मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों! 

हमने सुना था कि इंसान जितना ज़्यादा कपड़ा पहनता है उतना अमीर दिखता है और कपड़ा जितना बड़ा होता है उतना ही महंगा होता है.. इसलिये शर्ट की कीमत बनियान से ज़्यादा होती है.. स्वेटर की शर्ट से ज़्यादा और कोट पैंट तो सबसे ज़्यादा महंगा होता है इसलिये उसे खास मौके पर ही पहना जाता है.. चाहे वो साले की शादी हो या फिर ससुर का भोग, पर शहर आके पता चला कि यहाँ तो फैशन के मायने ही कुछ और हैं! यहाँ कम कपड़े पहनने वालों को ही अमीर समझा जाता है। रुमाल से छोटे साइज की स्कर्ट हजारों की बिकती है शहर में.. हमारे गाँव में ऐसे कपड़ों में इंसान को देखकर लोगों को तरस आ जाता है। उन्हें लगता है कि कोई बेचारी गरीब है जिसके पास पूरे कपड़े खरीदने के पैसे नहीं हैं। शहर में फैशन के नाम पर खाली कच्छा पहन के ही पार्टी में आ जाते हैं। साइंस की किताब में एक बार पढ़ा था कि जब कपड़े नहीं होते थे तो हमारे पूर्वज पत्ते पहनके घूमते थे। फिर कपड़े पहनके मानवजाति का विकास हुआ और अब पैसे के चक्कर में लोग कपड़े उतारकर मानवजाति का सर्वनाश कर रहे हैं। अब शहर में नंगा होने में शर्म नहीं रही पर क्योंकि इस समय शौर्य गाँव में है इसलिये उसे अपने खेत में कच्छे में खड़े होकर बहुत शर्म आ रही है। वो शर्म के मारे पानी पानी हो चुका है। इतना पानी-पानी कि पूरे खेत में दो दिन तक मोटर चलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। दरअसल गाँव के बच्चों ने शौर्य को चने की झाड़ पर चढ़ाकर नंगा करके ज़मीन पर पटक के चले गए। उन्होंने पहले शौर्य की तारीफ़ों के पुल बांधे और फिर उसके कपड़े, जूते, घड़ी सब चुरा कर चले गए। शौर्य ने जब मुड़के देखा तो उसके दादा जी भी खेत से घर जा चुके थे। शौर्य को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो कच्चे में घर कैसे जाएगा? गाँव वालों की नज़रों से बचने के लिए शौर्य ने अंधेरा होने का इंतज़ार किया क्योंकि उसे पता था कि अंधेरा होते ही सारे गाँव वाले अपने-अपने घरों में शराब पीने बैठ जाएंगे और तब वो आराम से अपनी इज्जत बचाकर घर जा सकता है क्योंकि गाँव में तो कोई स्ट्रीट लाइट भी नहीं है। जैसे ही अंधेरा हुआ शौर्य दबे पांव अपने दादा जी के घर की ओर बढ़ने लगा। सड़क पे कोई नहीं था। सब गाँव वाले अपने-अपने घरों में थे, ये देखकर शौर्य ने राहत की सांस ली क्योंकि उसकी इज्जत को अब कोई खतरा नहीं था। जैसे ही शौर्य शिवांगी के घर के सामने से गुज़रा तो अचानक ही रोशनी उस पर पड़ने लगी। अंधेरे से भरे गाँव में शौर्य जुगनू की तरह चमक रहा था वो भी कच्छे में। जब शौर्य ने देखा तो उस पर बच्चे टॉर्च लाइट मार रहे थे और उसे कच्छे  में देखकर हंस रहे थे। ये वही बच्चे थे जो शौर्य के कपड़े, जूते, घड़ी सब चुरा कर भागे थे।

शौर्य: मैं तुम लोगों को छोड़ूंगा नहीं!

