अश्विन को सातबेली से लौटे दो हफ्ते हो चुके थे। वापस लौटते ही, वह फिर से अपने काम में बिजी हो गया। एक तरफ, वह काम के बोझ तले दबता जा रहा था, और दूसरी तरफ, उसके मन से वरुण को इंप्रेस करने का खयाल हटने का नाम नहीं ले रहा था। जितना वह काम में उलझता, यह खयाल उतना ही गहरा होता चला जा रहा था।
हर दिन, अश्विन इस उम्मीद में काम कर रहा था कि शायद कभी वरुण उसके काम को सराहे, और कंपनी में उसके टैलेंट को वह पहचान मिले, जिसका वह हकदार था। महीनों तक काम करने के बावजूद, उसे वहाँ के एनवायरनमेंट में फिट होने और अडजस्ट करने में स्ट्रगल करना पड़ रहा था।
उसके अंदर अपना काम दिखाने, अपने कलीग्स की आँखों में इज़्ज़त पाने, और कंपनी में अपनी जगह बनाने की भूख खत्म नहीं हुई थी। उसे लगने लगा था कि अगर उसने वक़्त रहते कुछ नहीं किया, तो वहाँ भी उसका कुछ नहीं होगा।
वह लगातार सोच रहा था, "अगर यहाँ भी मैं फ़ेल हो गया, तो क्या करूँगा? आखिर, मैं मुंबई से दिल्ली इसलिए तो नहीं आया था कि यहाँ बस यूँ ही दिन गुज़ार लूँ! मुझे तो कुछ बड़ा करना था, खुद को साबित करना था। ऐड की दुनिया में अपनी पहचान बनानी थी।"
यही वजह थी कि उसने खुद को पूरी तरह से काम में डुबो दिया था। उसे लगा कि यही एकमात्र रास्ता था, जिससे वह अपने सपनों को हकीकत में बदल सकता था।
अश्विन की एक बेहद ज़रूरी मीटिंग थी। वह सुबह से, अकेले ही, ऑफिस के मीटिंग रूम में बैठकर अपने पिच की तैयारी करने के साथ-साथ, खुद को क्लाइंट से बातचीत के लिए तैयार कर रहा था, ताकि वह वरुण की नज़रों में खुद को साबित कर सके। बस, इसी कारण वह इतनी जद्दोजहद कर रहा था।
कुछ समय के बाद, मीटिंग रूम वरुण और उसकी टीम के कुछ लोगों, कंपनी के बॉस और क्लाइंट से खचाखच भर गया। इसके बाद, अश्विन ने अपना पिच और अपना आइडिया क्लाइंट के सामने पेश किया। अचानक, क्लाइंट ने उसे बीच में रोक दिया और सवालों की एक लंबी झड़ी लगा दी, जिससे वह पैनिक करने लगा। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्लाइंट के सवालों का क्या जवाब दे।
वह कुछ सोचते हुए, अपने खयालों के समंदर में गोते लगाने लगा लेकिन उन खयालों ने उसके दिमाग में इतनी पकड़ बना ली कि वह परेशान होकर ज़ोन आउट हो गया।
कुछ समय बाद, तालियों की गूंज से वह वापस आया, और उसे अंदाजा हुआ कि वरुण ने अपने तेज दिमाग की मदद से क्लाइंट को उसके सवालों के जवाब देकर डील क्रैक कर ली थी।
उस वक्त, अश्विन समझ गया कि जब वह अपने खयालों के गहरे समंदर में डूब रहा था, तब वरुण ने उसे डूबने से बचा लिया और उसकी डूबती नैया को पार भी लगा दिया।
“डूबते को तिनके का सहारा।” अश्विन इस कहावत से काफ़ी हद तक रिलेट कर पा रहा था। उस डील के क्रैक होते ही, सभी लोग वरुण की तारीफ करने लगे थे। बॉस ने उसकी पीठ थपथपाते हुए शाबाशी दी और कहा कि उन्हें वरुण से यही उम्मीद थी!
