एक साल पहले:
मीरा घर छोड़कर अपने मम्मी-पापा के घर रहने चली गई थी। मीरा के कहने पर मीरा की मम्मी ने रोहन से कह तो दिया था कि वह अब मीरा को न तो कॉल करे और न ही उससे मिलने की कोशिश करे, लेकिन असल में, वह लोग नहीं चाहते थे कि मीरा इस तरह से घर छोड़कर मायके आकर रहे। वह लोग चाहते थे कि मीरा और रोहन, उनके बीच जो भी झगड़े और अनबन हैं, वह सुलझाकर साथ आएँ और आगे बढ़ें। लेकिन ज़ाहिर-सी बात थी, इतना सब कुछ होने के बाद, मीरा अब रोहन के पास ऐसे ही वापस नहीं जाने वाली थी।
मीरा एक सॉफ्टवेयर कंपनी में ग्राफिक डिज़ाइनर थी। लेकिन उसने ऑफिस से हफ़्ते भर की छुट्टी ले ली थी। क्योंकि उसकी मानसिक स्थिति इस वक़्त बिल्कुल भी ऐसी नहीं थी कि वह ऑफिस जाकर काम कर सके या लोगों का सामना कर सके। सुबह से लेकर रात तक वह अपने कमरे में पड़ी रहती थी। न खाना खाने नीचे आ रही थी, न किसी से बात कर रही थी। उसके मम्मी-पापा उसे मनाकर थक चुके थे। फिर हार मानकर उन्होंने भी अपनी ज़िद छोड़ दी और मीरा का खाना भी उसके कमरे में ही जाने लगा। मीरा खाना भी ठीक से नहीं खा रही थी। उसकी मम्मी उसके सामने बैठकर ज़बरदस्ती उसे थोड़ा-बहुत खाना खिलाती थीं।
मीरा-
बस हो गया मम्मी। नहीं खाना मुझे अब। पेट भर गया है मेरा।
मम्मी-
आधी रोटी तक नहीं खाई है तुमने और थोड़ा खा लो चलो।
मीरा की मम्मी अपने हाथ से उसे खिलाने लगीं और मीरा अचानक से रोने लगी। मम्मी ने थाली साइड में रखी और झट से मीरा को गले लगा लिया।
मम्मी-
क्या हुआ मेरा बच्चा? क्यों इतनी तकलीफ ले रही है तू? मत रो, सब ठीक हो जाएगा।
मीरा -
कैसे होगा सब ठीक? मुझे रोहन चाहिए मम्मी। क्या उसे याद भी नहीं आ रही मेरी? कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा उसे?
मम्मी-
वह भी गुस्से में होगा, हर्ट होगा। तू कर ले ना उसको एक कॉल। या मुझे करने दे, मैं बात करूंगी उससे। ऐसे कैसे नहीं बात करेगा वह तुझसे?
मीरा-
नहीं मम्मी, आप नहीं करेंगी उससे कोई बात।
मम्मी-
अरे बेटा किसी को तो बात करनी पड़ेगी ना। ऐसे कैसे होगा कुछ भी ठीक?
