सौरभ, जो रितिका के लिए श्रवण है, उसे अपने झूठे प्यार की गिरफ्त कर लेता है।
सौरभ का चार्म उस पर हावी होने लगा है। रितिका , सौरभ के प्यार में यूँ फिसलने लगी "जैसे बदन पर रखते ही फिसलता है रेशमी कपड़ा"। सौरभ का इज़हार करना, रितिका का उसके प्यार में पागल होना, यह दिलों का मेल नहीं, बल्कि सौरभ का रचाया खेल है।
उसको रितिका का नेचर समझने के लिए उससे ज़्यादा बातें करनी ही नहीं पड़ीं। उसके लिए स्टॉकिंग ही काफी थी।
अब रितिका की आँखों में सौरभ के लिए प्यार साफ़-साफ़ झलक रहा था। वो दिन-रात सौरभ के खयालों में खोई रहने लगी।
एक शाम, अपनी बालकनी में बैठे सौरभ, जब अपनी अगली चाल के बारे में सोच रहा था, तो उसे एक कॉल आया।
इतने दिनों से इग्नोर करने बाद, सौरभ ने आज वह कॉल उठा ही लिया और रूड होकर कहने लगा, ‘’क्यों कॉल कर रही हैं आप, मीता जी? (खीजते हुए)''
फोन के दूसरी तरफ से आवाज़ आई, "यह क्या तमीज़ है बात करने की, सरू? इतने दिनों से कॉल कर रही हूँ। क्या तुम्हें इतनी भी समझ नहीं कि कॉल उठा लो?"
सौरभ "सरू" सुनते ही और गुस्सा हो गया।
SAURABH: सरू मत कहो मुझे। मर गया है वो।
जिस औरत का कॉल इतने दिनों से सौरभ इग्नोर करता आ रहा था, वह कोई और नहीं बल्कि उसकी सगी माँ, मीता थी। सौरभ अपनी माँ को पूरी तरह त्याग चुका था।
माँ-बेटे के बीच पिछले पंद्रह सालों से बातचीत पूरी तरह से बंद थी। माँ तब भी हार नहीं मानती है और कभी न कभी अपने बेटे की खोज खबर लेने के लिए कॉल कर ही देती है। उठाना न उठाना सौरभ के ऊपर रहता है।
वैसे सौरभ के कलकत्ता छोड़ने की भी वजह उसकी माँ ही थी।
इस कॉल से सौरभ बेचैन होने लगा था, तभी मीता ने उससे कहा, "श्रुति के ससुराल वाले आए थे, उसे ले जाने..."
SAURABH (गुस्से में): यह बात श्रुति भी बता सकती थी। कहाँ है वो? क्या किया आपने उसके साथ?
"कुछ नहीं हुआ है, ठीक है वो," मीता के इतना कहते ही सौरभ ने कॉल काट दिया।
उसके कॉल काटने से मीता समझ गई थी कि सौरभ अब भी उससे उतनी ही नफरत करता है। इतने सालों बाद, जहाँ मीता अपने बेटे की आवाज़ सुनकर खुश होती है, वहीं उसकी नफरत महसूस कर दुखी भी हो जाती है।
मीता को दुखी देख, श्रुति उससे बात करती है।
SHRUTI: की होये छे, माँ? दादा ने अब भी बात नहीं की? ए माँ, तुम चिंता मत करो तो... मैं जानती हूँ दादा को। जब सच पता चलेगा, तब वह खुद माफी माँगेगा।
मीता बहुत इमोशनल थी। उसने श्रुति के सामने रोते हुए कहा, "पता नहीं, मेरे मरने के बाद भी वह मुझे माफ करेगा कि नहीं। सरू से बोलना कि वह दुर्गा पूजा में कलकत्ता आए।"
SHRUTI: ठीक है, मैं बोल दूँगी। वह आ जाएगा। अब आप रोना बंद करो, मुझे अच्छा नहीं लगता।
मीता से बात करने के बाद, सौरभ पूरी तरह बेचैन हो चुका था। मीता की आवाज़ सुनकर उसे लग रहा था कि वह अपने फ्लैट को आग लगा दे और उसमें जलकर खुद भी खत्म हो जाए।
अगर कोई इतना गुस्सा है अपनी माँ से तो कारण भी कुछ बड़ा ही होगा।
आज ढलती शाम की ख़ामोशी उसे चुभने लगी थी। सौरभ को पैनिक अटैक या चुका था, उसकी साँसें बढ़ रही थीं, दिल की धड़कने भी तेज थी कि तभी रितिका का कॉल आया।
जैसे ही सौरभ ने उसका नाम अपने फोन पर देखा, उसकी सारी बेचैनी, सारा डर थमने लगा। या ये कहना ठीक रहेगा कि उसको अपनी सिचुएशन से निकालने का और खुद को डिस्ट्रैक्ट करने का रास्ता मिल गया।
उसने बिना देर किए, रितिका का कॉल पिक किया।
SAURABH (परेशान होकर): थैंक यू मुझे कॉल करने के लिए। आई रियली नीडेड समवन अराउंड।
RITIKA: क्या हुआ? बहुत परेशान लग रहे हो... सब ठीक है? मैं आऊँ तुम्हारे पास? क्या तुम कहीं बाहर चलना चाहते हो?
