​​मीरा और निकिता नीचे पार्किंग में आ गईं, तो उन्होंने देखा कि नताशा वहाँ पहले से ही थी। इतना ही नहीं, वह निकिता की कार से टिककर खड़ी थी, अपने चेहरे पर उसकी हमेशा वाली वैम्प स्माइल के साथ। मीरा का चेहरा रो-रोकर सूज चुका था और आँखें लाल हो चुकी थीं। नताशा को देखते ही उसने अपना चेहरा नीचे झुका लिया। वह नहीं चाहती थी कि नताशा उसे ऐसे रोते हुए, कमजोर हालत में देख ले। निकिता ने भी नताशा को नजरअंदाज करना बेहतर समझा और वह कार का दरवाज़ा खोलने के लिए कार के पास गई। लेकिन दरवाज़ा खोलती कैसे? नताशा वहीं खड़ी थी। निकिता ने नताशा की ओर बिना देखे ही कहा। ​

 

​​निकिता: ​

इक्स्क्यूज़ मी !

 

 

​​नताशा : ​

इक्स्क्यूज़्ड 

 

फिर भी वह जहाँ खड़ी थी, वहाँ से हटी नहीं। नताशा के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थी। ​

 

​​नताशा: ​

​​बात भी नहीं करोगी अपनी मेहमान से? ​

 

​​निकिता: ​

​​बिना बुलाए मेहमान से मैं बात नहीं करती। अभी प्लीज़... हटोगी दरवाजे के सामने से? हमें निकलना है। ​

 

​​नताशा: ​

​​ओह! हाय मीरा! ​

 

 

​​नताशा ने निकिता की बात को नजरअंदाज करते हुए मीरा से कहा। लेकिन मीरा ने न उसकी बात का कोई जवाब दिया, न उसकी ओर देखा। ​

 

​​निकिता: ​

​​नताशा, हटो दरवाजे के सामने से। हमें लेट हो रहा है। ​

 

​​नताशा: ​

​​क्या हुआ मीरा? अरे? तुम तो रो रही हो? क्या हुआ? रोहन ने फिर से कुछ कर दिया क्या? ​

 

 

​​अब निकिता को गुस्सा आने लगा था। उसने गुस्से से नताशा की तरफ़ उंगली दिखाते हुए कहा। ​

 

​​निकिता: ​

​​देखो! बस हुआ तुम्हारा नाटक। तुममें अगर थोड़ी-सी भी सेल्फ रिस्पेक्ट बची है न, तो जाओ यहाँ से। बेशर्मों की तरह बिना बुलाए किसी की पार्टी में आ जाना ठीक बात नहीं है। ​

 

​​नताशा: ​

​​मैं मीरा से बात करने की कोशिश कर रही हूँ। तुम क्यों बीच में अपनी टांग अड़ा रही हो, निकिता द बेस्ट फ्रेंड? ​

 

​​निकिता: ​

​​मैं न चाहते हुए भी तुमसे बात कर रही हूँ, क्योंकि तुम मेरी कार के सामने जबरदस्ती खड़ी हो। हट जाओ वरना मुझे तुम्हारा हाथ पकड़कर यहाँ से हटाना पड़ेगा। ​

 

 

​​नताशा ने मुस्कुराते हुए हाथ ऊपर हवा में उठाए और वह धीरे से कार के दरवाजे के सामने से हट गई। निकिता ने मीरा को जल्दी से कार में बिठाया और वह ख़ुद भी बैठ गई। निकिता ने कार स्टार्ट की और नताशा को नजरअंदाज करते हुए वहाँ से निकल गई। नताशा यह सब आराम से, चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान के साथ देखती रही। वह जिस मकसद से आज इस पार्टी में आई थी, वह उसका मकसद पूरा हो गया था। अब वह चैन से पार्टी हॉल में वापस जाकर अपनी ड्रिंक्स एंजॉय कर सकती थी। ​

 

 

​​वहाँ घर जाते वक़्त कार में मीरा शांत बैठी हुई थी। ऐसे तो वह बातें करते नहीं थकती थी, पर आज वह शांति से बस सामने ही देखे जा रही थी। ​

 

 

