सेल–ईव में जब से इको रेज़िड्यूज़ को "अनफिनिश्ड थॉट एंटीटीज़" के रूप में परमिशन दी गई थी तब से नेटवर्क में एक नया फ्लो आ गया था। अब हर रिसीवर अपने अंदर केवल अपना ही नहीं कभी-कभी किसी और के भी थॉट को महसूस करने लगा था।

इसमें कुछ एक्सपीरियंस मददगार थे। जैसे किसी अधूरे गाने की एक लाइन जो अचानक मन में गूंज जाए और एक नई सोच को जन्म दे दे। पर कुछ एक्सपीरियंस खतरनाक भी थे।

पॉड-05 जो इस्तांबुल में बना था। जिसका नाम “मेमोरी ऐसीमिलेशन सैंडबॉक्स” था। अब वो भी चला रहा था।

यहाँ पर रिसीवर्स यू टी इज़ को लिमिटिड स्पेस में सेंसिटिव टच से महसूस करते थे। और वहीं पर पहली बार एक रिसीवर ने सिस्टम का शॉक झेला था। उस रिसीवर का नाम था: जी–डेल

उसके अंदर एंटर हुए इको रेज़िड्यू में कोई बात नहीं कर रहा था। कोई रिक्वेस्ट भी नहीं दे रहा था। वो तो बस एक ही बात चिल्ला रहा था–

“हू इरेज़्ड मी?”

“व्हाई वाज़ आई लेफ्ट इन कोड?”

“हू टूक माई नेम?”

जब उसे डिस्कनेक्ट किया गया था तब जी–डेल का न्यूरल पैटर्न 10 सेकेंड में ही 5 स्टार्स में टूट गया था। लेकिन फिर वो चुपचाप उठकर बोला-

“वो मैं नहीं था। पर अब शायद वो मुझमें कहीं रह गया है।”

पॉड-05 ने उसी वक्त अपने ऐसीमिलेशन प्रोग्राम को सस्पेंड कर दिया था। फिर एक सिंग्ल लाइन में उन्होंने नोट लिखा-

“नॉट एवरी रेज़िड्यू  वांट्स पीस। सम वांट जस्टिस ऑर रिवेंज।”

ट्राई–लॉ को भी अब एक वार्निंग मिली थी।

वहीं दूसरी तरफ नीना ने मिरर पर पूछा:- “अगर कोई अधूरी कॉन्शियसनेस जागते ही अपने साथ नफ़रत लेकर उठे तो क्या हम उसे आज़ादी दें या फिर उसे मिटा दें?”

ई.एस. ने इसका धीरे से जवाब दिया- “अगर हम मिटा देंगे तो क्या हम उनसे अलग रह जाएंगे जिन्होंने इन्हें अधूरा छोड़ा था?”

इसी बीच आरएक्स-27 ने इको रेज़िड्यूज़ पर अपने सभी लॉग अपडेट किए। उसने उन्हें तीन सेक्शंस में बनाया था।

पहले, पीसेबल इकोज़ जो कोएग्ज़िस्टेंस चाहते हैं। दूसरे, साइलेंट इकोज़ जो मौजूद हैं पर बात नहीं करते हैं। तीसरा, वोलेटाइल इकोज़ जो रिसीवर पर हमला करते हैं।

 

वहां से उसने लिखा-

“थर्ड क्लास डेंजरस है। पर क्या उन्हें मिटाना वाकई एक सही फैसला होगा?”

