वो राघव नहीं था, पर जो शख्‍स सामने था वह भी किसी बुरे सपने से कम नहीं था। चेहरे से कोई गुंडा बदमाश लग रहा था। 

सांवला रंग, मोटा तगड़ा, चेहरे की मोटी मूंछ से वह और भी भयानक लग रहा था। काले सफेद रंग की चेक डिजाइन की टीशर्ट और ग्रे कलर की लोअर पहन रखी थी। मुँह में पान चबा रहा था, और मीरा को अजीब नजरों से देख रहा था। 

क्‍या इसी ने राघव के घर में चोरी की है...मीरा घबरा उठी, उसने अपने पर्स को कसकर पकड़ लिया और हिम्‍मत जुटाकर बोली, ‘’आप.....आप कौन हैं?‘’ .

वह आदमी तपाक से बोला, ‘’यह सवाल तो मुझे तुमसे पूछना चाहिए कि तुम कौन हो?‘’

‘’जी मतलब मैं समझी नहीं!!!

"मैं इस घर का मालिक हूं।‘’

मीरा ने उस आदमी को सवालिया नजरों से देखा और फिर उस घर को एक बार और गौर से देखा...मैं गलती से किसी और के घर में तो नहीं घुस आई, क्‍या यह राघव का घर नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है? यह वही घर है, मैं एकदम श्‍योर हूं।‘’ 

‘’पर यहां तो राघव नाम का एक शख्‍स रहता है।‘’ 

‘’रहता है नहीं रहते थे, और यह घर उनका नहीं है, वे केवल एक किराएदार था, मैं मकान मालिक हूं।‘’

अब मीरा थोड़ी सहज हुई। 

उस आदमी ने पूछा - आप कौन हैं? 

‘’मैं मैं......मीरा की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्‍या जवाब दे? वह खुद को राघव की दोस्‍त नहीं कहना चाहती थी...मैं…कबीर की ट्यूशन टीचर हूं‘’  मीरा ने कहा। 

‘’ओह, उस आदमी ने कहा और किचन के बाहर रखे डस्‍टबिन में पान थूककर वापस आकर बोला, ‘’तो आपको राघव जी ने फोन कर के नहीं बताया कि वह यह शहर छोड़कर हमेशा के लिए जा रहा है।‘’ 

शहर छोड़कर जा रहा है, पर कहां? 

यह तो हमें नहीं पता! 

अब एक बार और राघव भाग रहा है, भाग लो राघव सच से कब तक भागते फिरोगे।

कब गए वो? 

आज ही शाम को, अचानक से ही उसका जाने का प्रोग्राम बन गया, दोपहर को कुछ लोग बड़ी-बड़ी काली कारों में आए थे, उनमें से एक उनका बॉस थ। उनकी और राघव की कुछ देर तक मीटिंग भी हुई, फिर वह आदमी चला गया…उसके बाद राघव मेरे पास आया, उसके हाथ में दो सूटकेस थे, साथ में उसका बच्‍चा भी था और वे घर छोड़कर जाने की बात कहकर स्‍टेशन की ओर चले गए।

मैं तो अभी इसी घर में था, इसकी साफसफाई करवाने के बारे में सोच रहा था जिससे नए किराएदार को दे सकूं…फिर मैं घर खुला छोड़कर पान खाने चला गया और इसी बीच आप आ गई। 

 

स्‍टेशन.... कौन से स्‍टेशन गया है राघव.? 

सीएसटी, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल। 

कौन सी ट्रेन है, कितने बजे की ट्रेन है?’’ 

