितना आसान लग रहा है उतना ही आसान अगर हो जाता तो क्या बात थी? पर किसी भी समय गुंडे आ सकते हैं…मुझे चलते रहना है। पता नहीं सुमेधा का क्या हाल होगा.? वह तो बेचारी डरी सहमी सी बैठी होगी।
इधर बांसो से घिरे जंगल में बनी एक मिट्टी के घर में सुमेधा बहुत देर से बेहोश पड़ी थी....अचानक से उसकी आंखे खुली और वह चौंककर बैठ गई। उसके पूरे शरीर में बहुत ही भयानक दर्द हो रहा था, दर्द से हल्के-हल्के कराहते हुए उसने चारों की ओर देखा, पर अंधेरे में कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था।
बाहर भी भयानक शांति पसरी हुई थी, उसने उठने की कोशिश की तो दर्द की एक असहनीय लहर दोनो पैरों में दौड़ गई। तभी अचानक एक आवाज सुनकर सुमेधा के प्राण उसकी हलक में अटक गए.....यह सियारों की आवाज थी, कई सारे सियार शायद इसी झोपड़ी के बाहर शोर मचा रहे थे।
हे भगवान, मैं यहां कैसे आ गई? किसने मुझे यहां लाकर रखा है और आखिर क्यों.? मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है, तभी सुमेधा को अपने नाजायज पिता बलवंत का ध्यान आया.…मैंने तो नहीं पर मेरे पापा के बहुत सारे दुश्मन है, हो सकता है कि किसी को पता चल गया हो कि मैं बलवंत सिंह की बेटी हूं इसलिए अपनी निजी दुश्मनी निकालने के लिए मुझे किडनैप करवाया हो, मैं तो उस समय कालेज में थी, इंटरशिप करने के लिए छ: महीने के लिए चेन्नई जाना था, लेकिन मैं तो यहां फंसी हूं। ओह गॉड, क्या मेरे पापा को पता है कि मैं किडनैप हो गई हूं, अगर नहीं पता हुआ तो? हो सकता है कि मुझे किडनैप करने वाला मेरे पापा को फोन कर के उनसे पैसे मांगे....अगर ऐसा है तो अब तक वह कर चुका होगा और मेरे पापा मुझे छुड़ाने के लिए रात दिन एक कर देंगे।
तभी एक और आवाज ने सुमेधा को कंपाकर रख दिया, कोई उस झोपड़ी के खपरैल वाली छत पर चल रहा था। ऐसा कोई इंसान तो नहीं कर सकता था, क्योंकि यह कई लोगों के चलने की और कुछ अजीब सी आवाजें आ रही थी। उन्हीं सियारो की होगी, इस झोपड़ी में मेरी गंध उन्हें लग गई होगी....वे जरूर मुझे नोच नोचकर खाना चाहते होंगे।
वे आवाजे कुछ पलों तक आती रही फिर एकदम से बंद हो गई। सुमेधा की सांस जो गले में अटकी हुई थी अब वापस उसके दिल में समा गई, उसने शांत मन से उस अंधेरी कोठरी में देखने का प्रयास किया। पूर्णिमा रात की हल्की-हल्की रोशनी उस झोपड़ी में आने लगी थी। शायद उन सियारों के चलने से कुछ खपरैल इधर-उधर हो गए होंगे और खपरैल के नीचे रखे झाड़ फूस से चंद्रमा की रोशनी नीचे झोपड़ी के अंदर आने लगी थी।
यह बहुत ही गंदा और मकड़ी के जाले से सनी हुई झोपड़ी थी। एक कोने में कुछ टूटे हुए बरतन और एक मटका रखा हुआ था, मटके के पास ही चार पांच मिटटी के कुल्हड़ रखे हुए थे। कुल्हड़ के बगल में दीवार के पास एक लाइन से कई सारे बड़े-बड़े बिल थे, सुमेधा ने अंदाजा लगाया कि ऐसे बिलों में तो चूहे ही हते हैं। पर सुमेधा का सोचना गलत था, वह चूहे का नहीं बल्कि सांप का बिल था, उस एक बिल में से एक काला कोबरा जैसा दिखने वाला सांप निकला...उसे देखते ही सुमेधा वहीं फ्रीज हो गई। उसे अपना अंतिम समय नजर आ गया, वह सुमेधा की नजरों में सांप नहीं बल्कि साक्षात मृत्यु के देवता यमराज थे।
हे भगवान कैसी घिनौनी मौत मेरे नसीब में लिखी हुई है, मैं ऐसे नहीं मरना चाहती हूं, हे भगवान मुझे बचा लो…प्रार्थना करते हुए सुमेधा उठने की कोशिश करने लगी लेकिन उसके पैरों के असहनीय दर्द ने उसका साथ नहीं दिया।
हे भगवान, इस समय आपके अलावा और मेरा कोई नहीं है, मुझे बचा लीजिए, कहकर सुमेधा मन ही मन ढेर सारी मनौतियां मागंने लगी।
सारे धर्मौ के ईश्वर का नाम लेकर मन्नत जपने लगी…हे मां दुर्गा, अगर मैं यहां से सुरक्षित बाहर निकल गई तो नवरात्री के नौ दिन व्रत करूंगी, हाजी अली के दरगाह में चादर चढ़ाउंगी, स्वर्ण मंदिर के लंगर में सौ लोगों के लिए रोटियां बेलूंगी अपने हाथों से बरतन मांजूगी।
मन ही मन जपकर सुमेधा ने आंखे खोली, वह सांप अभी भी एकटक सुमेधा को निहार रहा था जैसे वह उसे डसने की पूरी तैयारी में हो। यहां तो हर जगह खतरा था, झोपड़ी के बाहर भूखे सियार उस पर घात लगाए बैठे थे और अंदर यह सांप किसी भी समय डसकर उसे मार सकता था, तभी वह सांप अचानक से दूसरे बिल में घुस गया ।
सुमेधा की घिग्घी बंध गई…यह वापस क्यों चला गया? क्या यह थोड़ी देर बाद आएगा?
