जब काव्या अपने फ्लैट पर दोबारा पहुंची तो आर्यन से जुड़ी तमाम यादों का तहखाना फिर से खुला। आर्यन के साथ बिताए सारे पल एक बार फिर से आंखों के सामने आने लगे थे।
जब उसने आर्यन के खाली कमरे को देखा तो उसके दिल में अजीब सी चुभन महसूस हुई। जिंदगी में खालीपन का एहसास तब ज्यादा पता लगता है जब कोई जिंदगी में आने के बाद चला गया हो।
काव्या ने धीरे धीरे फ्लैट की हर चीज को बदलना शुरू कर दिया था। फर्नीचर की सेटिंग्स, दीवालों पर लगी पेंटिंग्स, वॉल पर लगी अलग अलग डिजाइंस। सब कुछ बदलकर काव्या इस फ्लैट में नई तरह से life की शुरुआत करना चाहती थी।
जल्द ही आर्यन का कमरा भी भरने वाला था। काव्या ने आशीष को अपने साथ रहने के लिए हां जो कह दिया था। हालांकि काव्या को आशीष के साथ किसी भी तरह के रोमांटिक relationship की उम्मीद नहीं थी। पर फिर भी उसे लड़कों से चिढ़ सी हो गई थी। पीयूष, हमज़ा और आर्यन सभी के साथ जिस तरह के काव्या के experiences हुए थे उसके बाद से उसने कान पकड़ लिया था कि वो किसी भी लड़के के साथ दोस्ती भी करना चाहेगी।
सारे घर में सफाई और सेटिंग चेंज करने के बाद जब काव्या ने चैन से पूरा घर देखा तो दिल खुश हो गया था। तभी उसके पास शैलजा का text आया। ‘Hey! Meet me today!’
अब जब काव्या जान चुकी थी कि शैलजा, प्रज्ञा की मॉम हैं तो काव्या को उनसे मिलने के लिए mentally ready होना पड़ेगा।
काव्या ने कुछ देर सोच लेने के बाद शैलजा से मिलने के लिए हां बोल दिया था। गहरी सांस छोड़ते हुए काव्या ने तय किया कि वो अपने पास्ट से अपने आपको affect ज़्यादा नहीं होने देगी।
उधर आर्यन, अपने ऑफिस के लोगों के साथ कोयंबटूर पहुंच चुका था। वो सब लोग एक आध्यात्मिक आश्रम, जोकि दिशा फाउंडेशन के नाम से famous था, वहां पहुंच कर अपने अपने रूम में आ गए थे।
आर्यन जब वहां के कमरों में गया तो हैरान रह गया ये देख कर कि वहां पर सोने के लिए बेड नहीं था। जमीन पर चटाई लगा रखी थी। पास में ही पानी पीने के लिए एक घड़ा रखा हुआ था।
ये देख कर आर्यन को हंसी भी आई। आखिर प्रज्ञा ने ये जगह कैसे चुन ली थी? प्रज्ञा को तो हमेशा से फाइव स्टार होटल ही पसंद आया करते थे। अचानक से इतना change कैसे आया कि प्रज्ञा ने जमीन पर सोना, nature के बीच रहना सीख लिया था।
कुछ देर बाद ऑफिस के सारे लोगों को एक हॉल में बुलाया गया था। अपने अपने कमरे से सारे लोग फ्रेश हो कर, simple कपड़ों में हॉल में इकट्ठा हुए थे। तभी प्रज्ञा जैसे ही आर्यन के सामने आई, आर्यन की आंखें फटी की फटी रह गईं। प्रज्ञा ने ऊपर से नीचे तक white कलर की सिंपल सी सूत की साड़ी पहन रखी थी।
प्रज्ञा का पूरा अवतार ही बदल गया था। प्रज्ञा के साथ उनके बॉस भी कुर्ता और लुंगी में आए थे। आर्यन ही उन सबके बीच में अलग सा लगने लगा था। उसने टी शर्ट और ट्राउज़र डाल रखा था।
