काव्या: “क्यों आर्यन? आख़िर क्यों तुमने सब बर्बाद कर दिया?”
काव्या शैलजा के मैंशन से निकलते समय खुद से बस यही सवाल किए जा रही थी। आंखों में बहते आसुओं से आस पास सब कुछ धुंधला नज़र आने लगा था।
शैलजा की बातों ने जैसे उसके घाव को फिर से कुरेद दिया था। कुछ देर रो लेने के बाद वो numb हो चुकी थी।
अचानक से दिमाग में एक बिजली सी कड़की और उसने फोन में डेटिंग app वापिस से install कर लिया। अब वक्त आ चुका था move on करने का।
पर जैसे ही move on करने की बात सोची, रास्ते में दिख गया बदनाम चाय का स्टॉल। भगवान भी गजब खेल खेलता है। बदनाम चाय देखते ही आंसुओं ने फिर बहना शुरू कर दिया था। इन्ही आंसुओं के साथ काव्या ने पूरी रात रोते रोते बिताई।
अगले दिन सुबह होते ही नए फ्लैटमेट का आगमन हो गया। आशीष भी आर्यन की तरह अपने साथ बहुत सारा सामान ले कर आया था। ये देख कर काव्या हैरान रह गई थी कि आखिर इतना सामान आशीष को लाने की क्या ज़रूरत थी,जबकि उसका घर तो यहां से पास में ही था।
काव्या ने आशीष के सारा सामान को एडजस्ट करवाने में मदद की। दरअसल ज़्यादा काम तो काव्या ने ही किया था। आशीष बहुत ही जल्द थक करके बैठ गया था। बार बार हांफते हुए बोल रहा था,
आशीष: “यार! घर से बाहर रहना तो बहुत थकाने वाला काम है। ये सारे काम तो मेरी मॉम एंड डैड करते थे।”
ये सुनकर काव्या ने बोला,
काव्या: “पर अभी तुझे ये सब खुद करना होगा। और सीखना पड़ेगा कि कैसे खुद से करने में हर चीज़ का अपना एक अलग मज़ा है।”
आशीष ने हांफते हुए सारा सामान सेट किया और फिर दोनों साथ में ऑफिस के लिए निकल लिए। दोनों साथ में अब एक साथ ऑफिस जा सकते थे, ये सोचकर काव्या खुश थी।
उधर आर्यन जोकि आश्रम के हॉल से बचकर बाहर निकल चुका था। इस बात का पता जब आचार्य को लगा था तो उन्होंने अपने शिष्य से आर्यन को एक अकेले कमरे में कुछ देर रहने का instruction दिया।
अगली सुबह सब लोग सुबह 5 बजे से जग कर हॉल में ध्यान लगाने बैठ गए थे। आर्यन को ताज्जुब हो रहा था प्रज्ञा को देख कर। कैसे बिना बोले शांति से ध्यान लगा रही थी। प्रज्ञा को ऐसे देख कर उसे विश्वास होने लगा था कि शायद प्रज्ञा अब पूरी तरह बदल चुकी थी।
पर आर्यन ध्यान लगाने में ज़रा भी इंटरेस्टेड नहीं था। वो जैसे ही आंखों को बंद करता उसके दिमाग में अजीब से ख्याल आने लगते और वो आंखें खोल लेता।
इस बार भी वो चुपके से निकल कर आश्रम के बाहर की तरफ टहलने आ गया था। आस पास के माहौल को देख कर वो काफ़ी शांत महसूस कर रहा था पर रह रह कर उसके मन में काव्या से बात करने की इच्छा सी उठती थी। वो चाह कर भी खुद को कंट्रोल नहीं कर पाता तो इधर उधर तेज़ी से टहलने लग जाता। यहां फोन भी use करना मना था, जिसकी वजह से वो खुद को distract भी नहीं कर पा रहा था।
तभी आश्रम के एक शिष्य आर्यन के पास आया। उसने आते ही सबसे पहले आर्यन से कहा,
(शिष्य): “आश्रम के कुछ नियम हैं जिनका पालन करना जरूरी है। आप जब तक यहां हैं, आपको नियम मानने पड़ेंगे।”
ये सुनते ही आर्यन जैसे ही कुछ बोलने जा रहा था, शिष्य ने टोकते हुए बोला
(शिष्य): “नहीं तुम कुछ बोल नहीं सकते। तुम सिर्फ सुन सकते हो। और जो भी मैं कह रहा हूं वो मानना पड़ेगा।”