एक बच्चे ने चिल्ला कर पूछा, “पकड़ोगे कैसे? कच्छे में?”
सारे बच्चे जोर-जोर से हंसने लगे। शौर्य जो गुस्सा चढ़ा और वो उन बच्चों को पकड़ने के लिए उनकी तरफ भागने लगा, पर जैसे ही उसने पहला कदम उठाया उसे टन-टन-टन बजती हुई घंटी की आवाज़ आई। जब शौर्य ने मुड़के देखा तो शिवांगी अपने घर से स्कूल की घंटी बजाते हुए आ रही थी। घंटी की आवाज़ सुनके सारा गाँव बाहर आ गया और सबने शौर्य को कच्चे में देख लिया। पूरा गाँव उसे कच्छे में खड़ा देखकर खूब हंसा और शौर्य की इज्जत का फलूदा हो गया। ये तो बस शुरुआत है महाराज अभी तो शौर्य की इज्जत का आइसक्रीम फलूदा होना बाकी है। शिवांगी ने टॉर्च जलायी जिसकी रोशनी से एक बोर्ड चमक उठा जिसपर लिखा हुआ था…

शिवांगी: गांव वालों से जो लेगा पंगा वो हो जाएगा नंगा!

शौर्य समझ गया कि इस सब के पीछे शिवांगी का हाथ है और कहीं उसे कोई कन्फ्यूजन न रह जाए इसलिए शिवांगी ने उसके कपड़े, जूते, घड़ी जो बच्चों ने चुराए थे वो सब सेल पर लगा दिए गांव वालों के लिए।

शिवांगी: यह वर्साचे का जूता 10 रुपये में! रोलेक्स घड़ी सिर्फ 20 रुपये की, और डिज़ाइनर कपड़े सिर्फ 15 रुपये के!

अपने लाखों, करोड़ों की चीज़ों को कौड़ियों के भाव बिकते देख शौर्य जो पहले शर्मिंदगी से लाल हो गया था और फिर वो गुस्से से जमुनी हो गया।

शौर्य: शिवांगी तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?

शिवांगी: तुम्हें सबक सिखाने के लिए। अब जब भी तुम भीम सिंह या किसी और इंसान के ट्रॉमा का मजाक उड़ाओगे तो तुम्हें तुम्हारा यह वाला ट्रॉमा याद आ जाएगा!

शौर्य: एक स्कूल टीचर होकर तुमने बच्चों से चोरी करवायी! तुम्हें शर्म नहीं आती?

शिवांगी: कच्छे में तुम खड़े हो, शर्म मैं क्यों करू? जहां तक रही बात बच्चों की..  तो कुछ चुराने से किसी का फायदा हो तो वो चोरी बुरी नहीं मानी जाती!

शौर्य: किसका फायदा?

शिवांगी: तुम्हारा! यह महंगे महंगे कपड़े, जूते और घड़ी खोकर आज तुमने एक बहुमूल्य लेसन सीखा कि कभी किसी गांव वाले से पंगा मत लेना! अब इससे पहले कोई और बहुमूल्य लेसन सीखने के लिए तुम्हें अपना कच्छा भी त्यागना पड़ जाए जल्दी से घर भाग जाओ!

शौर्य को शिवांगी पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर कच्छे में वो उसका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता था। इसलिए अपनी बची खुची इज़्ज़त संभालकर शौर्य भागता हुआ अपने दादा जी के घर चला गया। वो सारी रात बदले की आग में सो नहीं पाया और जैसे ही सुबह उसकी आंख लगी उसकी खाट ज़ोर-ज़ोर से हिलने लगी। शौर्य घबराया, उसे लगा गांव में भूकंप आ गया है पर जैसे ही उसने आंख खोली उसने देखा कि गांव के दो लोग उसकी खाट खड़ी कर रहे थे.. मतलब उसको खाट से उतारकर उसकी खाट को भैंसों के तबेले में खड़ा कर रहे थे। शौर्य को समझ नहीं आ रहा था कि उसके घर में क्या हो रहा है। वो भागता हुआ अपने दादा जी के पास गया…

हरीश दद्दा अब भी शौर्य से नाराज़ थे तो उन्होंने अपना करैक्टर नहीं छोड़ा और साइलेंट ट्रीटमेंट में शौर्य के सवालों को इग्नोर किया। तभी वहां गांव के सरपंच रामू सिंह जी अपनी बड़ी-बड़ी मूछें और छोटा सा मुंह लेकर आए जिन्होंने शौर्य को बताया कि उनकी बिटिया की सगाई है और सगाई हरिश दद्दा के घर में रखी है।
अरे, मैं तो आप लोगों को बताना ही भूल गया था कि बिटिया की सगाई है! हमें भी बुलाया था लेकिन क्या करूं हमारा कंबख्त बॉस..  उसने छुट्टी ही नहीं दी। एक दिन इसकी कॉफी में सत्तू मिलाकर पिला देंगे इसको!