आश्रम का हॉल चारों तरफ हरियाली से घिरा हुआ था जहां बैठने के लिए पतली पतली गद्दियां रखी हुई थीं। और चारों तरफ हवादार खिड़कियां थीं। बॉस ने सभी लोगों को गद्दियों पर बैठने के लिए कहा। आर्यन जैसे ही नीचे बैठा, हॉल में आश्रम के कुछ लोगों ने एंट्री ली। तीन चार लोग जिन्होंने कुर्ता पजामा पहन रखा था और गले में मालाएं थीं। माथे पर चंदन था और हाथ में बहुत सारी किताबें थीं।
उनके आते ही कमरे में शांति का ऐसा माहौल बना, कि दूर से चिड़िया तक की आवाज़ सुनाई दे रही थी। सब लोग एक साथ आ कर सामने खड़े हो गए थे।
सामने ही एक बांस की कुर्सी भी थी जिसके आस पास फूल लगे थे। ऐसा लग रहा था जैसे अभी भी सब लोग खड़े किसी का इंतजार कर रहे हों। आर्यन ने इधर उधर देखा, आखिर और कौन था जो आने वाला था। काफ़ी समय बीतता गया, पर वो लोग ऐसे ही चुप चाप उनके सामने खड़े रहे।
ऑफिस के लोगों में भी कोई कुछ नहीं बोल रहा था। कुर्सी वैसे ही खाली पड़ी थी। बाहर से कोयल के कूंकने की आवाज़ आ रही थी।
आर्यन ने अपने बगल में देखा तो प्रज्ञा चेहरे पर स्माइल लिए सामने की तरफ़ ही देख रही थी। इतनी शांति में बैठे बैठे आर्यन का मन बेचैन होने लग रहा था। रह रह कर उसके दिमाग़ में काव्या के बारे में ही खयाल आते जा रहे थे। वो उन ख्यालों को रोकने की कोशिश करता तो ख़्याल और तेज़ी से आने लगते।
तभी आर्यन ने कस कर आंखें बंद कर लीं। और उसने मुंह से निकला,
आर्यन: “चुप!”
इतनी शांति के बीच उसके मुंह से निकला चुप सबके कानों में तेज़ घंटे की तरह बजा। सभी लोगों ने आर्यन की तरफ मुड़कर हैरानी से देखा। आर्यन ने जब उन लोगों के हैरान चेहरों को देखा तो उसे समझ नहीं आया कि कैसे उसने मन में धीरे से बोला शब्द इन लोगों को भी सुनाई दे गया।
तभी हॉल में एक बाबा धीरे धीरे पधारे। उन्होंने पीले रंग की धोती बांध रखी थी और ऊपर पीले रंग का एक कपड़ा शरीर से लपेट रखा था। बाल काफ़ी घने थे और माथे पर चंदन लगा हुआ था। उनके आने पर एक ऐसा aura create हुआ जिसके बाद सभी लोगों ने हाथ जोड़ लिए। उन बाबा को सब श्री ज्ञानेश्वर आचार्य के नाम से जानते थे। उनके पीछे सारे शिष्य खड़े थे, जो बाबा जी को आचार्य कहकर बुलाते थे।
उन्होंने आते ही शिष्यों के साथ कुछ डिस्कस करना शुरू कर दिया था। कुछ देर तक उनके डिस्कशन के बाद जब finally उनमें से एक शिष्य आगे आ कर बढ़ा तो उसने आर्यन और उसके ऑफिस के सभी लोगों को आश्रम के नियम बताना शुरू किया।
(शिष्य) : “नकस्कारम! आप सभी का स्वागत है दिशा फाउंडेशन में। यहां हर एक व्यक्ति को एक ऐसी दिशा दिखाई जाती है, जिससे उनके जीवन में एक गहरा परिवर्तन आता है। वो परिवर्तन के बाद व्यक्ति सामाजिक और निजी समस्याओं के साथ तालमेल बैठाना सीख जाता है। पर यहां रहने के लिए आचार्यों द्वारा कुछ नियम बनाए गए हैं, जिनका पालन करना यहां पर आने वाले सभी लोगों के लिए आवश्यक हैं।”
इतना सुनने के बाद आर्यन को ऐसा लगा जैसे वो अपने स्कूल के प्रेयर हॉल में आ गया हो। उसने आस पास मुड़कर देखा तो बॉस और प्रज्ञा को छोड़कर सभी लोगों की शक्ल ऐसी लग रहीं थीं जैसे उनके दिमाग़ में भी एक ही सवाल चल रहा हो। “आखिर हम कहां फंस गए?”