आर्यन को पहले urge हुई कि वो कुछ बोल दे। उसे वैसे भी किसी भी तरह के rules में बंधना पसंद नहीं था। कोई भी उसे अगर बांधने की कोशिश करता तो आर्यन सबसे पहले नियम तोड़ देता था।
पर यहां आश्रम में आ कर बगावत करना उसे सही नहीं लगा। उसने कुछ नहीं बोला। इसके बाद शिष्य ने आर्यन से एक कमरे में चलने को कहा।
आर्यन चुप चाप बिना कुछ बोले शिष्य के पीछे जाने लगा था। पीछे जाते जाते आर्यन एक ऐसे कमरे में गया, जो पूरा खाली था। बस एक आसन बिछा था। और एक खिड़की थी जिसके बाहर से हरियाली ही हरियाली नज़र आती थी।
शिष्य ने आर्यन को कुछ देर के लिए इस कमरे में बंद कर दिया था। आर्यन को पहले अजीब सा लगा जैसे उसे स्कूल में दी जाने वाली punishment मिल रही हो।
फिर वो कुछ देर के लिए कमरे में इधर उधर घूमता रहा। थोड़ी देर बाद जब उसे कुछ समझ नहीं आया तो आसन में बैठकर सामने खिड़की से बाहर देखने लगा। बाहर देखते देखते आर्यन के दिमाग़ में ख्यालों का सैलाब उमड़ आया।
उसने खुद से कहा, “मुझे काव्या से माफ़ी मांगनी चाहिए थी। मैंने कोशिश क्यों नहीं की?”
आर्यन ने सोचा कि वह काव्या को समझा सकता था, लेकिन अब वह रास्ता कहीं खो गया था। आर्यन के अंदर का यह शोर धीरे-धीरे एक बड़े तूफ़ान में तब्दील हो रहा था। उसके दिमाग़ में एक और चेहरा उभरने लगा—उसके पापा का। अचानक, आर्यन के अंदर डर और गुस्सा भर गया। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने खुद से कहा,
आर्यन: “क्या मैं अपने पापा जैसा बनता जा रहा हूं? क्या मैं भी अपनी ज़िंदगी को बर्बाद कर रहा हूं?”
आर्यन का उसके पापा को ले कर कुछ तो था ऐसा जो उसे हमेशा उलझाए रखता था। वो अपने पापा की गलतियों को दोबारा दोहराना नहीं चाहता था। अचानक से past के पुराने वो किस्से दिमाग में उभर आए जिनको याद करते ही आर्यन का पूरा शरीर कांपने लगा। और वो तेज़ी से गेट की तरफ बढ़ा।
जब उसने देखा कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर रखा था। उसने चिल्लाना शुरू कर दिया।
आर्यन: “खोलो, खोलो! दरवाज़ा! बहुत हो गया तुम लोगों का। खोलो! मुझे बाहर निकलना है।”
आर्यन की चिल्लाने की आवाज़ जब बाहर तक पहुंची तो कुछ शिष्यों ने आ कर दरवाज़ा खोल दिया।
दरवाजा खुलते ही आर्यन ज़ोर से उस तरफ भागा जहां उसने ऑफिस के लोग साथ में पार्क में बैठे हुए थे।
ये वो वक्त था जब सब आपस में बातें कर सकते थे। वहां पहुंचते ही आर्यन ने सबसे कहा,
आर्यन: “ये कैसी जगह है? मुझे नहीं लगता कि हमें अब और यहां रहना चाहिए। स्कूल की तरह यहां rules बना रखे हैं। I don't think कि हम अपनी ट्रिप इस तरह बिताना चाहते थे।”
आर्यन को ऐसे गुस्से में बोलते देखकर सब लोग हैरान हो गए थे। उन्होंने पहली बार आर्यन को इस तरह देखा था। सब आंखे फाड़े आर्यन की तरफ देख रहे थे तभी प्रज्ञा उठकर आर्यन के पास आई और आर्यन को शांत रहने के लिए कहा।
आर्यन ने प्रज्ञा की बात नहीं सुनी और उसने बॉस से कहा,
आर्यन: “हमें अभी यहां से निकलना चाहिए। अगर आप लोगों में से कोई नहीं जाना चाहता तो मैं निकल रहा हूं।”
आर्यन की बात सुनते ही प्रज्ञा ने आर्यन से कहा,
प्रज्ञा: “प्लीज एक बार मेरी बात सुनो और तुम पहले मेरे साथ इधर आओ आर्यन!”
