मित्रों और हमारी पोटेंशियल गर्लफ्रेंडों!

शहर और गाँव में हमें सबसे बड़ा फर्क यही लगता है कि शहर के लोग जितने ज़्यादा इंट्रोवर्ट होते हैं.. गाँव के लोग उतने ही ज्यादा एक्स्ट्रोवर्ट.. शहर में कोई सीधे मुंह बात करने को राज़ी नहीं होता। अब मेरे ऑफिस के लोगों को ही ले लो जब तक काम है सब मुंह पे मीठी-मीठी स्माइल रखके दांत फाड़ फाड़ कर बात करेंगे पर जब आपको इनसे कोई काम पड़ जाए तो ये आपको वैसे ही इग्नोर मारेंगे जैसे 2011 का वर्ल्ड कप जीतने के बाद सहवाग, गंभीर, भज्जी और युवराज को मारा गया था। वहीं अगर आप किसी गाँव में चले जाओ तो कभी आपको कोई आदमी अकेला बैठा दिखाई नहीं देगा। हमेशा झुंड बैठा रहता है लोगों का जो इकट्ठे बैठके बकैती काटते हैं। लड़ाई चाहे किसी की भी हो पूरा गाँव आता है मारपीट करने के लिए। बारात चाहे किसी की भी निकल रही हो पूरा गाँव घोड़ी के सामने नागिन डांस करता है और बच्चा चाहे किसी के भी घर पैदा हो पूरा गाँव आ जाता है उसका नामकरण करने। शायद इसीलिए गाँव में क्लब नहीं होते क्योंकि गाँव वाले इतने ज्यादा एक्स्ट्रोवर्ट होते हैं कि जहाँ चार लोग खड़े हो जाएं वहीं मेला लग जाता है। उन्हें सोशलाइज करने के लिए क्लब और डिस्को का बहाना नहीं चाहिए होता। शहर में आप किसी अजनबी आदमी से मदद मांग लो तो उसके मदद ना करने के दस बहाने पहले से तैयार रहते हैं। वहीं गाँव में आप किसी से मदद नहीं भी मांगोगे तो भी वो ज़बरदस्ती आपकी मदद करेगा क्योंकि यही गाँव वालों का टाइमपास है। मैप आपको गलत रास्ता दिखा सकता है पर गाँव वाले आपको घर तक छोड़कर आते हैं और जब तक उन्हें यकीन न हो जाए कि आप सही डेस्टिनेशन पर पहुँच गए हैं वो वहाँ से जाते नहीं। ऐसा ही कुछ अनुभव कर रहा है शौर्य, जिसे उसके डैडी ने मीडिया से बचाने के लिए हमारे गाँव बखेड़ा भेज दिया है उसके दादाजी के पास, पर न तो उसके पास अपने दादाजी का एड्रेस है और न ही गाँव में नेटवर्क आ रहा है.. जो वो मैप इस्तेमाल कर ले। इसीलिए उसने एक रिक्शावाले से मदद मांगी। जैसे ही उसने रिक्शावाले को अपने दादाजी का नाम बताया तो वो उसे घूरने लग गया, जैसे उसने किसी भूत का नाम सुन लिया हो! रिक्शावाला बोला, “तुम हरीस रंजन के पोते हो?”

शौर्य: ड्यूड, इट्स हरिश, नॉट हरीस!

रिक्शावाला भी फुल एटिट्यूड में बोला, “ओही तो बोले! हरीस रंजन! तुम सच में हरीस रंजन का पोता हो?”

शौर्य: हाँ, बचपन में डैडी ने तो यही बताया था!

यह सुन के रिक्शावाले ने शौर्य को शक की नज़रों से देखा, फिर उसकी आँखें गुस्से से लाल हो गईं। उसके चेहरे की नसें फटने लगीं। उसका रंग काले से बैंगनी हो गया। शौर्य को लगा वो रिक्शावाला बहुत गुस्से में है लेकिन तभी उस रिक्शावाले ने एक विस्फोटक पाद मारा जिसकी बदबू से शौर्य बेहोश होते-होते बचा। रिक्शावाला कब्ज़ से मुक्त हुआ और उसके चेहरे पर एक बड़ी सी स्माइल आई और उसने शौर्य को कसके गले लगा लिया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा… “अरे गाँव वालों! हरिस बाबू का पोता आया है शहर से! अरे ढोल नगाड़े बजाओ रे!”
थोड़ी देर में ही पूरा गाँव नाचते हुए शौर्य का स्वागत करने आ गया। गाँव वालों ने उसे कंधे पर उठा लिया और उसके आगे भिन्न-भिन्न जानवरों का नाच करना शुरू कर दिया। कोई नागिन डांस कर रहा था.. तो कोई मोर बनके नाच रहा था.. तो कोई दरियाई घोड़ा बनकर नाच रहा था। गाँव वालों ने बिना दिवाली ही पटाखे फोड़ने शुरू कर दिए। एक रॉकेट तो उड़ता हुआ किसी के तबेले में चला गया और तबेले में आग लग गई। पर गाँव वालों ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया क्योंकि इस समय मस्ती ज्यादा जरूरी थी। नाचते-नाचते पूरा गाँव शौर्य को उसके दादाजी के घर के पास ले आया। गाँव वालों का शोर शराबा सुन हरिश दद्दा अपने घर से बाहर आए और उनकी नजर गाँव वालों के कंधे पर चढ़े हुए अपने पोते शौर्य पर पड़ी जिसकी शक्ल गोबर के फेसपैक से सनी हुई थी। अपने पोते को देखकर हरिश दद्दा चिल्ला पड़े…