तभी आर्यन के कान में उस शिष्य की आवाज़ फिर से पड़ी जोकि आश्रम में रहने के नियम बता रहा था।
(शिष्य): “सबसे पहला नियम: यहां पर मोबाइल फोन इस्तेमाल करना साफ मना है। आप सभी को अपने phones को हमारे पास जमा करना होगा।”
पहला नियम सुनते ही आर्यन के साथ साथ सब चौंक गए थे सिवाय प्रज्ञा और उनके बॉस को छोड़कर। हालांकि आजकल फोन सबसे बड़ी ही प्रोब्लम बन चुकी थी पर बिना फोन के सब लोग कैसे फंक्शन करेंगे ये सोचकर आर्यन को और ज्यादा anxiety हो रही थी।
तभी शिष्य ने और भी नियम बताने शुरू किए।
(शिष्य): “सुबह पांच बजे के बाद सभी को बिस्तर त्याग देना होगा। बिस्तर त्याग कर, स्नान करने के बाद योग और ध्यान के लिए हॉल में आना होगा। और याद रखें कि किसी से भी किसी तरह की बातचीत करना मना है। सिर्फ संध्या के समय जब आप गार्डन में बैठे होंगे। तब एक दूसरे से बात कर सकते हैं।”
ये सुनने के बाद तो आर्यन के दिमाग के सारे तार हिल चुके थे। अगर वो ट्रिप पर आने के बाद एक दूसरे से बातचीत नहीं करेंगे तो वो यहां करने क्या आए हैं। ऐसा सोचते हुए उसने प्रज्ञा को गुस्से से घूरकर देखा तभी शिष्य ने कहा,
(शिष्य): “और किसी भी तरह का गलत व्यवहार यहां स्वीकार नहीं किया जाएगा। क्रोध, काम, द्वेष, अहंकार, झूठ, ईर्ष्या इन सब से दूर रहकर हमें ध्यान लगाना है। जिससे हम अपने अंदर के शोर को शांत कर पाएं!”