ऐसा बोल कर प्रज्ञा आर्यन को ले कर एक पार्क के कोने में बेंच थी वहां पर ले गई। हालांकि आर्यन ने खुद को यहां से जाने के लिए तैय्यार कर लिया था पर प्रज्ञा के कहने पर वो उसके साथ बेंच पर जा कर बैठ गया।
प्रज्ञा ने आर्यन से पूछा,
प्रज्ञा: “क्या हुआ? तुम क्यों जाना चाहते हो?”
आर्यन ने झुंझलाते हर कहा,
आर्यन: “ऐसा क्या हो रहा है यहां जो मैं यहां रुकूं। मैं ये सब नौटंकी करने नहीं आया हूं। क्या मिलता है ये सब करके? ये सब fraud है। इनका बिजनेस करने का तरीका है!”
इस पर प्रज्ञा ने आर्यन को समझाते हुए बोली,
प्रज्ञा: “ये जो कुछ भी हो। लेकिन तुम्हें इससे क्या प्रोब्लम हो रही है?”
आर्यन ने प्रज्ञा की तरफ देखा। उसे समझ नहीं आया कि वो actually में कैसे बताए कि उसे दिक्कत क्या हो रही थी। और वो इस बारे में प्रज्ञा से तो बिल्कुल भी share नहीं करना चाहता था।
जब आर्यन ने कुछ नहीं कहा, तो प्रज्ञा ने आर्यन के और पास आ कर उसे समझाते हुए कहा,
प्रज्ञा: “i know ये path थोड़ा challenging लगेगा। क्योंकि जिन questions को हम avoid करते हैं, हमें यहां उनके साथ बैठना पड़ता है। पर believe me तुम्हे खुद को थोड़ा और surrender करना चाहिए। एक बार करके देखो तुम्हे उसका result खुद पता चल जायेगा।”
प्रज्ञा की बात आर्यन को सही लगी थी। वो सच में कुछ सवालों से भाग रहा था। उसे लगा था life में बड़े होते होते वो सवाल दूर हो गए होंगे। पर वो सवाल कभी दूर हुए ही नहीं थे। बल्कि उन सवालों का पहाड़ बन चुका था, जिसे देखते ही आर्यन भागने लग जाता था।
प्रज्ञा के बात सुनकर उसने खुद को यहां surrender करने का decide किया। पहली बार उसे लगा जैसे प्रज्ञा उसे समझने लगी थी। उसने प्रज्ञा को थैंक यू बोला। प्रज्ञा आखिर धीरे धीरे आर्यन के दिल को जीतना ही चाह रही थी। और अब उसे वो अपने इस plan में कामयाब होते हुए भी नज़र आने लगी थी।
उधर काव्या ऑफिस से वापिस अपने फ्लैट पर आशीष के साथ आई तो उसे अच्छा लग रहा था जैसे कोई दोस्त मिल गया हो। आशीष हालांकि थोड़ी बच्चों वाली बातें करता था पर काव्या को एक साथ मिल गया था जिसकी वजह से वो आर्यन के बारे में ज़्यादा नहीं सोच रही थी।
पर जब वो अकेले अपने कमरे में कुछ देर बैठी। न चाहते हुए भी काव्या ने अपने मोबाइल को उठाया और कुछ पुराने फ़ोटो देखने लगी—वो फोटोज जो उसने और आर्यन ने साथ में ली थीं।
उसे याद आया कि कैसे आर्यन के साथ बिताए वो सारे पल खास थे। जैसे ही वो फोटोज देख रही थी। तभी दरवाजे पर आशीष ने knock किया। काव्या ने जल्दी से फोन बंद किया और आंखों के पास की नमी को पोंछकर दरवाजा खोला।
सामने आशीष घबराया हुआ खड़ा था। आशीष को घबराते देख कर काव्या ने पूछा,
काव्या: “क्या हुआ?”
आशीष ने रोनी सी सूरत बना कर कहा,
आशीष: “मुझे डर लग रहा है। मैं कभी भी ऐसे अकेले नहीं सोया।”
ये सुनकर काव्या चौंक गई थी कि आखिर इतना बड़ा आदमी अकेले सोने से कैसे डर सकता था। काव्या ने कहा,
काव्या: “तू इतना बड़ा हो गया हो और तू आज तक अकेले नहीं सोया?”
