​​वर्तमान समय।  ​

​​उस दिन कोर्ट में मीरा ने रोहन पर लगाए केस वापस लेने से इनकार कर दिया था। म्युचुअल डिवोर्स के लिए भी मना कर दिया था। पार्टी में नताशा का आना और उसके भुलाए हुए ज़ख्म को फिर से ताज़ा करने का बदला वह कहीं न कहीं रोहन से लेना चाहती थी। ​

​​जब उसके मम्मी-पापा को पता चला कि वह कोर्ट में लड़ना चाहती है, तो उन्होंने उसके इस फैसले को साफ़-साफ़ ग़लत ठहरा दिया। ​

 

​​पापा-​

​​"हम आज तक तुम्हारी हर बात का साथ देते आए हैं। रोहन से तुम्हारी शादी हमें कभी मंज़ूर नहीं थी, लेकिन हमने उसमें भी तुम्हारा साथ दिया। फिर तुम दोनों ने मिलकर एक-दूसरे से डिवोर्स करने का फ़ैसला लिया, हमने उसमें भी कुछ नहीं कहा और तुम्हारा साथ दिया लेकिन अब ये कोर्ट-कचहरी के चक्कर कम करने के बजाय तुम उन्हें और बढ़ाना चाहती हो, चीज़ों को और कॉम्प्लिकेट करना चाहती हो? मैं इसमें बिल्कुल तुम्हारे साथ नहीं हूँ। तुम बस रोहन से बदला लेने के लिए अपना भी नुक़सान कर रही हो, ये याद रखना।" ​

 

​​मीरा-​

​​ "इसमें मेरा नुक़सान कैसे है पापा? आप ही ने तो हमेशा सिखाया कि अपने हक़ के लिए लड़ना चाहिए।" ​

 

​​पापा-​

​​ "हाँ, लेकिन यहाँ किस हक़ की बात कर रही हो तुम? उसका घर, उसकी प्रॉपर्टी, उसका पैसा–इस पर कौन-सा हक़ है तुम्हारा? ये तुम्हारा फ़ैसला बिल्कुल ग़लत है मीरा। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, केस वापस ले लो।" ​

 

​​मीरा-​

​​ "नहीं पापा। मुझे पता है मेरे लिए क्या सही है और क्या नहीं। मुझे पता है मैंने क्या ज़िल्लत सही है। उसकी भरपाई उन सबको करनी पड़ेगी, जो इसके ज़िम्मेदार हैं।"

 

 

​​मीरा बदले की आग में मानो अपनी सोचने की शक्ति खो चुकी थी और ये उसके पापा को साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था कि कैसे मीरा अपनी ज़िद पर अड़े रहने की वज़ह से अपना ही नुक़सान करने जा रही थी। ​

 

 

​​पापा से बहस होने के बाद मीरा गुस्से से फुसफुसाते हुए अपने घर चली आई। ​

​​घर आने के बाद वह पहले अपने कमरे में जाकर बैठी और उस दिन को याद करने लगी, जब रोहन से लड़ाई कर, उसे छोड़कर मीरा मायके रहने चली गई थी और रोहन उससे माफ़ी मांगते हुए वापस लेने आया था। तब चीज़ें कितनी अलग थीं। मीरा तब रोहन पर आया सारा गुस्सा उसे देखते ही एक पल में भूल जाती थी। ​

 

 

​​उसे उस दिन का फ़्लैशबैक आने लगा, जब रोहन नीचे बैठा हुआ था। नताशा की वज़ह से उन दोनों में लड़ाई होने के तक़रीबन एक महीने बाद वह उसे मनाने और घर वापस ले जाने मीरा के मायके आया था और मीरा के नीचे आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। मीरा के पापा और मम्मी भी उसके साथ नीचे रुके हुए थे। मीरा की मम्मी ने उसे पानी ऑफ़र किया, लेकिन वह इतना बेचैन था कि उसने गिलास हाथ में लेकर वैसे ही नीचे रख दिया। ​

 