SAURABH (अटकते हुए): नहीं! कुछ ठीक नहीं है, बस तुम साथ रहो अभी।
RITIKA: आई एम हियर!
सौरभ कभी भी अपनी पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ मिक्स नहीं करता था, पर मीता की कॉल के बाद, उसे एक डिस्ट्रैक्शन चाहिए था। एक पल को सौरभ को खुद लगा कि उसके अंदर का फरेब रितिका के प्यार के आगे दम तोड़ने लगा है, पर उसने खुद को संभाल लिया।
अचानक रितिका उसके लिए गुनगुनाने लगी (SFX female humming effect)। ये बात सौरभ के लिए एक हीलिंग का काम करती है और उसके माइंड को रिलैक्स कर देती है, जिससे वह सो जाता है।
ठीक 12 बजे उसकी नींद खुलती है, तभी उसे याद आता है कि वह रितिका से बात करते-करते ही सो गया था। सौरभ महसूस करता है कि पिछले 15 सालों बाद वह आज जाकर इतनी अच्छी नींद सोया था।
सौरभ की बेचैनी, उसकी चिढ़, उसका गुस्सा और उसकी नाराज़गी सब कुछ गायब हो चुकी थी और ये जादू था रितिका की आवाज़ का।
सौरभ जैसे ही अपने भ्रम से बाहर आया, उसने खुद को ये बात याद दिलाई कि रितिका सिर्फ उसका टारगेट है।
उसके लिए इमोशन्स आना, उसके ठग रूल्स के खिलाफ है। सौरभ अपनी लाइफस्टाइल और अपने प्लान्स के बीच किसी को नहीं आने देना चाहता था। न कोई मजबूरी, न कोई ईमोशन्स और न ही कोई लड़की।
अपने इस ख्याल से आज़ाद होने के लिए, सौरभ ने रात में माइन्ड को रीलैक्स करने के लिए एक कोल्ड शावर लिया। जैसे ही वह बाहर आया, उसके खुराफाती दिमाग में एक और आइडिया आया।
वह रितिका को लूटने की प्लानिंग से पहले, अपने सीक्रेट सोशल मीडिया हैंडल से उसकी प्रोफाइल चेक करता है।
आज रितिका ने न कोई पोस्ट शेयर की और न ही कोई स्टोरी शेयर की, जिससे सौरभ को उसे समझना आसान हो।
सौरभ ऐप बंद ही करने वाला था कि तभी उसका ध्यान एक बार फिर रितिका के अकाउंट के हाइलाइट्स पर पड़ा, जहाँ उसकी फेवरेट वाले फोल्डर में बांद्रा किला की तस्वीरें थीं।
सौरभ ने यहीं से दिमाग लगाया और तुरंत ही रितिका को टेक्स्ट कर दिया कि वह कल शाम 4 बजे रेडी रहे।
वह उसे लेने आएगा और उसके बाद दोनों साथ बांद्रा किला जाएंगे।
सौरभ ने जैसा सोचा था, वैसा ही हो रहा था। रितिका ने तुरंत "यस" लिखकर टेक्स्ट बैक कर दिया। उसके हाँ आने के बाद, सौरभ एक बार फिर प्लानिंग करते-करते गहरी नींद में सो गया।
रितिका इतनी रात में भी जागी हुई थी और वजह थे सौरभ उर्फ़ श्रवण। वो उसके कॉल के बाद से ही ये सोच रही थी की कैसे श्रवण का सहारा बने? कैसे उसके मन की परेशानी को बाहर निकालने में उसकी मदद करे! कैसे उसका ट्रस्ट जीते ताकि वो सारी बातें रितिका से शेयर करे। मासूम रितिका! इस बात से अनजान थी कि उसके इन ईमोशन्स की सौरभ की लाइफ में कोई जगह नहीं। वह सौरभ को बचाने चली थी, जब कि सच्चाई यह थी कि उसे, अपने-आप को बचाने की ज़रूरत थी।
सौरभ, उठते ही अपने कुछ फेक डॉक्यूमेंट्स रेडी करने में लग गया, ताकि अगर कभी रितिका ने उसकी फेक लाइफ का ज़िक्र छेड़ा, तो सौरभ के पास खुद को सच्चा दिखाने के लिए सबूत हों।
जैसे ही शाम के 4 बजे, सौरभ रितिका को लेने उसके ऑफिस पहुँचता है।