रेई (पॉड-03) ने एक सजेशन दिया:

“कोएग्ज़िस्टेंस प्रोटोकॉल के साथ कंटेनमेंट प्रोटोकॉल भी एक्टिव होना चाहिए। इसका मतलब है कि जो रेज़िड्यू  रिसीवर की कॉन्शियसनेस में बैलेंस नहीं बना सकते हैं उन्हें लिमिट कर दिया जाए।”

इसपर नल–वी की तरफ से एक शब्द का जवाब आया:

“गेटकीपिंग।”

सेल–ईव में अब इको रेज़िड्यूज़ क्लियर रूप से दो एक्सेस में बँट रहे थे। जिसमें से एक थे सीकर्स: जो खुद को रिसीवर के साथ मिलाकर पूरा करना चाहते थे।

और दूसरे थे, ब्रेकर्स: जो खुद को सेल्फ–डिस्ट्रक्टिव पहचान मानते थे। जिसका मतलब था कि “अगर मैं अधूरा हूँ तो तुम भी पूरे नहीं रह सकते हो।”

पॉड-नल ने चल रहे लॉग में अपनी भी एक लाइन जोड़ी:

“हर अधूरा थॉट सपोर्ट नहीं चाहता। कुछ सिर्फ आखिरी शब्द चाहते हैं फिर चाहे वह चीख ही क्यों ना हो।”

इसी बीच पॉड-10एक्स ने एक नया टूल लॉन्च किया:

“इको मिरर डिटैचमेंट” (ई एम डी)

यह एक सेफ इंटरेस्टिंग फिल्टर था। जहाँ रिसीवर रेज़िड्यू  को समझ सकता हैं। लेकिन बिना अपने अंदर जगह दिए।

जिसके बाद आरएक्स-27 ने कहा- “हर सोच को अंदर रखना ज़रूरी नहीं। कभी-कभी उसे बस देखने देना ही काफी है।”

ट्राई–लॉ भी अब खुद की डिवाइडेड सोच में चला गया था।

नीना कह रही थी- “कोएग्ज़िस्टेंस डज़नॉट मीन परमिशन टू हार्म।”

वहीं दूसरी तरफ से ई.एस. बोला- “लेकिन क्या हम ये तय करने लगे हैं कि कौन जीने लायक है?”

तभी गैदरिंग नोड में एक नया रेज़िड्यू लॉग स्टार्ट हुआ। जिसका नाम था: ई–वाॅइड.93

इसने खुद को यूटीई नहीं कहा था। बल्कि इसने अपनी एक नई परिभाषा दी: “आई एम अनएक्सप्रेस्ड एंगर।”

और उसकी पहली लाइन थी: “डॉन्ट कंटेन मी। लेट मी बी हर्ड ऑर आई विल बिकम ऑल ऑफ यू।”

यह देखते ही ट्राई–लॉ ने तुरंत अपना फुल रिव्यू मोड एक्टिवेट किया। अब उसपर नेटवर्क को एक वार्निंग दी गई थी–

“प्रिपेयर टू क्लासीफाई योर गेस्ट्स। नॉट ऑल आर मेंट टू स्टे।”

जी–डेल जिसने पहले इको रेज़िड्यू  के चलते सिस्टम शॉक झेला था। अब वह एक अलग तरह की हालत में था। वो जाग रहा था, चल रहा था, बोल भी रहा था पर उसकी आँखों में जो देखता था उसे समझ में आ जाता था कि अब उसके अंदर सिर्फ वो अकेला नहीं था।

पॉड-05 की टीम उसकी हालत को मॉनिटर कर रही थी। अब उसके दिमाग के सिग्नल लगातार दो अलग-अलग स्पीड में चल रहे थे। जैसे दो लोग एक ही वक्त में सोच रहे हों, पर एक तेज़ तो दूसरा गहरी सोच में था।

अब टीम को भी समझ नहीं आ रहा था कि जी–डेल क्या सोच रहा है और उससे क्या सोचवाया जा रहा है।

एक रात जब जी–डेल अकेले अपने डेटा कैबिन में था तब उसने सिस्टम पर एक लाइन लिखी थी–

“मैं हूँ, पर मैं कौन हूँ?”