​​कुछ देर बाद तीनों की नज़रें मीरा पर पड़ीं। मीरा नीचे आ रही थी। रोहन ने मीरा को देखा, लेकिन मीरा रोहन की ओर नहीं देख पा रही थी। रोहन ने मीरा का सूजा और लाल हुआ चेहरा देखा। वह समझ गया कि मीरा बुरी हालत में थी और आज भी रो रही होगी। ​

 

​​मीरा नीचे आई और रोहन उठकर खड़ा हो गया। अब किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहना क्या है! ​

 

​​मीरा के मम्मी-पापा उन दोनों को प्राइवेसी देने के इरादे से तुरंत वहाँ से चले गए। ​

 

​​उनके जाने के बाद रोहन मीरा के क़रीब आया लेकिन मीरा दो क़दम पीछे हट गई। ​

 

​​रोहन -​

​​ "मीरा..." ​

 

​​मीरा ने कोई जवाब नहीं दिया, न उसकी तरफ़ देखा। उसकी नज़रें पूरे वक़्त नीचे ज़मीन में ही गड़ी हुई थीं। ​

 

​​रोहन-​

​​"मीरा, आई यम सॉरी। .. प्लीज़... मुझे अपनी ग़लती समझ में आ चुकी है। मैं उसे सुधारना चाहता हूँ। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो।" ​

 

 

​​मीरा ने धीरे से नज़रें उठाकर रोहन की तरफ़ देखा और तब जाकर रोहन उसकी आँखें साफ़-साफ़ देख पाया। मीरा की आँखें लाल हो चुकी थीं और उनमें अभी भी आँसू झलक रहे थे, जो बाहर आने के लिए बेताब थे। ​

 

​​मीरा-​

​​"तुमने आने में बहुत देर कर दी है रोहन। अब बहुत वक़्त गुज़र चुका है। अब किसी भी बात का कोई फ़ायदा नहीं है।" ​

 

​​रोहन-​

​​ "ऐसा नहीं है। मैं भी हिम्मत जुटा रहा था। इतना सब कुछ हो गया था कि मैं ख़ुद समझ नहीं पा रहा था कि कैसे तुम्हारे पास वापस आऊँ, किस मुँह से तुमसे माफ़ी माँगूँ और किस-किस ग़लती के लिए? मुझे पहले अपने आप को संभालना पड़ा, उसमें काफ़ी वक़्त लग गया मीरा।" ​

 

 

​​मीरा बस अपनी गर्दन ना में हिला रही थी। वह रोहन की हर एक बात पर यक़ीन करना चाह रही थी, मगर नहीं कर पा रही थी। उस दिन के फ़्लैश अब भी उसे परेशान कर रहे थे कि कैसे उसने नताशा को उसके ऊपर रखा। उसे ज़्यादा इम्पॉर्टेंस दी। ​

 

​​मीरा-​

" तुम्हारी सारी ग़लतियाँ मैंने हमेशा माफ़ की हैं, हमेशा तुम्हारी ज़िद, तुम्हारी हर एक बात का ख़याल रखा है लेकिन ये ग़लती नहीं रोहन... तुम्हें अच्छे से पता था कि नताशा को मैं, हम दोनों की ज़िंदगी में किसी भी तरीके से नहीं चाहती थी। तुमने न सिर्फ़ उसको हमारे ज़िंदगी का हिस्सा बनाया बल्कि उसको हमारे रिश्ते से ऊपर का दर्जा दिया। मेरे दर्जे का क्या? बीवी हूँ मैं तुम्हारी। मेरा सम्मान, मेरी इज्ज़त, मेरा हक़, कहाँ है रोहन? ​

​​नहीं, अब कुछ नहीं हो सकता। माना मैं बहुत तकलीफ़ में हूँ, पर नहीं... मैं नहीं कर सकती माफ़ तुम्हें इस बार और ना ही मैं उस दिन की यादें अब कभी भुला पाऊँगी। मैं तो बल्कि याद रखना चाहती हूँ सब कुछ, ताकि मैं तुम्हारे झूठ और फ़रेब में फिर एक बार न फँस जाऊँ। " ​

 

 

​​इतना कहकर मीरा पलटी और भागते हुए सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे की तरफ़ निकल गई। रोहन उसे रोकना चाह रहा था लेकिन उस वक़्त उसके गले से उसकी आवाज़ तक नहीं निकल पाई। ​

