अगले ही पल, ध्रुवी ने बिना एक पल सोचे, उन पेपर्स पर साइन किए और उन्हें वापस अर्जुन की ओर बढ़ा दिए। अर्जुन ने एक पल के लिए बेचैनी से ध्रुवी की ओर देखा, जैसे उसे यकीन ही न आया हो कि ध्रुवी इतनी जल्दी उसकी बात मान गई। और फिर उसने अगले ही पल, अपने चेहरे के भाव को सामान्य करते हुए, ध्रुवी के हाथ से वह फाइल ले ली। और अब बस यहीं से शुरुआत होनी थी, शतरंज की बिसात पर बिछी कई जिंदगियों की एक नई कहानी।

 

अर्जुन (बिना किसी एक्सप्रेशन के उन कॉन्ट्रैक्ट के पेपर्स को देखते हुए): “ठीक है। अब हम आप पर भरोसा कर सकते हैं, लेकिन हमारी जो दूसरी शर्त है, अभी वह बाकी है।”

ध्रुवी (ब्लैंक एक्सप्रेशन से): “जो भी शर्त है, मैं वो मानने के लिए तैयार हूँ।”

अर्जुन (अपनी पैंट की पॉकेट्स में हाथ डालते हुए): "जानते हैं हम, लेकिन फिर भी हम आपको अपनी शर्त बताना चाहते हैं, ताकि आप पूरी एहतियात बरतें।" (एक पल रुक कर) “जो भी हमने आपसे कहा, जो कुछ भी आपको बताया, या जो भी हमारी आपसे बातें हुईं, हम चाहते हैं कि वह सिर्फ़ आपके और हमारे दरमियान ही रहे। किसी तीसरे को इसकी भनक तक ना पड़े, यहां तक कि आपके पिता को भी नहीं। और जब तक हम अपने मकसद में कामयाब नहीं हो जाते, तब तक आप हर एक, अपने दोस्तों, अपने पिता और सब से बस यही कहेंगी कि आप लंदन छोड़कर आर्यन के साथ इंडिया वापस जा रही हैं, अपनी नई ज़िंदगी की शुरुआत करने, ताकि भविष्य में हमें कोई भी परेशानी या रोड़े का सामना ना करना पड़े।”

ध्रुवी (ब्लैंक एक्सप्रेशन से बिना एक पल सोचे): "ठीक है, ऐसा ही होगा।" (एक पल रुक कर) “मुझे अपना कुछ ज़रूरी सामान लेने के लिए अपने घर जाना है।”

अर्जुन: “आपको जिस चीज की भी ज़रूरत हो, आप हमें बता सकती हैं, हम आपको वह चीज यहीं मुहैया करा देंगे।”

ध्रुवी (बिना किसी भाव के): "मुझे मेरी कुछ पर्सनल चीजें चाहिए जो मुझे मेरे घर के सिवा और कहीं भी नहीं मिलेगी, इसलिए मेरा जाना ज़रूरी है।" (अर्जुन के चेहरे पर आए इनसिक्योरिटीज़ भरे एक्सप्रेशन को महसूस करते हुए एक लम्हा रुक कर) “और डोंट वरी, मेरे लिए मेरे आर्यन से बढ़कर कुछ भी नहीं है, तो तुम्हें धोखा देने या बैकस्टैबिंग करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती। क्योंकि मैं अच्छे से जानती हूँ कि मेरा ऐसा करना, मेरे आर्यन के लिए उसकी जान का जोखिम साबित हो सकता है, और जो रिस्क मैं हरगिज़ नहीं ले सकती।”

अर्जुन (ध्रुवी की बात से संतुष्ट होते हुए): “ठीक है, आप जा सकती हैं, लेकिन कल सुबह आपको यहां वापस आना होगा। हमारे लोग आपको लेने के लिए पहुँच जाएँगे, तो आप तैयार रहिएगा, क्योंकि हमें कल के कल ही यहां से निकलना है।”

ध्रुवी (बिना किसी भाव के): “ठीक है।”

अर्जुन (एक पल रुक कर): “ठीक है, हम अपने लोगों से कहते हैं कि वह आपको आपके घर छोड़ आएंगे।”