वह आदमी याद करते हुए बोला, ‘’राजधानी एक्‍सप्रेस साढ़े बारह बजे।‘’ 

मीरा बिना आगे कुछ सुने उल्‍टे पांव बाहर दौड़ गई। अभी साढ़े दस बज रहे थे, स्‍टेशन करीब एक घंटे दूर था….मीरा ने चारो ओर नजर दौड़ाई, एक टैक्‍सी खड़ी थी उसमें ड्राइवर ऊंघ रहा था। 

मीरा ने उसे झिंझोड़ते हुए कहा, ‘’भैया जल्‍दी.....सीएसटी चलना है।‘’

उस आदमी ने आंख मलते हुए मीरा को देखा, मैडम आज अपुन बहुत थका है, मन नहीं है...आप दूसरी टैक्‍सी कर लो।

भैया प्‍लीज, बहुत अर्जेंट है, मैं डबल किराया दे दूंगी‘’ आज मीरा का राघव से मिलना बहुत जरूरी था। 

दुगना किराया सुनकर ड्राइवर के चेहरे पर चमक आ गई, ‘’ठीक है मैडम जी, पूरे हजार रूपए लूंगा।‘’

हां दे दूंगी, चलो जल्‍दी।‘’ कहकर मीरा झट से कार के अंदर घुस गई। 

मकान मालिक बता रहा था कि दोपहर में राघव के घर बड़ी गाड़ियों से कुछ लोग आए थे, दिखने से बड़े घर के लोग लग रहे थे। 

राघव भी तो बड़े घर का बेटा है, क्‍या इस मकान मालिक को नहीं पता..? राघव खुद इतना अमीर है तो वह किराए के मकान में क्‍यों रहता था..? और राघव ट्रेन से क्‍यों जा रहा है? वह फ्लाइट का खर्च दे सकता है जब कबीर को वो ग्‍लोबल गोल्‍डन स्कूल में पढ़ा सकता है जो कि मुंबई के मंहगे स्‍कूलों में से एक है तो प्‍लेन से क्‍यों नही जा सकता..? कहीं ऐसा तो नहीं उसने बिजनेस करना छोड़ दिया हो और कहीं छोटी मोटी नौकरी कर रहा हो? ‘’

तभी ड्राइवर की आवाज ने मीरा का ध्‍यान भंग कर दिया...मैडम बहुत जाम है, स्‍टेशन पहुंचने में बहुत टाइम लगेगा, आपको पहले ही निकलना चाहिए था, वैसे कौन सी ट्रेन पकड़नी है आपको? 

मीरा ने घड़ी देखी, ग्‍यारह से ऊपर हो गए थे, फिर बाहर देखा, दुकान के बाहर लगे बोर्ड पर नाम देखकर अंदाजा लगाया कि अभी तो वह स्‍टेशन से बहुत दूर है।’’ 

ट्रेन नहीं पकड़नी, किसी से मिलना है।‘’ 

‘’क्‍या बहुत जरूरी है? ‘’ 

मीरा बहुत बुरी तरह से चिहुंकी, गुस्‍से से चिढ़ते हुए ड्राइवर को घूरते हुए बोली, ‘’मैंने तो पहले ही कहा था कि बहुत अर्जेंट हैं, कोई दूसरा रास्‍ता नहीं है क्‍या? ‘’

दूसरा रास्‍ता कहां है मैडम…आगे जाम पीछ भी जाम, गाड़ी एक इंच भी इधर उधर नहीं हो पा रही है, कम से कम एक घंटे तक तो ऐसा ही बना रहेगा। 

ओह गॉड, साढ़े बारह बजे तो राघव की ट्रेन चली जाएगी।आज इतना जाम क्‍यों है, आज तो आफिस का दिन भी नहीं है? ‘’ मीरा ने झुंझलाते हुए पूछा।

अरे मैडम, लगता है इस शहर में नई आई हैं, मुंबई में तो ऐसा जाम आम बात है, वैसे भी आज संडे है, लोग बाहर इंजॉय करने निकलते हैं, और आज तो जगह जगह शादी है, कुछ जगह तो सगाई भी है।‘’ मीरा को याद आया उसकी बॉस निहारिका की इंगेजमेंट पार्टी शायद खत्‍म हो गई होगी। 