 

 

​​वहाँ हीरेन को अब तक पता चल चुका था, मतलब उसने ये अंदाज़ा लगा लिया था कि रोहन आया है और उसने मीरा को मना भी लिया होगा लेकिन सच कुछ और था। रोहन मीरा को मनाने में नाकामयाब रहा। ​

​​बगल वाले कमरे से मीरा के माँ-बाप सब सुन रहे थे। मीरा के जाने के बाद वह रोहन के पास आए और उन्होंने उससे कहा कि वह कल दोबारा से आकर कोशिश करे। ​

​​रोहन को भी लगा कि अभी मीरा को और परेशान करना ठीक नहीं है, क्योंकि वह मीरा के ग़ुस्से से अच्छे से वाकिफ़ था। ​

 

​​अगले दिन सुबह निकिता, मीरा से मिलने आई। उसे लगा था कि रोहन के अचानक से आने के बाद मीरा की हालत ठीक नहीं होगी। पर जब उसने मीरा को देखा तो वह हैरान रह गई। मीरा एकदम अच्छे मूड में थी और खिलखिला कर यहां-वहाँ की बातें कर रही थी। ​

 

​​निकिता: ​

​​"वो सब तो ठीक है, लेकिन कल के बाद तू ठीक है?" ​

 

 

​​मीरा: ​

​​"मुझे क्या होगा? हमारा तो तय था ना कि रोहन आएगा, मुझे मनाने की कोशिश करेगा, लेकिन मुझे उसकी बातों में नहीं आना है। तो मैं नहीं आ रही।" ​

 

​​निकिता: ​

​​ "देखो, तुम्हें मेरे सामने अपनी फीलिंग्स छुपाने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हें तकलीफ हो रही है, तुम मुझे बता सकती हो।" ​

 

 

​​मीरा: ​

​​ "छोड़ ना वह सब। मैं दरअसल ये सोच रही थी कि तुम्हें और मुझे गोवा ट्रिप प्लान करनी चाहिए। कितने महीनों से पेंडिंग है हमारा। कॉलेज के बाद से हम कहीं नहीं गए। चलते हैं ना प्लीज प्लीज..." ​

 

 

​​निकिता: ​

​​"ठीक है, करते हैं प्लान। अभी फिलहाल ऑफिस के लिए निकलते हैं। वरना तुझे भी लेट हो जाएगा और मुझे भी।"

 

 

​​मीरा उसी दिन हमेशा की तरह ऑफिस पहुँची। दिनभर ऑफिस में ही रहकर उसने अपना काम ख़त्म किया और ऑफिस के बाद जब वह घर जाने के लिए ऑफिस से बाहर निकली तो क्या देखती है कि सड़क के किनारे हर तरफ़ गुलाब बिछाए हुए थे। ​

 

​​उसे पहले तो कुछ समझ नहीं आया कि ये किसने किया और किस वज़ह से किया है। लेकिन अपने आप से 'नन ऑफ माय बिजनेस' ये सोचने के बाद, वह अपनी कार की तरफ़ जाने लगी। तभी पीछे से उसने रोहन की आवाज़ सुनी। ​

​​उसने पीछे मुड़कर देखा तो रोहन अपने हाथ में गुलाब का फूल लेकर और बाहें फैलाकर खड़ा था। ​

 

​​रोहन को पता था कि मीरा एक फ़िल्मी लड़की है। उसे ये भी पता था कि फ़िल्मी तरीके से अगर वह मीरा को मनाएगा, तो शायद मीरा मान जाए। ​

​​रही बात मीरा की, मीरा को हमेशा से ऐसा लगता था कि कोई तो उसके लिए कभी कुछ ऐसे फ़िल्मी अंदाज़ में करे, जो रोमांटिक हो और ग्रैंड भी। ​

​​रोहन का मनाने का ये तरीक़ा उसे भा गया। वह पिघल रही थी। लेकिन ये वह रोहन को इतनी जल्दी नहीं पता चलने दे सकती थी, इसलिए वह कार में बैठने का नाटक करने लगी। ​

 

