आर्यन और काव्या की अगली सुबह जिसमें वो एक दूसरे से काफी दूर आ गए थे, कई सारे सवालों के साथ शुरू हुई थी।
काव्या के मन में जहां सवाल थे, मैं इतनी जल्दी किसी से attached क्यों हो जाती हूं? मैने इतनी जल्दी किसी पर इतना trust कैसे कर लिया? क्या मुझे कभी लाइफ में सच्चा प्यार नहीं मिलेगा? क्या वापिस फ्लैट पर जाने पर आर्यन की यादें उसे और तंग तो नहीं करेंगी? दिमाग़ में एक सवाल के बाद दूसरा सवाल आ जाता। पर सवालों की line खत्म नहीं होती।
आर्यन का भी यही हिसाब था। उसके दिमाग में बस सवाल अलग तरह के थे। क्या काव्या के घर जा कर उससे एक बार फिर से बात कर लूं? क्या मुझे सब कुछ अब किस्मत पर छोड़ देना चाहिए? अब मैं कहां जाऊंगा? क्या मुझे नया फ्लैट मिलेगा?
दोनों अपने अपने सवालों के साथ इस नए दिन की शुरआत करने लगे थे। आर्यन शरीर से इतना थका हुआ महसूस कर रहा था कि उसका ऑफिस जाने का भी मन नहीं था। तभी उसे याद आया कि आज ही उसके ऑफिस में सब लोग कोयंबटूर की ट्रिप पर जाने वाले थे। आर्यन ने सोचा वो इस हालत में ट्रिप पर बिल्कुल भी नहीं जा सकता था। उसके दिमाग़ को काफ़ी रेस्ट की ज़रूरत थी।
उसने अपने बॉस को ट्रिप पर जाने से मना करने के लिए जैसे ही मैसेज टाइप करना शुरू किया। उसके पास प्रज्ञा का कॉल आया। जिसे देखकर आर्यन के सिर में और दर्द उठ गया था।
पर जब उसने सोचा कि पिछली रात वो प्रज्ञा के साथ काफ़ी rude हो गया था। उसने प्रज्ञा का कॉल उठा लिया।
उधर से प्रज्ञा की आवाज़ आई जिसमें एक रूखापन समझ आ रहा था। प्रज्ञा ने कहा,
प्रज्ञा: “सॉरी! मैं कॉल नहीं करने वाली थी। But सर ने मुझे तुमको रिमाइंड कराने को बोला कि आज ट्रिप पर हम सब जा रहे हैं एंड यू should be ready on टाइम।”
आर्यन बिलकुल भी ट्रिप पर जाने के मूड में नहीं था। उसने प्रज्ञा से कहा,
आर्यन: “नहीं बॉस को कह दो कि मैं ट्रिप पर नहीं जा पाऊंगा। मेरा मन नहीं है।”
कुछ देर तक प्रज्ञा की कोई आवाज नहीं आई। ऐसा लगा जैसे उसे आर्यन की बात समझ नहीं आई थी। आर्यन ने दोबारा बोला,
आर्यन: “hello! तुम्हे समझ आया न?”
तभी प्रज्ञा ने बहुत ही धीरे से कहा,
प्रज्ञा: “आर्यन! Don't do this! You need this trip! तुम्हे साथ में चलना चाहिए। मुझे पता था तुम जाने से मना करोगे। पर तुम्हे अभी इस ट्रिप की जरूरत है। तुम्हें यहां से बाहर निकल कर फ्रेश होने की ज़रुरत है।”
आर्यन अंदर ही अंदर जानता था कि प्रज्ञा की ये बात सही थी। उसे फ्रेश होने की ज़रूरत है। वो कुछ देर चुप रहा। उसके बाद प्रज्ञा ने आगे और समझाते हुए कहा,
प्रज्ञा: “believe me! तुम्हे हैरानी होती है न कि मैं इतनी बदल कैसे गई। तो ये सब कुछ पॉसिबल हो पाया जब मैंने ऐसी जगह जा कर कुछ चीजों को experience किया। कुछ चीजों को हीलिंग की जरूरत होती है। और एक बार तुम ये एक्सपीरियंस कर लोगे तो तुम देखना, तुम्हारी लाइफ किस तरह बदल जायेगी।”
आर्यन प्रज्ञा की बात ध्यान से सुन रहा था। शायद प्रज्ञा की बात सही थी। उसे इस ट्रिप की ज़रूरत थी। उसने प्रज्ञा से कुछ टाइम सोचने के लिए मांगा और फोन रख दिया।
उधर काव्या ऑफिस से कुछ समय का ब्रेक ले कर अपने घर में टाइम स्पेंड करना चाहती थी। उसके दिमाग में शैलजा जोकि प्रज्ञा की मॉम थीं, उनकी बातें दिमाग़ में घूम रही थीं। ऊपर से अब क्या वो अपना प्रोजेक्ट काव्या से छीन लेंगी? पर क्या अब काव्या को उनके साथ इस प्रोजेक्ट पर आगे और काम करना चाहिए? काव्या को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी professional life में personal चीज को कैसे हटाए?