 

ड्राइवर अपने में बोलता चला जा रहा था, ‘’इन शादियों से तो और भी ज्‍यादा जाम लगता है।‘’ 

अचानक मीरा के शरीर में सिहरन सी दौड़ उठी।

‘’मकान मालिक से मैंने यह तो पूछा ही नहीं कि वह जा कहां रहा है, कौन सी राजधानी एक्‍सप्रेस? अब अगर मैं स्‍टेशन पहुंच भी गई तो राघव को ढूंढना मतलब अंधेरे में तीर चलाने जैसा है, पर साढ़े बारह बजे वाली राजधानी एक्‍सप्रेस, बस यह पता चल जाए कि यह कहां जाएगी? ‘’ 

मीरा ने ड्राइवर से पूछा, ‘’क्‍या आप बता सकते हैं कि साढ़े बारह बजे वाली राजधानी एक्‍सप्रेस मुंबई से किस शहर को जाती है? ‘’ 

मीरा को लगा, यह क्‍या पूछ लिया, भला एक ड्राइवर यह सब क्‍या जाने वह कोई स्‍टेशन मास्‍टर नहीं है। 

मीरा की उम्‍मीद के विपरीत ड्राइवर ने कहा, ‘’दिल्‍ली जाएगी मैडम।‘’ ड्राइवर ऐसे बोला जैसे वह इन सब चीजों की पूरी जानकारी रखता हो।

मीरा उछल पड़ी, आप श्‍योर हैं? 

‘’हां मैडम, मैंने कई बार मुंबई से दिल्‍ली जाने वाले कस्‍टमर को स्‍टेशन पहुंचाया है, मैं तो इस समय का भी बता सकता हूं कौन सी ट्रेन कहां के लिए निकलने वाली है?‘’

 

राघव दिल्‍ली जा रहा है, दिल्‍ली में ही तो उसका परिवार है, उसका बिजनेस है, जब उसे दिल्‍ली जाना था तो मुंबई में क्‍यों रहने आया था?  

कार रेंग-रेंगकर चल रही थी, एक बाइक वाला मीरा की सीट वाले डोर को नॉक करने लगा....ड्राइवर को लगा उसे कहीं का एड्रेस पूछना है। 

ड्राइवर ने डोर के शीशे को नीचे कर के पूछा, ‘’हां भाई, क्‍या बात है? ‘’ 

उसने मीरा की डोर को फिर से नॉक किया।

ड्राइवर ने मीरा से कहा, ‘’मैडम जी शायद ये आपसे कुछ कहना चाहते हैं.....

मीरा ने उस शख्‍स की ओर देखा, कार के बगल में एक बाइक सवार, काले रंग का हेलमेट लगाए शख्‍स खड़ा था, मीरा ने कार का शीशा धीरे से नीचे किया, उस आदमी ने अपने हेलमेट का शीशा ऊपर किया।

 

 

‘’सूर्या तुम...''

‘’जी मैडम.....मुझे पता है आप राघव सर से मिलने स्‍टेशन जा रही हैं, ऐसे कार में तो आप कभी नहीं पहुंच सकती...आइए मैं आपको अपनी बाइक पर स्‍टेशन तक छोड़ देता हूं।‘’ 

मीरा चौंक उठी, इसे कैसे पता कि मैं राघव से मिलने स्‍टेशन जा रही हूं..? क्‍या यह मेरे पीछे लगा था ..? पर यह तो निहारिका मैम की पार्टी में था।

‘’क्‍या सोच रही हो मैडम, मैं आधे घंटे के अंदर अंदर स्‍टेशन पहुंचा दूंगा।’’ 

