मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!

शहर में काम करते-करते अच्छे अच्छों का पानी निकल जाता है। सुबह उठके बाथरूम की लाइन में लगो, क्योंकि जिस डिब्बी जितनी साइज वाले 1 बीएचके में हम रहते हैं वहाँ हमारे साथ 12 लोग और रहते हैं। अकेला आदमी गाँव में कोठी डाल सकता है पर बड़े शहर में 1 बीएचके कैसे अफोर्ड करेगा बताईये! उस में भी अगर किस्मत अच्छी रही तो ऑफिस नहा के जाने को मिलता है वरना डियोडोरेंट से ही स्नान करना पड़ता है। फिर ट्रैफिक से लेकर लोकल ट्रेन और बसों के धक्के खाओ और मर मरा के जब ऑफिस पहुँचो तो पहले बॉस की गालियाँ खाओ फिर बॉस के बॉस की गालियाँ खाओ, और कहीं गालियों की डिफिशेंसी ना रह जाए इसलिए क्लाइंट से भी फीडबैक के नाम पे गालियाँ खाओ। फिर शाम को घर जाते हुए वही ट्रैफिक से लेकर लोकल ट्रेन और बसों के धक्कों का रीपीट टेलीकास्ट और जब थक हारकर इंसान अपने घर पहुंचे तो पहले अपने साथ-साथ 12 लोगों का खाना बनाए और फिर एक रुमाल जितनी जगह में अपने बिस्तर डालके सो जाए। गाँव में जहाँ कभी तपती धूप में कूएं से पानी निकालते-निकालते इंसान नहीं थकता वहीं शहर, इंसान को एसी में काम करा कर उसका पानी ही निकाल देता है। पानी तो शौर्य का भी आज निकलने वाला है क्योंकि जोश जोश में आकर शौर्य लालिता दीदी की बकरी का दूध निकालने का वादा कर बैठा है। लालिता दीदी की बकरी ने आज सुबह से दूध नहीं दिया है। इसलिए वो बहुत परेशान है। शौर्य ने लालिता दीदी को हेल्प ऑफर की पर उन्होंने साफ मना कर दिया क्योंकि वो जानती है कि एक बकरी का दूध निकाल पाना इस शहरी शौर्य के बस की बात नहीं है। पर शिवांगी के कहने पर लालिता दीदी मान गई।

शिवांगी: ललिता दीदी पहली बार शौर्य गाँव में किसी के काम आना चाहता है। आपको इसे एक मौका देना चाहिए। ऐसे ही तो ये एक सच्चा गाँव वाला बनेगा और क्या पता ये सच में आपकी बकरी का दूध निकाल दे! आखिर इसमें भी तो हरिश दद्दा का खून दौड़ रहा है।

शौर्य हैरान था कि शिवांगी ने आज पहली बार उसकी साइड कैसे ले ली! उसे नहीं पता था कि शिवांगी ये सब उसकी मदद करने के लिए नहीं बल्कि उसे सबक सिखाने के लिए कर रही है। जबसे शिवांगी ने बिट्टी की सगाई वाले दिन शौर्य को गाँव से भागते हुए देखा है तबसे वो उसे सबक सिखाना चाहती है। शौर्य ने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा और शिवांगी के साथ लालिता दीदी के घर चला गया उनकी बकरी का दूध निकालने।

ललिता: यह रही मेरी धन्नो!

शौर्य ने देखा कि लालिता दीदी के घर के पीछे एक कील से बड़ी प्यारी सी सफेद रंग की बकरी बांधी हुई थी। जो बड़े प्यार से मिमिया रही थी।

शौर्य: अरे कितनी प्यारी बकरी है। इसका दूध निकालना तो इज़ अ पीस ऑफ केक फॉर मी। 

आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि शौर्य धन्नो का दूध निकालकर उसका केक बनाने की बात नहीं कर रहा है। वह अंग्रेजी में यह कह रहा है कि धन्नो का दूध निकालना उसके लिए बाएं हाथ का काम है। उसे नहीं पता कि धन्नो उसे आढ़े हाथ लेने वाली है। शौर्य जैसे ही धन्नो के पास दूध निकालने के लिए गया धन्नो ने उसे ज़ोर की घुमा के लात मारी और वह 6 फीट दूर जाकर गोबर के उपलों में गिरा। यह देखकर शिवांगी की हंसी निकल गई और लालिता दीदी को यकीन हो गया कि शौर्य सच में किसी काम का नहीं है।

ललिता: सत्यानाश! धन्नो का दूध तो क्या निकालना था, तूने तो मेरी गाय के गोबर के उपलों का भी नाश मार दिया!

शौर्य: लालिता जी मुझे क्या पता था कि आपकी धन्नो बकरी होकर गधों की तरह लात मारती है।

ललिता: गधे तो तुम हो! कोई दूध निकालने के लिए पीछे से जाकर बकरी को पकड़ता है का?