मीरा-
उसकी गलती है मम्मी। सब ठीक करना होगा तो वही आकर ठीक करेगा। मैं नहीं जाऊंगी उसके पास।
मीरा की हालत और खराब होती जा रही थी। उसका वज़न घट रहा था। उसकी ये हालत देखकर मीरा की मम्मी बहुत परेशान हो गईं। इसलिए उन्होंने निकिता की मदद ली। निकिता रोज़ ऑफिस के बाद मीरा के साथ आकर रुकती थी। निकिता के होने से कम से कम मीरा बोल-चाल कर रही थी और थोड़ा-बहुत खा भी लेती थी।
इस दौरान निकिता ने भी मीरा को समझाने की कोशिश की कि वह रोहन से बात करके सुलह कर ले लेकिन मीरा इस बुरी हालत में भी ज़िद पर अड़ी हुई थी कि वह रोहन से ख़ुद बात नहीं करेगी।
एक हफ्ता यूं ही गुजर गया। मीरा को वापस ऑफिस जॉइन करना पड़ा। अब उसकी हालत और भी बदतर हो गई। रोहन से अलग होने का दर्द और ऑफिस के काम का बोझ, ये दोनों ही चीज़ें मीरा एक साथ नहीं झेल पा रही थी। मीरा के मम्मी-पापा और निकिता को लगा था कि ऑफिस जाकर काम फिर से शुरू करने से शायद मीरा का मन बहल जाएगा, लेकिन इसका बिल्कुल उल्टा हो रहा था। मीरा की तबीयत पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा था। मीरा के मम्मी-पापा ने उसे कुछ दिन नौकरी छोड़कर थेरेपी लेने की सलाह भी दी, लेकिन मीरा ने उनकी यह बात नहीं मानी।
इन सब समय में, निकिता जितना हो सकता था उतना समय मीरा को दे रही थी। वह उसे बाहर घुमाने ले जाती थी। रात को भी रोज़ उसके घर जाकर रुकती थी, या उसे अपने घर ले जाती थी। ऐसे में ही एक दिन अचानक, मीरा ने हीरेन की बात निकिता के सामने छेड़ दी।
मीरा-
मुझे हीरेन से बात करनी है। मेरी बेचैनी अब उसी से बात करके शांत होगी।
निकिता-
मीरा यह कोई समाधान नहीं है। हीरेन का चैप्टर अब बंद हो चुका है और ऐसे अब तुम उस पर निर्भर नहीं रह सकती।
मीरा-
बस एक बार मुझे उससे बात करनी है, उसकी आवाज़ सुननी है और मुझे पता है, वह मेरा फ़ोन नहीं उठाएगा।
निकिता-
हाँ तो क्यों उठाएगा? उसे भी तकलीफ़ होती है, तुमसे बात करके। उसे क्यों घसीटना चाहती हो तुम इस सब में। इसमें उसका कोई रोल नहीं है।
मीरा का यह मानना था कि हिरेन ने उसके साथ कभी ऐसा बर्ताव नहीं किया जैसा रोहन करते आ रहा था । उसके हिसाब से अभी उसे इस दर्द की खाई से सिर्फ़ हिरेन ही बाहर निकाल सकता था। लेकिन निकिता हीरेन को इस सब में नहीं घसीटना चाहती थी। वह इस बात के एकदम खिलाफ थी। क्योंकि उसने कुछ साल पहले मीरा और हिरेन का रिश्ता टूटते हुए देखा था और उस वक़्त मीरा के साथ-साथ उसने हिरेन की भी हालत देखी थी कि कितना मुश्किल था उसके लिए मीरा से अलग होना।
कुछ हालातों के चलते वे एक-दूसरे से अलग हुए थे, वरना आज वे दोनों साथ होते। मीरा को तो रोहन मिल गया, लेकिन हिरेन आज भी मीरा के बगैर तकलीफ़ में था। वह आज भी मीरा के प्यार से बाहर नहीं आ पा रहा था और इसलिए जितना हो सके, वह मीरा से दूरी बनाए रखने की कोशिश करता था।
हिरेन बड़ी मुश्किल से मीरा से उभरने की कोशिश कर रहा था। फिर से उसे इन सब चीज़ों में बेवजह शामिल करना बिल्कुल सही नहीं था। लेकिन मीरा की हालत बहुत खराब हो रही थी और वह एक ही ज़िद पकड़ कर बैठी थी कि उसे हीरेन से बात करनी है। इसलिए न चाहते हुए भी निकिता ने हिरेन से संपर्क किया और उसे अब तक मीरा की ज़िंदगी में क्या-क्या तूफान आए और वह किस मुश्किलों से गुजर रही है, इस बारे में सब कुछ बताया।
हिरेन -
निकिता, इस सब से अब मेरा क्या लेना-देना? डिसीज़न उसके थे, सब कुछ उसने अपनी मर्ज़ी से किया था। माना कि मैं उसका साथ ज़िंदगी भर के लिए नहीं दे पाया लेकिन... उस वक़्त भी मैंने उसे समझाया था कि रोहन के साथ शादी करने का उसका फ़ैसला सही नहीं है। मीरा को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता। मुझे पता था कि आगे चलकर ये मुश्किलें आने वाली हैं। लेकिन अब आ गई हैं, तो उन मुश्किलों को उसे ख़ुद ही संभालना पड़ेगा। इसमें तुम और मैं कुछ भी नहीं कर सकते।
निकिता-
हाँ, मैं जानती हूँ कि इसमें हम उसकी कोई मदद नहीं कर सकते लेकिन उसके इस मुश्किल समय में, हम उसके साथ रहकर, उसका हौसला तो बनाए रख ही सकते हैं।
हिरेन -
कैसे?
