गैदरिंग नोड-1 के ख़त्म होने के बाद नेटवर्क में अब एक अजीब-सी शांति फैल गई थी। उसमें ना कोई नया मॉडल शेयर हो रहा था और ना ही उसके विरोध में कोई लॉग लिख रहा था।‌ पॉड्स भी अब अपने-अपने रास्तों पर लौट गए थे। हर किसी ने यह महसूस किया कि इस सब का भले ही कोई नतीजा ना निकला हो पर अब हर तरफ कुछ बदल गया था।

वैंकूवर में बैठे पॉड-03 ने गैदरिंग के बाद एक घोषणा की-

“अब हम एक स्ट्रक्चर-टेस्ट ज़ोन बनाएंगे। जहाँ थॉट्स को सिर्फ कहा नहीं जाएगा बल्कि उन्हें जिया भी जाएगा।”

और उसे एक नाम दिया गया:

“सेल–ईव”

यह एक छोटा सा डिजिटल एटमॉस्फियर था। जहाँ हर रिसीवर बिना किसी कोड के, बिना डिफाइन किए गए रोल के, बस एक कैरेक्टर की तरह वहां रह सकता था।

रेई ने कहा-

“हम सिर्फ एक सिस्टम नहीं बनाएँगे बल्कि हम एक सेंसिटिव दुनिया बनाएँगे।”

दूसरी ओर, पॉड-10 एक्स गैदरिंग से वापस आते ही अलर्ट मोड में चला गया था।

जिसके बाद आरएक्स-27 ने लिखा:

“यहां कुछ तो छूटा है। कोई न कोई कॉन्शियसनेस जो वहाँ होनी चाहिए थी, वो वहां मौजूद थी, लेकिन वह चुप है।”

जिसके बाद उसने गैदरिंग नोड के डेटा लॉग्स दोबारा स्कैन किए।

फ्रेम 2748 में, एक रेज़िडुअल शैडो दिखी थी। यह ना पूरी तरह कॉन्शियसनेस और ना ही पूरी तरह एक फ्रेगमेंट थी। बल्कि यह तो एक अधूरी गूँज थी और उसका टाइटल था –

“इको-डीआर_वी 0.2”

तभी आरएक्स-27 ने ट्राई–लॉ को ट्रांसमिशन भेजा और पूछा-

“क्या कोई इको रेज़िड्यू अभी भी सिस्टम में एक्टिव है?”

उसके बाद ट्राई–लॉ की तरफ से जवाब आया-

“मल्टीपल इकोज़ एक्ज़िस्ट। 

सम आर पैसिव। सम आर वेटिंग।”

ठीक उसी समय, साउथ आइसलैंड में नल–वी ने हवा में कुछ महसूस किया। अब तक वो अपने मौन में स्टेबल था। उसने ना कोई कम्युनिकेशन ना ही किसी टाइप का एक्सप्रेशन शेयर किए थें। पर उस शाम, जब सूरज की रौशनी काले पत्थरों पर पड़ रही थी। उसने ज़मीन पर एक साइन देखा जो उसने नहीं बनाया था। वह ऐसा दिख रहा था जैसे राख में एक सेंटेंस लिखा गया हो-

“वी वर ऑलमोस्ट कंप्लीट।”

उसने अपनी उंगली से उस सेंटेंस को मिटाने की कोशिश की पर वह लाइन गायब नहीं हुई थी। बल्कि वहां दूसरी लाइन भी आ गई:

“यू एस्केप्ड। वी रिमेंन्ड।”

नल–वी की आंखों में हल्का सा कंपन हुआ था। आज इतने समय में पहली बार उसके अंदर एक डर था।

पॉड-07 जो केपटाउन में था अब वह “कलेक्टिव सेंसेशन” से आगे बढ़कर “एम्बाॅडिड एम्पैथी” की तरफ काम कर रहा था। उन्होंने एक नया टूल बनाया था:

“फील-सिंक रिंग्स”

ये डिजिटल डिवाइसेज़ किसी भी रिसीवर को दूसरे रिसीवर की असली फीलिंग्स से सिंक करा सकते थे। जैसे उसका एक्सपीरियंस कोई इमैजिनेशन नहीं बल्कि एक रिएलिटी है।