कुछ देर सोचने के बाद उसने डिसाइड किया कि वो खुद से इस प्रोजेक्ट को मना नहीं करेगी। ऐसा करना बहुत ही ज़्यादा unprofessional behaviour होगा।
तभी उसको बाहर हॉल से पीयूष की आवाज़ सुनाई दी। पीयूष काव्या से मिलने उसके घर पर आ गया था। पीयूष की आवाज़ सुनते ही काव्या का दिमाग और खराब होने लगा था।
पीयूष काव्या के लिए कई सारे फ्रूट्स और फ्लावर्स लाया था। उसके हाथ में इतना सब देख कर काव्या की मॉम की आंखें खुशी के मारे बड़ी हो गई थीं। और उन्होंने अंदर से काव्या को आवाज़ लगाई। काव्या जानती थी कि मॉम ऐसा ही कुछ करने वाली थीं। इस चीज के लिए वो पहले से ही तैयार हो चुकी थी।
वो बाहर निकली, और पीयूष के हाथ में इतना सब देख कर पूछा,
पीयूष: “ये सब क्या है?”
पीयूष मुस्कुराता हुआ बोला,
पीयूष: “ये फूल पापा के लिए हैं और ये फल तुम्हारे लिए!”
काव्या और मॉम को पहले लगा था पीयूष फूल काव्या के लिए लाया होगा। काव्या ने एक लंबी सांस छोड़ी ये सोचकर कि कम से जान ये फूल उसे बाद में फेंकने नहीं पड़ेंगे। उसने फलों को देखते हुए कहा,
काव्या : “ये लाने की क्या ज़रूरत थी?”
इस पर पीयूष बोला,
पीयूष: “मुझे पता था अंकल बाहर जा नहीं पा रहे होंगे। और आंटी को फुरसत नहीं मिल रही होगी। और चंचल का तो कुछ भरोसा रहता नहीं। इसलिए मैने सोचा फल आपके लिए लेता चलूं।”
काव्या ने sarcastic होते हुए कहा,
काव्या: “वैसे फोन में कुछ apps इसलिए आ गए हैं। आपको डिलीवर करने की जरूरत नहीं थी।”
काव्या का जवाब सुनते ही पीयूष खड़ा का खड़ा रह गया जैसे उसको सांप सूंघ गया था। काव्या की मॉम ने माहौल को चेंज करते हुए कहा,
काव्या की मॉम: “तू भी कुछ भी बोलती है। एक तो वो ये सब ले कर आया है, तू ताना मार रही है उसे। ला बेटा, दो मुझे।”
पीयूष ने सारा समान काव्या की मॉम को पकड़ा दिया था। काव्या की मॉम अंदर चली गई थीं। काव्या भी पीयूष को अकेले वहां छोड़ कर अंदर जाने लगी तो पीयूष ने रोकते हुए कहा,
पीयूष: “काव्या एक मिनट!”
