मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!
जब हम अपने गाँव बखेड़ा से शहर जाने के लिए ट्रेन में चढ़े थे तो हमें लगा था कि शहर के लोग पढ़े-लिखे और सभ्य होते हैं। शहर वाले मेरे गाँव वालों की तरह मुँहफट और बदतमीज नहीं होंगे। शहर वालों के बारे में सुना था कि ये तो छींक मारकर भी सॉरी बोलते हैं.. वहीं हमारे गाँव वाले.. वो तो इंसान मारकर भी सॉरी नहीं बोलते क्योंकि शहर वाले सिर्फ इंग्लिश में बात करते हैं इसलिए उनकी बोली में विनम्रता, नरमी और एक मिठास होती है.. ऐसा हमने सुना था। जब हम शहर पहुंचे तो समझ में आया कि सुनी सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि शहर वाले तो गाँव वालों से भी ज़्यादा बदतमीज और मुँहफट होते हैं। जिस दिन आपको अंग्रेजी समझ आने लग जाए उस दिन आपको पता चलेगा कि ये मीठी-मीठी पॉलाइट आवाज़ में कितनी गंदी बातें करते हैं। इनका अंग्रेजी का शब्दकोश सिर्फ और सिर्फ गालियों से भरा हुआ है। इनसे अच्छे तो गाँव वाले हैं.. कम से कम उनकी गालियाँ समझ के उन्हें वापस गाली तो दे सकते हैं। अब जब किसी की गाली ही समझ में ना आए तो फिर न तो गाली देने का स्वाद आता है और न ही गाली खाने का! इसलिए महराज शहर वालों का पैसा और महंगा लिबाज़ देखकर उन्हें सोफिस्टिकेटेड समझने की भूल कभी मत करना क्योंकि ये अपनी पे आ जाएं तो गाँव वालों से भी ज़्यादा अभद्र भाषा और बदतमीज़ी से बात करते हैं। जैसे कि अभी शौर्य करके गया है भीम सिंह के बारे में शिवांगी के सामने। भीम सिंह की मानसिक बीमारी की ओर सहानुभूति दिखाना तो दूर शौर्य तो उसे पागल ही डिक्लेयर करके चला गया। शिवांगी को शौर्य का भीम सिंह को बार-बार पागल कहना बिल्कुल पसंद नहीं आया और उसने शौर्य को उसकी बदतमीज़ी के लिए सबक सिखाने की कसम खा ली। शिवांगी क्या करने वाली है इसका शौर्य को कोई आइडिया नहीं था। वो चुप-चाप दबे पाँव अपने दादा जी के घर गया और छत पे खाट लगाकर मच्छरों के बीच सो गया। अगले दिन जब शौर्य उठा तो वो बड़ा हैरान था क्योंकि सूरज आसमान पर चमक रहा था और ना तो उसके कपड़े गीले थे और ना ही उसका बिस्तर। ये गाँव में शौर्य की पहली सुबह थी जब हरिश दद्दा ने उसके मुँह पर पानी मारकर उसे नहीं उठाया था। जब शौर्य ने घड़ी में टाइम देखा तो उसे एहसास हुआ कि ये सुबह नहीं है बल्कि दोपहर हो चुकी है। शौर्य हैरान था कि उसके दादा जी ने उसे दोपहर तक सोने कैसे दिया!
शौर्य: दादा जी आज आपने मुझे उठाया नहीं?
हरिश दद्दा ने शौर्य की बात का कोई जवाब नहीं दिया और वो खाना बनाने में लगे रहे। उनकी चुप्पी में उनका गुस्सा साफ झलक रहा था। शौर्य ने जो दूसरे गाँव में उनकी बदनामी करवाई उसके बाद हरिश दद्दा ने शौर्य से बात करनी बंद कर दी है। शौर्य को अपने दादा जी का ये साइलेंट ट्रीटमेंट बिलकुल अच्छा नहीं लगा। उसने एक मच्योर मर्द की तरह इस मसले को हल करने का फैसला किया.. और वो अपने दादा जी के साइलेंट ट्रीटमेंट को इग्नोर मारकर चुप-चाप बेशर्मों की तरह रोटी खाने लगा क्योंकि हम मर्दों के पास हर मुसीबत का यही हल होता है.. चुपचाप मुसीबत को इग्नोर मारो और भगवान भरोसे बैठ जाओ, मुसीबत अपने आप हल हो जाएगी। शायद इसी वजह से हम मर्दों की मुसीबतें कभी हल नहीं होतीं। हरिश दद्दा को खेत जाते देख शौर्य भी उनके पीछे-पीछे खेत चला गया पर क्योंकि हरिश दद्दा उससे बात नहीं कर रहे और उसे खेत में काम करने की उतनी ही नॉलेज है जितनी हमारी क्रिकेट टीम के बैट्समेन को स्पिन खेलने की है.. इसलिए वो खेत में एक कोने में बैठा मस्त चिल करता रहा और उसके दादा जी खेत में कमर तोड़ मेहनत करते रहे। शौर्य अकेला बैठा गाँव से भागने का रास्ता सोच रहा था कि तभी उसके पास उत्सुकता से भरे हुए बच्चों का झुंड आया और उसकी तारीफें करने लगा… “अरे वाह भईया आपकी घड़ी तो बड़ी कमाल की है! कहाँ से लिए? संतोष बाजार से या इमली नगर की रेडी से?”