​​रोहन भागता हुआ उसके पास आया और मीरा कार के अंदर बैठे इससे पहले उसने कार का दरवाज़ा बंद कर दिया और वह एकदम से घुटनों पर बैठ गया और गुलाब का फूल मीरा के सामने पकड़ कर उसने पूछा। ​

 

​​रोहन: ​

​​ "विल यू गिव दिस पुअर गाय वन अनदर चांस?" ​

​​मीरा अपनी ख़ुशी छिपा नहीं पाई। उसकी मुस्कुराहट से सब पता चल रहा था। ​

 

​​रोहन: ​

​​ "प्लीज मीरा...?" ​

 

​​मीरा: ​

​​ "पहले तुम खड़े हो जाओ। यहाँ ऑफिस है मेरा, लोग पहचानते हैं मुझे यहाँ।" ​

​​रोहन जल्दी से उठकर खड़ा हो गया। गुलाब उसने अभी भी मीरा के सामने पकड़ा हुआ था। ​

 

 

​​रोहन: ​

​​ "प्लीज मान जाओ ना मीरा। तुम कहो तो मैं तुम्हारे लिए कोई गाना भी गा दूंगा, लेकिन फिर सबके सामने तुम एम्बैरेस हो जाओगी मेरा बेसुरा गाना सुनकर।" ​

 

 

​​उसकी बात से मीरा हंसने लगी। उसने रोहन के हाथ से वह गुलाब ले लिया और उसे अपनी नाक के पास ले जाकर उसकी ख़ुशबू ली। ​

​​रोहन ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। मीरा ने भी अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया। ​

 

 

​​हमेशा की तरह झगड़े के बाद सब ठीक हो चुका था लेकिन हर बार की तरह, जिस वज़ह से झगड़ा हुआ था, उस पर उन दोनों में कोई चर्चा नहीं हुई, न हुई गलतियों को आगे कैसे सुधारना है इस पर कोई सोच-विचार। ​

 

​​मीरा: ​

​​"मम्मी... मम्मी... पापा... कहाँ हैं आप दोनों?" ​

 

 

​​पापा: ​

​​ "आ रहे हैं, आ रहे हैं लेकिन हुआ क्या? इतनी एक्साइटेड क्यों लग रही हो?" ​

​​मीरा के पापा के पीछे से उसकी मम्मी भी बाहर आ गईं। एक महीने के बाद वह मीरा को इतना खुश और एक्साइटेड देख रहे थे। तो उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर दिनभर में ऐसा क्या हो गया कि मीरा में ये बदलाव आया। ​

​​जब मीरा के पीछे रोहन ने भी घर के अंदर क़दम रखा तो वह समझ गए कि क्या हुआ होगा। ​

 

​​मीरा: ​

​​ "मम्मी, पापा। पहले तो थैंक यू सो मच कि आप लोग एक महीने से मुझे झेल रहे हैं और सॉरी क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैंने आप दोनों को बहुत तकलीफ और टेंशन दी है।" ​

 

 

​​रोहन: ​

​​"दरअसल पापा, मम्मी, शर्मिंदा तो मैं हूँ। आई एम सॉरी। मैंने मीरा के साथ-साथ आप लोगों को भी अनजाने में परेशान किया है। मीरा का ख़्याल रखने की जिम्मेदारी मेरी है, जो निभाने में मैं पूरी तरह से कम पड़ गया। लेकिन आई होप आप दोनों ने मुझे माफ़ कर दिया है।" ​

 

 

​​पापा : ​

​​"बेटा हम तो कभी नहीं चाहेंगे कि तुम दोनों के बीच छोटी-सी भी दरार आए। मां-बाप के लिए इससे बड़ा दुख और क्या हो सकता है कि उनके बच्चे तकलीफ में हैं और वह उनके लिए कुछ नहीं कर पा रहे। खैर... अब सब ठीक हो गया है। हम खुश हैं। लेकिन अब दोबारा से झगड़े मत करना। अच्छे से रहना।" ​

 

क्या रोहन और मीरा अच्छे से रह पाएंगे ? यान फिर से नताशा को लेकर लड़ाई होगी ?

 

जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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