अश्विन को दिल्ली आए हुए तीन महीने हो चुके थे। वह मुंबई से दिल्ली क्या-क्या सोचकर आया था। उसने ठान लिया था कि दिल्ली में नई शुरुआत करेगा, खुद को साबित करेगा, और कुछ बड़ा हासिल करेगा। उसने कई सपने सजाए थे और उम्मीदों से भरा हुआ था।
उसने सोचा था कि दिल्ली में उसकी ज़िंदगी और काम में बड़े बदलाव आएँगे लेकिन हकीकत यह थी कि उसके सभी सपने अधूरे रह गए थे। उसकी क्रिएटिविटी, जिस पर उसे सबसे ज़्यादा गर्व था, जैसे ठहर गई थी।
मुंबई में, जिस कंपनी में वह काम करता था, वहाँ उसकी क्रिएटिविटी के दम पर उसकी धाक जमी हुई थी लेकिन दिल्ली की कंपनी में वह नया-नवेला था, और यहाँ उसे वरुण जैसा तोप मिला था। वरुण के विज़न और आइडियाज इतने दमदार थे कि उनके सामने अश्विन की क्रिएटिविटी फीकी पड़ने लगी थी।
पिछले तीन हफ्तों से, अश्विन एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था और उसने खुद को पूरी तरह से उस काम में झोंक दिया था, ताकि अपने काम के जरिए वरुण को इंप्रेस कर सके। धीरे-धीरे उसे लगने लगा कि उसका सारा पैंतरा नाकाम हो रहा है।
आये दिन अश्विन और उसके कलीग्स के बीच आइडियाज और क्रिएटिविटी को लेकर दिक्कतें होने लगी थीं।
जैसे ही अश्विन अपने अनोखे, अतरंगी और नए आइडियाज अपने कलीग्स, वरुण और बॉस के सामने पेश करता, तो वरुण से अक्सर यही सुनने को मिलता कि "क्लाइंट को शायद यह काम पसंद नहीं आएगा।"
इसके बावजूद, अश्विन पूरे मन से मेहनत और लगन के साथ अपना काम करता रहा। आज उसका मन खिजा-खिजा सा था। देर रात ऑफिस से निकलने के बाद, वह चाय की टपरी पर बैठा किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।
अगली सुबह, अश्विन ऑफिस काफी जल्दी पहुँच गया। वह पूरे जुनून के साथ अपने काम में लग गया, क्योंकि आज उसके लिए एक बड़ा दिन था। पिछले तीन हफ्तों से जिस प्रोजेक्ट पर वह मेहनत कर रहा था, आज उसकी मीटिंग थी।
जैसे ही अश्विन मीटिंग रूम में पहुँचा और अपना प्रेज़ेंटेशन देना शुरू किया, वरुण ने उसे बीच में ही टोक दिया और कुछ सुझाव देने लगा। वरुण की बात सुनकर अश्विन एकदम सकपका गया। उसे समझ नहीं आया कि वरुण की बात का क्या जवाब दे या अपनी बात कैसे रखे।
जब अश्विन अपने अपार्टमेंट पहुँचा, तो उसने अपने आई-बाबा को फोन किया। फिर बरामदे में बैठकर शराब का मज़ा लेते हुए हवाओं से बतियाने लगा। उसी दौरान, उसने ट्रेक पर जाने के लिए इंटरनेट पर कुछ जगहों के नाम खोजना शुरू कर दिया। अचानक ही, एक जगह का नाम देखकर वह हक्क-बक्का रह गया!
अश्विन: “सातबेली!”
अश्विन ने कुछ सोचने की कोशिश करते हुए कहा।
अश्विन: “मैंने कहीं तो ये नाम सुना है, लेकिन कहाँ?”
