आखिर में ध्रुवी के सब्र का बांध टूट गया। और वह धम्म से वापस वहीं सीढ़ियों पर बैठ गई। और इसी के साथ उसकी आँखों से झर-झर बिना रुके आँसू बह निकले। और उसने अपने घुटनों के बीच अपना चेहरा छुपा लिया। और कुछ पल में ही, देखते ही देखते ध्रुवी बेतहाशा सिसक पड़ी। वही ध्रुवी जो पूरी दुनिया के सामने मजबूत बनी रहती थी, आज अकेले थी, बिल्कुल अकेले। सिर्फ़ बेबसी और मायूसी के साथ। ना तो आज जान न्यौछावर करने वाले उसके पिता ही उसके साथ थे, और ना ही उसकी मोहब्बत आर्यन ही उसके साथ था। एक तरफ़ उसके पिता जो उससे दूर थे, उससे खफ़ा होने की वजह से, और एक तरफ़ आर्यन, जो कहाँ था, ध्रुवी को ख़बर ही नहीं थी। ना जाने कितनी देर तक ध्रुवी बस यूँ ही अपनी सोच और ख़यालों में उलझी सिसकती रही। और जब उसकी आँखों के आँसू थमे, तो वह काफ़ी देर तक बस ख़ामोश यूहीं मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी रही। अब अंधेरा भी होने लगा था और मंदिर में भी रश कम होने लगा था। आखिर में कुछ वक़्त बाद ध्रुवी भी अपनी जगह से उठी और मंदिर की सीढ़ियों से बोझिल कदमों के साथ उतरते हुए बाहर आ गई।
ध्रुवी अपने ही ख़यालों में गुम होकर बोझिल कदमों से बस चली जा रही थी कि अचानक एकाएक उसके सामने एक लंबी सी काली गाड़ी आकर रुकी। ध्रुवी ने अपना रास्ता रोकने वाली उस गाड़ी की ओर एक नज़र देखा। यकीनन अगर इस वक़्त ध्रुवी राइट स्टेट ऑफ़ माइंड में होती, तो खुद का रास्ता रोकने की बदतमीज़ी करने वाले को मुँह तोड़ जवाब देती। लेकिन चूँकि अभी ध्रुवी का दिमाग़ हज़ार उलझनों, विचारों और परेशानियों से घिरा था, तो उसने इस वक़्त ना तो कुछ रिएक्ट किया और ना ही कुछ बोला। बस ख़ामोशी से एक नज़र उस गाड़ी को देखने के बाद उसने बिना कुछ बोले बस अपना रास्ता बदल दिया और ख़ामोशी के साथ ही दूसरी साइड से रास्ता बदलकर जाने लगी। तभी गाड़ी में से फुर्ती से एक आदमी बाहर निकला और उसने ध्रुवी का नाम पुकारा। ध्रुवी ने जब एक अनजान शख्स के मुँह से अचानक अपना नाम सुना, तो अनायास ही उसके क़दम वहीं के वहीं रुककर थम गए।
एक पल बाद ही उसने अपने पीछे पलटकर उस आदमी की ओर देखा। जिसका पहनावा यकीनन यहाँ का नहीं लग रहा था। वह थोड़ा देहाती पहनावे के साथ, माथे पर सैकड़ों शिकन की लकीरों के साथ, बड़ी-बड़ी हल्की सफ़ेद मूँछों के साथ, एक स्ट्राँग पर्सनेलिटी वाला शख्स नज़र आ रहा था। जिसे यहाँ से गुज़रते लोग उसके पहनावे की वजह से अजीब नज़रों से देख रहे थे। लेकिन उस शख्स के चेहरे पर इस बात को लेकर रत्ती भर भी फ़िक्र या शर्मिंदगी जैसे भाव दूर-दूर तक भी नहीं नज़र आ रहे थे और उसकी वह सख्त शख्सियत ज्यों की त्यों बनी हुई थी। ध्रुवी ने भी उस सामने खड़े शख्स के एटायर पर एक सरसरी नज़र डाली और फिर एक पल बाद ही उसने सवालिया नज़रों से उस शख्स की ओर देखा, जैसे अपने चेहरे के भाव से ही पूछने की कोशिश कर रही हो कि क्या उसके सामने खड़े शख्स ने ही उसका नाम पुकारा है, जो कि असल में वह शख्स और कोई नहीं बल्कि शक्ति ही था।
“क्या मैं आपको जानती हूँ???”