जहाँ सभी की नज़रें वरुण पर टिकी थीं, वहीं वरुण की नज़र अश्विन पर थी। जब अश्विन को इस बात का एहसास हुआ, तो उसका सिर अपने-आप शर्म से झुक गया। मन ही मन, अश्विन ने उदास लहजे में खुद से कहा
अश्विन:"लगता है, मुझे यहाँ वरुण की परछाई बनकर ही रहना पड़ेगा।"
शाम के वक्त, अश्विन अपने काम में व्यस्त था लेकिन उसका ध्यान काम पर कम और मीटिंग में हुए डिज़ास्टर पर ज़्यादा था। वह गहरी सोच में डूबा हुआ था। अचानक, उसने अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया और झट से पलटा। वहाँ वरुण खड़ा मुस्कुरा रहा था। उसने अश्विन से पूछा, "क्या तुम ठीक हो?"
अश्विन उसके सवाल से हैरान रह गया। वरुण ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "वैसे ही पूछ रहा हूँ, क्योंकि आज शुक्रवार है, रात के दस बज रहे हैं, और तुम अब भी यहाँ हो। क्या तुम्हें घर नहीं जाना?" अश्विन ने जब अपने आस-पास देखा, तो उसे एहसास हुआ कि ऑफिस पूरी तरह खाली हो चुका था। वहाँ सिर्फ वही दोनों बचे थे।
इससे पहले कि अश्विन कुछ कह पाता, वरुण ने कहा, "चलो, साथ में एक-एक कप चाय और सुट्टा पीते हैं।" वरुण और अश्विन, चाय की टपरी पर, चाय-सिग्रेट की अनोखी जोड़ी को एन्जॉय करते हुए, बातें कर रहे थे। अचानक ही, बातों ही बातों में, अश्विन ने विनम्रता से, वरुण की ओर देखते हुए कहा।
अश्विन: “मुझे आज के दिन के लिये माफ़ करना। मुझे बचाने के लिये और मेरी इज़्ज़त रखने के लिये, थैंक्स।”
वरुण ने मुस्कुराकर कहा कि वह बेकार ही इतनी टेंशन लेता है और उसे इतना फॉर्मल होने की ज़रूरत नहीं थी। फिर, वरुण ने एक गहरी साँस ली और अश्विन को समझाया की उसके पास विजन है, और उसके अंदर क्रिएटिविटी कूट-कूटकर भरी हुई है लेकिन उसे लगता है कि अश्विन अपना टैलेंट दिखाने के बजाय, अपने पोटेंशियल का सही इस्तेमाल नहीं कर रहा था। और फिर उसने उससे यह भी पूछा कि उसे कौन सी चीज़ वैसा करने से रोक रही थी।
वरुण की बातें सुनकर, अश्विन के मन से वरुण को इंप्रेस करने का ख़याल निकल गया। साथ ही, अब उसके मन में यह बात आने लगी कि कम से कम वरुण को उसकी मेहनत तो दिखाई दे रही थी। वरुण की बातों ने उसके अंदर की बुझी हुई आग को फिर से जलाकर, उसके अंदर के सोए हुए शेर को जगा दिया था। अश्विन ने वरुण की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
अश्विन: "थैंक्स।" "तुमसे मिलने से पहले, मुझे लगता था कि इस फील्ड में गधे भरे पड़े हैं और मैं ही इस फील्ड का इकलौता रॉकेट हूँ लेकिन, तुमसे मिलने के बाद मेरा नज़रिया पूरी तरह बदल चुका है। अब मुझे लगता है कि तुम अलग ही लीग के खिलाड़ी हो। ऊपर से, तुम इतने सुलझे हुए हो और क्लाइंट्स से बहुत ही अच्छे से डील करते हो। वह एक ऐसी स्किल है जिसमें मैं मात खा जाता हूँ यार, जबकि मैं इस फील्ड में पिछले पाँच-छह सालों से काम कर रहा हूँ।"
