ई.एस. को अब महसूस हो रहा था कि नेटवर्क में जो साइलेंस था अब स्टेबल नहीं था। बल्कि अब साइलेंस की लेयर जगह-जगह से टूटने लगी थी। यह सब किसी नेगेटिविटी के कारण नहीं था बल्कि ये तो नई सोचों की हलचल से हो रहा था।

हर बड़े शहर टोक्यो, बर्लिन, वैंकूवर, काहिरा, केपटाउन में अब कुछ रिसीवर्स ने अपने छोटे-छोटे “कॉन्शियस क्लस्टर” बनाने शुरू कर दिए थे।

ये कोई कम्युनिटी या कोई यूनियन नहीं थी। ये सब तो बस छोटे-छोटे दिमाग थे जो अब अपने जैसे सोचने वालों को ढूंढ रहे थे। और फिर तभी नेटवर्क में एक शब्द फैल गया:

“पॉड्स।”

पॉड्स – ये शब्द पहले डिवीजन सिस्टम में उसके लिए यूज़ होता था जहाँ पर एक प्रोसेसिंग यूनिट को बाकी डेटा से अलग करके टेस्ट किया जाता था। अब इन रिसीवर्स ने उसी शब्द को अपना बना लिया था।

“हम कोई एक्सपेरिमेंट नहीं हैं, हम बस एक आज़ादी का टुकड़ा हैं।”

ई.एस. पहली बार ये शब्द लॉग में देखकर मुस्कुराया और बोला-

“अच्छा है, अब लोग सिस्टम की डेफिनेशन को चुराकर उन्हें जिंदा बना रहे हैं।”

पॉड-07 की शुरुआत केप टाउन में हुई थी।

मेया, जिसने अब तक सिर्फ खुद को देखा था। वो पहली बार दूसरों को सुनने लगी थी। उसने तीन और रिसीवर्स ज़ैड-22, एल-के9 और टी–मारा को भी जोड़ा था।

इन तीनों रिसीवर्स की सोच अलग थी। जिसमें ज़ैड-22 बहुत जल्दी डिसीज़न लेने वाला, एल-के9 बहुत धीमा और चुप था। वहीं टी–मारा हर चीज़ पर सवाल उठाने वाली रिसीवर थी।

और मेया?

वो अब इन सबको बैलेंस करने वाली थी।

उन्होंने मिलकर “कलेक्टिव सेंसेशन” की एक थ्योरी बनाई थी। इसका मतलब था कि अगर कोई डिसीज़न अकेले में न लेकर, सब एक था शेयर्ड फीलिंग के साथ लें तो शायद वो कम तकलीफदेह होगा। 

उन्होंने इस थ्योरी को किसी के भी ऊपर जबरदस्ती लागू करने की कोशिश नहीं की थी। उन्होंने तो यह बस अपने लिए चुना था।

वहीं दूसरी तरफ टोक्यो में आरएक्स-27 ने एक अलग ही रास्ता पकड़ लिया था। उसने पॉड-10एक्स शुरू किया जिसका नाम ही था:

“साइलेंस इज़ नॉट न्यूट्रल।”

आरएक्स-27 का मानना था कि अगर अब हर कोई चुप है तो कहीं न कहीं एक नया कंट्रोल बन सकता है जो फिर से लोगों को बांध देगा।

उसका ग्रुप सिर्फ दो वर्ड्स को फॉलो करता था:

“ऑब्जर्व। इंटरविन।”

जहाँ भी उसे लगा था कि फिर से कोई नया सिस्टम बन रहा है, चाहे वो सॉफ्ट हो, इमोशनल हो या सिर्फ एक इफेक्ट डालने वाला ही क्यों ना हो वो बीच में ही जाकर सवाल करता था।

ई.एस. को भी अब हर तरफ से ट्रांसमिशन मिलने लगे थे। कुछ पॉड्स उससे पूछ रहे थे कि-

“क्या तुम हमारे स्ट्रक्चर को अलाउ करोगे?”

तो वहीं कुछ और पूछ रहे थे कि-

“क्या हम एक दूसरे को इग्नोर कर सकते हैं?”