शौर्य: तो फिर दूध कहाँ से निकलेगा?

यह सुनकर शिवांगी और जोर जोर से हंसने लगी। अब लालिता दीदी को रियलाइज हुआ कि शहर के शौर्य को तो यह भी नहीं पता कि बकरी का दूध उसके थन से निकाला जाता है।

ललिता: मोरी मइया! ई लबड़ढोढ़ो तो टोटल निल बटा सनाटा है! तुमको सिरफ दूध पीने की समझ है। दूध निकालने की बिलकुल भी नहीं! तुमको तो लगता होगा कि गाय दूध अपने सींग से देती है?

शौर्य: और कहाँ से देगी!

ललिता: अरे शिवांगी ई तो पूरा का पूरा बुड़बक निकला रे! ऐ बैल बुद्धि! इससे पहले तुम मेरी बकरी की पूंछ से दूध निकालना शुरू करो, निकलो यहाँ से!

लालिता दीदी शौर्य को घर से निकालने लगी पर शिवांगी के मज़े अभी पूरे नहीं हुए थे। इसलिए उसने लालिता दीदी को रोका।

शिवांगी: लालिता दीदी इसका फर्स्ट टाइम है। इतनी जल्दी इसपे गिव अप नहीं करते हैं। एक चांस और देके देखते हैं। आई एम श्योर इस बार ये पक्का धन्नो का दूध निकाल लेगा।

शिवांगी के कहने पर ललिता दीदी मान गई और उन्होंने शौर्य को बताया कि बकरी का दूध उसके थन से निकाला जाता है। जब शौर्य को थन का पता चला तो उसने गंदा सा मुंह बनाकर धनो के थन को हाथ लगाने से मना कर दिया।

शौर्य: यू!!!! मैं किसी बकरी के प्राइवेट पार्ट को टच नहीं कर रहा। अगर इस बकरी ने पेटा में मेरे खिलाफ हैरेसमेंट की शिकायत कर दी तो! अब समझ में आया कि लोग वीगन क्यों बनते हैं!

शिवांगी: शौर्य नखरे करना बंद करो। तुमने वादा किया था ना कि तुम ललिता दीदी की प्रॉब्लम सॉल्व करने में हेल्प करोगे! अब तुम अपने प्रॉमिस से पीछे नहीं हट सकते।

शौर्य बुरे तरीके से फस चुका था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे! तभी उसके दिमाग में एक आइडिया आया। उसने अपने दादाजी से इशारों इशारों में बात करने के लिए साइन लैंग्वेज सीखी थी। वो साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल करके धनो से दूध देने की रिक्वेस्ट करने लगा। वह अपने हाथों से अजीब अजीब इशारे करने लगा और अजीबोगरीब मुंह बनाकर धनो से बात करने लगा। कुछ देर तक धन्नो समेत ललिता दीदी और शिवांगी ने भी उसे कन्फ्यूजन वाली नजरों से देखा क्योंकि किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो कर क्या रहा है! फिर धन्नो ने ज़ोर से अपनी रस्सी खींची और कील उखाड़ दी। उड़ती हुई कील सीधा शौर्य के सिर पे जाकर लगी। धन्नो का दूध तो नहीं निकला पर उसका गुस्सा जरूर निकल गया। शौर्य को धन्नो की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया और वह पत्थर उठाकर धन्नो को मारने के लिए दौड़ा पर शिवांगी ने उसे रोक लिया।

शिवांगी: शौर्य पागल हो गए हो क्या? एक बेज़ुबान जानवर को मारने जा रहे हो!

शौर्य: तुमने देखा नहीं इस बकरी ने मुझे कील मारी। तुम्हें मेरा दर्द दिखाई नहीं दे रहा है?

शिवांगी: तुम्हारी बेवकूफियाँ देखने से फुर्सत मिलेगी तब तो कोई तुम्हारा दर्द दिखेगा! एक जानवर के सामने ऐसे गंदे गंदे इशारे करोगे तो वह तुमपे भड़केंगे ही पर इंसान होने के नाते तुम्हारा फर्ज बनता है कि तुम इस सिचुएशन को प्यार से संभालो। वरना फिर जानवर और इंसान में फर्क ही क्या बचा!

शिवांगी की बात सुनकर ललिता दीदी ने गुस्से में शौर्य को मारने के लिए जो हंसिया उठाई थी, उसे नीचे रख दिया।

शिवांगी: पता है शौर्य गाँव में कोर्ट क्यों नहीं होती? क्योंकि गाँव में मामले लड़-झगड़ के नहीं बल्कि प्यार से सुलझाए जाते हैं। इसलिए न तो यहाँ पुलिस की जरूरत पड़ती है और न ही वकील की।

शौर्य: अच्छा तो बताओ ज़रा, प्यारे से इस बकरी का दूध कैसे निकलेगा?

