मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों! 

इंसान को घर की कीमत, घर से दूर जाकर ही महसूस होती है। जब तक आप घर पे हैं और माँ-बाप के टुकड़ों पे पल रहे हैं, जिंदगी पवन सिंह का तड़पता-भड़कता गीत लगती है, पर जैसे ही आप अपना घर छोड़कर किसी बेगानी मिट्टी में काम करने जाते हैं.. जिंदगी अरीजीत सिंह का सैड सॉन्ग बन जाती है। जिसमें मजे के नाम पे नाच भी नहीं सकते। बस उदास और ग़मसुम खड़े सिर हिला सकते हैं कठपुतली की तरह। अपने घर से दूर आकर पहले तो कुछ दिन बहुत अच्छा लगता है, फिर जब रोटी कमाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है तब समझ में आता है कि पिताजी अगर गुस्से में दो-तीन बार बेल्ट से सोंत भी दें तो उसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं.. कम से कम सुताई के बाद वो आदमी पेट भरके खाना भी तो देता है। बेगाने शहर में लोग सुताई के बराबर काम भी करवाते हैं और उसके बाद मूंगफली जितना पैसा देते हैं जो कि किराया भरने में ही निकल जाता है। हम तो कहते हैं, अगर किसी को वेट लूज़ करना हो तो जिम करने की जगह अपना घर छोड़के दूसरे शहर जाकर काम करना शुरू कर दे। कभी खुशी कभी ग़म में भी ऋतिक रोशन बचपन में मोटा था। फिर बच्चन साहब उसे घर से दूर भेज दिए.. सीधा सिक्स पैक एब्स लेकर वापस लौटा लौंडा! इसलिए महाराज घर की कद्र करो क्योंकि घर के बाहर तुम्हारी कोई कद्र नहीं करेगा। शौर्य को भी अपने घर की कद्र शहर से दूर गाँव आकर ही महसूस हुई। गाँव आने के बाद उसकी जिंदगी में कभी खुशी आई ही नहीं बस ग़म ही ग़म रह गया। यहाँ ना तो उसके पास कोई नौकर-चाकर है और ना ही वह किसी फाइव स्टार होटल से खाना मंगवा सकता है। यहाँ पे तो ज़िंदा रहने के लिए बेसिक एमिनिटीज जैसे वाईफाई भी नहीं मिल पा रही है शौर्य को। शौर्य ने गाँव से भागने की भी बहुत कोशिश की पर कभी उसे पत्थरों की बारिश सहनी पड़ी तो कभी कोई चुड़ैल उसे गन्नों के खेत में डरा गई। वह मच्छरों के बीच एक भी रात और नहीं गुजार सकता था। जब गाँव से भागने का कोई रास्ता नहीं बचा तो शौर्य ने डिसाइड किया कि अब वह अपने दादा जी से सीधा जाकर कह देगा कि वह वापस शहर अपने घर जाना चाहता है। दूसरे गाँव में शौर्य द्वारा हुई बदनामी के बाद हरिश दद्दा शौर्य से सीधा मुँह बात भी नहीं कर रहे हैं इसलिए शौर्य ने अपने दादा जी से बात करने के लिए इंटरनेट से साइन लैंग्वेज सीखी है। ताकि वह इशारों में हरिश दद्दा को समझा सके कि उसे शहर जाना है! शौर्य पूरे घर में अपने दादा जी को ढूंढ रहा था पर उसे हरिश दद्दा कहीं भी दिखाई नहीं दिए।

शौर्य: कमाल है दादा जी इतनी सुबह कहाँ चले गए?

शौर्य हरिश दद्दा को ढूंढते-ढूंढते खेत आ गया पर वहाँ भी वह नहीं मिले। फिर शौर्य गाँव वालों से हरिश दद्दा के बारे में पूछने लगा पर सुबह से किसी ने भी हरिश दद्दा को नहीं देखा था। शौर्य ललिता दीदी की दुकान पे गया हरिश दद्दा के बारे में पूछने।

शौर्य: ललिता जी आपने दादा जी को…

इससे पहले शौर्य अपनी बात पूरी कर पाता ललिता दीदी फूट-फूट कर रोने लगी।

शौर्य: अरे ललिता जी अब आप क्यों रो रही हैं? मैंने तो आपकी इंग्लिश का मज़ाक भी नहीं उड़ाया।

ललिता दीदी रोते हुए बोलीं…

ललिता: शट अप यू सिटी फेलो! मी नॉट क्राइंग बिकाज यू टॉक टू मी शिट. आई क्राइ ऑफ अदर बिकाज। 

