शक्ति ने सख्त भाव से कहा, “ए छोरी.....तेरी सिर्फ शक्ल मारी राणी सी मिलती है.....लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं है.....कि तू खुद को राणी समझ के.....मुझ पर हुक्म चलाएगी.....मेरा काम सिर्फ शाही परिवार का हुक्म मानना है.....इस बात को अपने दिमाग में अच्छे से बैठा ले!”
ध्रुवी ने गुस्से से अपनी मुट्ठियाँ बंद कर लीं। उसने एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं। उसका दिल तो चाह रहा था कि शक्ति को इस लहजे से खुद से बात करने के लिए एक अच्छा-खासा सबक सिखाए, लेकिन इस वक्त वह मजबूर थी। इसलिए उसने वक्त की नजाकत को समझते हुए, अपने गुस्से को अंदर ही अंदर पी लिया।
ध्रुवी ने अपने गुस्से को अंदर ही अंदर पीते हुए कहा, "मुझे मेरे घर से कुछ ज़रूरी सामान लेना है.....और मैंने तुम्हारे हुक्म से पहले ही यह बात कह दी थी....." उसने अंदर ही अंदर अपने दाँत पीसे, “तो प्लीज़ मुझे मेरे घर ले चलिए!”
ध्रुवी की बात सुनने के बाद शक्ति ने कुछ नहीं कहा। कुछ पल बाद अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उसने ड्राइवर से ध्रुवी के घर की ओर चलने का इशारा किया। जैसा कि ध्रुवी को उम्मीद भी थी, शक्ति या उसके ड्राइवर ने ध्रुवी से उसके घर का पता नहीं पूछा। शायद इसकी वजह उसके पिता का प्रसिद्ध होना भी हो सकता था, या फिर वे इतने वक्त से उस पर नज़र रखे हुए थे, इसीलिए ध्रुवी के बारे में उन्हें हर एक जानकारी थी। कुछ देर बाद गाड़ी ध्रुवी के घर के बाहर जाकर रुकी। शक्ति ने उसे जल्दी वापस आने को कहकर अंदर जाने के लिए कहा। ध्रुवी बिना कोई जवाब दिए घर के अंदर चली गई।
ध्रुवी ने सोचा था कि वह अपने पिता से इस बारे में एक बार ज़रूर बात करेगी। शायद वे उसे इस बारे में कोई अच्छी राय दे पाएँ। लेकिन कहते हैं ना कि जब किस्मत इम्तिहान लेती है, तो मुश्किलें बढ़ती ही चली जाती हैं। वही ध्रुवी के साथ भी हुआ। जब ध्रुवी अपने घर आई, तो उसे पता चला कि उसके पिता देश से बाहर गए हैं और कुछ दिनों बाद ही वापस लौटेंगे। यह सुनकर ध्रुवी ने फ़्रस्ट्रेशन से अपने बालों में उंगलियाँ घुमाईं। उसे याद आया कि दिशा ने उससे इस बारे में ज़िक्र किया था। कुछ पल बाद उसने अपना फ़ोन निकालकर अपने पिता को कॉल किया, लेकिन जैसा कि उम्मीद थी, उसके पिता ने उसकी कॉल का कोई जवाब नहीं दिया।
हारकर ध्रुवी ने अपने पिता के मैनेजर मिस्टर गुप्ता को कॉल किया। एक-दो रिंग के बाद उन्होंने उसकी कॉल पिक की।
"हेलो अंकल?" ध्रुवी ने पूछा।
"हेलो बेटा, कैसी हो तुम?" मिस्टर गुप्ता ने पूछा।
"मैं ठीक हूँ अंकल....." ध्रुवी ने एक पल रुककर कहा, “मुझे डैड से बात करनी है।”
मिस्टर गुप्ता ने एक नज़र अपने सामने बैठे गंभीर से मिस्टर सिंघानिया की ओर देखते हुए कहा, “बेटा.....सर तो अभी यहाँ नहीं हैं.....वो जैसे ही आयेंगे.....मैं आपकी बात उनसे करा दूँगा।”
ध्रुवी ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, "अगर डैड को मुझसे बात नहीं करनी.....तो ये बात आप मुझे साफ़ तौर पर कह सकते हैं अंकल.....आपको मुझसे झूठ कहने की कोई ज़रूरत नहीं है....." उसने दुखी भाव से एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं, "खैर मैंने डैड को सिर्फ़ इतना बताने के लिए कॉल की थी.....कि मैं....." उसने अपने उमड़ते हुए जज़्बातों को काबू करते हुए कहा, “कि मैं लंदन से जा रही हूँ।”
मिस्टर गुप्ता थोड़े परेशान होकर बोले, “लंदन छोड़कर जा रही हो? क्या मतलब? कहाँ जा रही हो तुम बेटा?”