अश्विन सातबेली के बारे में पता करने बैठ गया। काफी समय तक रिसर्च करने के बाद, उसे इस रहस्यमयी गाँव के बारे में कुछ खास जानकारी नहीं मिली लेकिन जो कुछ पता चला, वह बेहद दिलचस्प था।
सातबेली पहाड़ों की गोद में बसा एक गाँव है, जो अपनी टेरेस स्टाइल फार्मिंग के लिए जाना जाता है। वहाँ हर तरफ हरे-भरे पेड़-पौधे हैं, और गाँव के रास्ते इतने पतले और टेढ़े-मेढ़े हैं कि उन पर केवल पैदल ही चला जा सकता है। यही वजह थी कि सातबेली को ट्रेकिंग के लिए बाकी जगहों से बेहतर माना जाता था।
इतनी जानकारी हासिल करने के बाद, अश्विन ने आखिरकार सातबेली जाने का फैसला कर लिया। अब तक उसे यह याद नहीं आया था कि उसने सातबेली का नाम सबसे पहले कहाँ सुना था। जैसे ही वीकेंड ने अश्विन के दरवाजे पर दस्तक दी, वह बड़ी फुर्ती और खुशी के साथ सुबह-सुबह ही सातबेली के सफर पर निकल पड़ा।
ट्रेक की शुरुआत होते ही, अश्विन तरो-ताज़ा महसूस करने लगा। सातबेली की प्राकृतिक सुंदरता, घने जंगल, और पहाड़ों के बीच उसे एक अनोखा सुकून मिल रहा था। शहर की भागम-भाग, शोर-शराबे और तनाव से वह कोसों दूर था। गाँव की ताज़ी हवा और चारों ओर फैली शांति ने उसे मानो जकड़ लिया था।
एक पल को उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वहाँ समय ठहर गया हो। चलते-चलते जब अश्विन हाँफने लगा, तो उसने बीच में रुककर सातबेली के अद्भुत नज़ारे का आनंद लिया। वहीं खड़े-खड़े उसे सिगरेट पीने की तलब हुई। जैसे ही अश्विन ने सिगरेट सुलगाई और पहला कश लिया, वह सुकून भरे लहजे में बोल उठा
अश्विन: "वाह! यहाँ की ताज़ी हवा में सिगरेट पीने का एक अलग ही मज़ा है। आज तक कभी सिगरेट पीने में इतना मज़ा नहीं आया।"
उसके बाद जब उसने फिर से चलना शुरू किया, तो गाँव के टेढ़े-मेढ़े, सँकरे रास्तों के बीच उसे एक छोटी , पुरानी, टूटी-फूटी सी दुकान दिखाई दी। यह दुकान बाकी दुकानों से अलग-थलग लग रही थी। दुकान के ऊपर लकड़ी की एक पुरानी तख्ती लटकी हुई थी, जिस पर लिखा था:
"गिरधारी - सारी समस्याओं का समाधान यहीं मिलेगा।"
न जाने क्यों, वह उस दुकान की ओर खिंचने लगा। ऐसा लगा मानो उसके क़दम खुद-ब-खुद उसे वहाँ तक ले जा रहे हों। शायद उसके क्रिएटिव दिमाग को दुकान का नाम और टैगलाइन दिलचस्प लगी हो।
जो भी हो, जैसे ही उसने दुकान के भीतर कदम रखा, उसने देखा कि पूरा दुकान लालटेन की मद्धम रोशनी से जगमगा रहा था।
जब अश्विन ने अपनी नज़रें दौड़ाईं, तो उसे एहसास हुआ कि यह एक विचित्र-सी ऐंटीक की दुकान थी, जहाँ तरह-तरह की पुरानी और अजीबो-गरीब चीज़ें रखी हुई थीं—जैसे पुरानी घड़ियाँ, नक़्शे, डरावनी मूर्तियाँ, ऐंटीक बंदूकें, और न जाने क्या-क्या। वहाँ का माहौल उसे डरावना और रहस्यमयी लगने लगा और सबसे अजीब बात यह थी कि वहाँ वह अकेला खड़ा था।
उसी वक्त, अश्विन को वहाँ पुरानी लकड़ी के सरकने की करकराती आवाज़ सुनाई दी। वह हैरानी और शक़ भरी नज़रों से इधर-उधर देखने लगा। तभी उसकी नज़र दुकान के एक अँधेरे कोने में पड़ी, जहाँ उसे काले साये जैसा कुछ दिखा।
उस पल, अश्विन का मुँह सूख गया और उसकी जान गले में अटक गई। इससे पहले कि वह कुछ कहता या वहाँ से भागता, उसे महसूस हुआ कि वह न जाने क्यों वहाँ जम सा गया था। उसकी आवाज़ भी जैसे उसका साथ छोड़ चुकी थी। उसे एक भारी-भरकम आवाज़ सुनाई दी।
गिरधारी: "कौन?"
उस व्यक्ति ने माचिस जलायी, अपनी चिल्लम सुलगाई, और खाँसते हुए धीरे-धीरे अश्विन की ओर बढ़ने लगा। अश्विन ने देखा कि उस व्यक्ति का पूरा शरीर जूट के बोरे से बने चोगे से ढँका हुआ था। चोगे की बड़ी टोपी उसके चेहरे को भी ढँके हुए थी।
जब उस व्यक्ति ने अपने सिर से टोपी हटाई, तो अश्विन की जान में जान आई। उसे यह देखकर राहत हुई कि वह कोई अजीब प्राणी नहीं, बल्कि एक इंसान था।
उसके सामने करीब पचपन-साठ साल का एक बूढ़ा आदमी खड़ा था। उसके चेहरे की झुर्रियाँ जैसे उसकी ज़िंदगी की अनकही कहानियाँ बयान कर रही थीं लेकिन उसकी बूढ़ी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, जो अश्विन को उलझन में डाल रही थी। उस बूढ़े आदमी ने भारी-भरकम आवाज़ में कहा
गिरधारी: “आओ जी बाओ-जी”
अश्विन:“ये, गिरधारी आप ही हो क्या?”
गिरधारी: “हाँ! तुम तो यहाँ के नहीं लगते। कहाँ से आये हो?”
गिरधारी ने अश्विन को मन भरकर घूरा।
अश्विन: "मैं दिल्ली से हूँ। मेरा नाम अश्विन है। घूमने आया हूँ। शहर की भागम-भाग से इतना परेशान हूँ कि शांति की तलाश मुझे यहाँ तक ले आयी।"
गिरधारी: "शांति पाना इतना आसान नहीं है, बेटा। वैसे भी, तुम मुझे ऐसे आदमी लगते हो, जो हमेशा आसान रास्तों की तलाश में रहता है।"
अश्विन: "क्या मतलब?"
