मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!
जब से हम अपने गाँव बखेड़ा को छोड़कर शहर आए हैं तबसे हमें अपने गाँव की सभी चीज़ों की बहुत याद आती है। हमारे गाँव बखेड़ा का खाना.. रेलवे लाइन.. जहाँ हम सुबह लोटा लेकर जाया करते थे…पान की दुकान जहाँ से हमारे गाँव में कैंसर की शुरुआत हुई थी.. देसी ठेका, जिसकी ज़हरीली शराब पीकर पिछ्ले साल गाँव के 20 मर्द और 3 कुत्ते मर गए..
बरगद का पेड़, जहाँ घर से भागे हुए प्रेमियों को मारकर लटका दिया जाता है। अब समझ में आ रहा है कि शहरों में पेड़ इतने कम और प्रेमी इतने ज़्यादा क्यों होते हैं! अगर हमारे गाँव की कोई एक चीज़ है जिसे हमने बिलकुल भी मिस नहीं किया शहर आकर तो वो हैं सरपंच रामु सिंह जी क्योंकि जैसे गाँव में सरपंच होते हैं वैसे ही कॉर्पोरेट में बॉस होता है। जैसे सरपंच गाँव की तरक्की के लिए कुछ नहीं करता वैसे ही बॉस अपने एम्प्लॉयी की तरक्की के लिए कुछ नहीं करता, बस ओवरटाइम के नाम पे उसे देर रात तक ऑफिस में फ्री का काम करवाता है और अगर गलती से आप वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं तब तो क्या दिन क्या रात.. आप 24 घंटे ही बॉस के लिए काम कर रहे हैं। जैसे गाँव में ज़रूरत पड़ने पर आप सरपंच के पास ही ना सुनने के लिए जाते हैं वैसे ही कॉर्पोरेट में ज़रूरत पड़ने पर बॉस अपनी सारी ज़िम्मेदारी आपके सिर पे डाल के छुट्टी पर चला जाता है। जैसे कॉर्पोरेट में हर सक्सेस पार्टी में आपका बॉस बोनस देने की जगह आपको क्लाइंट का अर्जन्ट काम पकड़ा देता है वैसे ही हमारे गाँव बखेड़ा में हर खुशी के मौके पर सरपंच रामु सिंह अपनी बड़ी-बड़ी मूछें लेकर आ जाते हैं रंग में भंग डालने जैसे कि आज ये हरिश दद्दा के घर आ पहुँचें हैं… “हरीस जी, ई आप बहुत गलत कर रहे हैं। ईह हम अलाउ नहीं करेंगे!”
रामु सिंह की बात सुनकर शौर्य अपनी जगह पर डर के मारे स्टेचू हो गया। वह घबराया कि अब कोई नई मुसीबत तो नहीं आने वाली उसके सिर पर।
हरीश: का हुआ सरपंच? काहे गुस्सा हुई रहे हो?
रामु सिंह बोले, “गुस्सा ना हो तो का करें हरीस जी! हम आपका बहुत इज्जत सम्मान करते हैं.. पर ई गाँव का भी कोई कायदा कानून है! और हम आपसे तो ये कतई उम्मीद नहीं की थे कि आप ई गाँव का कायदा कानून का उल्लंघन करेंगे!”
यह सुनकर सारे गाँव वाले भौचक्के रह गए क्योंकि हरिश दद्दा तो खुद सारे गाँव को मान मर्यादा और कानून का पाठ पढ़ाते हैं। आखिर उनसे किस कायदे का उल्लंघन हो सकता है भला?
हरीश: अरे सरपंच काहे तिलबिला रहे हो? साफ-साफ बको, का गलती हुई है?
रामु सिंह ने अपनी मूछों को सहलाते हुए कहा, “हरीस जी आपका पोता आज पहली बार हमरे गाँव बखेड़ा पधारा है और आप इसे सूखा-सूखा ही घर में रख लिए। ना कोई दारू पिलाए.. ना कोई मुर्गा तंदूर में जलाए.. कम से कम ऑर्केस्ट्रा में तीन चार छमियों का ठुमका तो बनता है.. क्यों गाँव वालों?”
यह सुनते ही गाँव वालों में उत्साह और उमंग की लहर दौड़ गई। पहली बार सरपंच रामु सिंह ने कोई मज़े की बात कही है। जब भी कोई मेहमान हमारे गाँव बखेडा में आता है तो उसके स्वागत के लिए ऑर्केस्ट्रा तो लगता ही है। यह तो गाँव की परंपरा है। सारे गाँव वाले हरिश दद्दा के घर के सामने ऑर्केस्ट्रा ऑर्केस्ट्रा चिल्लाने लग गए क्योंकि दारू और कबाब भले ही फ्री की हो पर शबाब के बिना मज़ा नहीं आता। गाँव वालों का शोर सुनकर हरिश दद्दा चिल्ला पड़े…
हरीश: अरे चुप! का ऑर्केस्ट्रा ऑर्केस्ट्रा लगा रखा है, और तुम सरपंच.. बुडबक! हमरा पोता कोई जंग के मैदान मा परमवीर चक्र नहीं जीत के आया है, जो खुशी मा हम सारे गाँव वालन का पाल्टी देबे! कांड करके आए हैं ससुर! पुलिस कहीं अरेस्ट ना कर ले एही खातिर बाप ई नालायक का हमारे पास गाँव भेजा है।
यह सुनकर शौर्य फुसफुसाते हुए हरिश दद्दा के कान में बोला…
शौर्य: दादा जी यह सब इन लोगों को बताने की क्या ज़रूरत है?