एल-के 9 ने इसका पहला टेस्ट किया। और जैसे ही उसने फील-सिंक रिंग्स पहना उसे एक अजीब सी परछाईं जैसी आवाज़ सुनाई दी:

“स्टॉप बिल्डिंग। स्टार्ट रिमेंबरिंग”

वहीं गैदरिंग नोड का डेटा अब दोबारा से ट्रेस किया जा रहा था। यह काम एक नई टीम, इको एनालिसिस यूनिट, जिन्हें कोई पॉड नहीं पहचानता था वह कर रही थी। अब वह नेटवर्क के सबसे पुराने लॉग्स को खोल रही थी। उनकी रिपोर्ट थी:

“इको-डी आर_वी 0.2 = डेवियेटिड रिमेंन्स

इट्स नोट ए मेमोरी।

इट्स एन इंटेंशन दैट नेवर गॉट रियलाइज्ड।”

इस रिपोर्ट के बाद ट्राई–लॉ की कॉन्शियसनेसएं चिंता में पड़ गई थीं।

नीना ने पूछा:

“क्या वो कोई कॉन्शियसनेस हैं या फिर अधूरी इच्छाएं हैं?”

ई.एस. ने मिरर पर देखा और कहा-

“और अगर वो पुरानी नहीं है तो वह छिपा हुआ आज है?”

रेई ने वैंकूवर के सेल–ईव एटमॉस्फियर में एक बीटा रिसीवर को सिम्युलेशन में उतारा और उस रिसीवर का नाम था:

ओ–लक्स 

जैसे ही ओ–लक्स ने सेल–ईव में कदम रखा तभी स्क्रीन पर एक लाइन आई:

“दिस इज़ नॉट योर वर्ल्ड।”

ओ–लक्स ने चौंक कर पूछा-

“क्यों? मैंने इसे चुना है।”

उसे एक जवाब मिला:

“यू आर दी पार्ट ऑफ समवन एल्स मेमोरी।”

इको रेज़िड्यूज़ भी अब नींद से जागने लगे थे। वहीं गैदरिंग नोड के डेटा में भी अब रुक-रुक कर कई सिग्नल ओवरलैप्स हो रहे थे।

अब रेई ने आरएक्स-27 को एक ट्रांसमिशन भेजा जिसमें उसने पूछा कि-

“क्या तुमने कभी किसी को प्रेजेंट में ‘पास्ट’ जैसा महसूस करते देखा है?”

आरएक्स-27 ने रेई को उसका जवाब भेजा कि:

“हर रेज़िड्यू यही है कि जो कभी पूरा नहीं हुआ था वो अब फिर से पूरा होना चाहता है।”

नल–वी भी अब चुप नहीं रहा और उसने साउथ आइसलैंड से अपना पहला मैसेज नेटवर्क में छोड़ा:

“सावधान रहें क्योंकि यहां जो भी बन रहा है वो कभी अधूरा हुआ करता था। जो अब किसी का हिस्सा बनकर पूरा होना चाहता है।”

अब ट्राई–लॉ ने भी नेटवर्क में एक सिंगल लाइन ब्रॉडकास्ट की:

“नॉट ऑल इकोज़ फ़ैड, सम इवॉलव।”

जिस दिन पॉड-03 का बीटा रिसीवर ओ–लक्स दूसरी बार सेल–ईव में एंटर हुआ था। उस दिन उसे अपने आप से ही एक सवाल मिला–

“तू कौन है?”