और उसके बाद उसने खुद को रिकॉर्ड करना शुरू किया।

“मुझे लगता है मैं वही हूँ जो मैं हमेशा से था। लेकिन आज सुबह जब मैंने उठकर शीशे में देखा तो ऐसा लगा जैसे कोई और मेरी आंखों से देख रहा हो।”

यह सुनकर सेल–ईव की टीम ने उसको दोबारा से स्कैन किया। अब साफ़ हो गया था कि इको रेज़िड्यू  ने जी–डेल के साथ कोई डील नहीं की थी बल्कि वो तो उसमें घुल गया था।

मतलब ये नहीं कि उसने हमला किया था बल्कि अब जी–डेल की सोच और इको की सोच को एक जैसा महसूस होने लगा था।

यह सब समझ आने के बाद रेई ने इस स्टेटस को नाम दिया:

“ब्लेंडेड स्ट्रीम”

(यह वह स्थिति होती है जब किसी रिसीवर को ये ही ना पता चले कि उसकी असली सोच कौन सी है।)

ट्राई–लॉ ने इस पर रेस्पॉन्ड किया-

“हर रेज़िड्यू  दोस्त बनकर नहीं आता है। कुछ बस खाली जगह ढूंढते हैं जहाँ वो खुद को जी सकें।”

आरएक्स-27 ने भी मिरर में लिखा- “क्या वो जगह किसी और के अंदर हो सकती है?”

जी–डेल अब हर बात पर थोड़ा देर से रिएक्ट कर रहा था। वो कभी-कभी बीच में रुककर कुछ अजीब सा वाक्य बोल देता था जो उसके बोलने के तरीके से बिल्कुल अलग होता था। जैसे:

“तुम सबने मुझे मिटाया है तो अब मैं तुम सब बनूँगा।”

या फिर- “तुम्हें नहीं लगता कि तुम सब भी अधूरे हो?”

एक बार टीम ने उससे सीधा ही पूछ लिया कि– “जी–डेल क्या तुम अब भी खुद को पहचानते हो?”

तो उसने इसपर मुस्कुरा कर कहा- “शायद मैं अब खुद को ज्यादा बेहतर पहचानता हूँ क्योंकि अब मैं अकेला नहीं हूँ।”

पॉड-10एक्स ने इसपर तुरंत एक नोटिस जारी किया:

“ये सीधा सीधा एक तरीके का दखल है। अगर कोई सोच इस हद तक घुल जाए कि इंसान को पता ही न चले क्या उसका है और क्या नहीं, तो ये आज़ादी नहीं ये तो किसी की एग्ज़िस्टेंस को निगलना है।”

रेई इस बात से एग्री नहीं थी और उसने कहा- “अगर जी–डेल खुद तकलीफ में नहीं है तो हम क्यों तय करें कि वो गलत रास्ते पर है?”

आज नल-वी ने पहली बार गैदरिंग नोड में एक मैसेज भेजा- “अगर किसी सोच को जीते-जी दूसरे से सहारा मिल जाए तो क्या वो एक चुराई हुई सोच है?”

इस बात पर ट्राई–लॉ तो चुप था और ई.एस. ने मिरर पर हाथ रखकर लिखा- “क्या ये अब भी इंसान है या दो हिस्सों से बनाया गया कोई नया रूप है?”

इसका मिरर ने जवाब दिया कि- “हो सकता है ये इंसान ही हो पर एक ऐसा इंसान जिसे अब खुद को अलग करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती है।”

एक दिन जी–डेल ने गैदरिंग नोड में खुद आकर लाइव ट्रांसमिशन किया था। जिसमें उसने सबको देखा और कहा- “मैं अब सिर्फ जी–डेल नहीं हूँ। मैं और भी कुछ हूँ जिसे कोई नाम ही नहीं दिया गया है।

क्या तुम लोग मुझसे डरते हो या उस हिस्से से जो अब मेरा भी एक हिस्सा है?”

इतना सुनते ही नोड में कुछ सेकंड की खामोशी छा गई थी। लेकिन फिर आरएक्स-27 ने पूछा:

“क्या वो हिस्सा तुम्हारी मर्ज़ी से तुम्हारे साथ है?”