आगे से हरिश दद्दा चिल्ला दिए…
हरीश: काहे ना बताई? तुम कांड कर सकत हो और हम बता भी नहीं सकते! ई गाँव मा रहना है तो गाँव वालन का पता होयें का चाही ना… तुम्हरी हिस्ट्री, भूगोल और गणित सब। अब चुप चाप खड़े रहो वरना मारेंगे लप्पड़ और शरीर का फिजिक्स बिगाड़ देंगे।
शौर्य डर के अपना गोबर वाला मुँह लेकर कोने में चुप चाप खड़ा हो गया। रामु सिंह ने हरिश दद्दा से कहा, “अरे हरिश जी काहे गुस्सा हो रहे हो अपने पोता पे। बच्चा है.. जवानी में कांड हो गया.. पर इसका ई मतलब तो नहीं कि बूढ़े लोगन के ऑर्केस्ट्रा का मज़ा आप हमसे छीन लो!
हरीश: ऐसा है सरपंच बुडबक.. जो उम्र मा तुमका माता रानी का जागराता रखना चाहिए। उ उम्र मा तुम रानी का ऑर्केस्ट्रा देखना चाह रहे हो.. लज्जा शर्म का सत्तू मा घोल के पी गए हो? सराफत से घर निकल लो वरना अगले इलेक्शन मा तुम्हारी हार के बाद तुमसे पूरा गाँव मा लौंडा नाच करवाएंगे।
गाँव वाले यह सुनते ही हंसने लग गए। सरपंच रामु सिंह का चेहरा शर्मिंदगी से लाल हो गया। रामु सिंह की ईगो हर्ट हो गई, “हरिस जी आप गाँव के सरपंच की बेइज्ज़ती कर रहे हैं!”
हरीश: सुकर मनाओ कि सिरफ़ बेइज्ज़ती ही कर रहे हैं.. कहीं चप्पल उतार लिए ना तो यहीं ऑन द स्पॉट तुम्हरा ऑर्केस्ट्रा लगवा देंगे। अब चलो घर को निकलो। बहुत हुई गा तमाशा।
इससे पहले हरिश दद्दा अपनी चप्पल उतारते सरपंच रामु सिंह समेत सारे गाँव वाले वहाँ से भाग गए। अपने दद्दा जी का गाँव वालों पर रौब देखकर शौर्य इतना तो समझ गया था कि जितना वह इस गाँव में पुलिस से सेफ है उतना ही उसे इस गाँव में अपने दद्दाजी से खतरा है! शौर्य के लिए एक तरफ कुआं है तो एक तरफ खाई। उसके पास कोई ऑप्शन भी नहीं है। वह अपने दद्दाजी के साथ घर के अंदर गया और अपना गोबर वाला मुँह साफ करने के लिए हरिश दद्दा से पानी मांगने लगा। हरिश दद्दा ने उसे एक बाल्टी में पानी लाकर दिया पर जब उसने उस पानी को हाथ लगाया तो वह चिल्ड बीयर से भी ज्यादा ठंडा था।
शौर्य: दादा जी ये पानी तो ठंडा है.. मैं सिर्फ हॉट वॉटर बाथ लेता हूँ।
हरीश: बउआ, ई कोई फाइव स्टार होटल नहीं है, जहाँ बटन दबाया और फरर.. करके गरम पानी का फव्वारा निकल आया। सुकर मनाओ तुमका ई बखत नहाये का पानी मिल रहा है वरना गाँव मा इत्ती लेट तक तो लोगन के घर मा पीने का पानी भी नहीं बचता।
शौर्य जानता था कि हरिश दद्दा से बहस करने का कोई फायदा नहीं। इसलिए उसने ठंडे पानी से नहाना ही बेहतर समझा।
शौर्य: दादा जी बाथटब कहाँ है?
हरीश: बाथटब? आओ दिखावत हैं।
हरिश दद्दा शौर्य को घर के पीछे खाली आंगन में ले गए जहाँ बाथटब तो दूर, वहाँ कोई दीवार भी नहीं थी।
हरीश: बउआ, तुम्हरा बाथटब.. जकूजी सब यहीं है अबसे।
शौर्य को यकीन नहीं हो रहा था कि उसके दद्दाजी उसे यूँ खुले में नहाने के लिए कह रहे थे!
शौर्य: दादा जी यहाँ पे कोई दीवार भी नहीं है। मुझे नहाते हुए किसी ने नंगा देख लिया तो?
हरीश: तो देख ले.. तुम्हरे पास गाँव के बाकी मर्दन से कुछ अलग है का?