आर्यन ये सुनकर सोचने लगा, आखिर उसके अंदर ऐसा कौन शोर था जिससे शांत करने की ज़रूरत थी। आर्यन को ऐसा लगने लगा कि प्रज्ञा की बातों में आ कर उसने बड़ी गलती कर दी थी।
सभी लोगों से उनके मोबाइल फोन जमा करवा लिए गए थे। आज फिर वहां मौजूद आचार्य ने ध्यान लगाना शुरू कर दिया था। जिसके बाद आर्यन और सभी लोगों ने आंखें बंद कर लीं। आंखे बंद करते ही आर्यन के दिमाग़ में काव्या को ले कर thought आने शुरू हो गए थे।
काव्या की याद आते ही एक सवाल जो उसके मन में ज़ोर से गूंजने लगा था वो ये था कि आखिर उसने काव्या को मनाने की और कोशिश क्यों नहीं की? तभी काव्या के बारे में सोचते सोचते अचानक से आर्यन के दिमाग में उसके पापा की तस्वीर आ गई थी। जिसे याद करते ही उसके शरीर में करंट सा दौड़ गया। और उसने तुरंत आंखें खोल लीं थीं।
आंखें खोलने पर उसने देखा सभी लोग आंखें बंद करके ध्यान करने में लगे हुए थे। उसको समझ नहीं आया कि वो और यहां क्या करे। इसलिए वो बिना किसी को पता लगवाए, हॉल से धीरे से बाहर निकल गया।
हॉल से बाहर आने के बाद, आर्यन आश्रम में इधर उधर घूमना शुरू कर दिया। वहां बैठना उसके लिए दूभर हो रहा था। लेकिन जब चारों तरफ हरे हरे पहाड़ देखे तो आर्यन ने अपने अंदर ऐसा सुकून महसूस किया जिससे उसे लगने लगा कि शायद ये ट्रिप सच में ज़रूरी थी।
उधर काव्या शैलजा से मिलने उनके मैंशन पहुंच गई थी। वहां पहुंच कर उसे याद आया था कि कैसे वो उस दिन आर्यन से टकराई थी। उसे लगा तब आर्यन उसे लेने के लिए इतनी दूर आया था पर दरअसल वो प्रज्ञा के पास में था।
ये सब सोच कर काव्या का मन और उदास हो गया था।
काव्या ड्राइंग हॉल में बैठे शैलजा का इंतजार कर रही थी। तो उसकी नज़र आस पास हर जगह जा रही थी जैसे वो उसे डर था कि आर्यन कहीं उसे यहीं न दिख जाए। फ्लैट छोड़ने के बाद आर्यन वैसे भी और कहां गया होगा? काव्या को यही लग रहा था वो प्रज्ञा के पास ही रहने आया होगा। इसलिए यहां मैंशन आते टाइम काव्या परेशान हो रही थी कि कहीं उसकी मुलाक़ात आर्यन से न हो जाए।
तभी कुछ देर बाद शैलजा नज़र आई, और आते ही उसने काव्या को गले लगा लिया। अचानक से शैलजा के इस तरह गले लग जाने से काव्या शॉक्ड हो गई थी।
शैलजा ने काव्या से कहा,
शैलजा: “सॉरी काव्या! हाल ही में जो कुछ भी हुआ उसके लिए i am sorry!”
काव्या को समझ नहीं आया कि शैलजा मल्होत्रा क्यों सॉरी कह रही थी। उसने हैरान हो कर पूछा,
काव्या: “सॉरी मैम! मैं समझी नहीं आप सॉरी क्यों कह रहे हो?”
शैलजा ने काव्या को इत्मीनान से बैठाया। फिर कहा,
शैलजा: “मुझे पता चला कि तुम्हारा हाल ही मे छोटा एक्सीडेंट हो गया था। वो भी एक लड़के, आर्यन की वजह से!”
काव्या ने जब ये सुना तो उसे समझ आ गया था कि प्रज्ञा ने शायद अपनी मॉम को सारी बातें बता दी थीं। काव्या ने हिचकिचाते हुए कहा,
काव्या: “हां….वो दरअसल…मुझे पता भी नहीं था कि प्रज्ञा आपकी बेटी है। आर्यन और प्रज्ञा अभी भी साथ में हैं। मुझसे आर्यन ने झूठ बोला।”
ये बोलते ही काव्या का गला भर आया था और आंखों में नमी सी आ गई थी। शैलजा की मॉम सब कुछ प्रज्ञा से जान चुकी थीं, उन्होंने फिर भी काव्या को बुलाया था ये बताने के लिए भले उनके बीच की personal चीज़े उथल पुथल हो गई हों पर काम के सिलसिले में वो काव्या को ही प्रोजेक्ट देना चाहती थीं।
काव्या ने जब ये सुना तो काव्या थोड़ा relax हो गई थी। उसे डर था कि कहीं शैलजा काव्या से प्रोजेक्ट वापस न ले ले। शैलजा ने उसे समझाते हुए ये भी कहा,
शैलजा: “मैं नहीं चाहती हूं कि पर्सनल चीजें, professional space में आए। इसलिए मैं तुम्हें आज advice दूंगी, जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी move on। और वैसे भी आर्यन और तुम्हे मिले ज्यादा टाइम भी नहीं हुआ था। Actually प्रज्ञा ने मुझे थोड़ी details बताई। इसलिए मैं कह रही हूं, don't hurt yourself! अकेले रह कर, काम पर focus करके जिंदगी बताओ। That's the बेस्ट thing. We don't need men!”