"मैं लंदन छोड़कर.....इंडिया जा रही हूँ अंकल!" ध्रुवी ने संजीदगी से कहा।
ध्रुवी के जाने की बात सुनकर अचानक ही सामने बैठे मिस्टर सिंघानिया के चेहरे पर परेशानी और टेंशन के भाव उभर आए। फ़ोन स्पीकर पर था, इसलिए वे मिस्टर गुप्ता और ध्रुवी के बीच की सारी बातें आराम से सुन पा रहे थे। उन्होंने एक नज़र मिस्टर गुप्ता की ओर देखा। मिस्टर गुप्ता ने मि. सिंघानिया का इशारा समझते हुए आखिर में अपनी चुप्पी तोड़ी।
"छोड़कर जा रही हो? क्या मतलब बेटा? कहाँ जा रही हो तुम?" मि. गुप्ता ने पूछा।
ध्रुवी ने बड़ी सफाई से हकीकत छुपाते हुए कहा, "मैं.....दरअसल अंकल मैं....." एक पल रुककर गहरी साँस लेते हुए उसने एक ही साँस में कहा, "मैं आर्यन के साथ इंडिया जा रही हूँ.....आर्यन का होमटाउन है वहाँ.....तो बस मैं वही जा रही हूँ। इसीलिए जाने से पहले.....एक आखिरी बार डैड से मिलना चाहती थी.....और इसीलिए मैं घर भी आई थी....." उसने मायूसी भरे लहजे से कहा, “लेकिन शायद हमारा मिलना लिखा ही नहीं था!”
ध्रुवी के मुँह से आर्यन के साथ जाने की बात सुनकर मिस्टर सिंघानिया के परेशानी और टेंशन के भाव अचानक ही सख्त और गुस्से भरे हो गए। जो मिस्टर गुप्ता और वहाँ मौजूद कुछ और ख़ास लोगों ने साफ़ तौर पर महसूस कर लिए थे। मिस्टर सिंघानिया ध्रुवी की बात सुनकर गुस्से से अपने केबिन से उठकर बाहर चले गए। कुछ देर बाद ध्रुवी ने भी कॉल काट दी। हालाँकि ध्रुवी अपने पिता से इस बारे में बात ज़रूर करना चाहती थी, लेकिन क्योंकि अभी उसे माहौल और सिचुएशन दोनों ही विपरीत लगे, इसलिए उसने अपने इस विचार को त्याग दिया और उसने अर्जुन के कहे अनुसार अपने पिता और बाकी लोगों से आर्यन के साथ ही अपने इंडिया जाने की बात कही।
ध्रुवी ने फ़ोन रखने के बाद अपनी आँखों के कोने साफ़ किए और अपने कमरे की ओर बढ़ गई। कमरे में पहुँचकर उसने अपना कुछ ज़रूरी सामान एक छोटे से बैग में रखा और बिना एक पल भी रुके घर के बाहर निकल गई। ध्रुवी एक बार फिर गाड़ी में बैठ चुकी थी और गाड़ी एक बार फिर सड़क की ओर दौड़ पड़ी। कुछ देर बाद ध्रुवी अर्जुन के उसी मेंशन के बाहर खड़ी थी जहाँ वह कल उससे पहली बार मिली थी। ध्रुवी ने अंदर ही अंदर खुद को हिम्मत दी और आखिर में वह अंदर की ओर बढ़ गई। अंदर पहुँचकर उसे लिविंग एरिया में पूरे ठाठ-बाट से बैठा अर्जुन सामने ही नज़र आ गया।
"अच्छा लगा हमें कि आपने अपना वादा निभाया!" अर्जुन ने ध्रुवी को वहाँ देखकर कहा।
"और मुझे भी अच्छा लगेगा.....अगर आप अपना वादा निभाएँगे!" ध्रुवी ने हल्की बेरुखी से कहा।
"डोंट वरी.....हम अपने वादे कभी नहीं तोड़ते!" अर्जुन अपनी जगह से खड़े होते हुए बोला।
"बेहतर होगा अगर आप कभी अपने वादे तोड़े भी ना!" ध्रुवी ने संजीदगी से कहा।
"हमारी फ़्लाइट है.....और कुछ ही देर में हमें यहाँ से निकलना है!" अर्जुन ने ध्रुवी की बात को इग्नोर करते हुए कहा।
ध्रुवी ने गंभीर भाव से कहा, "अब तक आपने मुझसे जो भी कहा मैंने माना.....लेकिन अब बारी आपकी है....." अर्जुन सवालिया नज़रों से ध्रुवी की ओर देखने लगा, “मैं यहाँ से जाने से पहले.....आर्यन से मिलना चाहती हूँ!”
"आप आर्यन से मिल सकती हैं.....लेकिन अभी नहीं!" अर्जुन ने उतनी ही गंभीरता के साथ कहा।
"मैं आर्यन से मिले बिना यहाँ से कहीं नहीं जाऊँगी!" ध्रुवी ने संजीदगी भरे अटल भाव से कहा।
अर्जुन ने ध्रुवी को याद दिलाते हुए कहा, “आप भूल रही हैं शायद.....कि आप इस वक्त हमारे आगे कोई भी शर्त रखने की स्थिति में बिल्कुल नहीं हैं!”
"और आप भी शायद भूल रहे हैं.....कि बिना मेरे.....आपके साथ आए.....आपका मकसद पूरा होने से रहा!" ध्रुवी ने उसी लहजे से जवाब दिया।
"आप हमें धमकी दे रही हैं?" अर्जुन ने हल्के सख्त भाव से पूछा।
ध्रुवी ने पूरी संजीदगी के साथ कहा, “एज योर विश.....अब आप इसे मेरी रिक्वेस्ट समझे.....या धमकी.....या फिर जो भी.....लेकिन मैं आर्यन से मिले बिना.....यहाँ से कहीं भी नहीं जाऊँगी.....एंड दिस इज़ फाइनल!”
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