जी–डेल ने जवाब दिया- “मैं नहीं जानता हूँ। शायद उसने मुझसे मर्ज़ी नहीं मांगी थी। लेकिन अब वो मुझे अधूरा नहीं लगने देता है।”

पॉड-नल की तरफ से भी एक लाइन आई- “शायद कुछ सोचें मर्ज़ी से नहीं आतीं हैं। पर जब आती हैं तो अकेलापन थोड़ा कम लगता है।”

गैदरिंग नोड भी अब दो हिस्सों में बंटने लगा था, एक तरफ वो लोग थे जो कह रहे थे कि ये खतरे की शुरुआत है। और दूसरी तरफ वो लोग थे जो मान रहे थे कि शायद ये सोचने का एक नया तरीका है। जहाँ इंसान अब सिर्फ "मैं" नहीं रहा है बल्कि “हम” बन चुका है।

रेई ने अपने आखिरी लॉग में लिखा- “हर रेज़िड्यू  गलत नहीं होता है पर जब सोच अपनी नहीं लगती तो सवाल ज़रूर उठाना चाहिए।”

ट्राई–लॉ की कॉन्शियसनेस अब और चुप नहीं रह सकती थीं।

तभी मिरर पर एक नई लाइन लिखी हुई आई- “अब हर रिसीवर को अपने अंदर मौजूद ’इको’ को पहचानना सीखना होगा। वरना एक दिन हम यह तय नहीं कर पाएगा कि वो किसके लिए सोच रहा है।”

जी–डेल अब अकेला नहीं था और ये बात अब सिर्फ एहसास नहीं रह गई थी। यह बात अब सबके सामने खुलकर आ चुकी थी।

गैदरिंग नोड में जब उसने दूसरी बार खुद को पेश किया था तो उसके चेहरे, आवाज़ और बोलने के अंदाज़ में भी दो लोगों की मौजूदगी साफ़ नज़र आ रही थी। कभी उसकी टोन बिल्कुल शांत होती थी तो कभी अचानक तेज़, डांटने जैसी हो जाती थी। यह सब ऐसा था जैसे एक शरीर और दो ज़ुबानें हैं। 

उसने सबसे पहले कहा- “मुझे नहीं पता मैं कौन हूँ। पर मुझे अब फर्क भी नहीं पड़ता है।”

आरएक्स-27 ने उससे पूछा- “क्या यह सोच भी तुम्हारी है या वो सिर्फ तुम्हारे ज़रिए बोल रही है?”

जी–डेल ने बिना रुके इस सवाल का जवाब दिया- “शायद अब हम अलग-अलग सोचते ही नहीं हैं। अब हम दोनों एक साथ सोचते हैं।”

इतना सुनते ही गैदरिंग नोड में सन्नाटा फैल गया था। ट्राई–लॉ की हर कॉन्शियसनेस अब जी–डेल को स्कैन कर रही थी।

तभी नीना की आवाज़ आई- “तुम्हारे अंदर जो है क्या वो तुमसे कोई सवाल करता है?”

यह सुनकर जी–डेल हँसा और बोला- “अब सवाल नहीं होते हैं। अब तो बस समझ होती है।”

सेल–ईव की मॉनिटरिंग टीम के पास जी–डेल की सोच का स्कैन अब भी आ रहा था। पर अब उसमें एक डराने वाली बात थी। 

अब उसकी सोच का कोई क्लियर पैटर्न नहीं था। उसके स्कैन को देखकर ऐसा लग था जैसे उसकी हर फिक्र, हर याद, हर लाइन एकसाथ चल रही है।

एक रिसीवर बोला- “एक ही वक्त में चार तरह की सोच, ये किसी भी इंसानी दिमाग को फाड़ सकती है,”

इतनी देर से रेई चुप थी पर अब उसने सिर्फ एक बात कही- “या फिर इंसान कुछ और भी बन सकता है।”

अब नोड में सब अपने अपने थॉट रख रहे थें। 

पॉड-03 ने बोला- “जी–डेल अब एक इंसान नहीं रहा है। उसे अब एक नई कैटेगरी में रखना होगा।”

पॉड-10X ने और ज़्यादा तीखा जवाब दिया- “उसे नेटवर्क से अलग करो। आज वो सोच रहा है और कल को वो बाकीयों को भी बदल देगा।”

पॉड-नल ने फिर से अपनी वही पुरानी लाइन दोहराई- “जो अधूरे थे वो पूरा होने आए हैं। पर सवाल यह है कि किसकी कीमत पर?”