शौर्य: हमारे घर में? पर रामू सिंह जी हमारा घर कोई शादी हॉल या होटल थोड़ी ना है! आप यहां कैसे सगाई रख सकते हैं?

रामू सिंह मुस्कुराते हुए बोले, “अरे बउआ ये गांव बखेड़ा है, तोहार शहर नहीं! ईहाँ शादी हॉल.. होटल वगैरह कहां होत है! हम गांव वाले तो मिलजुलकर एक दूसरे के घर में ही सगाई, ब्याह, गोदभराई, मुण्डन, भोग सब मना लेते हैं।”

शौर्य: रामू सिंह जी हमारी प्राइवेसी का क्या? आप अगर गांव में एक टेंट लगाना अफोर्ड नहीं कर सकते तो हम अपना घर क्यों दे आपको फ्री में?

शौर्य की बात सुनकर सरपंच रामू सिंह जी की बड़ी बड़ी मूछें झुक गई। हरिश दद्दा को शौर्य की बात सुनकर बहुत गुस्सा चढ़ा। वो चिल्लाकर बोले..

हरीश: सरपंच ए खा कह दो कि मारेंगे लप्पड़, प्राइवेसी और पथरी दोनों निकल जाई! ई सहर नहीं है जहां हर कोई बस अपनी जिंदगी जीता है। ई हमरा गांव है और ईहाँ सबकी बहु बेटी सांझी है। रामू सिंह की बिटिया माने हमरी बिटिया और हमरी बिटिया की सगाई किसी होटल या तंबू मा नहीं होई। वो तो हमरे अपने घर मा ही होगी। जे खा दिक्कत है उ अपना बोरिया बिस्तर लेकर सहर जा सकत है। कोई न रोकी!

हरीश दद्दा ने बोल भले ही सरपंच रामू सिंह जी को बोले हो पर शौर्य समझ गया था कि उन्होंने धमकी उसी को दी है। शौर्य ने इसके आगे कोई भी बहस करना सही नहीं समझा। उसने सरपंच रामू सिंह जी से माफी मांगी और उन्हें उनकी बिटिया की सगाई के लिए बधाई भी दी। सरपंच रामू सिंह जी की मूछें खुशी से फिर खड़ी हो गई और उन्होंने हरिश दद्दा को गले से लगा लिया।
रामू सिंह ने दांत फाड़ दिए और कहा, “बहुत बहुत शुक्रिया हरीश जी। आप नहीं होते तो हमारी बिटिया की सगाई शायद टूट ही जाती!”

हरीश: मारेंगे लप्पड़ सारा थैंक यू मेंशन नॉट एक बार में ही निकल जाई! का रामू तुम भी सहर वालन की तरह बोलन लगे? हम का अपना घर देकर कोई एहसान किये हैं! बिटिया बस तुम्हरी ही बेटी है? हम ऊखा अपनी गोद मा नहीं खिलाए का! दोबारा ऐसी बात की तो सच मा लप्पड़ मार देंगे। अब इमोसनल रोना धोना बंद करो! बिटिया की सगाई है बहुत काम पड़े हैं! इस लाड साहब से भी कह दो कि बस फ्री की रोटी तोड़ने न आ जाएं। बिटिया ऐ खी भी बहन जैसन है। ऐ खा भी काम मा हाथ बताना पड़ी।

सरपंच रामू सिंह जी की आंखों में आंसू और अपने दादा जी के लिए इज्जत देखकर शौर्य को समझ में आया कि उसके दादा जी गांव वालों के लिए कितनी बड़ी हस्ती हैं! शौर्य ने एक शर्मिंदगी वाला चेहरा बनाया और सगाई के काम में हाथ बटाने का वादा किया पर ये सब तो बस नाटक था। असल में शौर्य को सगाई के नाम पर गांव से भागने का मौका मिल गया था। 

क्या शौर्य सगाई के नाम पर अपने दादा जी को चकमा देकर गांव से भाग पाएगा? 

क्या बिटिया की सगाई सुख शांति से हो पाएगी? 

क्या मेरा बॉस मुझे बिटिया की शादी के लिए छुट्टी देगा? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गांववालों के अगले चैप्टर में!

 

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