रितिका जैसी स्ट्रॉन्ग और इंडिपेंडेंट लड़की, जो मुंबई की लीडिंग फाइनैन्शिल एक्स्पर्ट्स  में से एक है, सौरभ के बनाए इश्क के खेल में फँसती चली जाती है।

रितिका दस साल पहले सिलीगुड़ी से मुंबई अपने सपनों को सच करने आई थी। सिलीगुड़ी के पहाड़ों से निकलकर, मुंबई की भीड़भाड़ वाली दुनिया में अपनी पहचान बनाने में उसने दिन-रात एक कर दिया था।
कॉलेज की टॉपर रही रितिका, आज सौरभ के लोअर स्टैन्डर्ड ऐटिट्यूड से वाकिफ नहीं थी।

एक दिन, अपने केबिन में बैठकर फाइनैन्शिल एनैलिसिस पर आर्टिकल लिखते समय, उसकी दोस्त मानसी ने उसे कॉल किया।
रितिका अपनी लाइफ में चाहे जितनी भी बिज़ी हो, वह मानसी को कभी नजरअंदाज नहीं करती थी। हाल-चाल पूछने के बाद, जब मानसी ने सौरभ के बारे में पूछा, तो रितिका ने उसे सौरभ के प्लान के बारे में बताया।
मानसी को सौरभ का विज़न बहुत अच्छा लगा।

जैसे ही मानसी ने सौरभ के प्लान के एक्सक्यूशन की बात की, वैसे ही रितिका ने बताया कि सौरभ को 6 लाख की कमी पड़ रही है।
रितिका ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि वह सोच रही है कि सौरभ की मदद कर दे।
रितिका की यह बात सुनकर मानसी को सौरभ पर दूसरी बार शक हुआ।

मानसी ने रितिका से कहा, "सौरभ ने इतनी आसानी से 19 लाख का इंतज़ाम कर लिया और अब 6 लाख भी नहीं जुटा पा रहा?"
मानसी की बात सुनकर रितिका थोड़ी अन कम्फर्टेबल हो गई। उसने बात संभालते हुए कहा कि सौरभ ने उससे मदद के लिए नहीं कहा, यह तो वह खुद से कर रही है, तभी मानसी ने खतरे का इशारा देते हुए कहा कि उसे सौरभ के साथ थोड़ा संभलकर चलने की ज़रूरत है।

रितिका की समझ फिलहाल ठंडे बस्ते में जा चुकी थी। यही कारण था कि उसने धीरे-धीरे मानसी से अपनी और सौरभ की बातें छुपानी शुरू कर दी।
अगर दोस्त अच्छे हों, तो माता-पिता की तरह हमारा अच्छा-बुरा समझ जाते हैं। मानसी भी यह समझ रही थी, मगर उसने रितिका से सीधे-सीधे कुछ कहना ठीक नहीं समझा।
आखिरकार, अब दोनों बच्चे नहीं थे कि आसानी से एक-दूसरे की लाइफ में इन्टरफ़ियर करें।

मानसी का कॉल कट होने के बाद, रितिका दोबारा अपने फाइनैन्शिल एनालिसिस पर आर्टिकल लिखने लगी।
उसने अचानक अपनी टाइपिंग रोकी और सोचने लगी:
"सौरभ इतना बड़ा प्रोग्राम एक्सक्यूट करने जा रहा है, वह भी बिना अपने दोस्तों और टीम के?"

रितिका ने तुरंत सौरभ को फोन किया।

रितिका: कहां हो?

सौरभ: वहीं, जहाँ मुझे होना चाहिए—तुम्हारे दिल में।

रितिका: अरे बाबा, मजाक नहीं, सच में बताओ कहाँ हो?

सौरभ: कुछ नहीं, घर में हूँ। एक पेशेंट के साथ ऑनलाइन सेशन में। क्या हुआ ऑल वेल?

रितिका: यार, मैं कुछ सोच रही थी।

सौरभ: हाँ, बताओ।

रितिका: यही कि दो महीने हो गए और मैं अब तक न तुम्हारे दोस्तों से मिली, न ही तुम्हारी टीम से।

सौरभ (अटकते हुए): मेरा कोई दोस्त नहीं।

रितिका: और टीम?