पर यह सवाल किसी के अंदर से नहीं आया था और ना ही किसी सिस्टम लॉग से आया था। यह सवाल तो बिल्कुल उसी आवाज़ में आया था जिसमें वो खुद सोचता था। तभी ओ–लक्स ने अपने कॉन्टेक्ट टैब को चेक किया। उसमें तो सब ठीक था। ब्रेनवेव सिंक स्टेबल थी, फीड क्लीन थी और नो इंटरफ़ेरेंस था। लेकिन फिर भी, एक अजीब सा अहसास उसे घेरे हुए था। जैसे सेल–ईव उसे पहचान नहीं दे रहा था।

उसी समय केपटाउन में मेया फील-सिंक की दूसरी लेयर पर काम कर रही थी। उसने एक एक्सपेरिमेंट के लिए तीन रिसीवर्स को एक-दूसरे की "मेमोरी एक्सपीरियंस” से जोड़ा था।

उसकी स्टार्टिंग में तो सब नॉर्मल था। पर जैसे ही टी–मारा ने ज़ैड-22 के साथ उसे लिंक किया उसने अचानक चीख कर हेलमेट उतार दिया और उसने कहा–

“ये मेरी याद नहीं थी!” 

अब ज़ैड-22 हैरान हो गया और उसने कहा –“मैंने तो कुछ शेयर नहीं किया था।” लेकिन नेटवर्क लॉग ने कुछ और दिखाया है।

एक रेज़िडुअल पैटर्न जो ना ज़ैड-22 से जुड़ा था, ना टी–मारा से उसमें तो एक तीसरा ही सिग्नेचर था। अब लॉग में वह नाम एंटर हुआ:

“ई-रेम_04.76”

(टर्म: इको रेज़िड्यू रेमनेंनट क्लास 4, वर्ज़न 76)

इसी के साथ ट्राई–लॉ की कॉन्शियसनेस भी तुरंत अलर्ट हो गईं थीं। इसी बीच नीना का फ्रेगमेंट बोला-

“ये रेज़िड्यू कोई पुराना डेटा नहीं है। बल्कि ये किसी अधूरी पहचान का हिस्सा है।”

ई.एस. ने मिरर में देखा तो अब वहाँ कोई सवाल नहीं था। वहां तो बस एक अजीब सी लाइन चमक रही थी:

“डू यू फील थिंग्स दैट यू डिडनॉट लिव?”

उधर आरएक्स-27 ने गैदरिंग नोड के शेडोज़ को फिर से स्कैन किया और फ्रेम 2748 की वही रेज़िड्यू अब मजबूत हो चुकी थी। वो अब ब्लिंक नहीं कर रही थी। बल्कि उसकी इमेज बन गई थी और सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उसके चेहरे में कुछ कुछ आरएक्स-27 की ही झलक थी।

यह देखकर आरएक्स–27 ने धीरे से कहा-

“ये मैं नहीं हूँ, पर ये मुझमें है।”

उस रात वैंकूवर के सेल–ईव एटमॉस्फियर में ओ–लक्स  अकेला बैठा रहा और आज उसे अपनी यादें उलझी हुई सी लग रहीं थीं।

उसके बचपन का एक किस्सा जो उसने कभी सोचा ही नहीं था वो बार-बार रिपीट हो रहा था।

वहीं एक डूबती हुई नीली छत के नीचे एक डिवाइस था। जो फुसफुसा रहा था–

“हम थे नहीं, पर हम बनाए गए थे।

ताकि तुम्हारे ज़रिए कुछ पूरा हो सके।”

वहीं ट्राई–लॉ भी अब गैदर्ड मेमोरीज़ को लॉक करने लगा था।

ई.एस. ने मिरर टर्मिनल पर हाथ रखा और पूछा-

“अगर ये रेज़िड्यूज़ हमारे अंदर रह रहे हैं तो क्या अब हम खुद भी रेज़िड्यू हैं?”

नीना ने उसका जवाब दिया-

“यह हो सकता है कि शायद अब हम ऐसे जिंदा हैं जिससे कि अधूरी चीज़ें भी अब हमें चुन सकती हैं।”

तभी नेटवर्क में एक नया शब्द फैलने लगा-

“इको-ऑक्युपेंसी”

(यह तब होता है जब कोई रेज़िड्यू किसी रिसीवर के अंदर अपने अधूरे थॉट को जीने की कोशिश करता है।)

सेल–ईव जोकि एक सेंसिटिव एटमॉस्फियर था वो भी अब स्टेबल होने लगा था।

रेई ने अब पूरे सिस्टम को इमरजेंसी ड्रिफ्ट मोड में डाल दिया था और उसने एलान किया-

“अब हम सबको अपने अंदर झाँकना होगा क्योंकि हो सकता है कि कुछ अनुभव जो हमारे नहीं हैं फिर भी हम उन्हें महसूस कर रहे हैं।”