शौर्य: एक्सक्यूज़ मी ड्यूड! ये क्या तुम्हें रात के अंधेरे में चमकने वाली कोई चीप टैकी सी घड़ी लग रही है! ये रोलक्स है वो भी 24 कैरेट गोल्ड। डायमंड स्टडेड। ये घड़ी पहनने वाला टाइम नहीं देखता।
शौर्य की बात सुनकर दूसरे बच्चे ने पूछा, “क्यों? ये घड़ी सिर्फ अंधे पहनते हैं?”
ये सुनकर सारे बच्चे हँसने लगे।
शौर्य: नहीं। ये घड़ी पहनने वाला टाइम इसलिए नहीं देखता क्योंकि उसी का टाइम चल रहा होता है! पता है इसकी कीमत 20 लाख है। वो भी रुपयों में नहीं, दिरहम!
तीसरा बच्चा ठहाके लगाते हुए बोला, “तो इतनी महंगी घड़ी आप की कलाई में क्या कर रही है? आपका तो टाइम बहुत ही खराब चल रहा है! वरना शहर छोड़कर यहाँ गाँव में क्या कर रहे होते!”
शौर्य के पास उस बच्चे की बात का कोई जवाब नहीं था। वो शर्मिंदा हो गया और टॉपिक बदलने लगा…
शौर्य: जानते हो ये घड़ी मेरे पास कैसे आई? जब मैं पहली बार दुबई गया था ना तो वहाँ के शेख की बेटी का मुझपर दिल आ गया था। वो तो मेरे प्यार में पागल ही हो गई थी। कह रही थी शादी करलो मेरे पापा तुम्हें दुबई का प्रिंस बना देंगे। मैंने साफ मना कर दिया।
बच्चों ने एक साथ हैरान होकर पूछा, "क्यों?”
शौर्य: अरे अब दुबई के शेखों की उतनी कमाई कहाँ! वैसे भी जितना तेल दुबई के शेख के कुओं में है उससे ज्यादा तो मेरी फ़रारी एक महीने में पी जाती है। पता है मेरी फ़रारी सड़क पे नहीं चलती।
शौर्य की लंबी-लंबी छोड़ने पर झुंड से एक बच्चे ने उसकी टांग खींचते हुए कहा, “तो क्या पानी में डूबती है? ऐ भईया उसे सबमरीन कहते हैं! कुछ भी मत फेंको!”
शौर्य: मेरा मतलब था कि जब मैं अपनी फ़रारी के एक्सेलेरेटर पे पैर मारता हूँ ना तो वो सड़क पे नहीं चलती.. हवा से बातें करती हुई जाती है! शूँ करके!!!!
बच्चों ने शौर्य की बैंड बजाना बंद नहीं किया, “अगर इतना ही शूँ करके जाती है तुम्हारी फ़रारी तो उसी में फरार होकर किसी दूर देश चले जाते यहाँ गाँव में क्यों आ गए?”
बच्चों के सवालों ने शौर्य की दुखती रग पर हाथ रख दिया था। उसे शहर की अपनी ऐशोआराम वाली ज़िन्दगी याद आने लगी। वो नॉस्टाल्जिया में खोया हुआ था कि तभी एक बच्चे ने पूछा… “भईया ये जूते कहाँ से सिलवाए? भीम सिंह से?”
भीम सिंह का नाम सुनते ही शौर्य के पूरे शरीर में पत्थरों की मार का दर्द फिर से उठ गया और उसे गुस्सा आ गया।
शौर्य: उस पागल का नाम मत लो मेरे सामने। पता है कल रात उसने मुझपर पत्थरों की बारिश कर दी थी और ऐसे जूते बना पाना किसी गाँव के मोची के बस की बात नहीं है। ये तो वर्साचे के जूते हैं जो मैं पेरिस से लेकर आया था। पता है इसकी भी बहुत इंटरेस्टिंग स्टोरी है। वर्साचे वालों को ये जूते मेरे पैरों में इतने अच्छे लगे कि वो तो मेरे पैरों की फोटो खींच कर अपने जूते एडवरटाइज़ करना चाहते थे। यू नो टाइम स्क्वायर, बिलबोर्ड यहाँ तक कि वो तो बुर्ज खलीफा पर भी मेरे पैरों की फोटो डिस्प्ले करना चाहते थे। उन्होंने तो मुझे पार्टनरशिप भी ऑफर की थी, पर मैंने मना कर दिया।
एक बच्चे ने फिरकी लेते हुए पूछा, “क्यों? आपके पैर फिट नहीं आए एड में?”
शौर्य: नहीं डूड। मुझे एड करने की क्या जरूरत है? मैं कोई फिल्म स्टार थोड़ी ना हूँ जो कुछ करोड़ रुपयों के लिए जूते चप्पल, पान मसाला बेचना शुरू कर दूँ। आई एम शौर्य रंजन. मेरा भी कोई क्लास है!