निकिता-
तुम भी अच्छे से जानते हो। उसे ऐसे हालातों में बस तुम ही संभाल सकते हो। वह बस तुम्हारी ही बात सुनती है। प्लीज़... उससे एक बार बात कर लो। मैं कह रही हूँ, इसलिए।
हिरेन -
हमेशा मैं तुम्हारे कहने पर ही उससे बात करता हूँ। लेकिन हर बार मुझे ही तकलीफ़ होती है।
निकिता-
बस एक आखिरी बार हीरन। वह सच में बहुत तकलीफ़ से गुजर रही है। वरना तुम्हें भी पता है मैं तुम्हारे पास मदद माँगने नहीं आती। इससे अगर वह अभी नहीं उभर पाई, तो वह कभी नहीं उभर पाएगी।
हिरेन ने निकिता के कहने पर मीरा को फ़ोन किया। मीरा उसकी आवाज़ सुनकर फूट-फूटकर रोई। इतने दर्द में भी उसे हीरेन की आवाज़ सुनकर बहुत शांत लग रहा था। उसकी ऐंग्ज़ाइटी कम हो गई थी। लेकिन फिर भी उसका रोहन के लिए हो रहा दर्द ख़त्म नहीं हुआ था।
उसे अभी भी उम्मीद थी कि रोहन वापस आएगा, उसे मनाएगा, वापस घर ले जाएगा और सब ठीक हो जाएगा, फिर एक बार और इसी लिए उसने हीरेन का फ़ोन नंबर अपने फ़ोन में 'आनंद मेहता' के नाम से सेव कर लिया। ताकि कभी रोहन उसके फ़ोन में देख ले, तो उसे पता न चले कि वह हीरेन से बात कर रही थी। वह हीरेन से बात करने के तुरंत बाद उसके कॉल्स और मैसेज डिलीट कर देती थी। हीरेन उसे समझता था, शांत करता था, मीरा भी रोती थी, मगर हीरेन के समझाने से शांत भी हो जाती थी।
एक दिन अचानक मीरा को रोहन का कॉल आने लगा और उस वक़्त वह हीरेन से ही कॉल पर बात कर रही थी, इन फैक्ट, बेचैन थी और बहुत रो रही थी। रोहन का कॉल वेटिंग पर देखकर वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसने हीरेन को भी यह बात बताई। लेकिन हीरेन ने उसे मना किया कि वह अब रोहन का कॉल न उठाए और उससे जितना हो सके उतना दूर रहे क्योंकि हीरेन जानता था, रोहन वापस वही सारी गलतियाँ दोहराएगा और मीरा वापस उन्हीं सारे दर्द और तकलीफ़ों से गुज़रेगी।
मीरा ने हिरेन का कॉल रख दिया। लेकिन रोहन उसे बार-बार कॉल कर रहा था। मीरा ने कॉल नहीं उठाए तो वह उसे मैसेज करने लगा, कहने लगा कि वह सब कुछ ठीक करना चाहता है और वह शर्मिंदा है। वह उससे माफ़ी माँगने लगा। मीरा इतने दिन से हीरेन और निकिता की मदद से, मूव ऑन करने की कोशिश कर रही थी। अपने मन को इस बात के लिए मज़बूत बना रही थी कि अगर कभी रोहन वापस आता है, तो वह उसकी बातों में नहीं पिघलेगी। लेकिन उसका यह बना-बनाया संयम मानो अब जैसे टूट रहा था।
रोहन के इतने सारे कॉल्स और मैसेज देखकर उसका मन ललचा रहा था, उससे बात करने के लिए। उसने अपने मन पर काबू करने के लिए फ़ोन को साइलेंट पर करके ख़ुद से दूर रख दिया। एक घंटे तक मीरा अपने कमरे के अंदर यहाँ से वहाँ चक्कर लगा रही थी, अपनी बढ़ती बेचैनी को शांत करने के लिए। लेकिन उसका पूरा ध्यान अपने फ़ोन पर ही लगा हुआ था।