“बेशक ना…लेकिण मह (मैं) थारे को अच्छे से जाणू सु… (एक पल रुक कर) …मिस ध्रुवी… ध्रुवी सिंघाणिया!!!”
“मगर मैं आपको नहीं जानती। और जब मैं आपको नहीं जानती, तो मेरा आपसे बात करने का भी कोई मतलब नहीं बनता।”
इतना कहकर ध्रुवी, बिना शक्ति के जवाब का इंतज़ार किए ही जाने के लिए मुड़ती ही है कि शक्ति के अगले शब्द सुनकर जैसे अचानक ध्रुवी के पैर अपनी ही जगह जम से जाते हैं और वह झट से शॉक्ड और हैरानी भरे भाव से वापस से शक्ति की ओर पलटती है।
“बेशक तू म्हारे ने ना जाणे से…लेकिण अपणे आर्यण को तो अच्छे से जाणती से ना…और पहचाणती भी से…और आज शादी थी ना थारी उसके साथ…लेकिण अफ़सोस शादी में दूल्हा ही गायब हो गया…मतलब इतनी बड़ी ट्रेजडी आज तक किसी के साथ ना हुई होवेगी…ख़ैर जो भी हुआ ईश्वर की मर्ज़ी से…पर थारे को इस ट्रेज्डी की वजह पता से??… (ध्रुवी के चेहरे पर असमंजसता के भाव देखकर एक पल बाद)…नहीं पता??…पर म्हारे को थारे साथ हुई इस ट्रेज्डी और थारे आर्यन, दोनों की पूरी की पूरी ख़बर से!!”
“आर्यन??…आप कैसे जानते हैं आर्यन को…और हमारी शादी के बारे में भी??… (एक पल रुक कर)…और आखिर कहाँ है आर्यन???”
“म्हारे ने सिर्फ़ थारे आर्यन और थारी शादी की ही ख़बर ना से…बल्कि म्हारे ने थारी पूरी जन्म कुंडली की ख़बर से…थारी ज़िंदगी के बारे में इतनी जानकारी खुद थारे को ना होवेगी…जितनी के म्हारे ने जानकारी से!!”
“आखिर हो कौन तुम??…और मेरा आर्यन…आर्यन कहाँ है???”
“हाँ आर्यन…थारा आर्यन…थारे ने बिल्कुल भी फ़िक्र करने की ज़रूरत ना से…बिल्कुल बेफ़िक्र रह…थारा आर्यन म्हारे पास बिल्कुल सही-सलामत से…घबराने वाली कोई बात ना से…(धमकी भरे भाव से)…मगर उसकी सलामती तब तक ही सही-सलामत से…जब तक कि तुम कोई होशियारी ना करके…सीधे तरीके से हमारे कहे अनुसार चलोगी…!!”
“क्या बकवास है ये…और हो कौन तुम लोग??…लगता है तुम लोग यहाँ सीधा पागलखाने से छूटकर आए हो…जो कुछ भी अंट-शंट बकवास किए जा रहे हो!!”
“पागल कौन से…और कौन होवेगा…ये तो वक़्त ही बतावेगा छोरी!!”
“क्या बकवास लगा रखी है कब से…आखिर हो कौन तुम…और…और मैं क्यों बेकार में तुम्हारी फ़िजूल बकवास पर यकीन करूँ…कि तुम जो कुछ भी कह रहे हो…वो सही कह रहे हो…ये भी तो पॉसिबल है ना…कि आर्यन के नाम पर तुम मुझे अपने जाल में फँसाने की कोशिश कर रहे हो…और आखिर मैं कैसे…और क्यों मानूँ कि मेरा आर्यन तुम्हारे पास है???”
शक्ति ने ध्रुवी की बात सुनकर कोई जवाब नहीं दिया। बस वह एक तिरछी मुस्कान से मुस्कुराया और बिना कुछ बोले अपने फ़ोन में एक लाइव वीडियो चलाकर ध्रुवी की ओर अपना फ़ोन बढ़ा दिया। ध्रुवी ने एक पल को असमंजस से शक्ति की ओर देखा और फिर उसने अगले ही पल शक्ति के हाथ से उसका फ़ोन ले लिया, जिसमें एक वीडियो चल रही थी। और ध्रुवी ने जब वह वीडियो देखी, तो अगले ही पल घबराहट और शॉक्ड से उसके हाथ काँपने लगे और उसके काँपते होंठ और लड़खड़ाती जुबान से बड़ी ही मुश्किल से सिर्फ़ एक ही लफ़्ज़ निकल पाया—"आर्यन"!!