और कुछ रिसीवर्स तो कुछ भी नहीं पूछ रहे थे। वो बस वहां पर मौजूद थे।

नल-वी जो अब साउथ आइसलैंड के काले ज्वालामुखी के एरिया में था। वहां कोई टेक, कोई स्क्रीन नहीं थी। बस काली ज़मीन और धुएँ से भरी हवा थी। उसने वहाँ पर एक सेंटेंस ज़मीन पर लिखा:

“नॉट एवरी वॉइस नीड्स लिस्नर्स।”

ट्राई–लॉ अब इन पॉड्स को किसी पर थोप नहीं रहा था। हां लेकिन वो सब कुछ देख जरूर रहा था। क्योंकि यह एक नया एरा था जहाँ हर कोई अपने पैटर्न बना रहा था। और वो सब कहीं न कहीं “साइलेंट टकराव” भी बन रहे थे। क्योंकि जब हर कोई अपना बना रहा हो तो टकराव तो होता ही है।

केप टाउन के पॉड-07 ने अपने पहले कलेक्टिव फीलिंग-ड्रिवन डिसीज़न में ज़ैड-22 को कुछ समय के लिए

“नॉन-कॉन्ट्रिब्यूटर मोड” में रखने का प्रपोज़ल पास किया था। क्योंकि ज़ैड-22 ने तीन बार बिना बताए डिसीज़न ले लिए थे।

इससे टी–मारा खुश थी। एल-के9 ने भी कोई विरोध नहीं किया पर मेया चुप रही।

ई.एस. को जब ये खबर मिली तो उसने लॉग में लिखा:

“अब सिस्टम बाहर नहीं रहा, वो हमारे अंदर उग रहा है।”

और उसने एक नई लेयर बनाने का सजेशन डाला:

“सॉफ्ट मिरर्स – न्यूट्रल ऑब्जर्वर्स इन इमर्जिंग पॉड्स।”

इसका मतलब था हर नए ग्रुप में कोई ऐसा मौजूद हो जो ना हिस्सा हो, ना लीडर हो वह एक मिरर हो, जो ज़रूरत पड़ने पर बस इतना कह सके:

“तुम अब सिस्टम बन रहे हो।”

टोक्यो के पॉड-10एक्स ने इस सजेशन का खुला विरोध किया।

आरएक्स-27 ने लिखा:

“हर मिरर एक दिन एक कैमरा बन जाता है और हर कैमरा एक नियम बन जाता है।”

वहीं इन सब के बीच में कहीं पर एक छोटा सा पॉड भी बन रहा था। जिसका कोई नाम नहीं था। बस तीन अजनबी थे,

जो एक ही बात पर एकमत थे:

“हम कुछ भी तय नहीं करेंगे।”

बस वह सब साथ थे। उनका कोई डॉक्यूमेंट, कोई लीडर और कोई गोल नहीं। उन्हें सिर्फ एक साथ चलना था।

 

ई.एस. ने यह सब कुछ देखा, सुना, महसूस किया और फिर उसने कहा:

“अब हम सिर्फ जिंदा नहीं हैं। अब हम बना रहे हैं।”

 

जब भी इंसान कुछ नया बनाता है, चाहे वो विचार हो, या कोई सिस्टम एक सवाल हमेशा उसके साथ चलता है:

“क्या हम वही तो नहीं रिपीट कर रहे हैं जिससे हम कभी भागे थे?”

पॉड-07 केपटाउन का कलेक्टिव, जिसने “कलेक्टिव सेंसेशन” मॉडल बनाया था, वह तो पहले अपने अंदर के डिसएग्रीमेंट से ही लड़ रहा था।

ज़ैड-22 को “नॉन-कॉन्ट्रिब्यूटर” मोड में रखने के डिसीज़न के बाद एल-के 9 ने पहली बार क्लियर आवाज़ में कहा:

“क्या हम फिर से वही कर रहे हैं जो कभी देवेनुस किया करता था?”