​​निकिता: ​

​​मीरा... आई एम सो सॉरी। ये सब मेरा प्लान था। पार्टी अरेंज करना, राजन की मदद से रोहन को पार्टी में ले आना। दरअसल हमें लग रहा था कि तुम दोनों को फिर से एक-दूसरे को एक मौका देने की ज़रूरत है, सब ख़त्म करने से पहले। इसलिए यह सब... लेकिन आज जो कुछ भी हुआ, वह सब देखने के बाद, मैं उसी बात का सपोर्ट करूंगी जो तुम चाहती हो। ​

 

 

​​मीरा: ​

​​नहीं, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। तुम तो बस मेरा अच्छा ही चाहती हो। गलती तो उस रोहन की है, जिसने कभी हमारे रिश्ते की क़दर नहीं की। उसने हमारी शादी और प्यार को ग्रांटेड लिया। हमारे रिश्ते से ज़्यादा उसने उस नताशा को इंपॉर्टेंस दी। मैं यह बात कैसे भूल सकती हूँ कि उसने हमेशा मेरे बजाय उस नताशा की बातों पर भरोसा किया है। अच्छा हुआ जो आज की पार्टी में नताशा आ गई। उसके आने से मुझे वह सारे जख्म, सारे दर्द याद आ गए, जो रोहन ने मेरे दिल को दिए हैं। तुम फ़िक्र मत करो, मैं ठीक हूँ। अब मुझे अच्छे से पता है कि मुझे अब क्या करना है।

 

 

​​कोर्ट की डेट नज़दीक आ रही थी। पार्टी के बाद से रोहन और मीरा दोनों ही शांत थे लेकिन उनके आसपास के लोग अंदाजा लगा पा रहे थे कि उन दोनों के मन में ज़रूर कुछ न कुछ खिचड़ी पक रही थी। ​

 

 

​​एक रात मीरा के मम्मी-पापा ने उसे अपने यहाँ डिनर के लिए बुलाया था। उसके मम्मी-पापा उससे उसके डिवोर्स के बारे में बात करना चाह रहे थे, लेकिन वे मीरा के गुस्से से भी वाक़िफ़ थे। फिर भी खाना खाते वक़्त हिम्मत करके उसकी मम्मी ने उसके सामने डिवोर्स का टॉपिक निकाल ही लिया। ​

 

​​मम्मी: ​

​​बेटा, जॉब-वगैरह कैसी चल रही है? ​

 

​​मीरा: ​

​​अच्छे से चल रही है मम्मी। अगले महीने मेरा प्रमोशन भी है। ​

 

​​मम्मी: ​

​​बाक़ी सब ठीक है? अकेले-अकेले बोर नहीं होती? ​

 

​​मीरा: ​

​​मम्मी, साफ-साफ कहिए न, क्या कहना चाह रही हैं आप? ​

 

​​मम्मी: ​

​​मैं कहाँ कुछ कहना चाह रही हूँ? मेरा बस इतना कहना था कि अकेले ज़िन्दगी नहीं गुजरती और अब इतना वक़्त नहीं है कि किसी नए इंसान को हम चांस दे सकें। तो जो रिश्ता है, उसे ही सुधारकर नई शुरुआत क्यों नहीं कर सकते तुम दोनों? ​

 

​​मीरा: ​

​​सीरियसली मम्मी? इतना सब कुछ अपनी आँखों के सामने देखकर भी आप आज यह कह रही हैं? नई शुरुआत करने के लिए भी, दो लोगों के बीच में एक-दूसरे के ऊपर फिर से विश्वास कर पाने की ताकत होनी चाहिए, जो न मुझमें है और न आई गेस रोहन में है और मैं दोबारा उन्हीं सारे सदमों से नहीं गुजरना चाहती।

 

​​पापा: ​

​​…लेकिन बेटा। हमारा बस यह कहना है कि एक बार फिर से ट्राई करने में क्या हरज है? ​

 

​​मीरा: ​

​​पापा, मम्मी, अगर आप लोग यह सारी बातें करने के लिए मुझे यहाँ डिनर का बहाना देकर बुलाते हैं तो अगली बार से मैं यहाँ नहीं आऊंगी। मुझे लाइफ में अब बस शांति और सुकून चाहिए, रोहन नहीं। वह इकलौता कारण है जिसकी वज़ह से मेरी ज़िन्दगी उथल-पुथल हो चुकी है। मैं वापस उसी खाई में नहीं गिरना चाहती और मैं एक्सपेक्ट करती हूँ कि आप दोनों भी इसके बाद आगे कभी यह टॉपिक नहीं दोहराएँगे। ​