शौर्य: दादा जी आप समझ नहीं रहे हैं। अगर मुझे नहाते वक्त किसी औरत ने देख लिया तो.. मेरी क्या इज्जत रह जाएगी?
हरीश: अरे तो गाना गाते हुए नहाओ! और ऊँचे सुर मा गाना.. ताकि आस पास सभी औरतन का पता चले कि तुम नहा रहे हो। अब जल्दी से नहाके आओ.. तुम्हरे पास से गोबर की बदबू आ रही है।
इतना कहकर हरिश दद्दा शौर्य को खुले में नहाने के लिए छोड़ गए। जैसे ही शौर्य नहाने लगा आसपास के घरों की छतों पर बच्चे शौर्य को नहाते हुए देखने के लिए चढ़ गए और हंसने लगे।
शौर्य: हे यू किड्स! तुम लोगों को कोई काम नहीं है जो मुझे नहाते देखने आ गए? गो अवे.. गो अवे..
एक बच्चे ने बेशर्मी से जवाब दिया, “इस गाँव में थियेटर नहीं है न तो यही हमारा मैटिनी शो होता है। नहाओ-नहाओ हम कुछ नहीं कहेंगे.. बस देखेंगे!”
अपनी शर्म पर पत्थर रखकर शौर्य ने इसे एक बुरा सपना समझकर नहा तो लिया पर उसे क्या पता था कि रात तो अभी बाकी है। शौर्य नहाने के बाद किचन में गया और कुछ ढूंढ़ने लगा। हरिश दद्दा ने उससे पूछा..
हरीश: किस चीज की खोज कर रहे हो बाउआ? अपनी बुद्धि की?
शौर्य: वेरी फनी दादा जी! मैं तो फ्रिज ढूंढ रहा हूँ!
हरीश: फ्रिज? उ तो नहीं है हमरे इहाँ।
शौर्य भौचक्का रह गया!
शौर्य: दादा जी व्हाट आर यू सेइंग! फ्रिज नहीं है! तो फिर मैं ठंडा पानी कैसे पिऊँगा!
हरीश: तुम शहर वाले भी एकदम बउड़म हो। नहाने के लिए पानी गरम चाहिए.. लेकिन पिओगे सिर्फ ठंडा-ठंडा कूल-कूल! रुको लावत हैं।
हरिश दद्दा गए और एक खाली बाल्टी लेकर आए।
शौर्य: खाली बाल्टी? दादा जी पानी कहाँ है?
हरीश: पानी कुआं मा है.. एकदम ताजा और ठंडा! हमरे लिए भी निकाल लाओ! जाओ!
तो इस तरह हरिश दद्दा ने शौर्य की रेल बनानी शुरू कर दी। शौर्य कुएं से ठंडा पानी निकालता और हरिश दद्दा सारा पानी पी जाते। शौर्य ने वाई-फाई का पासवर्ड मांगा पर जिस गाँव में मोबाइल के नेटवर्क नहीं पूरे आते वहाँ वाई-फाई कहाँ से आएगा! रात होने पर शौर्य ने खाना मांगा तो खाना खत्म हो चुका था।
शौर्य: खाना खत्म हो गया?
हरीश: गाँव मा लोग खाना 7 बजे ही निपटा देत हैं। शहर की तरह 10-10 बजे तक भूखे नहीं रहत हैं। एक काम करो पेट मा गीला कपड़ा बांध के सूई जाओ। अब तो अन्न का दाना कल सुबह ही मिलेगा।
शौर्य ने एक थका हुआ मुंह बनाकर कहा..
शौर्य: ठीक है। ए.सी का रिमोट कहाँ है?
हरीश: ए.सी का रिमोट? अरे तुम हमरे गाँव को कितना पिछड़ा हुआ समझे हो? ई गाँव बहुत एडवांस्ड है। ईहाँ सेंट्रलाइज्ड एसी है जो बिना रिमोट के चलत है। आओ दिखाई..
हरिश दद्दा शौर्य को छत पर ले गए और खुले आसमान के नीचे बैठी हुई हवा में सुला दिया। यही है गाँव का सेंट्रलाइज्ड ए.सी, सबको बराबर की हवा मिलती है। शौर्य ने भूखे पेट सोने की कोशिश तो की पर मच्छरों की फौज ने उसे सोने नहीं दिया। जब उसने अपने दद्दाजी से मच्छर भगाने वाली क्रीम मांगी तो उन्होंने कहा…
हरीश: आदत डाल लो। कुछ दिनन के बाद इन मच्छरों के काटे बिना नींद ना आई और अब लुगाइयन की तरह नखरे करना बंद करो और सूई जाओ। कल से तुम्हरा गाँव मा ऑफिसियल पहला दिन शुरू होई।
शौर्य की आँखों में एक खौफ छा गया। अगर गाँव की रात ऐसी थी तो गाँव का दिन कैसा होगा!
क्या शौर्य गाँव की जिंदगी में सर्वाइव कर पाएगा?
कल गाँव के कौन-कौन से काम करवाएंगे हरिश दद्दा शौर्य से?
क्या मच्छरों का भींभीनाना गाँव वालों को लोरी लगती है?
सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँववालों के अगले चैप्टर में।
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