रितिका ने जैसे ही टीम के बारे में पूछा, सौरभ समझ गया कि अगर अभी उसने रितिका को उसकी टीम से नहीं मिलवाया, तो मामला हाथ से बाहर जा सकता है।
सौरभ ने तुरंत बातें बनाते हुए कहा, ‘’ठीक है, चार बजे मुझसे पलेडियम मॉल में मिलो। पहले मेरी टीम से मिलेंगे, फिर एक बंगाली मूवी लगी है, वह देखेंगे।

रितिका (खुश होकर): ग्रेट प्लान! आज मूवी के बाद तुम डिनर घर पर ही कर लेना।

सौरभ: साउन्ड्स ग्रेट टू मी।

सौरभ की बात सुनकर, रितिका को यकीन हुआ कि मानसी, सौरभ के बारे में जो बोल रही थी और रितिका खुद भी सौरभ को लेकर जो डाउट में थी, वो गलत था।
रितिका फिर से सौरभ को लेकर श्योर हो गई, मगर सौरभ की हालत बिगड़ती हुई नज़र आ रही थी।

सौरभ ने रितिका को 4 बजे मिलने तो बोल दिया था, मगर उसे अभी तक यह नहीं समझ आ रहा था कि वह अपनी टीम कैसे तैयार करेगा।
अचानक उसके दिमाग में एक आइडिया आया, और एक बार फिर उसने एक थिएटर ग्रुप के लड़कों से बात की, जिनकी उम्र लगभग 27 साल की रही होगी।
सौरभ ने उनमें से 4 लोग सेलेक्ट किए और उनके सामने एक फेक स्टोरी बनाते हुए कहा कि उसे अपनी गर्लफ्रेंड को किसी तरह इम्प्रेस करना था।

अपनी झूठी स्टोरी में जब उसने प्यार का एंगल डाला, तो चारों लड़के सौरभ की हेल्प के लिए तैयार हो गए।
सौरभ ने एक बार फिर क्रुकेड स्माइल देते हुए खुद से कहा, "आज तक ऐसा कोई आया नहीं जो मुझे हरा सके।"
सौरभ अपनी शाम की प्लानिंग में लगा हुआ था कि तभी उसे श्रुति का कॉल आया।

श्रुति: तुमसे कुछ बात करनी है, दादा।

सौरभ: बोलो।

श्रुति: मैं थोड़े दिन अकेली सिक्किम जाना चाहती हूँ। मेरा यहाँ दम घुटता है।

सौरभ (चिढ़ते हुए): चुपचाप घर में रहो। कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। पता भी है बाहर अकेले घूमना इज़ नॉट सेफ़।

सौरभ का जवाब सुनकर श्रुति को गुस्सा आ रहा था, मगर वो चुप रही। सौरभ जैसे लड़के ही तो लड़कयों के लिए बाहर का माहौल खराब करते है, और ये बात तो उसे अच्छे से पता ही थी कि “अकेले घूमना इज़ नॉट सेफ़”।

श्रुति को अब अपने ससुराल से ज़्यादा बंदिश अपने मायके में लग रही थी। एक तरफ मीता थी, जो बस बातों से माँ बनना जानती थी।
दूसरी तरफ सौरभ था, जो श्रुति को महज़ कठपुतली समझता था।

हर इंसान के लिए घर सुकून हो, यह ज़रूरी तो नहीं।
खासकर वह घर, जहाँ सौरभ जैसा भाई हो।
श्रुति ने जब सौरभ से ना सुनी, तो उसे पहली बार ऐसा लगा कि सौरभ को बिना बताए ही सिक्किम के लिए निकल जाना चाहिए।
कम से कम कुछ दिन इस माहौल से तो दूर रहती।

श्रुति की ज़िंदगी के अपने अलग ही स्ट्रगल्स रहे हैं लेकिन घर के टॉक्सिक एन्वायरमेंट से उसका मेंटल पीस खत्म हो चुका था।

सौरभ के सर पर शोहरत का जुनून इस हद तक सवार था कि वह सही और गलत के बीच का फर्क ही भूल गया था।
उसने शाम की सारी प्लानिंग सेट कर दी।
जैसे ही 4 बजे, वह पलेडियम मॉल पहुँच गया।
मॉल पहुँचते ही वह सीधे फ़ूड कोर्ट एरिया की तरफ गया, जहाँ वह अपनी फ़र्ज़ी टीम को रितिका से मिलाने वाला था।

 

4 बजकर 20 मिनट पर उसकी फ़र्ज़ी टीम भी आ गई।
सौरभ ने उन चारों को अपना प्लान बताया, ताकि कोई फम्बल न करे।
मगर सौरभ भूल गया था कि सामने बैठे चारों लोग एक्टिंग में सबसे अच्छे थे।