शौर्य को ललिता दीदी की इंग्लिश का एक भी शब्द पल्ले नहीं पड़ा।

शौर्य: ललिता जी आप प्लीज़ हिंदी में बात करेंगी। गाँव में रहकर मेरी इंग्लिश कमजोर हो गई है।

ललिता: मॉर्निंग मॉर्निंग ऑल गवार पीपल फॉल टू माई हेड। सुनो.. तुम्हारी भाषा में समझती हूँ। मैं तुम्हारी वजह से नहीं रो रही हूँ। मेरे आंसुओं की वजह कुछ और है। 

शौर्य: शुक्र है। मुझे लगा मेरे ऊपर कोई नई मुसीबत आने वाली है। अच्छा आप बाद में रोटी धोती रहिएगा। पहले आप यह बताइए कि क्या आपने मेरे दादा जी को देखा है?

ललिता: हरिश चचा? उन्हें तो मैंने बिट्टी की सगाई के बाद से नहीं देखा। क्या हुआ? सब ठीक है?

शौर्य: हाँ बस वो सुबह से दादा जी दिखाई नहीं दे रहे हैं!

ललिता: अरे तुम उनकी फिकर मत करो। ई उनका गाँव है और वो यहाँ के जैकान्त सिकरे हैं! उनके आगे तो बड़े बड़े सिंघम फेल हैं। तुम टेंशन फ्री होकर घर जाकर खाली बैठो। तुम्हें कौन सा कोई काम धंधा होगा।

एक ही लाइन में शौर्य को टेंशन फ्री और जलील दोनों कर दिया ललिता दीदी ने। ये टैलेंट भी गांव वालों में ही होता है, शहर वालों में इतनी काबिलियत कहां। शौर्य वहां से निकलने लगा था कि तभी ललिता दीदी ने फिर से फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया। वैसे तो शौर्य को ललिता दीदी के रोने से कोई फर्क नहीं पड़ता पर उनको यूं रोता हुआ देख उसका दिल नहीं माना।

शौर्य: वैसे ललिता दीदी आप रो क्यों रही हैं?

ललिता: व्हाई यू मैटर? नन ऑफ योर इंडस्ट्रीज़। 

शौर्य: ललिता दीदी प्लीज़ हिंदी! मैंने आपको बताया ना मेरी इंग्लिश अब आपके जितनी अच्छी नहीं रही।

ललिता: अंगूठा छाप फेलो! सुनो.. अपने काम से काम रखो। दूसरों के काम में ज्यादा नाक घुसाओगे ना तो नाक के बाल के साथ-साथ नाक भी कट जाएगी।

शौर्य: ललिता जी आई वज़ ओनली ट्राइंग टू हेल्प। 

ललिता: अरे ई गांव वालों का प्रॉब्लम है। तुम शहर वाले इसमें का हेल्प कर लोगे? जाओ जाकर अपने मोबाइल पे गेम खेलो या इंटरनेट पे किसी को गाली लिखो। तुम शहर वाले और कुछ भी नहीं कर सकते।

शौर्य: ललिता जी आप शहर वालों को अंडरएस्टिमेट कर रही हैं!

ललिता: अरे मैं तुमको अंडर अरेस्ट, अंडर द ब्रिज, अंडरवियर कुछ भी करूं। तुमको इससे का? कहे बेगाना तीर अपने नितम्बगृह में लेते हो?

शौर्य: नितम्बगृह? व्हाट्स दैट?

ललिता: सुबह सुबह शरीर के जिस हिस्से से खेतों में खाद पैदा करते हो ना उसे नितम्बगृह कहते हैं!

ललिता दीदी की बात शौर्य के ईगो को हर्ट कर गई।

शौर्य: ललिता जी अब तो मैं आपकी प्रॉब्लम सॉल्व किए बिना यहां से नहीं जाऊंगा। आपको मुझे बताना ही पड़ेगा कि आपकी प्रॉब्लम क्या है?

ललिता: नहीं बताऊंगी। जा चाहे तो अपनी नस काट ले! बड़ा आया तीस मार खान!