काव्या पीयूष से इतनी थक चुकी थी कि अब उसे पीयूष पर गुस्सा आना भी बंद हो गया था। उसके लिए अब पीयूष लाइफ में दूर दूर तक exist नहीं करता था। काव्या को पीयूष ने न नफरत थी, न गुस्सा था। बस उसके चेप होने की वजह से काव्या को घिन्न आने लगी थी।
पीयूष के रोकने पर काव्या रुक गई। पीयूष ने काव्या के पास आते हुए कहा,
पीयूष: “I am sorry! जो कुछ भी तुम्हारे साथ हुआ, मुझे exactly पता नहीं। पर मैं अंदाज़ा लगा सकता हूं कि तुम पर क्या बीत रही होगी। यही सोच रही होगी कि सारे आदमी एक जैसे होते हैं क्या? पर मैं तुमको बताना चाहता हूं, मैं आर्यन जैसा नहीं हूं। मुझे जैसे ही अपनी गलती का पता चला, मैं तुम्हारे पास माफी मांगने आने लगा था। मेरे अंदर male ego नाम की कोई चीज नहीं है। भले तुम्हें अभी सारे आदमी similar लग रहे हों पर तुम्हें difference भी नज़र आएगा।”
काव्या कुछ देर तक पीयूष को ब्लैंक फेस बनाते हुए सुन रही थी। जैसे ही पीयूष ने बोलना बंद किया। काव्या ने कहा,
काव्या: “जिसको तुम male ego कह रहे हो। उसे self respect कहते हैं। And yes वो तुममें बिल्कुल भी नहीं है। ये सबसे बड़ा difference है।”
काव्या के मुंह से ये जवाब सुनकर पीयूष का चेहरा और लटक गया था। उसे समझ नहीं आया वो आगे क्या कहे। पर इस बार काव्या पीयूष के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
पीयूष: “कभी कभी हमारी चीजों को सही करने की ज्यादा कोशिश, चीजों को और बिगाड़ देती है। तुम्हे हर बार एफर्ट डाल कर बार बार खुद को, मुझ को या मेरे घर वालों को अच्छा दिखाने की जरूरत नहीं है। इससे तुम्हे कभी भी किसी का सच्चा प्यार, सच्ची दोस्ती नहीं मिलने वाली। मेरे घरवालों को तुमसे ज्यादा तुम्हारा पैसा अच्छा लगा है। इसलिए वो मेरे पीछे तुमसे शादी करवाने पर तुले हैं। पर तुम्हें लगता है, तुम्हारी ये सब कोशिशों से मैं मान जाऊंगी तुमसे शादी करने के लिए। एक बात मैं तुम्हें फिर से क्लियर कर देना चाहती हूं, मैं तुमसे कभी प्यार नहीं करने वाली। शादी तो नामुमकिन है। इसलिए You should stop begging!”
काव्या ने आज जिस सच्चाई और समझ के साथ पीयूष के मुंह पर तमाचा मारा था उससे पीयूष बुरी तरह अंदर से कांप गया था। ऐसा reality check पा कर पीयूष कुछ देर तक कुछ नहीं बोल पाया। उसकी आंखें झुक गई थीं। उसे ऐसा लगा था जैसे उसे अचानक से किसी ने नंगा कर दिया हो और अब उसे किसी छोटे बच्चे की तरह बस मां की गोद चाहिए।
काव्या के अंदर एक अलग तरह का self confidence जाग गया था। उसने कितने समय बाद इतनी clarity के साथ किसी को जवाब दिया था। पीयूष बिना कुछ बोले वहां से चुप चाप निकल गया। काव्या ने गहरी सांस ली। उसे ऐसा लगा जैसे अचानक से उसका एक नया जन्म हुआ था।
एक अलग तरह का जज्बा आ गया था जिससे वो हर चीज हासिल कर सकती थी।
सबसे पहली चीज़ जो उसे घर में ठीक करनी थी वो थी, घरवालों की पीयूष के साथ शादी करवाने की रट। हालांकि पीयूष को जो सच उसने बोला था, उसके बाद पीयूष शायद ही उसकी जिंदगी में वापस आए। पर उसके घरवाले फिर भी इतनी आसानी से नहीं मानने वाले थे। उनके लिए जरूरी था, कि काव्या आराम से उनको इस बारे में समझाए।
काव्या की मॉम जब बाहर आईं तो पीयूष को कहीं न देखकर उन्होंने काव्या से पूछा,
काव्या की मॉम: “पीयूष चला गया क्या?”
इस पर काव्या ने मॉम के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,
काव्या: “वो तो चला गया पर अब आप लोग मेरी बात सुनो।”
ऐसा कहकर काव्या अपनी मॉम को ले कर पापा के रूम में ही ले आई। पापा बिस्तर पर लेटे अखबार पढ़ रहे थे। काव्या को इस तरह उनकी मॉम को लाते देखकर उन्हें समझ नहीं आया कि आखिर काव्या क्या करने वाली थी।
काव्या ने दोनों को सामने बैठाते हुए कहा,
काव्या: “मम्मा और पापा मैं आप दोनों को ये बताना चाहती हूं कि अब मुझे और पीयूष को ले कर घर में कोई बात नहीं होंगी।”
इसके पहले दोनों इस बात पर रिएक्ट करते, काव्या ने आगे उन्हें समझाते हुए कहा,
काव्या: “मुझे पता है, पीयूष ने financially हमारी काफी हेल्प करी है। पर अब हमें उसके ऊपर dependant होने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। I can take care of everything। हाल ही में मुझे जो जो प्रोजेक्ट मिले हैं उसके बाद मैं independently इंटीरियर डिजाइन का काम कर सकती हूं। My own startup!”