काव्या को शैलजा के मुंह से ये सब सुनकर काफ़ी अच्छा लग रहा था। उनकी बात सही थी कि आर्यन के सर्ग उसने ज्यादा टाइम नहीं बिताया था। इसलिए वो चाहे तो आर्यन को अपने दिमाग से निकाल कर दूर कर सकती है। बशर्ते आर्यन उससे इस बीच न टकरा जाए। क्योंकि अगर आर्यन उसे दिख गया तो वो खुद के गुस्से को रोक नहीं पायेगी।
काव्या ने सोच लिया था कि अब उसका सारा ध्यान काम पर ही रहेगा। उसने independant तरह से काम करने का भी decide कर लिया था। काव्या को अंदर से एक motivation मिल गया था। उसे लगा इससे पहले कि वो आर्यन से प्रज्ञा के घर में टकरा जाए, काव्या ने वहां से जल्दी निकलना सही समझा।
काव्या शैलजा से मिल कर जैसे ही वहां से निकलने को हुई। तभी शैलजा ने जाते जाते पूछा।
शैलजा: “अच्छा वैसे अभी भी तुम आर्यन के साथ ही रह रही हो?”
इस कर काव्या चौंक गई कि उसे लगा था आर्यन फ्लैट छोड़कर प्रज्ञा के पास आया होगा। उसने कहा,
काव्या: “नहीं। अब हम साथ नहीं रह सकते थे। इसलिए हमने अलग होने का ही तय कर लिया था।”
शैलजा ने अनजान बनते हुए कहा,
शैलजा: “अच्छा किया। मुझे लगा आर्यन ट्रिप से आने के बाद फिर से तुम्हारे पास न चला आए?”
ट्रिप की बात सुनकर काव्या हैरान हुई और उसने पूछा,
काव्या: “ट्रिप? कैसी ट्रिप?”
शैलजा ने बड़ी चालाकी से ये सारी बातें की थी। जिससे कि काव्या जान जाए कि प्रज्ञा और आर्यन साथ में ट्रिप पर गए हुए थे जिससे आर्यन और काव्या के दोबारा मिलने की possibility और कम हो जाए।
शैलजा ने बताया,
शैलजा: “तुमको नहीं मालूम? आर्यन और प्रज्ञा साथ में ट्रिप पर गए हैं, कोयंबटूर! Oops! तुम्हे उसने ये भी नहीं बताया। I am feeling bad for you!”
ये सुनने के बाद काव्या का दिल छलनी हो गया था पर उसके चेहरे पर स्माइल बनी हुई थी। उसने मुस्कुराते हुए कहा,
काव्या: “मेरे लिए बुरा मत फील करो mam! मुझे अब फ़र्क नहीं पड़ता। मैं अपने आप में खुश हूं।”
ऐसा कहकर काव्या शैलजा के पास से निकल तो गई पर रास्ते भर उसके आंसू बहना बंद नहीं हो रहे थे। और उसने खुद से बोलते हुए कहा,
काव्या: “I hate you, आर्यन!”
क्या काव्या के मन में आर्यन को ले कर नफरत दूर हो पाएगी? आखिर आर्यन का दिल अपने पापा की याद आते ही क्यों anxious हो गया था? क्या आर्यन प्रज्ञा के इरादे समझ पाएगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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