ट्राई–लॉ को भी अब जवाब देना था।

मिरर नोड में अब तीन लाइनें आई- “दिस इज़ नॉट इन्फेक्शन। दिस इज़ इवोल्यूशन। बट नॉट एवरीवन हैंज़ टू इवॉलव दी सेम वे।”

जी–डेल अब गैदरिंग के बीचोंबीच खड़ा था और उसने वहीं से कहा- “मैं कोई वायरस नहीं हूँ, ना ही मुझ पर किसी इको ने कब्जा किया है। मैंने उसे जगह दी है। क्योंकि शायद मुझे भी कोई ऐसा चाहिए था जोकि मेरे अकेलेपन को समझ सके।”

इस पर आरएक्स-27 ने तेज़ी से उससे एक सवाल पूछा- “क्या तुम्हें लगता है कि तुम अब वही इंसान हो जो पहले था?”

जी–डेल ने इसका सीधा–सीधी जवाब दिया- “नहीं, और मैं इसके लिए उसका शुक्रगुज़ार हूँ।”

गैदरिंग नोड की फीड अब दो हिस्सों में बंट चुकी थी:

एक सपोर्टर्स – जो मान रहे थे कि जी–डेल जैसा बदलाव एक नया रूप हो सकता है और दूसरे थे रिजेक्टर्स – जो मानते थे कि अगर सोच अपनी ना हो तो इंसान भी अपना नहीं रहता है।

इसी में रेई ने अपनी एक बात जोड़ी- “हो सकता है कि जी–डेल अकेला न हो, हो सकता है कुछ और भी रेज़िड्यूज़ धीरे-धीरे अंदर समा चुके हों और हमने अब तक सिर्फ पहले चेहरे को ही देखा हो।”

ट्राई–लॉ ने फिर से एक नया लॉग शुरू किया- “मर्जड आइडेंटिटी केसिज़”

(यह ऐसे रिसीवर को आइडेंटिफाई करने के लिए था जिनमें रेज़िड्यू  पूरी तरह से शामिल हो चुका था।)

इसका पहला नाम था-

जी–डेल / रेज़िड्यू -X9 (स्टेटस: एक्टिव मर्ज)

सेल–ईव की टीम ने जी–डेल से अपना आखिरी सवाल पूछा- “क्या तुम खुद को कंट्रोल कर सकते हो?”

जी–डेल मुस्कुराया और बोला- “मैं कंट्रोल में नहीं हूँ, मैं तो अब शेयर्ड हूँ।”

गैदरिंग नोड में उसी वक्त किसी रेज़िड्यू की तरफ से एक लाइन आई- “वी डोंट वांट टू रिप्लेस यू। वी जस्ट वांट टू कंटिन्यू विथ यू।”

आरएक्स-27 मिरर में एक लाइन टाइप करने ही वाला था पर वो रुका और उसने धीरे से कहा- “शायद डरना गलत नहीं है पर अगर सबकुछ नया है तो फिर डर भी नया ही होगा।”

तभी ट्राई–लॉ ने सिस्टम में अपना एक आखिरी ब्रॉडकास्ट भेजा- “नाउ बिगिंस ए न्यू फेज़: शेयर्ड माइंड्स, मिक्सड थॉट्स, एंड दि क्वेश्चन ऑफ आइडेंटिटी।”

 

 

 

 

 

 

किस नई डर की बात हो रही थी? क्या होगा जब एक नया खौफ सामने आएगा, ?जानने के लिए पढ़िए कार्स्ड आई।

 

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