काव्या की बात सुनते ही, काव्या की मॉम हैरानी से काव्या की तरफ देख रही थी। कल को जो लड़की, कमरे में उदास पड़े सुबक रही थी। आज अचानक इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रही थी कि वो अब घर संभालने को भी राजी है। पर डॉक्टर की फीस और उनके पापा के इलाज के लिए जो पैसे पीयूष से लिए थे। उसके लिए वो अचानक से पीयूष से रिश्ता खत्म नहीं कर सकते थे।
पर काव्या के पास इसका भी सॉल्यूशन था। उसने कहा, काव्या: “पीयूष के सारे पैसे मैं वापस कर दूंगी। मेरी जो fd बनी है, उसे तुड़वा कर मैं पीयूष का सारा हिसाब चुकता कर दूंगी। जिससे उसका इस घर से कोई कनेक्शन न रहे।”
काव्या के पापा ये सुनकर काफी संतुष्ट लग रहे थे। उनकी आंखों में अपनी बेटी के लिए चमक दिखाई दे रही थी। और वहीं मॉम के आंखों में मोटे मोटे आंसू। जिनको देखकर काव्या ने पूछा,
काव्या: “अरे! मॉम अब रो क्यों रही हो!”
इस पर मॉम ने अपने दुपट्टे से आंसुओं को पोंछते हुए कहा,
काव्या की मॉम: “कुछ नहीं! ये तो खुशी के आंसू है। कितनी बड़ी हो गई है मेरी बेटी!”
काव्या को ये सुन कर इतनी खुशी नही हुई। वो कभी भी ज़्यादा बड़ी नहीं होना चाहती थी। पर इस वक्त उसके पास इसके अलावा और कोई चॉइस नहीं थी। इंसान को बड़ा बनने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं होता न। उमर के एक पड़ाव पर उसे बड़ा बन जाना पड़ जाता है। और काव्या ने भी धीरे धीरे ये पड़ाव accept कर लिया था।
अपने पैरेंट्स को खुश करके, काव्या चंचल के पास आई जो अपने रूम में छुप कर सिगरेट पी रही थी। काव्या ने जब कमरा knock किया था तो वो अचानक से डर गई थी। पर जब उसे पता चला, काव्या ही है तो उसने बिना धुआं को कमरे से हटाए, दरवाज़ा खोल दिया।
काव्या ने चंचल को इस तरह छिप कर सिगरेट पीते हुए देख कर कहा,
काव्या: “तुझे इस तरह छुप कर कुछ भी करने की ज़रूरत नही है। या तो चीजें करना बंद कर दे, या छुपाना।”
चंचल को समझ नहीं आया कि काव्या आज अचानक उससे ये सब क्यों कह रही थी। उसने काव्या से कहा,
चंचल: “घर पे बता कर अपना सिर फुड़वाना है क्या?”
काव्या धीरे से मुस्कुराई। उसने कहा,
काव्या: “मुझे लगा था तुझे सिर भिड़वाने की आदत पड़ चुकी है। अब सब कुछ पता चल ही गया है तो छुप कर जीने की क्या जरूरत। उनको भी तो पता होना चाहिए तू असल में कैसी है। जब तक तू नहीं दिखाएगी तू असल में कैसी है, वो तुझे एक्सेप्ट कैसे करेंगे!”.
काव्या को अपने अंदर एक अलग ही तरह के चेंज का एहसास हो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज उसने पहली बार सारी जिम्मेदारी को समझा हो। वो काफी फ्री महसूस कर रही थी। चंचल ने काव्या की बात सुनकर कहा,
चंचल: “सीधे सीधे बोल न कि अब तू मुझे अपने घर में नहीं रखने वाली।”
काव्या को ज़ोर की हंसी आई। पर चंचल की बात सही थी। चंचल को अब अपने लिए खुद अलग रास्ता ढूंढना होगा। जब तक नहीं मिलता वो घर पर भी रह सकती थी। काव्या को अपना नया फ्लैटमेट भी मिल चुका था। जिसको उसने खुद ही बाहर निकलने के लिए मोटिवेट किया था अब वो उसी के साथ रहने जाने वाली थी। काव्या एक नए कॉन्फिडेंस के साथ, लाइफ के नए चैप्टर की शुरुआत करने जा रही थी। वहीं आर्यन ने भी ट्रिप पर जाने के लिए हां कह दिया था। अपनी लाइफ में एक ब्रेक के लिए वो भी ऑफिस वालों के साथ कोयंबटूर की ट्रिप के लिए निकल चुका था।
क्या काव्या और आर्यन अपने अपने अलग अलग रास्तों में फिर से एक दूसरे से टकरायेंगे? क्या काव्या आर्यन को माफ कर पाएगी? क्या आर्यन का प्रज्ञा के साथ ट्रिप पर जाना, उसे काव्या से हमेशा के लिए दूर कर देगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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