तभी वरुण ने कहा कि उसे अश्विन की कमजोरी का पता है। उसने कई बार देखा था कि अश्विन क्लाइंट से बात करते वक्त जल्दबाजी करने लगता था और बहुत जल्दी अपना आपा खो देता था।
फिर, वरुण ने अश्विन की इस बात की तारीफ भी की कि अश्विन को अपनी कमजोरी का पता है, और यह एक अच्छी बात है। बहुत से लोगों को उनकी कमी या कमजोरी का एहसास ही नहीं होता। वरुण की बातें, अश्विन को मोटिवेट करने लगीं।
वरुण से बात करने के बाद, अश्विन को यह समझ आ गया कि वह एक ऐसा आदमी है जिसने अपनी ज़िंदगी को पूरी तरह से सॉर्ट कर लिया है। इसी वजह से वह न केवल क्लाइंट की ज़रूरतों और डिमांड्स को समझता है, बल्कि उनके दिमाग को भी पढ़ लेता है।
वरुण को इंसानों की समझ है। वह लोगों की क़द्र करता है, और इसी वजह से लोग भी उसकी क़द्र करते हैं और उसे इज़्ज़त देते हैं। उस वक़्त, अश्विन के ज़ेहन में एक ख़याल आया।
अश्विन: “काश, मैं भी वरुण जैसा होता! वो कितने अच्छे से सारी चीज़ों को मैनेज करता है!”
थका-हारा अश्विन, जैसे ही अपने घर पहुँचा, तो बिना फ्रेश हुए ही उन्हीं कपड़ों में बिस्तर पर लेट गया। वह वरुण की बातों को याद करने लगा। उसके मन में एक सुकून था और चेहरे पर इस बात की ख़ुशी कि वरुण ने उसे कम से कम नोटिस तो किया!
थोड़ी देर बाद, वह नहा-धोकर, कपड़े बदलने के लिए जैसे ही अलमारी खोली, उसकी नज़र वहाँ रखे ब्रेस्लेट के बक्से पर पड़ी। अचानक, उसे गिरधारी से हुई मुलाकात याद आ गई, और उसके दिमाग में वह घटना किसी मूवी के सीन की तरह चलने लगी। अश्विन ने महसूस किया कि गिरधारी की आवाज़ उसके कानों में गूँज रही थी।
गिरधारी: "ये ब्रेस्लेट बहुत ही ख़ास और शक्तिशाली है बेटा। इसमें इच्छाओं को पूरा करने का गुण समाया है, और ये तुम्हारी सात इच्छाओं को पूरा कर सकता है..."
अश्विन ने बक्से को खोलकर ब्रेस्लेट को अपने दाहिने हाथ में उठाया, बक्से को वापस अलमारी में रखा और गीले तौलिये में ही बिस्तर पर बैठ गया।
उसने अपने बाएँ हाथ से एक सिगरेट सुलगाई और फिर ब्रेस्लेट को अपनी दाहिनी कलाई पर बाँधने लगा। वह बिस्तर पर लेटकर, उस ब्रेस्लेट को निहारते हुए, अपने आपसे सवाल करने लगा था
अश्विन: “क्या ये ब्रेस्लेट वाक़ई में जादुई है? क्या ये सच में मेरी सात इच्छाओं को पूरा कर सकता है?” एक तो ये ब्रेस्लेट इतना भारी है कि मैं इसे पहनकर घूम भी नहीं सकता। ऊपर से इस पर लगे क्रिस्टल्ज़ भी आम क्रिस्टल्ज़ जैसे नहीं लगते। अगर इस ब्रेस्लेट से एक भी क्रिस्टल निकल गया, या ये ब्रेस्लेट खो गया, कहीं चोरी हो गया, तब तो लेने के देने पड़ जाएँगे।”
अपने आपसे बातें करते हुए, अश्विन को झपकी आने लगी थी। उसने उबासी लेते हुए, आधे जगे, आधे नींद के अंदाज़ में, खुद से कहा...
अश्विन: "क्या कहते हो, मिस्टर अश्विन? माँग के देखें एक विश? क्या माँगा जाए!..."
क्या अश्विन ने विश मांगी?
आश्विन ने कैसी विश मांगी?
या फिर सो गया? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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