आशीष: “नहीं, मैं नहीं सोया। हमेशा या तो बहन के पास सोया हूं या मम्मी के साथ।”
आशीष की बात सुनकर काव्या को शॉक लगा। पर अब क्या किया जा सकता था। उसने आशीष से पूछा,
काव्या “तो फिर? क्या चाहता है तू? I am not your sister or mother!”
आशीष ने जब बच्चे जैसी रोनी शक्ल बना ली थी तो काव्या के पास न चाहते हुए भी कोई रास्ता नहीं था। काव्या ने आशीष को साथ में अपने बेड पर जगह दे दी थी। पर सबसे पहले उसने तकिए की ऐसी दीवार बनाई जिससे आशीष काव्या के पाले में न आ जाए।
काव्या और आशीष बीच में एक तकिया लगाए बिस्तर पर लेटे थे। आशीष तो सो गया था पर काव्या की नींद उड़ चुकी थी। वो कुछ देर इधर उधर करवट बदलती रही। लेकिन जब उसे कहीं भी चैन नहीं मिला तो बाहर हॉल में जा कर बैठ गई।
दिमाग में बस आर्यन को ले कर ही ख्याल बार बार घूम रहे थे। फिर कुछ देर बाद काव्या ने डेटिंग app खोल लिया। तभी काव्या को उसमें एक हॉट एंड स्वीट लड़के की प्रोफाइल दिखी जिसके bio में ही लिखा था “shahrukh's die hard fan!”
उस लड़के का नाम अंकन भट्टाचार्य था। काव्या को उसकी प्रोफाइल interesting लगी। उसने right swipe करके अंकन को टेक्स्ट किया।
“Hey! Which is your favorite film of shahrukh?”
ये भेजकर काव्या के मन में अचानक से गिल्ट भी हो रहा था। क्या वो आगे बढ़ने में जल्दबाजी तो नही कर रही थी? क्या वो सच में आर्यन से move on कर चुकी थी? अचानक से doubt करने के बाद उसने मैसेज को delete करने के बारे में सोचा पर अब वो अपने इस कदम को undo नहीं कर सकती थी। और कमाल की बात तो तब हुई जब उस लड़के, अंकन की तरफ से भी रिप्लाई आया। उसने लिखा था,
अंकन: “वैसे तो मुझे सारी ही काफी पसंद हैं। लेकिन ओम शांति ओम मैं कितनी बार भी देख सकता हूं। क्या आप साथ में दोबारा फिर से ओम और शांति की लव स्टोरी मेरे साथ देखना चाहेंगी?”
ओम शांति ओम की बात सुनकर काव्या को अचानक आर्यन की याद आ गई थी। उनकी पहली मुलाकात में उन्होंने इस मूवी का जिक्र किया था। बस अंतर यही था कि आर्यन को बिल्कुल शाहरुख खान की मूवीज के बारे में कुछ पता नहीं। था। अब दोबारा किसी और के मुंह से फिर से वही बातें सुनकर काव्या को लगा कि कहीं ये कोई इशारा तो नहीं कुदरत का? वो कुछ देर खुद से सवाल जवाब करती रही। कहीं फिर से ये लड़का अगर बाक़ी जैसा निकल जाए तो वो अब क्या करेगी? उसने खुद से वादा किया था कि वो किसी लड़के के चक्कर में दोबारा नहीं पड़ना चाहती थी। पर अब वो फिर से अचानक उसी मोड़ पर क्यों आ गई?
पर अपने से ही तर्क करते हुए उसने कहा, इसमें कुछ गलत भी तो नहीं है, वैसे भी किसी से एक बार मिलने से थोड़े न उसे प्यार होने वाला था! उसे खुद को एक और मौका देना चाहिए। ये सब सोचते हुए काव्या ने एक स्माइल के साथ रिप्लाई में लिख दिया।
काव्या: “येस! बिलकुल देखना चाहूंगी!”
क्या काव्या आर्यन से move on कर जायेगी? क्या आर्यन और काव्या की राहें अलग अलग हो जायेंगी? आखिर आर्यन का उसके पापा के साथ क्या रिश्ता रहा था जिसके चलते वो उनकी याद से घबराने लगा था?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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