एक बार तो रितिका को आता देख, सौरभ के मन में एक अजीब सी हलचल मचती है, पर वह उसे शांत कर लेता है।
1 घंटे की लंबी ड्राइव को दोनों रोमटिक सॉन्ग्स और हाथों में हाथ पकड़े इन्जॉय करते है और दोनों बांद्रा किला पहुँचते हैं।
मुंबई शहर की इस ऐतिहासिक धरोहर में, लोगों की बचपन से लेकर पचपन तक की सैकड़ों यादें शामिल हैं।
इस धरोहर ने गुलामी से लेकर आज़ादी तक देखी है और अब लोगों की गंदगी भी देख रहा है।
RITIKA: आई लव दिस प्लेस। मैं जितनी बार भी यहाँ आती हूँ, कुछ न कुछ नया मिल ही जाता है, इस जगह से और प्यार करने के लिए। इतने लोग हैं, पर यहाँ फिर भी कितनी शांति है।
SAURABH: सही कह रही हो। सबके अंदर का शोर इतना ज़्यादा है कि कोई कुछ कह ही नहीं रहा।
RITIKA: मुझे तुमसे कुछ बात कहनी थी।
SAURABH: हाँ, कहो?
RITIKA: तुम्हें वाकई अपने प्रोजेक्ट के लिए 25 लाख की ज़रूरत है? मतलब...
SAURABH: मतलब यही ना कि मैं वेल टू डू फैमिली से हूँ, और 25 लाख मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं।
तुम सही कह रही हो... मगर मैंने अपने पैसे, कलकत्ता में हमारी पुश्तैनी हवेली है, उसकी मरम्मत के लिए लगा दिए हैं।
मेरे ठाकुर्दा और ठाकुमाँ की आखिरी निशानी है वह हवेली, जिसे बचाना मेरा फर्ज़ है और मैं अपने हर फर्ज़ को पूरा करूँगा।
RITIKA: आई एम रियली सॉरी। प्लीज़ मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हारी फीलिंग्स हर्ट नहीं करना चाहती थी।
SAURABH: कोई बात नहीं।
एक अकेला आदमी जब अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर रहा हो तो उस पर सवाल बहुत उठाते हैं लोग।
वैसे, तुम मुझसे कुछ भी पूछ सकती हो। तुम्हारा हक है।
एक बार फिर रितिका , सौरभ के बनाए जाल में फँस जाती है।
सौरभ यह हर बार खुद को साबित करने में कामयाब होता जा रहा था।
उसकी हवेली की मरम्मत का आइडिया हमेशा काम आता था।
रितिका के पास, सौरभ की बातों का कोई जवाब नहीं था।
बातों को संभालने की कोशिश करते हुए, रितिका ने पूछा, ‘’तुम्हें कितने पैसे कम पड़ रहे हैं?''
SAURABH: 6 लाख।
RITIKA: और बाकी के 19, वो तुमने कैसे किया?
SAURABH: तुम्हें बताया था, कलकत्ता में 20 लाख की ज़मीन है। उसे निकाल दिया।
बस एक बार कहीं से जुगाड़ हो जाए बचे हुए पैसों का, तो बात बन जाएगी। मैंने अपने 3-4 दोस्तों को भी कहाँ है, और उस दिन जो सर मिले थे न कैफै में उनको भी कहाँ है। आई थिंक 1-2 दिन में कहीं न कहीं से पाज़िटिव रिस्पॉन्स आ जाना चाहिए।
रितिका , जितनी बार सच तक पहुँचने की कोशिश करती, कोई न कोई झूठ, सच के चोगे में लपेटकर, सौरभ सामने रख देता, जिससे रितिका रास्ता भटक जाती हहर बार यही होता था, हर बात उसकी बातों में इतना कनविक्शन होता था कि वो दिमाग का इस्तेमाल बंद कर देती थी।
क्या 1-2 दिन में सौरभ कोई ऐसी चल चलने वाला था कि रितिका खुद ही उसे पैसे दे देगी? या पैसों का अरैन्जमेंट कहीं और से हो जाएगा? क्या होगा इस जाल का अंजाम?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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