ध्रुवी (ठंडे लहज़े से): “उसकी कोई ज़रूरत नहीं है। तुम जितना एहसान कर सकते थे, कर चुके हो और वो काफी भी है मेरे लिए। बाकी मैं खुद मैनेज कर लूँगी।”

 

अर्जुन कुछ बोल पाता, उससे पहले ही ध्रुवी ने अपने कदम कमरे से बाहर की ओर बढ़ा दिए और वह वहाँ से चली गई। अर्जुन ध्रुवी की पीठ को तब तक निहारता रहा जब तक वह पूरी तरह से उसकी आँखों से ओझल ना हो गई। ध्रुवी के जाने के कुछ पल बाद अर्जुन ने एक गहरी साँस ली, कि अचानक ही अर्जुन का फ़ोन बज उठा। अर्जुन ने अपनी जेब से फ़ोन निकाला और स्क्रीन पर नंबर देखकर, एक गहरी साँस लेते हुए, उसने कॉल पिक की।

 

दूसरी तरफ़ से: “क्या हुआ? क्या कहा उस लड़की ध्रुवी ने? वो मानी?”

अर्जुन (सपाट लहज़े से): “हम्मम... वो मान गई हैं और उन्हें मानना ही था।”

दूसरी तरफ़ से: “हम जानते थे कि आप उन्हें ज़रूर मना लेंगे।”

अर्जुन (गंभीर लहज़े से): “हम्मम... मनाना तो था ही, बाय हूक और बाय क्रूक और फिर उनके पास कोई ऑप्शन भी नहीं था कि वो हमारी बात को नकार सकें। और आगे भी हमें चाहे जो कुछ भी क्यों ना करना पड़े, साम, दाम, दंड, भेद, सब करेंगे हम, मगर अपने मकसद में हर कीमत पर कामयाब होकर ही रहेंगे। बिकॉज़ एवरीथिंग इज़ फेयर इन लव एंड वॉर।”

 

इधर दूसरी तरफ़ ध्रुवी अर्जुन के बंगले से बाहर निकली और न जाने कितनी देर तक यूँ ही अपने ही सोच में गुम, बस शून्य को निहारती चलती रही। काफी दूर आने के बाद उसे एहसास हुआ कि वह अपने और आर्यन के घर से इस वक़्त बहुत दूर थी। उसने पास से गुज़रती टैक्सी को आर्यन के फ़्लैट का एड्रेस दिया और उसमें बैठ गई। ध्रुवी के दिमाग में इस वक़्त बहुत सारी बातें और ख्याल चल रहे थे। एक तरफ़ उसे अपनी मोहब्बत को खोने का, अपनी पहली मोहब्बत के खोने का, उससे दूर होने का दर्द महसूस हो रहा था, तो दूसरी तरफ़ उस पर कुछ भी करके खुद को इस भंवर से बाहर निकालने का प्रेशर था। ध्रुवी अपने अनेकों ख्यालों के भंवर से तब बाहर आई जब टैक्सी आर्यन के फ़्लैट के बाहर आकर रुकी। ध्रुवी ने अपने बिखरते इमोशंस को संभाला और टैक्सी का किराया चुकाकर सीधा आर्यन के फ़्लैट की ओर बढ़ गई। ऊपर पहुँचकर उसने गमले से चाबी निकाली और दरवाज़ा खोलकर अंदर चली आई।

 