उस वीडियो में ध्रुवी ने आर्यन को देखा, जिसे देखकर उसके होश ही पूरी तरह उड़ गए थे और उसके चेहरे का रंग ही पूरी तरह फ़ीका पड़ गया था। उस लाइव वीडियो में ध्रुवी ने देखा कि उस वीडियो में आर्यन की आँखें बंद थीं और शायद उसे जानबूझकर बेहोश किया गया था। और आर्यन को उसी बेहोशी की हालत में ही कुर्सी पर बिठाया हुआ था और उसके हाथ-पैरों को मज़बूती के साथ एक मोटी रस्सी से बाँधे हुए था। आर्यन की हालत देखकर ही समझ आ रहा था कि वह बिल्कुल भी ठीक नहीं है और उसे इस हालत में देखकर ध्रुवी के चेहरे पर डर और घबराहट के भाव के साथ ही बेतहाशा चिंता की लकीरें भी खिंच आई थीं और ये सारे भाव उसके चेहरे पर साफ़-साफ़ नज़र आ रहे थे। ध्रुवी का दिल जोरों से धड़क रहा था और उसके हाथ-पैर डर और घबराहट से काँप रहे थे और आर्यन को दर्द में देखकर ध्रुवी की आँखें नम हो चली थीं। और आखिर में जैसे ही वीडियो ख़त्म हुई, शक्ति ने फ़ौरन ही ध्रुवी के हाथ से वापस अपना फ़ोन छीन लिया और टशन से उसे अपनी जेब में रखते हुए ध्रुवी के इमोशनल स्टेट को बिल्कुल नज़रअंदाज़ करते हुए उसकी ओर लापरवाही भरे भाव से देखा।
“उम्म्म…म्हारे ने ना लगता से…कि अब हमने थारे को इससे ज़्यादा कोई भी सबूत दिखाने की कोई ज़रूरत से…तो अब बेकार में हमारा और अपना वक़्त और बर्बाद किए बिना…चुपचाप हमारी बात मान लो।”
“बकवास बंद करो अपनी…और सीधे तरीके से मुझे बताओ…कि कौन हो तुम लोग और असल में चाहते क्या हो मुझसे??…और मेरा आर्यन कहाँ है…वरना मैं सीधा पुलिस स्टेशन जाकर तुम्हारी कंप्लेंट कर दूँगी और…”
“कमिश्नर…डीआईजी…एसीपी…या चीफ़ मिनिस्टर तक सबके नंबर से म्हारे पास…(अपना फ़ोन वापस से ध्रुवी को दिखाते हुए)…बताओ किसको कॉल करूँ??… (एक पल रुक कर सोचने का नाटक करते हुए)…एक काम करते से…पहले तुम अपनी सारी तसल्लीया पूरी कर लियो…फिर हम आगे बात करते से…(धमकी भरे लहजे से)…हाँ लेकिन इस बीच तुम्हारे आशिक के साथ जो भी होवेगा…उसके ज़िम्मेदार हम बिल्कुल भी ना होंगे…बल्कि तुम खुद होगी।”
“न…नहीं…नहीं…प्लीज…मेरे आर्यन को कुछ मत कीजिएगा…आप जो भी कहेंगे…मैं आपकी बात मानने के लिए तैयार हूँ…लेकिन प्लीज मेरे आर्यन को कुछ मत करिएगा…आप बताएँ आप लोगों को कितने पैसे चाहिए…मैं कुछ भी करके लाकर दूँगी…आपको वो पैसे…बस बताएँ मुझे???”
“हम्मम अब की ना थोड़ी समझदारी की बात…मगर थारे से किसने कहा की हम लोगों ने पैसों के लिए ये सब किया से??”
“तो फिर??”
“सब समझ आ जावेगा थारे को…चलो बैठो गाड़ी में।”
“गा…गाड़ी में??”