एक बच्चे ने शौर्य से पूछा, “भईया आप अभी तक क्लास में ही पढ़ते हो? कितने साल फेल हुए आप?”
शौर्य: नो नो नो। क्लास मतलब मेरी भी कोई इज्जत है! मैं ऐसे छोटे मोटे काम नहीं करता!
शौर्य फेंके जा रहा था, बच्चे मौज लिए पड़े थे, शौर्य को तो ये भी समझ नहीं आ रहा था कि वो बच्चों का टाइमपास बन रहा है। झुंड के एक बच्चे ने कहा, “शायद इसलिए भईया तुम इस खेत में खाली बैठे हुए हो। खैर ये बताओ भईया तुम्हारे शरीर पर कुछ मेड इन इंडिया है भी कि नहीं?”
शौर्य: डूड मेड इन इंडिया की कोई ब्रांड वैल्यू नहीं होती और शौर्य रंजन सिर्फ ब्रांड्स पहनता है क्योंकि इंसान की पहचान उसके कपड़ों से होती है। ये पैंट देख रहे हो ये मनीष मल्होत्रा की है!
एक बच्चे ने हँसते हुए कहा, “शर्म करो भईया इतने अमीर होकर किसी और के कपड़े चुरा के पहनते हो। वो बेचारा मनीष बिना पैंट के नंगा घूम रहा होगा जाओ उसकी पेंट पहले उसे वापिस करके आओ।”
शौर्य: नहीं डूड। मनीष मल्होत्रा मतलब मनीष मल्होत्रा द डिज़ाइनर! ये उसकी डिजाइन की हुई पैंट है। पता है इसकी भी बहुत क्रेजी स्टोरी है। मनीष एक बार मुझे एक पार्टी में मिला था और उसने मुझे देखा और कहा शौर्य तुम इतने हैंडसम हो, तुम्हारी बॉडी भी इतनी अच्छी है.. तुम मॉडलिंग क्यों नहीं करते!
बच्चों ने पूछा, “फिर आप मॉडल बन गए?”
शौर्य: नो डूड! मतलब मॉडलिंग इस सच अ... अब कैसे कहूँ मैं.. मॉडलिंग तो स्ट्रगलर्स करते हैं ना! जिनको फिल्म लाइन में काम नहीं मिल पाता वो रोज़ी रोटी कमाने के लिए मॉडलिंग करते हैं। मैं शौर्य रंजन हूँ मुझे रोज़ी रोटी कमाने की क्या जरूरत! जब मैं अपने डैड के क्रेडिट कार्ड से सीधा बर्गर ऑर्डर कर सकता हूँ!
शौर्य की बातें सुनकर सारे बच्चे उसे शक की निगाह से घूरे लगे।
शौर्य: क्या हुआ? तुम लोगों को मेरी बातों पर विश्वास नहीं है?
फाइनली हमारे गाँव बखेड़ा के बच्चों ने शौर्य को चमचमाता आईना दिखाया और कहा, “भईया काम तो तुम कोई करते नहीं। शहर से फरार हो! दहेज भी नहीं लिए उस दुबई वाली से! बस बकैत ही मारे जा रहे हो। विश्वास कहाँ से होगा? हमें तो लगता है ये जूते, कपड़े, घड़ी सब नकली हैं। ऐसा सेम टू सेम माल हमारे बाबूजी हर मंगलवार को चंदेरी बाजार की चोर मार्केट से उठा लाते हैं।”
यह सुनकर शौर्य का ईगो हर्ट हो गया।
शौर्य: तुम लोगों को लग रहा है कि मैं बकैत काट रहा हूँ! लेट मी शो यू।
शौर्य ने एक एक करके अपने जूते, कपड़े और घड़ी उतारकर ब्रांड समेत सभी बच्चों को दिखाए।
शौर्य: अब विश्वास हुआ?
पहले तो बच्चे हैरानी से शौर्य के जूते, कपड़े और घड़ी को देखते रहे और फिर एक दम से उसके जूते, कपड़े और घड़ी लेकर वहाँ से फुर्र हो गए।
शौर्य: ऐ चोर! चोर! चोर! कोई रोको इन्हें!
शौर्य बीच खेत में कच्छे में खड़ा चिल्लाता रहा पर उसकी मदद करने वाला वहाँ कोई नहीं था। शौर्य ने जब मुड़के देखा तो उसके दादा जी भी खेत से घर जा चुके थे।
शौर्य को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो कच्छे में घर कैसे जाएगा?
आखिर क्यों चुराए बच्चों ने शौर्य के जूते, कपड़े और घड़ी?
क्या शौर्य कच्चे में अपनी इज्जत बचाकर घर सही सलामत पहुँच पाएगा?
क्या शौर्य का कच्छा ब्रांडेड नहीं है जो उसने वो उतारकर नहीं दिखाया बच्चों को?
सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँववालों के अगले चैप्टर में!
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