 

 

​​मीरा आधा खाना छोड़कर ही उठ गई। ​

​​रोहन के घर पर भी यही हालत थी। पहले तो उसके मम्मी-पापा इन दोनों की शादी से सहमत नहीं थे। लेकिन अब जब शादी हो चुकी थी, तो वे नहीं चाहते थे कि यह शादी टूट जाए। उन्हें समाज क्या कहेगा, इस बात का ज़्यादा डर था। इसलिए, रोहन ने उनके घर आना-जाना ही बंद कर दिया था। वह उन्हें जवाब देते-देते अब थक चुका था। ​

 

 

​​कोर्ट हियरिंग से एक दिन पहले एडवोकेट अर्जुन जी ने रोहन और मीरा को अपने ऑफिस मीटिंग के लिए बुलाया था। रोहन उस दिन थोड़ा लेट हो गया था। वह ऑफिस पहुँचा तो उसने देखा कि मीरा पहले से ही वहाँ पहुँच चुकी थी। पार्टी वाली रात के बाद से आज ही वे एक-दूसरे से मिल रहे थे। ​

​​रोहन आकर मीरा की बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया। उसने आँखों के किनारे से मीरा की ओर देखा। मीरा सामने देख रही थी और रोहन की तरफ़ देखना जितना हो सके उतना अवॉयड कर रही थी। ​

 

 

​​अर्जुन जी अभी तक अंदर नहीं आए थे। रोहन को प्यास लगी थी। टेबल पर सामने पानी का गिलास रखा हुआ था। वह उठाने के लिए रोहन ने हाथ आगे किया तभी मीरा ने भी हाथ आगे किया और फिर वह रुक गई। ​

 

​​मीरा-​

​​"तुम ले लो, मैंने पहले ही पी लिया है।" ​

 

​​रोहन-​

​​"थैंक्यू! मुझे असल में बहुत प्यास लगी है।" ​

 

​​यह कहकर रोहन पानी पीने लगा। ​

 

​​मीरा-​

​​"क्यों? नताशा ने तुम्हें आज पानी पिलाकर नहीं भेजा?" ​

 

 

​​मीरा की बात से रोहन के गले में ही पानी अटक गया और वह खांसने लगा। ​

​​तभी अर्जुन जी अंदर आ गए और अपने हमेशा वाले अंदाज़ में अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। आते ही उनका हंसना शुरू हो गया। ​

 

​​अर्जुन-​

​​"तो भई बताइए, कैसे हैं आप दोनों? झगड़े-वगैरा अच्छे से तो चल रहे हैं न?" ​

 

​​अर्जुन जी की बात सुनकर रोहन और मीरा कुछ समझ नहीं पाए। ​

 

​​अर्जुन -​

​​ "अरे भई मज़ाक कर रहा हूँ। डिवोर्स लॉयर हूँ, हाल-चाल थोड़ी पूछूंगा? आप झगड़ेंगे तभी तो मेरा धंधा-पानी चलेगा।" ​

 

 

​​अर्जुन जी अपने ही जोक पर ठहाके लगाकर हंसने लगे। उनके साथ-साथ ऐडवोकेट अदिति भी न चाहते हुए हंसने लगीं। ​

 

​​अर्जुन-​

​​"तो फिर कल आपकी कोर्ट हियरिंग है। कल सब फाइनलाइज़ हो जाएगा ऐसा मानकर चलते हैं। वैसे, म्यूचुअल डिवोर्स का निर्णय लेकर आप दोनों ने बहुत अच्छा किया है। वरना मैं आपको बता रहा हूँ, यहाँ बहुत सारे ऐसे भी लोग आते हैं, जो सालों-साल लड़ते रहते हैं। न डिवोर्स लेते हैं न साथ आते हैं। बस पैसे और वक़्त की बर्बादी।" ​

 

 

​​रोहन मुस्कुराकर अर्जुन जी की बातों पर सिर हिला रहा था। लेकिन मीरा शांत थी। अर्जुन जी की पूरी बात ख़त्म होने पर उसने कहा: ​

 

​​मीरा-​

​​ "अर्जुन जी, असल में... मैं म्यूचुअल डिवोर्स नहीं लेना चाहती, और... ना ही मैं लगाए गए केस वापस लेना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरी जो डिमांड्स हैं वह बिल्कुल सही हैं और मैं कोर्ट में लड़ने के लिए तैयार हूँ।"