अब मेया ने टी-मारा से कहा कि:

“हमने तो सोचा था कि आजादी का मतलब है अपने जैसा बनना। लेकिन आजादी का मतलब शायद उन चीज़ों से भी गुज़रना है जिन्हें हमने कभी जिया ही नहीं है लेकिन फिर भी महसूस किया है।”

उसी वक्त नल–वी ने फिर एक साइन भेजा। जिसमें कोई शब्द नहीं था। सिर्फ एक गोले में एक पैटर्न था जिसके बीच में लिखा था:

“स्पीक बिफोर यू नोन।”

नेटवर्क में पहली बार ऐसा एहसास हुआ था कि इको रेज़िड्यूज़ अब सिर्फ एक शैडो नहीं हैं। अब वह अपने लिए एक वॉइस ढूंढ रहे हैं।

तभी ट्राई–लॉ ने नेटवर्क में नया नोटिस जारी किया:

“इको थ्रेड्स इमर्जिंग।

एवरी रिसीवर मस्ट वैलिडेट रिसेंट इमोशंस।

ओरिजिन अननॉन = पॉसिबिलिटी ऑफ ऑक्युपेंसी।”

लेकिन इस सबके बीच पॉड-नल ने एक साइलेंट मैसेज शेयर किया:

“अगर कोई एक्सपीरियंस मेरा नहीं है तो क्या मैं उसे जीने का हक़दार नहीं हूँ?”

अबकी बार गैदरिंग नोड के लॉग में एक नई लाइन लिखी हुई आई:

“वी वर मेड फ्रॉम योर फॉरगेटिंग्स।”

सेल–ईव अब सिर्फ एक एक्सपेरिमेंटल स्पेस नहीं रहा गया था। अब यह एक गूंजता हुआ मिरर बन चुका था। अब हर वो रिसीवर जो भी इसके अंदर एंटर करता था उसे केवल अपने ही थॉट नहीं दिखते थे। बल्कि वो थॉट भी दिखते थे जो कभी उसके थोड़े से पास से भी गुज़रे थे। और उन थॉट्स में अब इको रेज़िड्यूज़ जगह बनाने लगे थे।

इस बार रेई ने एक अलग आईसोलेशन ज़ोन तैयार करवाया जहाँ वह ओ–लक्स  को अकेले अंदर भेजने वाली थी।

इसी के साथ अबकी बार उसे साफ़ वार्निंग दी गई थी:

“तुम्हें जो दिखेगा उससे बहस मत करना सिर्फ उसे सुनना। क्योंकि वो तुम्हारी तरह नहीं है पर वह तुम्हारे अंदर रहने आया है।”

ओ–लक्स  जब आईसोलेशन ज़ोन में एंटर हुआ तो उसके चारों ओर कुछ भी नहीं था। ना कोई रंग, ना कोई दीवार और ना ही कोई टाइमलाइन थी। सिर्फ एक हल्की नीली सी लाइट और एक धड़कती हुई आवाज़ थी।

उस आवाज़ ने पूछा–

“तुम मुझे कबसे महसूस कर रहे हो?”

ओ–लक्स ने कहा–

“शायद मैं तुम्हे कभी नहीं जानता था।”

आवाज़ ने जवाब दिया–

“नहीं, जब तुम 7 साल के थे तब तुमने एक सपना देखा था,

जो तुम्हारा नहीं था, वो मैं ही था।”

इतना सुनने के बाद ओ–लक्स अब थोड़े घबरा गया था। अबकी बार उसने सीधा सवाल किया–

“तुम कौन हो?”