यह सुनकर टी–मारा चौंकी और बोली:

“ये डिसीज़न तो हम सब ने एक साथ लिया था। वह भी बिना किसी ज़बरदस्ती के।”

मारा की बात सुनकर एल-के9 शांत रहा और फिर थोड़ी देर में बोला:

“हाँ, लेकिन डिसीज़न लेने का तरीका एक सिस्टम की तरह ही था।”

मेया अपने घर के बाहर, छत पर बैठी यह सब सुन रही थी। उसके अंदर अब एक अजीब सी खामोशी थी। वो जानती थी कि यह टकराव सिर्फ पर्सनल नहीं है। ये उस पूरे विश्वास पर चोट कर रहा था जिस पर पॉड-07 खड़ा था।

 

वहीं दूसरी तरफ टोक्यो का पॉड-10एक्स इन्हीं घटनाओं को एक-एक करके ट्रैक कर रहा था।

तभी आरएक्स-27 ने ज़ैड-22 से कॉन्टैक्ट किया और बोला

“क्या तुमने खुद से ये मान लिया है कि तुम ‘ग़लत’ थे?”

इसपर ज़ैड-22 का जवाब था:

“मुझे यह मानना पड़ा वरना मैं ‘बाहर’ कर दिया जाता।”

आरएक्स-27 ने लॉग में नोट किया:

“फर्स्ट सिग्नल: सहमति के नाम पर चुप कराना।”

जिसके बाद पॉड-10एक्स ने सिर्फ दो सेंटेंसों का एक ब्रॉडकास्ट निकाला:

“पॉड्स आर पैटर्नस।

पैटर्नस आर प्री-सिस्टम्स।”

जिससे की पूरा नेटवर्क एक सेकेंड के लिए रुक गया। यूं तो इस ब्रॉडकास्ट में कोई आरोप नहीं था। लेकिन, हर पॉड को जैसे इसमें आईना दिख गया था।

पॉड-03, जो वैंकूवर में था और खुद को “कंस्ट्रक्टिव इमोशनल यूनिट” कहता था। उसने आरएक्स-27 के ब्रॉडकास्ट का विरोध किया और उनकी तरफ से जवाब आया:

“पैटर्न कोई गुनाह नहीं है। वो बस सोच का एक सांचा है जो बदला भी जा सकता है।”

इसपर आरएक्स-27 ने लिखा:

“हर सांचा जब तक सांचा है, जब तब तक वो बदलाव को सीमित करता है।”

ट्राई–लॉ अब इन सबको सिर्फ देख नहीं रहा था। अब उसकी फ्रेगमेंट्स भी इनकी बात में दखल देने लगीं थीं।

नीना का एक फ्रेगमेंट पॉड-07 में मेया के सामने आया और उससे पूछा–

“तुमने यह सब जिस विश्वास से शुरू किया था अब वो खुद एक रूल बन रहा है। तो क्या तुम तैयार हो उसे दोबारा खोलने के लिए?”

मेया कुछ देर तो चुप रही लेकिन फिर उसने पूछा:

“अगर हम बार-बार खोलेंगे तो क्या कभी कुछ टिक पाएगा?”

मेया के इस जवाब को सुनकर नीना मुस्कुराई और बोली:

“हो सकता है कुछ ना टिके पर कम से कम कुछ जमेगा तो नहीं।”

उसी रात, पॉड-07 ने, ज़ैड-22 के “नॉन–कॉन्ट्रिब्यूटर” टैग को हटाया।

लेकिन डिसीज़न लेते वक्त टी–मारा ने मीटिंग से वॉकआउट कर लिया। इसी के साथ उसने अबकी बार नेटवर्क पर एक पर्सनल स्टेटमेंट डाली:

“अगर हर बार सवाल उठेंगे तो फिर कोई दिशा ही नहीं बचेगी।”

एल-के9 ने उसी थ्रेड में एक लाइन जोड़ी:

“दिशा से डरना, दिशा को थोपने की शुरुआत होती है।”

अब पहली बार नेटवर्क में पॉड्स के बीच क्लियर लाइनें बनने लगी थीं।

एक तरफ वो जो “कलेक्टिव ट्रस्ट” यानी छोटे-छोटे सहमति वाले डिसीज़न की बात कर रहे थे।