हरीश: बंद करो ई नाच गाना!

उनकी आवाज सुनते ही पूरा गाँव स्टैच्यू हो गया।

हरीश: नीचे उतारो हमरे पोता का। ई कोई वर्ल्ड कप नहीं है जो ऐसे कंधा पे उठा के घूम रहे हो तुम लोग!

गाँव वालों ने तुरंत शौर्य को छोड़ दिया और वो धड़ाम से गिर गया। एक बार फिर से उसका मुंह गोबर में जाकर बजा।
 

शौर्य: व्हाट द... अगेन!

पूरा गाँव सन्न खड़ा था। गाँव वालों को ऐसे देखकर शौर्य समझ गया था कि उसके दादाजी का इस गाँव में काफी रौब है और हो भी क्यों न..? हमारे गाँव बखेड़ा के सबसे सयाने बुजुर्ग हैं हरिश दद्दा! ज़मीन के डिस्प्यूट से लेकर ऑनर किलिंग तक गाँव के सारे मसले हरिश दद्दा ही सुलझाते हैं। समझ लो वो इस गाँव के ठाकुर भानु प्रताप हैं! उनका फैसला पत्थर की लकीर और उनकी ज़ुबान इस गाँव का कांस्टीट्यूशन है। जिंदगी में पहली बार उनका पोता शौर्य गाँव आया है पर इतने सालों के बाद अपने एकलौते पोते को देख रहे हरिश दद्दा की आँखों में चुल्लू भर भी खुशी नहीं है। वो गोबर में लिपटे मुंह वाले शौर्य को गुस्से भरी नज़रों से घूर रहे थे।

हरीश: याद आ गई अपने दादा की इत्ते सालन बाद?

Shaurya: नहीं ग्रांडपा, याद तो मैं आपको रोज़ करता हूँ पर वो शहर में इतना बड़ा बिजनेस है ना और डैडी की भी उम्र हो गई है। मुझे ही सब अकेले देखना पड़ता है। इसीलिए बिजनेस संभालने में बिजी हो गया था। फिर मैंने एक दिन टीवी पे बाग़बान देखी और मैंने डैडी से साफ-साफ बोल दिया कि डैडी बिजनेस इम्पोर्टेन्ट है पर फैमिली से ज्यादा नहीं और अगले दिन ही गाड़ी में बैठकर गाँव अपने ग्रांडपा से मिलने आ गया। ग्रांडपा आप कैसे हैं?

हरीश: एलर्जी है हमका!

शौर्य: अच्छा! डॉक्टर को दिखाया आपने? वैसे किस चीज़ से एलर्जी है आपको?

हरीश: झूठ से! हम जानते हैं तुम शहर में कोई बिजी वीज़ी नहीं रहते। पूरा दिन लफंटरबाजी करते रहते हो और बहुत बड़ा कांड कर बैठे हो… ए ही लिए तुम्हरा बाप तुमका हमरे पास गाँव भेज है! बेटा हम तुम्हरे बाप के भी बाप हैं! हमसे होशियारी कीजिएगा न, तो अभी तो मुंह गोबर मा लिपटा हुआ है। अगली बार मुंह खून मा लिपटा हुईए.. पूछ लियो गाँव वालन से, आज भी हमरा एक लप्पड़ मा आदमी इंद्रधनुष मूतन लगत है!

हरीश दद्दा की वॉर्निंग सुनकर शौर्य की हवा टाइट हो गई।

शौर्य: सॉरी ग्रांडपा। मुझे नहीं पता था डैडी ने आपको already सब कुछ बता दिया है!

हरीश: मारेंगे लप्पड़ टप्पा खाके पहिले गिरोगे कश्मीर मा और दूसरा टप्पा पड़ेगा कन्याकुमारी मा! एक ही लप्पड़ मा नॉर्थ से साउथ पूरा भारत दर्शन हुई जाई। ई ग्रांडपा ग्रांडपा का लगा रखा है! दादा जी हैं हम तुम्हरे! इज्जत से बुलाओ हमें!

शौर्य: स्स.. सॉरी ग्रांडपा.. मतलब दादा जी!

शौर्य: मारेंगे लप्पड़ गुलाटी खाके पहुँच जाओगे अमेरिका और रेंगत रेंगत पहुँच जाओगे ऑस्ट्रेलिया! खड़े खड़े वर्ल्ड टूर हुई जाई तुम्हरा!