शिवांगी धन्नो के पास गई और पहले उसे प्यार से पुचकारा और फिर धन्नो को गले से लगा लिया जैसे माँ अपने बच्चे को लगाती है। धन्नो को शिवांगी की ममता महसूस हुई और वह प्यार से मिमियाई और शिवांगी का मुँह चाटने लगी। शिवांगी ने फिर बाल्टी उठाई और बड़े प्यार से धन्नो का दूध निकाला। धन्नो का दूध निकलते देख ललिता दीदी बहुत खुश हुईं और उन्होंने चैन की साँस ली क्योंकि इसका मतलब है कि धन्नो बिलकुल ठीक है और अब वह भगवान को अपनी बकरी का दूध चढ़ा सकती हैं। शौर्य भौंचक्का खड़ा रह गया। जो बकरी उसे लात मार रही थी वही शिवांगी को इतने प्यार से दूध दे रही है, उसे यक़ीन ही नहीं हुआ! शिवांगी ने दूध भरी बाल्टी शौर्य को दिखाई।

शिवांगी: देखा, ऐसे होते हैं प्यार से काम गाँव में!

शौर्य: यह इम्पॉसिबल है! मैंने अमेरिका के टॉप के कॉलेज से पढ़ाई की है, वहाँ पे भी कभी किसी प्रॉब्लम का ऐसा सॉल्यूशन निकालना नहीं सिखाया गया।

शिवांगी: हरीश दद्दा तो कह रहे थे कि तुम ड्रॉपआउट हो! तो तुमने पढ़ाई की कहाँ है!

यह सुनकर ललिता दीदी की हँसी निकल गई।

शिवांगी: ऐसी पढ़ाई न दुनिया के किसी कॉलेज में नहीं पढ़ाई जा सकती क्योंकि कुछ ज्ञान किताबों से नहीं बल्कि ज़िंदगी के अनुभव से आता है।

ललिता: शहर की बड़ी डिग्रियों का कोई फ़ायदा नहीं अगर ज़िंदगी के ऐसे छोटे-छोटे काम भी न कर सको! बकरी का दूध निकालने के लिए साइंस नहीं लगती, बस थोड़ा प्यार दिखाना होता है।

शौर्य: तो मतलब मैंने जो इतने साल इतने बड़े स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई करी वो सब वेस्ट है?

शिवांगी: थोड़ा ज्ञान जिंदगी से भी सीख लेते तो किताबों की पढ़ाई बर्बाद नहीं होती। तुम्हारे लिए जो छोटी सी समस्या है वह हम गाँववालों के लिए जीने-मरने का सवाल है। हमें नहीं पड़ी यह जानने की कि किसने किसपे अटैक कर दिया या आज स्टॉक मार्केट क्यों क्रैश हुआ या किस हॉलीवुड की एक्ट्रेस का डिवोर्स हो गया! हमें तो बस अपनी रोज़ी-रोटी से मतलब है। अगर हमारी बकरी एक दिन दूध ना दे तो हमारा पूरे महीने का हिसाब-किताब गड़बड़ हो जाता है। हमें एक दिन हमारी दीहाड़ी ना मिले तो पूरा परिवार उस रात भूखा सोता है। हमारा तो मुर्गा टाइम पे बांग ना दे तो पूरे दिन की टाइम टेबल हिल जाती है। हम गाँववालों के प्रॉब्लम्स तुम शहरवालों के लिए शायद बड़े नहीं होंगे पर हमारे लिए यही हमारा जीवन है और इन्हीं तकलीफों में हम हंसी-खुशी अपना जीवन काट लेते हैं।

शिवांगी की बातें सुनकर शौर्य को रियलाइज़ हुआ कि गाँव के लोगों ने कैसे जिंदगी जीने के चीट कोड क्रैक कर लिया है। तकलीफों में भी हंसी-खुशी जीते रहना यही तो जिंदगी के मूल मंत्र है। शिवांगी ने आज शौर्य को एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक सिखाया है। शौर्य इस सबक के साथ जब घर पहुंचा तो उसे हरिश दद्दा अब भी नहीं मिले। मिली तो बस उनकी चिट्ठी जिसपे लिखा था.. “हम कुछ काम से सहर जा रहे हैं तुम्हरे बाप के पास।”
हरिश दद्दा की यह चिट्ठी पढ़ते ही शौर्य गाँव के सारे सबक भूल गया। उसके दादाजी उसे गाँव में अकेला छोड़के शहर चले गए। शौर्य को ऐसा लग रहा है जैसे कोई उसकी पीठ पे कांजर घोप गया हो। 

बिना अपने दादाजी के शौर्य कैसे रहेगा अकेला गाँव में? 

आखिर किस काम से हरिश दादा शहर गए हैं? 

क्या शौर्य दूध ना निकाल पाने के कारण अब से वेगन बन जाएगा? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँववालों के अगले चैप्टर में!

Continue to next

No reviews available for this chapter.