यह सब जरूर उस अंशुमन का काम होगा, कॉलेज के छात्रसंघ का अध्यक्ष मुझसे शादी करना चाहता है, मैंने मना कर दिया था तो वह देख लूंगा की धमकी देकर चला गया था, क्या यह सब उसी का किया धरा है? मेरे पापा को पता चलेगा तो उसके शरीर की सारी हड्डियां तोड़ देंगे। पर अभी यह सब सोचने से क्या फायदा, अभी तो मेरी जान खतरे में है। सुमेधा की आंखो से झरझर आंसू बहने लगे।
एक बार फिर से पूरे माहौल में भयानक खामोशी व्यापत हो गई, कहीं से कोई आवाज नहीं…वीरान सन्नाटा…बस रात के झींगुरों की बहुत ही हल्की आवाज। तभी एक भयानक चिंघाड़ झोपड़ी के बाहर उस वातावरण में गूंज उठी, उसके बाद एक दर्दनाक चीख पूरे माहौल को भेदने लगी। ऐसा लग रहा था कि किसी को बहुत ही भयानक तरीके से यातना देकर मारा जा रहा था। चीख केवल एक आदमी की थी, यातना देने वाले की कोई आवाज या बातचीत नहीं सुनाई दे रही थी।
सुमेधा की हालत किसी बेचारी सी बकरी जैसी हो गई थी…जिसकी गरदन पर किसी भी समय छुरा चल सकता था।
क्या अंशुमन मुझे यहां दर्दनाक मौत देने के लिए लाया है? पर मैंने तो केवल उसके प्यार के प्रपोजल को ही ठुकराया था, ऐसी कोई इंसल्ट तो नहीं की थी। सुमेधा को याद आया की कुछ साल पहले भी इस कॉलेज में ऐसा हुआ था, एक छात्र नेता के प्रपोजल को ठुकराने वाली लड़की की लाश एक सूखे कुंए में मिली थी। सबको पता था कि यह उसी छात्र नेता का काम है पर पुलिस कोई सबूत नहीं जुटा पाई और वह छात्रनेता आज भी आजाद घूम रहा था।
क्या अंशुमन भी वैसा ही कुछ करने वाला था? भय और घबराहट का मिलाजुला भाव उसके चेहरे पर व्याप्त हो गया, उसकी स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गई थी।
काश अंशुमन जान पाता कि मैं किसकी बेटी हूं…मैं उसी बलवंत सिंह की बेटी हूं जिसके सामने अंशुमन कई बार हाथ जोड़कर नीचे जमीन पर बैठकर मेयर की टिकट की मांगता रहता था, वह मेरे पापा की पार्टी में आने के लिए कई महीनो से जददोजहद कर रहा था।
अगर वह अभी मेरे सामने आ जाए तो मैं उसे बता दूंगी कि मैं कौन हूं....उसे उसकी औकात याद दिला दूंगी, वह नहीं मानेगा तो अपने पापा से मैं उसकी बात करा दूंगी।
सुमेधा को पता था कि यह खबर राजनीति जगत में तूफान लाकर रख देगी कि बलवंत सिंह की एक नाजायज बेटी भी है, पर सुमेधा को इसकी परवाह नहीं थी, इस समय उसे मौत के मुंह से निकलना था जो सबसे ज्यादा जरूरी था।
सुमेधा सिकुड़कर बैठ गई और घुटने में सिर छुपाकर सोचने लगी, वह चीख किसकी थी, इतनी दर्दनाक और खौंफ से भरी, सोचकर सुमेधा ने अपना सिर ऊपर उठाया और उसकी चीख निकल गई। एक काला साया उसे घूर रहा था, उसकी लाल आंखे मानों उसकी पुतलियों को दहकते अंगारे से भर दिया गया था, डर के मारे सुमेधा का पूरा जिस्म अकड़ गया।
क्या राघव, सुमेधा को बचा पाएगा?
क्या सुमेधा अपने पिता का सच अशुंमन को बताएगी?
क्या सच में अंशुमन ने ही सुमेधा का अपहरण किया है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्बत।
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