शौर्य: ललिता जी मैं इतना कमजोर नहीं कि अपनी बात मनवाने के लिए नस्स काट लूं, अगर आपने मुझे अपनी प्रॉब्लम नहीं बताई तो मैं सारे गांव वालों को बता दूंगा कि आपने अपने तराजू के नीचे मैग्नेट चिपका के रखा है और आप 1 किलो के नाम पे सिर्फ 750 ग्राम राशन ही देती हो।

शौर्य की धमकी सुनकर ललिता दीदी डर गई। शौर्य जब एक दिन के लिए ललिता दीदी की दुकान में छोटू बना था तब उसने ललिता दीदी के सारे ट्रेड सीक्रेट्स जान लिए थे। ललिता दीदी ने उसे तुरंत चुप कराते हुए कहा।

ललिता: श! धीरे बोल। किसी ने सुन लिया तो मेरी दुकान पे ताला लग जाएगा।

शौर्य: तो फिर अपने मुंह का ताला खोलो और बताओ कि आपकी प्रॉब्लम क्या है ताकि मैं उसे सॉल्व कर सकूं।

ललिता: तुझे मेरी प्रॉब्लम जाननी है ना। तो सुन.. सुबह से मेरी बकरी ने दूध नहीं दिया है। ये है मेरी प्रॉब्लम।

शौर्य दो मिनट तक ललिता दीदी को कन्फ्यूजन से घूरता रहा। फिर बोला...

शौर्य: सीरियसली ये है आपकी प्रॉब्लम? इतना बड़ा बिल्ड अप इतनी छोटी सी प्रॉब्लम के लिए!

ललिता: ये तुझे छोटी सी प्रॉब्लम लगती है?

शौर्य: छोटी? मुझे तो ये प्रॉब्लम ही नहीं लगती। बकरी ने एक दिन दूध नहीं दिया तो क्या आफत आ गई? बाजार से किसी और जानवर का दूध ले आओ!

ललिता: क्या कहा.. बाजार से किसी और जानवर का दूध ले आऊं! ए गोबरचट्टा अक्ल में जा भी रहा है जो बड़बड़ करके बकवास किए जा रहा है तू! मेरी एकलौती बकरी अगर एक दिन दूध नहीं देगी तो जानता है मेरा कितना नुकसान हो जाएगा। घर में खाना कैसे बनेगा? घर में चूल्हा जलाने के लिए पैसा कहां से आएगा? बिना अपनी बकरी के दूध के मैं दिन का शुभारंभ नहीं कर पाती हूं! बकरी का दूध सबसे पहले भगवान को चढ़ाया जाता है.. आज भगवान भूखे हैं क्योंकि मेरी बकरी ने दूध नहीं दिया और बकरी अगर एक दिन दूध न दे तो इसका मतलब उसकी तबियत खराब है! भगवान न करे अगर मेरी बकरी को कुछ हो गया तो जब मेरे पति कतर से वापस लौटेंगे तो मैं उन्हें क्या मुंह दिखाऊंगी? जिस घर में बकरी मरती है ना उस घर में सात साल तक लक्ष्मी पैर नहीं रखती। पूरे गांव में मायूसी का महौल बन जाता है। एक के बाद एक अपशगुन होते हैं। कुछ गांव में तो महामारी भी फैल जाती है। अरे बकरी की मौत मतलब विनाश काल को विद फैमिली इनविटेशन कार्ड। अम्मा कसम बता रही हूं अगर मेरी बकरी के मरने की वजह से इस गांव के साथ कुछ भी बुरा हुआ तो तुम्हारी कब्र भी इसी गांव में खुदेगी!

ललिता दीदी की स्पीच सुनकर शौर्य डर गया।

शौर्य: ललिता दीदी आप मेरी कब्र क्यों खोद रही हैं? मैं तो आपकी मदद करना चाहता हूं। मैंने कहा था ना मैं आपकी प्रॉब्लम सॉल्व करूंगा। चलिए मैं आपकी बकरी का दूध निकालता हूं!

ललिता: काहे बकैत काट रहे हो बे! तुमको पता भी है बकरी का दूध कैसे निकालते हैं? अपने घर का रस्ता नापो।

तभी वहां शिवांगी आई जिसने ललिता दीदी और शौर्य की सारी बातें सुन ली थी।

शिवांगी: ललिता दीदी ये आप गलत कर रही हैं। पहली बार शौर्य गांव में किसी के काम आना चाहता है। आपको इसे एक मौका देना चाहिए। ऐसे ही तो ये एक सच्चा गांव वाला बनेगा और क्या पता ये सच में आपकी बकरी का दूध निकाल दे! आखिर इसमें भी तो हरिश दद्दा का खून दौड़ रहा है।

ललिता दीदी ने शिवांगी की बात से हांमी भरी और शौर्य को एक मौका देने के लिए मान गई। उन्हें नहीं पता था कि शिवांगी ये सब शौर्य की मदद करने के लिए नहीं बल्कि उसे सबक सिखाने के लिए कर रही है। 

क्या शौर्य ललिता दीदी की बकरी का दूध निकाल पाएगा? 

क्या शिवांगी, शौर्य को सबक सिखा पाएगी? 

क्या ललिता दीदी की बकरी का दूध देने का मूड है? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गांववालों के अगले चैप्टर में!

 

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