शौर्य: अब क्या हुआ दादा जी?

हरीश: इतनी देर से खड़े हो, पैर को छुईए? बड़ों का आशीर्वाद लेना है कि नहीं? विलायत से पढ़ाई छोड़ के आए हो न मिस्टर ड्रॉपआउट बाबू.. संस्कार मत छोड़ना वरना फिर हम छोड़ेंगे तुम्हारे गाल पे तीन चार!

इससे पहले हरिश दद्दा सच में ही शौर्य के लप्पड़ मार देते, शौर्य ने तुरंत अपने दादाजी के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लिया लेकिन उन्होंने आशीर्वाद देने से मना कर दिया।

हरीश: धत्त! बोलने के बाद आशीर्वाद लिया तो कैसन आशीर्वाद! तुम तो टोटल डिसअपॉइंटमेंट हो! ना तो शहर मा रह पाए ढंग से ना गाँव मा रखे लायक हो। तुम वापस शहर ही चले जाओ!

यह सुनते ही शौर्य की फिर से हवा टाइट हो गई। वो वापस शहर तो जाना चाहता था पर अगर वो अभी वापस शहर गया तो पुलिस उसे अरेस्ट कर लेगी और पुलिस से बच भी गया तो पता नहीं उसके डैडी अब उसे छुपाने के लिए कहां अंडरग्राउंड भेज दें। इस समय यह गाँव बखेड़ा ही उसके लिए बेस्ट ऑप्शन है। उसने तुरंत हरिश दद्दा के पैरों में गिर के माफी मांगी और पप्पी फेस बना के कहा…

शौर्य: दादा जी इतने सालों के बाद आपका पोता गाँव आया है.. आप उसे घर के बाहर से ही भगा देंगे? कुछ दिन तो अपने साथ रहने दीजिए ना.. मैं भी तो अपने दादा जी का प्यार एक्सपीरियंस करना चाहता हूँ!

हरीश दद्दा ने शौर्य का कान खींचते हुए कहा…

हरीश: ई कुकुर जैसन थोपड़ा काहे बना रहे हो बे? मूतत भी एक टांग उठा के हुई हो फिर?

हरीश दद्दा की बात सुनकर पूरा गाँव हंस पड़ा। शौर्य को बहुत एम्बैरेसमेंट फील हुई। पर उसके पास कोई ऑप्शन नहीं था इसीलिए दर्द में उसे भी अपने चेहरे पर मुस्कान लानी पड़ी।

हरीश: हम तुम्हरे दादा जी हैं। तुम्हरी मेहरारू नहीं! हमरे सामने ई सब प्लीज़ बेबी कहना, कुकुर जैसा मुंह बनाना, होंठ टेढ़े करके भोला बनना.. ई शहर वाले लच्छन चली नहीं बाबुआ। शहर मा रह के नसल ही खराब हुई गई हमरी तो!

हरीश दद्दा ने आखिरकार शौर्य का कान छोड़ा और उसे इशारा करते हुए कहा…

हरीश: चलो अब हमरा मुंह का ताक रहे हो बे? अपना बैग उठाओ और अंदर रखो। जब तक तुम्हरा सहर वाला मामला सुलझ नहीं जाता तुम हमरी जिम्मेदारी हो। तुम्हें तो हम इंसान का बच्चा बना के ही शहर भेजेंगे अब!

यह सुन के शौर्य ने राहत की सांस ली क्योंकि कम से कम अब उसके पास छुपने के लिए घर तो है। वो सामान उठाकर अंदर जाने लगा। हरीश दद्दा ने गाँव वालों को भी घर जाने के लिए कहा तभी वहाँ गाँव के सरपंच 50 वर्षीय रामू सिंह आए जिनको कभी भी गाँव वालों ने बिना पगड़ी और मूंछों के नहीं देखा था। कुछ गाँव वालों का तो ये भी मानना है कि रामू सिंह जब पैदा हुए थे तब भी गाँव की दाई ने इनके सर पे पगड़ी और चेहरे पे मूंछें देखी थी। "हरीस जी ई आप बहुत गलत कर रहे हैं। ई हम अलाउ नहीं करेंगे!"

रामू सिंह की बात सुनके शौर्य अपनी जगह पर डर के मारे स्टैच्यू हो गया। वो घबराया कि अब कोई नई मुसीबत तो नहीं आने वाली उसके सर पर। 

आखिर क्यों रामू सिंह ने हरीश दद्दा को शौर्य को घर में रखने से रोका? 

क्या ये शौर्य का गाँव में पहला और आखिरी दिन होगा? 

आखिर कब तक शौर्य गोबर लगा मुंह लेकर पूरे गाँव के सामने खड़ा रहेगा? 

सब कुछ बताएंगे महाराज.. गाँववालों के अगले चैप्टर में।

 

 

 

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