 

 

​​मीरा की यह बात अर्जुन और रोहन दोनों के लिए बहुत शॉकिंग थी। रोहन के मुंह से तो कुछ वक़्त के लिए कोई शब्द ही बाहर नहीं निकल पाया। ​

 

 

​​अर्जुन -​

​​"देखिए, मिसेज कपूर, आपको मैंने सब कुछ उस दिन भी समझाया था। फायदा-नुकसान सब कुछ। फिर भी क्यों आपको इस कोर्ट-कचहरी की झंझट में पड़ना है? आपको आपकी ज़िन्दगी शांति से जीनी नहीं है क्या? ख़त्म करिए अभी यह लड़ाई।" ​

 

​​मीरा-​

​​ "आपकी बात मैं समझती हूँ और आपकी बात बिल्कुल सही भी है। लेकिन सिर्फ़ झगड़ा ख़त्म करने के लिए मैं अपना हक़ भूल जाऊँ? मैंने इतना वक़्त दिया है इस शादी में, अपना हक, अपना ज़मीर, मैं ऐसे ही कैसे छोड़ दूं? जो मेरे हक़ का है, वह तो मैं लेकर ही रहूंगी।" ​

 

​​रोहन इतनी देर से शांत था। लेकिन अब उसने भी मीरा से कहा: ​

 

​​रोहन-​

​​"मीरा, लेकिन... हमारा पहले ही तय हो चुका था ना कि म्यूचुअल डिवोर्स ले लेंगे। तो फिर अभी अचानक तुम्हारा मन क्यों बदल गया?" ​

 

 

​​मीरा ने रोहन को जवाब नहीं दिया। बस उसे एक नज़र देखकर वह वापस अर्जुन जी से बात करने लगी। ​

 

​​मीरा-​

​​"अर्जुन जी, मुझे म्यूचुअल डिवोर्स नहीं चाहिए। आगे की जो प्रोसीडिंग्स हैं वह प्लीज बताइए, क्या हैं और कैसे करना है?" ​

 

​​अर्जुन-​

​​"मेरा इसमें कोई नुक़सान नहीं है, बल्कि फायदा ही है। मैं तो आपके फायदे के लिए कह रहा था। खैर... मिस्टर कपूर, आपको कुछ कहना है, इससे पहले मैं आगे की प्रक्रिया देखूं?" ​

 

​​रोहन ने फिर मीरा की ओर मुड़कर देखा। लेकिन मीरा उसकी तरफ़ देख तक नहीं रही थी। ​

 

​​रोहन-​

​​"मीरा, मैं समझ रहा हूँ कि उस पार्टी वाली रात के बाद तुमने अपना फ़ैसला बदला है लेकिन तुम्हें भी अच्छे से पता है उस रात मेरी कोई गलती नहीं थी। जो हुआ सो हो गया है। ख़त्म करते हैं, क्यों लड़ना है?" ​

 

 

​​मीरा ने अभी भी रोहन की तरफ़ नहीं देखा, ना उसकी बातों का कोई जवाब दिया। यह देखकर रोहन बहुत बेचैन हो गया। वह बिल्कुल भी तैयार नहीं था, मीरा के इस व्यवहार परिवर्तन के लिए। वह कोर्ट में नहीं लड़ना चाहता था। उसे बस जल्द से जल्द यह किस्सा ख़त्म करना था। ​
 

​​उसे पता था कि अब मीरा ने ठान ली है तो वह किसी की नहीं सुनेगी और अब आगे कोर्ट के चक्कर काटने के नाम से ही रोहन अभी से परेशान हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके सिर पर किसी ने ज़ोर से वार कर दिया हो। ​

 

​​अब जो भी केस मीरा ने रोहन पर लगाए थे, उन सब के बारे में अर्जुन जी को उन दोनों से डिस्कस करना था। वह वापस उनकी फाइल पढ़ने में लग गए। ​

 

​​क्या अब मीरा की तरह रोहन भी मीरा से बदला लेना चाहेगा? ​

​​क्या सच में उनका यह डिवोर्स केस लंबा चलने वाला था? ​

​​क्या मीरा आगे चलकर फिर से अपना फ़ैसला बदलेगी? ​

 

​​जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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