एक नज़र उसने खाली और वीरान पड़े पूरे घर को देखा और फिर अगले ही पल वह आर्यन के रूम में जाकर औंधे मुँह करके बिस्तर पर गिर पड़ी और बस इसी के साथ उसके सब्र का बाँध टूट गया। उसके ज़ज़्बातों और एहसासों का सैलाब, जो उसने कब से रोक कर रखा था, वो टूट गया और इसी के साथ वह बेतहाशा दर्द को महसूस करते हुए बिलख कर रो पड़ी और उसकी सुबकियाँ कुछ ही देर में इस वीरान पड़े कमरे में गूंजने लगीं। इस वक़्त वो किसी खोए हुए बच्चे की तरह बेतहाशा बेबसी से बस रोए जा रही थी और बस खुद को बहुत ही बेबस और असहाय महसूस कर रही थी। उसकी आँखों से निरंतर बिना रुके, बस झर-झर आँसू बह रहे थे। जो लड़की, जो लड़की पूरी दुनिया के सामने एक कठोर और सख्त दिल बनी घूमती थी, आज वही लड़की अंदर से खुद को कितना टूटा और बिखरा हुआ महसूस कर रही थी, यह इस वक़्त सिर्फ़ वह और उसका दिल ही महसूस कर सकते थे। ध्रुवी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे एक पल में उसकी सारी दुनिया ही ख़त्म हो गई, जैसे उसकी सारी खुशियाँ, सारे ख्वाब और उसकी पूरी ज़िंदगी बस पल में सब बिखर कर चूर-चूर हो गए और जिसके टुकड़े उसके सामने बिखरे हुए थे, लेकिन वह चाहकर भी उन्हें समेट नहीं पा रही थी। ध्रुवी ने अपनी पूरी ज़िंदगी खुद को कभी भी इतना बेबस या असहाय महसूस नहीं किया था जितना वह इस पल कर रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि इस पूरी दुनिया में इस वक़्त ऐसा कोई नहीं है, कोई भी नहीं, जो उसका दर्द समझ सके या जिसके साथ वह अपना दर्द बाँट सके। इस वक़्त वो बिल्कुल अकेली थी, अकेली थी अपने डर, अपनी तकलीफ़, अपनी बेबसी और अपने बेशुमार दर्द के साथ, जिसका मरहम शायद सिवाय वक़्त के, किसी के पास भी नहीं था।

 

ध्रुवी को खुद भी अंदाज़ा नहीं हुआ था कि आखिर वो कितनी देर तक बिस्तर पर पड़ी, वो बस यूँ ही सुबकती रही और उसका रोना भी पूरी तरह तब बंद हुआ जब वो रोते-रोते ही नींद के आगोश में चली गई। लेकिन सोने के बाद भी उसके गालों पर आँसुओं के सूखे निशान, उसके दर्द और अकेलेपन को साफ़ तौर पर जाहिर कर रहे थे। ध्रुवी की नींद अगली सुबह खुली तो वह बिना किसी उत्साह या उम्मीद के साथ अपने बिस्तर से उठी और बाथरूम की ओर बढ़ गई। अब शायद उसकी आँखों के आँसू पूरी तरह सूख चुके थे। ध्रुवी कुछ देर बाद बाथरूम से फ्रेश होकर बाहर निकली और उसने अपने बालों का रफ़ली जुड़ा बनाकर, आर्यन के अलमारी से अपना कुछ ज़रूरी सामान, एक बैग में डाला और एक नज़र पूरे घर को देखते हुए, आँखों में उदासी और नमी लिए हुए, एक पल भी बिना रुके, वो घर को लॉक करके बाहर निकल गई। जैसा कि अर्जुन ने कहा था, अर्जुन के लोग पहले से ही ध्रुवी के लिए वहाँ खड़े थे। ध्रुवी बिना कुछ कहे गाड़ी में आकर बैठ गई और गाड़ी वहाँ से चल पड़ी। कुछ देर बाद आख़िर में ध्रुवी ने अपनी चुप्पी तोड़ी।

 

ध्रुवी (बिना किसी भाव के): “मुझे मेरे घर जाना है, तो गाड़ी मेरे घर की तरफ़ मोड़ लो।”

शक्ति (गंभीर भाव से): “लेकिन हुकुम सा ने थारे को सीधा उनका पास ले जाने के लिए ही कहा है।”

ध्रुवी (शक्ति को गुस्से से घूरते हुए): “तुम्हारे हुकुम सा को मैं जवाब दे दूँगी, फ़िलहाल तुमसे मैंने जितना कहा है उतना करो।”

शक्ति (सख्त भाव से): “ए छोरी, थारी सिर्फ़ शक्ल मारी रानी सा से मिली है, लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि तू खुद को रानी सा समझ के मेरे पर हुकुम चलावेगी। मेरा काम सिर्फ़ शाही परिवार का हुकुम बजाना है, इस बात को अपने दिमाग में अच्छे से बैठा लियो।”

 

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