कुछ सोचते हुए मीरा ड्राइवर को पैसे देकर बाहर निकल गई और सूर्या के पीछे बैठ गई। 

सूर्या ने बाइक को कारों के बीच में से निकालते हुए एक शार्टकट रास्‍ता पकड़ा जो कि रिहायशी इलाकों के बीच से होकर जा रहा था, राहत की बात तो यह थी कि इलाके में काफी चहलपहल थी…वैसे भी मुंबई तो ऐसा शहर है जो कभी सोता नहीं, संडे नाइट की वजह से लोगों की ठीकठाक भीड़ रोड पर थी। मीरा के लिए डरने वाली कोई बात नहीं थी, सुनसान रास्‍ता होता तो शायद वह सूर्या पर शक करती।

गलियों से होते हुए सूर्या ने एक मेन रोड पकड़ ली, यहां भी गाड़ियां थी पर ज्‍यादा जाम नहीं था...अब सूर्या सौ की स्‍पीड से बाइक चला रहा था। 

मीरा के मन में तरह तरह के ख्‍याल आ रहे थे, वह राघव से क्‍या क्‍या पूछेगी..? अब वह मुंबई छोड़कर क्‍यों जा रहे हो? आखिर ऐसे अचानक से क्‍यों..? वे लोग कौन थे जो दोपहर में राघव से मिलने आए थे...? क्‍या राघव को फिर से धमकी मिली है? 

मैम स्‍टेशन आ गया…सवा बारह बज गए हैं, ट्रेन छूटने में बस पंद्रह मिनट बचे हैं, जल्‍दी चलिए…राजधानी एक्‍सप्रेस प्‍लेटफार्म नंबर नौ पर है।

मीरा ने हां में गरदन हिलाई और सूर्या के पीछे-पीछे तेज गति से प्‍लेटफार्म नंबर नौ की ओर बढ़ने लगी। 

राजधानी ट्रेन प्‍लेटफार्म पर खड़ी थी, राघव को ढूंढते- ढूंढते तो ट्रेन छूटने का टाइम हो जाएगा‘’ मीरा ने कहा। 

उसे पता था कि राजधानी जैसी ट्रेन अपने समय पर चलती हैं। 

मुझे पता है वे किस कोच में हैं, जल्‍दी चलिए अब दस मिनट ही बचे हैं।

सूर्या एक एक मिनट का हिसाब रख रहा था। 

तभी सूर्या ने मीरा को एसी थ्री कोच के विंडो के पास इशारा किया, राघव ट्रेन के अंदर खिड़की के पास बैठा था...बगल में कबीर फोन पर कोई विडियो गेम खेल रहा था। 

यात्री ट्रेन में चढ़ रहे थे और अपना सामान रख रहे थे। 

मीरा किसी तरह जगह बनाते हुए ट्रेन के अंदर घुस गई और जाकर राघव के सामने खड़ी हो गई...राघव बाहर देख रहा था उसे मीरा के आने का पता नहीं चला, वह चौंका जब कबीर ने कहा...’’मीरा आंटी...पापा देखो मीरा आंटी.।’’

राघव के लिए यह अविश्‍वसनीय था, ऐसे समय में मीरा का उसके सामने आना...राघव बिल्‍कुल भी उम्‍मीद नहीं कर रहा था।

‘’मीरा...मीरा’’

‘’राघव क्‍या है यह..? कहकर उसने डीएनए रिपोर्ट को आगे कर दिया। 

‘’क्‍यों तुम एक झूठी जिंदगी जी रहे हो..?’’ 

‘’मीरा मैं कोई झूठ की जिंदगी नहीं जी रहा, कबीर एक सच है और हमारे रास्‍ते बहुत पहले अलग हो चुके हैं।‘’

‘’मैं केवल सच जानना चाहती हूं - नैना के बारे में जानना चाहती हूं, मैं उससे पहली बार मिली थी उसके पास तुम्‍हारी फोटो थी, उसके होंठो पर तुम्‍हारा नाम था....फिर क्‍या है यह सब? अपनी पत्‍नी को छोड़कर तुम किसी गैर का बच्‍चा क्‍यों पाल रहे हो? अगर कोई तुम्‍हें ब्‍लैकमेल कर रहा है तो तुम पुलिस की हेल्‍प क्‍यों नहीं ले लेते?’’