“डोंट वरी…तू और थारी जान…दोनों हमारे लिए बहुत कीमती से…इसीलिए हम चाहकर भी थारे ने किसी भी तरीके का कोई भी नुकसान नहीं पहुँचा सकते…और वैसे भी थारे बाप का पहुँच और नाम इतना से…कि थारे गायब होते ही…पूरे शहर क्या…बल्कि पूरे देश में हलचल मच जावेगी…और हम इतने भी बेवकूफ़ ना से…जो खुद को खुद ही मुश्किल में डाल लेंगे…थारे ने इस गाड़ी में बिठाने का हमारा मक़सद सिर्फ़ इतना से…कि हम तुम्हें साफ़ तौर पर अपने मक़सद को बता पाएँ…कि आखिर हमें थारे से क्या गर्ज से…और हम थारे से असल में चाहते क्या से!!”
ध्रुवी के मन में चाहे इस वक़्त हज़ारों सवाल और दुविधाएँ थीं, लेकिन वक़्त और हालात की इस घड़ी यह नज़ाकत थी कि वह चाहकर भी अपने सवाल या दुविधाओं को हल नहीं कर सकती थी। इसलिए वह अपने सारे ख़यालों और सवालों को झटककर, बिना कुछ आगे बोले या सवाल किए, चुपचाप शक्ति और उसके लोगों के साथ उस गाड़ी में बैठ गई। हालाँकि जिस गाड़ी में ध्रुवी बैठी थी, वह कोई आम या सस्ती गाड़ी नहीं थी, वह काफ़ी महँगी और कीमती गाड़ी थी। उस गाड़ी में ड्राइवर और शक्ति आगे बैठे थे और पीछे सिवाय ध्रुवी के गाड़ी में और कोई भी नहीं था। ध्रुवी के गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी और उनके पीछे खड़ी 1-2 गाड़ी और उनके साथ चल पड़ीं, जिसमें काली पोशाक पहने गार्ड्स थे। ध्रुवी गाड़ी में बैठी, अपनी गहरी सोच और ख़यालों में इतना गुम थी कि उसे उसे पता ही नहीं चला कि आखिर कब कुछ देर बाद गाड़ी रुक गई। शक्ति ने उसका ध्यान भंग करने के लिए उसे आवाज़ दी, तब आखिर में ध्रुवी की तंद्रा टूटी और उसने गाड़ी के शीशे से बाहर देखा, तो पाया कि अब उनकी गाड़ी एक बड़े से बंगले के बाहर खड़ी थी, जो दूर से ही बेहद ख़ूबसूरत और आकर्षक लग रहा था। ध्रुवी ने शक्ति की ओर एक नज़र देखा, तो शक्ति ने उसे अंदर चलने का इशारा किया।
ध्रुवी ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला और बिना कुछ कहे ख़ामोशी के साथ शक्ति के पीछे अंदर की ओर बढ़ गई। घर के मेन दरवाज़े पर पहुँचने के बाद शक्ति ने उसे अकेले ही अंदर जाने के लिए कहा। ध्रुवी को थोड़ा अटपटा लगा, लेकिन जैसा कि इस वक़्त वह किसी सवाल या कंडीशन को रखने की हालत में बिल्कुल भी नहीं थी, इसलिए वह ख़ामोशी अख्तियार करके चुपचाप अंदर की ओर बढ़ गई। यह घर बाहर से जितना बड़ा था, अंदर से भी उतना ही बड़ा और लग्ज़रियस नज़र आ रहा था और बेशक ध्रुवी अगर किसी आम सिचुएशन में यहाँ आती, तो यकीनन इस जगह की ख़ूबसूरती और आकर्षण को घंटों बैठकर निहारते हुए यहाँ से इकट्ठा की सैकड़ों यादों को अपने कैमरा में ज़रूर कैद करती। लेकिन इस वक़्त माहौल और सिचुएशन दोनों ही बिल्कुल अलग और गंभीर थे। ध्रुवी थोड़ी असहजता के साथ चारों ओर देखते हुए जैसे ही हॉल के बीचों-बीच अंदर आई कि उसकी नज़र खिड़की के पास खड़े बाहर देखते एक शख्स पर पड़ी, जिसकी पीठ ध्रुवी की ओर थी। ध्रुवी ने दूर से ही उस शख्स का चेहरा देखने की कोशिश की, लेकिन वह उसका चेहरा नहीं देख पाई। तभी उस शख्स की आवाज़ ध्रुवी के कानों में पड़ी और वह शख्स ध्रुवी की दिशा में पीछे की ओर पलटा।
“आइए…आइए ध्रुवी…हम आपका ही इंतज़ार कर रहे थे।”
“कौन हो तुम???”
“अर्जुन…अर्जुन राणावत।”
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