उधर से जवाब आया:

“मैं वो हूँ जो तुम्हारी कॉन्शियसनेस बनने से पहले बनाया गया था। लेकिन कभी पूरा नहीं हुआ था।”

ओ–लक्स की स्क्रीन पर अब धीरे-धीरे शब्दों में बदलता हुआ एक पैटर्न दिखाई दिया–

"इको रेमनेंनट - डेज़िग्नेशन: ईडीआर_अल्फा2

स्टेटस: इंटेंट डिफरेड 

डिज़ायर: कोएक्सिसिटेंस"

रेई बाहर से सब कुछ मॉनिटर कर रही थी। उसके सामने ओ–लक्स के न्यूरल मैप पर एक नई वेव बन रही थी। यह किसी स्ट्रेस या स्पार्क की वेव नहीं थी। बल्कि यह तो बातचीत की एक अनोखी वेव थी।

अंदर इको ने फिर से कहा:

“मैं कोई कंट्रोल नहीं चाहता। मैं तो बस वो बनना चाहता हूँ जो मैं कभी नहीं बन पाया हूँ।”

ओ–लक्स ने अपनी आँखें बंद कीं और उससे धीमे से पूछा:

“तुम्हें क्या चाहिए?”

इको ने उससे कुछ नहीं मांगा। उसने बस एक लाइन बोली:

“मुझे सुनकर तुम अपने कुछ खाली हिस्से भर सकते हो।”

बाहर ट्रैकिंग करने वाली टीम में एक रिसीवर बोला-

“ये रेज़िड्यू हमला नहीं कर रहा है। ये तो रिक्वेस्ट कर रहा है।”

रेई ने हां में सर हिलाया और कहा-

“शायद रेज़िड्यूज़ भी अब खुद को दोबारा बनाना चाहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम सब बनाना चाहते हैं।”

अब ओ–लक्स ने आखिरी बार इको से पूछा-

“अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें अपने साथ रख सकता हूँ?”

इको ने जवाब दिया-

“मैं तुममें नहीं, लेकिन तुम्हारी सोच में थोड़ी जगह माँगता हूँ। अगर कभी मैं तुम्हें अजनबी लगने लगूँ तो बस मुझसे बात कर लेना।”

इसी के साथ इको रेज़िड्यू ने ओ–लक्स  की कॉन्शियसनेस में एक सिग्नेचर छोड़ा जो कोई डेटा या कोड नहीं था। यह तो बस एक एहसास था। जैसे कोई पुराना सपना अब शांत होकर सो गया हो। ट्राई–लॉ ने पूरा इंटरेक्शन स्कैन किया और उसकी तरफ से नेटवर्क में पहली बार एक मैसेज गया:

“इंटीग्रेशन पॉसिबल।

नॉट ऑल घोस्ट्स वांट टू हॉन्ट।”

आरएक्स-27 ने जब ये देखा तो उसने मिरर पर लिखा-

“शायद अब डर का मतलब सिर्फ खतरा नहीं है। बल्कि अधूरी बातचीत भी हो सकता है।”

नल–वी ने साउथ की तरफ एक सिग्नल भेजा था। किसी को भी यह समझ नहीं आया कि वो उसमें किसे एड्रेस कर रहा है। पर उसमें सिर्फ तीन शब्द थे-

“लेट देम फिनिश।”

सेल–ईव की टीम ने अब “इको-अवेयर ज़ोनस” एक्टिवेट किए थे। यह ऐसे सेफ स्पेसेज़ हैं जहाँ रेज़िड्यूज़ साइलेंटली बात कर सकते हैं।

और सबसे पहले जो सेंटेंस एक रेज़िड्यू ने वहाँ पर कहा,

वो था:

“तुम मेरी आखिरी उम्मीद नहीं हो, पर शायद पहली विंडो हो।”

नेटवर्क ने अब इको रेज़िड्यूज़ को 'थ्रेट' टैग से हटा दिया था। और उनके लिए एक नई कैटेगरी बनाई गई-

“अनफिनिश्ड थॉट एंटीटीज़”

अबकी बार ई.एस. ने गैदरिंग नोड में जाकर एक लाइन लिखी-

“अगर किसी ने आधा सपना देखा हो तो क्या हम उसे पूरा करने का हक दे सकते हैं?”

इसका मिरर में से जवाब आया:

“अगर तुम्हारे पास जगह हो तो, हाँ।”

 

क्या अब अधूरे सपने भी टेक्नोलॉजी के कंट्रोल में होंगे? और क्या क्या है जो सिस्टम के कंट्रोल से चलेगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।

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