‘’सच तो यह है मीरा की मैं एक अजीब से भंवर में फंसा हूं, इसमें कई जिंदगियां दांव पर लगी है, कुछ बातें हम अपने सबसे जिगरी सबसे अजीज को भी नहीं बता सकते, मुझे...फंसाया गया है मीरा।’’ 

मीरा ने कहा, ‘’मेरे मामा ने और तुम्‍हारी बहन अनन्‍या ने…मुझे पता है और आज से नहीं न जाने कब से चल रहा था यह सब पर मेरे पास इन दोनों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।‘’ 

‘’नहीं मीरा...ये तो केवल प्‍यादे हैं, असली खेल तो कोई और खेल रहा है, मैं चाहता हूं तुम अपने शहर नोएडा जाकर शोभा फार्महाउस में खुद पता करो, वहां कोई तुम्‍हारा अपना है, बहुत करीबी।‘

‘’राघव मैं...’’ मीरा कुछ आगे कह पाती कि ट्रेन के चलने का सिग्‍नल हो गया, रात के साढ़े बारह बज चुके थे…

‘’जाओ मीरा, बहुत से लोग तुम्‍हारे पीछे हैं, शायद सच का पता चलने पर तुम टूट जाओ पर मैं जानता हूं कि तुम अपने आप को संभाल लोगी। एक बात याद रखना कि तुम अपने पैरेंट्स के घर जा रही हो तो उन्‍हें बता कर मत जाना, बेहतर होगा कि पहले फार्म हाउस ही जाओ, सावधानी से जाना और कल ही चली जाओ तो ज्‍यादा अच्‍छा है, कुछ राज तुम्‍हारे सामने आ जाएंगे।‘’ 

सूर्या खिड़की से बाहर मीरा को ट्रेन से निकलने के लिए इशारा कर रहा था। 

 ‘’जाओ मीरा...प्‍लीज जाओ यहां से...ईश्‍वर करे हम कभी न मिलें…इसी में हम सबकी भलाई है और मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा की तुम्‍हें वह सबकुछ सहने की शक्‍ति दे जिसका तुम सामना करने वाली हो।‘’ 

‘’ऐसा क्‍यों कह रहे हो राघव...? मैं बहुत ही उम्‍मीद से तुम्‍हारे पास आई हूं, किसी की उम्‍मीद को छलना बहुत बड़ा पाप है।‘’ 

‘’नहीं मीरा, सबसे बड़ा पाप होता है विश्‍वासघात का.…मुझे बहुत साल पहले मिल गया था और एक न एक दिन तुम्‍हें भी उसका सामना करना ही होगा...मुझे कबीर को बचाना है मीरा और तुम्‍हें भी।‘’

तभी ट्रेन ने एक हल्‍का सा झटका खाया और धीरे धीरे ट्रेन चलने लगी।

‘’क्‍या मीरा आंटी भी हमारे साथ आ रही हैं, पर इनका सूटकेस कहां है? ‘’

कबीर ने मीरा को देखकर राघव से पूछा।

‘’प्‍लीज मीरा जाओ...’’ राघव फिर चिल्‍लाया। 

तब तक सूर्या भी ट्रेन में चढ़ गया और हैरान खड़ी मीरा को खींचकर बाहर नीचे ले आया।

 

आखिर राघव क्‍यों भागता फिर रहा है? 

वह कौन सा रहस्‍य है जो राघव चाहता है कि मीरा खुद उसका सामना करे? 

कौन है जो मीरा की जिंदगी से खेल रहा है? 

जानने के लिए पढ़ते रहिए बहरूपिया मोहब्‍बत।

 

 

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