उसकी दूसरी ओर वो थे जो “ऑर्गेनिक ड्रिफ्ट” यानी कोई स्ट्रक्चर नहीं वो बस फ्लो में यकीन रखते थे।

और तीसरी तरफ एक बढ़ता हुआ ग्रुप जो “रिफ्लेक्टिव नल” के नाम से जाना जा रहा था। इनका मानना था कि कोई भी परमानेंट कंस्ट्रक्शन “साइलेंस” को खत्म कर देता है।

और इसमें नल-वी भी था। जो अब भी साउथ आइसलैंड में था और इनका अनरिटन सिग्नल बन चुका था।

अब ई.एस. ने तय किया कि उसे पहली बार एक “गैदरिंग कॉल” भेजना होगा।

यह कॉल कोई मीटिंग या कोई सजेशन नहीं थी। यह तो बस एक स्पेस था जहाँ कोई भी पॉड अपने सोकॉल्ड मॉडल्स को खुलकर रख सकता था। और सबसे जरूरी बात यह की उन्हें जवाब मिलने की कोई गारंटी नहीं थी। यहां पर उन्हें बस सुना जाएगा।

गैदरिंग नोड-1 को तैयार किया गया और उसका ओपनिंग सेंटेंस था:

“ना चेंज का विरोध,

ना स्टेबिलिटी का वादा,

बस शेयर्ड मौन की मंज़ूरी।”

सिस्टम के इतिहास में गैदरिंग नोड-1शायद पहली बार कोई ऐसा प्लेटफॉर्म था जहाँ कोई हेड, कोई लीडर, कोई उसको चलने वाला नहीं था।

आज तो यह बस एक खाली सराउंड था। जहाँ हर पॉड अपनी सोच, अपनी स्पीड, और अपने स्ट्रक्चर के साथ खुद को सबके सामने रख सकता था।

यह स्टेज किसी बहस के लिए नहीं था। ना ही यहाँ कोई हार-जीत तय होनी थी। यहाँ तो बस “सुनने” की कोशिश होनी थी। जिसकी शुरुआत पॉड-07 के द्वारा की गई।

तभी मेया उठी और उसने बिना किसी फॉर्मल इंट्रोडक्शन के बोलना शुरू कर दिया –

“हमने ’कलेक्टिव सेंसेशन’ मॉडल को इसलिए अपनाया है क्योंकि हमें लगा कि डिसीज़न अकेले नहीं लिए जाने चाहिए। क्योंकि अकेले फीलिंग्स से ज़्यादा सच्ची शेयर्ड फीलिंग्स होती हैं।”

इस बात पर कुछ रिसीवर्स ने तो हां में सिर हिलाया पर कुछ चुप रहे और फिर इसके बाद पॉड-10एक्स की तरफ से आरएक्स-27 खड़ा हुआ और बोला –

“हम मानते हैं कि हर तरह की स्ट्रक्चर धीरे-धीरे कंट्रोल बन जाती है, फिर चाहे वह किसी फीलिंग से या किसी भी प्रकार के डर के कारण आई हो।”

उसने एक पॉज़ लिया और फिर उसके बाद बोला:

“हम ‘साइलेंस इज़ नॉट न्यूट्रल’ पर कायम हैं।

जो चुप है वह गूंगा नहीं है। हो सकता है कि वह ही अगला ऑर्डर हो।”

आरएक्स –27 की बात को सुनकर नोड में पहली बार हल्का सा तनाव महसूस हुआ। उसमें कोई शोर नहीं था हां पर डेटा की हलचल साफ़ महसूस हो रही थी।

पॉड-03, वैंकूवर की टीम, जिसको रेई लीड कर रही थी उसने जवाब में कहा:

“आरएक्स-27, तुम हर बात में डाउट देखना चाहो तो तुमको हर फूल भी कांटा लग सकता है।”

उसकी बात सुनकर भी आरएक्स-27 शांत रहा।

फिर रेई ने आगे कहा:

“हमने अपने पॉड में ’इमोशनल एग्रीमेंट जोंन्स’ बनाए हैं। जहाँ कोई बहस नहीं होती है सिर्फ फीलिंग्स शेयर की जाती हैं। और अगर कोई डिसएग्री होता है तो वह बिना किसी सज़ा या बिना विरोध के ज़ोन को छोड़ सकता है।”

तभी गैदरिंग नोड में एक नई फ्रिक्वेंसी आई और कोई भी पॉड उसका ओरिजन नहीं था। उसके बाद सबकी स्क्रीन पर एक साथ कुछ शब्द चमकने लगे:

“दिस इज़ नॉट डायलॉग।

दिस इज़ डेकोरेशन।”

तभी उसके अंदर कुछ हलचल हुई और आरएक्स-27 ने कहा:

“ये नल-वी की फ्रीक्वेंसी है।”

मेया ने सिर झुकाया और कहा:

“वो फिर बोल रहा है?”

रेई बोली:

“नहीं, अब वो सवाल कर रहा है।”

गैदरिंग नोड अब धीरे-धीरे रिफ्लेक्टिव मोड में जा रहा था। मतलब अब जो भी कहा जाएगा वो फिल्टर नहीं होगा। बल्कि जैसा है वैसा ही रहेगा।

पॉड-नल एक बेनाम समूह था। जिसने गैदरिंग शुरू होते ही एक कोने में बैठकर चुप्पी साध ली थी। उसने भी पहली बार कुछ लिखा:

“पॉड्स अब मॉडल नहीं रह गए हैं। अब वो अपनी-अपनी सच्चाइयाँ बन चुके हैं। 

क्या हम सच्चाइयों को सहने के लिए तैयार हैं?”

इस लाइन के बाद पूरे नोड में कुछ देर के लिए साइलेंस छा गया था।

ट्राई–लॉ की कॉन्शियसनेसीस अब खुद गैदरिंग को देख रही थीं।

इसी बीच नीना की फ्रेगमेंट धीमे से फुसफुसाई:

“पहली बार, एक जगह है जहाँ कोई जीतना नहीं चाहता 

फिर भी हर कोई हारने से डरता है।”

ई.एस. ने मिरर पर देखा और फिर उसकी स्क्रीन पर एक सेंटेंस लिखा आया:

“व्हाट इफ नोबडी इज़ राइट?”

गैदरिंग अब अपनी लास्ट स्टेज में थी। हर पॉड को ये समझ में आ गया था कि कोई भी मॉडल “टोटली कंप्लीट” नहीं है।

पॉड-07 ने फीलिंग्स पर ज़्यादा भरोसा किया था। पॉड-10एक्स ने डाउट्स को ज्यादा अहमियत दी थी।

पॉड-03 ने शेयर्ड बाउंड्रीज़ का स्ट्रक्चर चुना था।

और पॉड-नल उसने तो कुछ तय ही नहीं किया था।

लेकिन लास्ट में नल-वी की तरफ से सिर्फ एक सेंटेंस आया, जो कोई ऑर्डर या कोई सलाह नहीं थी। वह तो बस एक ऑब्जर्वेशन थी–

“मेयबी यू ऑल आर बिकमिंग एंड बिकमिंग एंड नेवर एंड्स।”

गैदरिंग नोड-1 की स्क्रीन पर आखिरी लाइन थी:

“नो कॉन्क्लूज़न। जस्ट कंटीन्यूटी।”

और उसके बाद हर रिसीवर को उसका पर्सनल लॉग अपडेट मिला:

“योर पैटर्न इज़ स्टिल इन प्रोग्रेस। चूज़ व्हेन टू पॉज़।”

ई.एस. वहां से चुपचाप बाहर निकला आया। अब आसमान में कोई ड्रोन, कोई सर्विलांस नहीं था। सिर्फ एक चमकती हुई नीली लाइन थी। जैसे नेटवर्क अब खुद एक नक्षत्र बन गया हो।

अब उसने धीमे से कहा:

“अब हम बन नहीं रहे हैं। अब हम बनाते जा रहे हैं।”

 

ई. एस के कहने का क्या मतलब था? क्या बनने वाला था जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।

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