तभी उसकी मम्मी ने उसके कमरे का दरवाज़ा ज़ोर से खटखटाया।
मीरा ने दरवाज़ा खोला।
मीरा:
"क्या हुआ मम्मी? इतनी ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाने की क्या ज़रूरत थी? एक बार आवाज़ देने से भी सुनाई देता है मुझे।"
मीरा पहले ही रोहन के कॉल्स और मैसेज से परेशान थी और उस पर मम्मी के इस तरह दरवाज़ा खटखटाने से वह और चिढ़ गई।
मम्मी:
"वो, बाहर... रोहन आया है।"
रोहन आया है ये सुनते ही मीरा की धड़कनें तेज हो गईं। उसे अचानक चक्कर आने लगे। उसमें इतनी ताकत भी नहीं बची थी कि वह इस वक़्त रोहन को सामने से फेस कर सके। उसे बिल्कुल भी नहीं लगा था कि रोहन सीधे उससे मिलने घर तक आ जाएगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस पल इस स्थिति से कैसे निपटे।
मीरा:
"मम्मी, उससे कह दो कि मैं घर पर नहीं हूँ। मुझे अभी उससे नहीं मिलना है। प्लीज..."
मम्मी:
"उसने तुम्हारी गाड़ी बाहर खड़ी देख ली है और जो भी हो, उसे पता है कि तुम घर के अंदर हो और मेरा कहना है कि एक बार तुम उससे बात कर ही क्यों नहीं लेती। जो भी है, नहीं है, उससे बात करो और सुलझा लो।"
मीरा:
"क्या और कैसे सुलझाएँ मम्मी?"
मम्मी:
"मुझे नहीं पता। बस ये रोज-रोज की तकलीफ और रोना-धोना बहुत हुआ। ख़त्म भी करना है तो उससे एक बार मिलकर ख़त्म कर। यहाँ कमरे में छिपकर कुछ नहीं होने वाला।"
मीरा ने एक लंबी सांस ली, अपने मन में हिम्मत जुटाई कि अब उसे रोहन को फेस करना ही पड़ेगा। फिर उसने कहा,
मीरा:
"ठीक है। उससे कहिए मैं 10 मिनट में नीचे आ रही हूँ।"
मम्मी के जाते ही उसने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और अपना फ़ोन हाथ में लिया। रोहन के बहुत सारे मिस्ड कॉल्स और मैसेज आए हुए थे। एक मैसेज में उसने लिखा भी था कि वह उसके घर आ रहा है।
मम्मी के जाते ही उसने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और अपना फ़ोन हाथ में लिया। रोहन के बहुत सारे मिस्ड कॉल्स और मैसेज आए हुए थे। एक मैसेज में उसने लिखा भी था कि वह उसके घर आ रहा है।
मीरा ने फ़ोन को साइड में रखा। मन को मज़बूत करने की कोशिश की और वॉशरूम जाकर सबसे पहले उसने अपने चेहरे पर पानी छिड़का। रो-रोकर उसका चेहरा और आंखें लाल हो चुकी थीं और वह रोहन को ये सब नहीं दिखाना चाहती थी। वह उसके सामने बिल्कुल सख्त और मज़बूत पेश आना चाहती थी।
क्या रोहन के सामने वह सच में अपने आंसुओं का बाँध रोक पाएगी, या उसके सामने मज़बूत बनकर उसे वापस लौटा देगी?
जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड।
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