गिरधारी:"हर बार जब मुश्किलें आती हैं, तुम उनका सामना नहीं करते, बल्कि उनसे भाग जाते हो। अब तुम शांति पाने के लिए भी आसान रास्ता ढूँढ रहे हो।"
उसी पल, गिरधारी ने अपने फटे-पुराने चोगे की जेब से एक अजीब सा चाँदी का बक्सा निकाला। बक्से पर डिज़ाइन के नाम पर केवल आड़ी-तिरछी, रेखाएँ बनी हुई थीं।
गिरधारी ने उस बक्से को काउंटर पर रखकर धीरे-से खोला। फिर उसने पास में रखी एक लालटेन को भी बक्से के करीब रख दिया। लालटेन की मद्धम रोशनी में, अश्विन को बक्से के अंदर एक हल्की-सी चमकती हुई वस्तु दिखाई दी।
यह एक ब्रैस्लेट था, जिसपर सात अलग-अलग इंद्रधनुषी रंगों के छोटे-छोटे क्रिस्टल जड़े हुए थे। वे क्रिस्टल हल्के-हल्के टिमटिमा रहे थे, मानो उनकी रोशनी किसी रहस्य को बयान कर रही हो। अश्विन की आँखें उस ब्रैस्लेट पर टिक गईं। उसके अंदर अचानक एक जिज्ञासा जागने लगी। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या है और गिरधारी ने इसे क्यों निकाला है। गिरधारी ने उस ब्रैस्लेट को अपने हाथ में लिया, और अश्विन की ओर बढ़ाकर, उसकी आँखों में देखकर बोला
गिरधारी: "यह ब्रैस्लेट बहुत ही ख़ास और शक्तिशाली है। इसमें इच्छाओं को पूरा करने की अद्भुत शक्ति समाई हुई है। यह तुम्हारी सात इच्छाओं को पूरा कर सकता है, चाहे वे इच्छाएँ कैसी भी क्यों न हों। मगर याद रखना, हर इच्छा को पूरा करने के बदले, यह तुम्हारी ज़िंदगी से कुछ ऐसा ले जाएगा, जिसकी तुम्हें ज़रूरत नहीं होगी।"
अश्विन:"सुबह से कोई मिला नहीं क्या, बाबा? मेरे माथे पर कुछ लिखा है क्या? या फिर ये आपको अलादीन ने दी है? अच्छा सुनिए, ये सब छोड़िए। आप मुझे ये बताइए कि आपने क्या फूँका है? मुझे भी वही चाहिए।"
गिरधारी: "ज़िंदगी के हर हिस्से का एक मोल होता है। इच्छाएँ पूरी करने के लिए कुछ न कुछ छोड़ना पड़ता है। यह ब्रैस्लेट तुम्हारी ज़रूरतों और बेकार की चीज़ों के बीच फ़ैसला करेगा। अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम क्या करना चाहते हो। क्या यह ब्रैस्लेट तुम्हारे लिए ज़रूरी है, या बेकार? यह फ़ैसला तुम्हें ही करना होगा।"
अब तक अश्विन गिरधारी के मजे ले रहा था, लेकिन अचानक, पता नहीं क्या हुआ कि वह किसी गहरी सोच में पड़ गया। उसके दिल-दिमाग और मन में जैसे एक जंग छिड़ गई हो। अश्विन ने मन ही मन सवाल किया।
अश्विन:क्या सच में ये ब्रैस्लेट मेरी ज़िंदगी को बदलने की ताकत रखता है? मैं कैसे इस बूढ़े आदमी पर विश्वास कर सकता हूँ?"
जब उसने धीरे-धीरे उस ब्रैस्लेट को अपने हाथ में लिया, तो उसे महसूस हुआ कि उसका वज़न कम से कम डेढ़-दो किलो का होगा। यह दिखने में किसी ऐंटीक बंदूक के लोहे से बना हुआ लग रहा था। इसके दोनों किनारों पर तीन हुक थे, जिससे इसे पहनने के बाद बंद किया जा सके।
अश्विन: "इसको पहनकर घूमूँगा तो लोग मज़ाक उड़ाएँगे।"
अश्विन ने मन ही मन कहा और गहरी सोच में पड़ गया। साथ ही, उसे महसूस होने लगा कि वह इस ब्रैस्लेट की तरफ आकर्षित हो रहा है।
अश्विन: "ये कितने का है?"
गिरधारी: "अनमोल चीज़ों का मोल नहीं होता। इसे ऐसे ही ले जाओ। कीमत ये अपनी खुद ही वसूल लेगा। "
गिरधारी की बात सुनकर अश्विन चौंक पड़ा। थोड़े अविश्वास के साथ, उसने आखिरकार गिरधारी से वह ब्रैस्लेट ले लिया। पर क्या अश्विन ने सही किया? जानने के लिए पढ़ते रहिए
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