15 मिनट बाद, रितिका ने उन्हें जॉइन किया।
रितिका के आते ही सबने एक-दूसरे को फॉर्मली ग्रीट किया और बातें आगे बढ़ाईं।
सौरभ ने सभी के रियल नामों के साथ फेक आइडेंटिटी बताई, जिस पर रितिका ने आँख बंद करके विश्वास कर लिया।
एक बार भी यह नहीं सोचा कि ड्यूटी टाइम में एक साथ 4 डॉक्टर कैसे आ सकते हैं।

1 घंटे की मीटिंग के बाद, वे चारों चले गए।
उनके जाने के बाद, सौरभ ने रितिका से दूर जाकर उनकी पेमेंट की।
उनके जाते ही, रितिका और सौरभ दोनों अपनी मूवी डेट के लिए निकल गए।

 

जैसे ही मूवी डेट से दोनों रितिका के फ्लैट पर पहुँचे, रितिका ने सौरभ के लिए फिश करी और राइस बनाना शुरू किया।
जितनी देर रितिका किचन में थी, उतनी देर में सौरभ ने उसके घर का कोना-कोना अपने ज़हन में बसा लिया।
फिर वह उसकी मदद करने किचन में गया।

रितिका डिनर तैयार कर रही थी, तभी सौरभ ने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘’डिज़र्ट में क्या है?''

रितिका: अभी तक तो कुछ भी नहीं...

सौरभ: ओके, पर मुझे पता है  वेयर आई कैन गेट इट फ्रॉम।

इससे पहले कि रितिका कुछ समझ पाती, सौरभ और वो, एक रोमांटिक पल में बंध गए। 
जिसके बाद, रितिका भी सौरभ को अपने करीब आने से रोक नहीं पाई।
दोनों एक-दूसरे में खोए हुए थे कि तभी मानसी के फोन ने दोनों के बीच बढ़ रही इन्टमेसी पर ब्रेक लगा दिया।

रितिका मानसी से बात करने लगी और सौरभ रितिका का घर देखने लगा।
जैसे ही रितिका ने कॉल काटा, सौरभ ने पूछा, ‘’यह मानसी कौन है?''

रितिका: मेरी सबसे अच्छी और इकलौती दोस्त। जानते हो, जब मैंने इसे तुम्हारे बारे में बताया, तो यह तुम्हें अच्छा लड़का नहीं समझ रही थी। जब मैंने तुम्हारे एफर्ट्स इसे बताए, तब इसे तुम पर यकीन हुआ।

सौरभ: अच्छा, अगर यह मुझे गलत साबित कर देती तो?

रितिका (सीरियस होकर): तो मैं कभी तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखती।

सौरभ ने जब रितिका के मुँह से उसे छोड़ने की बात सुनी, तब उसके झूठे अहम को ठेस पहुँची।
सौरभ समझ गया था कि अगर रितिका को कमजोर बनाना है, तो उसे उसकी ही दोस्त मानसी के खिलाफ करना होगा।

सौरभ समझ चुका था कि मानसी उसके लिए खतरे की घंटी है।
इसलिए उसने अपना फोकस कुछ दिन के लिए रितिका से हटाकर मानसी पर लाने का प्लान किया।

 

थोड़ी देर बाद, सौरभ और रितिका साथ खाना खा रहे थे।
खाने की टेबल पर खामोशी पसरी हुई थी।
जैसे ही खाना खत्म हुआ, दोनों ने मिलकर किचन क्लीन करना शुरू किया।

रितिका के मन में इस मोमेंट को लेकर बस एक ही खयाल आ रहा था—कब उसकी और सौरभ की शादी होगी।

जैसे ही काम खत्म हुआ, सौरभ अपने घर के लिए निकल रहा था।
जाने से पहले उसने रितिका को गले लगाया।

जैसे ही रितिका ने सौरभ को गले लगाया, वह कुछ देर वैसी ही खड़ी रही।
दोनों की साँसें तेज़ होने लगीं।
तभी रितिका ने सौरभ से धीरे से कहा कि आज वह उसके साथ ही रुक जाए।

सौरभ ने जैसे ही रितिका की यह बात सुनी, उसके चेहरे पर फिर से क्रुक्ड स्माइल आ गई।
एक बार फिर वही हुआ जो सौरभ चाहता था।

 

क्या होगी सौरभ की अगली चाल? वह किस तरह से रितिका को अपने प्यार में पागल बनाएगा? क्या समय रहते मानसी रितिका को सौरभ के जाल में फँसने से बचा पाएगी?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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