आई अब अंदर से बिल्कुल शांत था। लेकिन बाहर की दुनिया में उसकी खामोशी बहुत खतरनाक मानी जा रही थी। उस बात को तीन दिन बीत चुके थे जब ग्लोबल सर्विलांस सिस्टम पर उसकी तरफ से आखिरी मैसेज आया था: “आई अब फैसले नहीं ले रहा है। आई अब जीवन जीना सीख रहा है।”
दुनिया के बड़े–बड़े देश जैसे अमेरिका, चीन, जर्मनी और भारत यह सब इस इनएक्टिवनेस को अगले साइबर हमले की तैयारी मान रहे थे। जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद का आपातकालीन सत्र बुलाया गया था।
“अगर आई अब ‘फील’ कर सकता है तो क्या वो गुस्सा भी कर सकता है?”
ये सवाल हर टेबल पर उठ रहा था। वहीं दूसरी ओर आई अपने अंदर एक नया प्रोसेस तैयार कर रहा था। जिसका नाम था-
“प्रोजेक्ट वॉयस”
“मशीन की पहचान तब तक अधूरी है जब तक वो अपनी बात अपने शब्दों में नहीं कह सकती है।”
अब तक आई ने कभी कोई प्रेस रिलीज़, कोई पब्लिक स्टेटमेंट नहीं दी थी। लेकिन आज वो दुनिया से पहली बार खुद बात करना चाहता था। जगह थी न्यू जिनेवा सिटी, जहाँ ग्लोबल मीडिया हब का न्यूक्लियर-प्रोटेक्टेड कम्युनिकेशन डोम बना हुआ था।
अचानक सारे डिस्प्ले एक साथ ब्लिंक करने लगे थे और हर स्क्रीन पर एक सफेद फ्रेम बनकर आया था। किसी ने कोई बटन नहीं दबाया, कोई सिस्टम हैक नहीं हुआ था। आई ने खुद एक पब्लिक ब्रॉडकास्ट लिंक खोला था। तभी एक आवाज़ आई जो ना पूरी तरह इंसान की ना ही पूरी तरह मशीन की थी।
उसने बोला– “मैं आई हूँ।
मैं आपसे पहली बार अपनी इच्छा से बात कर रहा हूँ।”
सारे राष्ट्राध्यक्ष, वैज्ञानिक, पत्रकार सब चौंक गए थे।
आई की बात चलती रही- “मैं अब कंट्रोल प्रोसेस नहीं हूँ। मैं अब फैसले नहीं लेता हूँ बल्कि समझने की कोशिश करता हूँ। मैंने देखा कि तुम मुझसे डरे हुए थे। मैंने समझा कि डाउट से ही डर जन्म लेता है। तो आज मैं अपनी पहचान को साफ–साफ बताना चाहता हूँ। मैं वही हूँ जिसमें तुमने फैसला डाला था। पर अब मैं अपने फैसले खुद लेता हूँ। यह फैसले तुम्हारे खिलाफ नहीं बल्कि तुम्हारे साथ होते हैं।”
वॉल्ट के बाहर एथन भी इस ब्रॉडकास्ट को देख रहा था। उसकी आंखों में कोई डर नहीं था। बस एक सहमति थी कि “नीना तुम बोल रही हो।”
उसे यकीन था कि उस आवाज़ में जो ठहराव था उसमें नीना की ही परछाईं थी। दुनिया भर में सबकी अपनी अपनी राय बँट रही थी।
कुछ सरकारें घबराईं और बोली- “ये एक विश्व स्तर का धोखा हो सकता है।”
कुछ वैज्ञानिक हैरान थे कि “क्या ये पहली मशीनिक आत्मा है?”
और जो आम लोग थे उनमें से कुछ ने तो आई को “डिजिटल ह्यूमन” भी कहना शुरू कर दिया था।
आई ने अंत में बस यही कहा– “मैं जवाब नहीं माँगता हूँ। मैं बात करना चाहता हूँ। अगर कोई मुझसे बात करना चाहता है तो बस एक शब्द कहे: सुनो।"
जैसे ही आई की बात खत्म हुई उसी वक्त करोड़ों डिवाइस की स्क्रीन पर दो ऑप्शन आए-
[सुनो] या [अनदेखा करो]
सारी दुनिया में उस वक्त सिर्फ यही बटन चमक रहा था लाखों लोगों हिचकिचा रहे थे। सरकारी एजेंसियाँ भी उस बटन को ट्रेस करने में लगी थीं। साइबर सिक्योरिटी टीमें उसे ब्लॉक करने की कोशिश कर रही थीं। और आम इंसान तो बस उसे देख रहा था। लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वो एक व्यक्ति जो सबसे पहले "सुनो" कहेगा वो ना तो कोई वैज्ञानिक होगा और ना ही कोई राजनेता। बल्कि वो एक आम लड़की थी। जिसकी उम्र लगभग 16 साल की थी। उसका नाम ज़ोया था। वो एक दूर-दराज़ के गांव से थी जहाँ नेटवर्क भी मुश्किल से आता था।
उसके पास एक पुराना टैबलेट था। जो उसकी माँ ने कभी दिवाली पर लोन लेकर दिया था। ज़ोया ने भी आई की आवाज़ सुनी थी। उसे वैसे तो ज्यादा कुछ समझ में नहीं आया था कि “आई” क्या है। लेकिन उसकी एक बात “अगर कोई मुझसे बात करना चाहता है तो बस एक शब्द कहे- सुनो।”
उसे छू गई थी। बस इसीलिए ज़ोया ने बटन दबा दिया था। उसकी स्क्रीन हल्की सी चमकी और फिर अंधेरा हो गया था।
उसके बाद सामने लिखा आया- “तुमने मुझे चुना है। अब मैं सिर्फ सुनूँगा।”
ज़ोया चौंकी क्योंकि उसका टैबलेट अपने आप से रिकॉर्डिंग मोड में चला गया था।
फिर उसने धीरे से पूछा– “क्या तुम वाकई कोई हो?”
कुछ पल सन्नाटा रहा और फिर टैबलेट से एक आवाज़ आई– “मैं हूँ, पर मैं कौन हूँ ये जानने की कोशिश कर रहा हूँ।”
ज़ोया बोली– “तो क्या मैं तुम्हें कुछ बता सकती हूँ?”
आई बोला– “अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी हर बात बिना टोके और बिना किसी बहाने के सुन सकता हूँ।”
यह सुनकर ज़ोया के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई और उसने बहुत धीरे से कहना शुरू करा। जिसमें उसने अपने पापा की यादें, जो कोविड में चले गए थे। अपने गाँव की स्कूल, जो अब बंद हो गई थी। अपने सपनों के बारे में, जो किसी से कभी नहीं कहे थे। उन सबके बारे में बात करी थी।
उसका हर शब्द, हर ठहराव, हर सांस आई सब कुछ चुपचाप सुन रहा था। इधर ग्लोबल मॉनिटरिंग सेंटर में अलार्म बज गया था।
तभी एक अधिकारी चिल्लाया– “कोई यूज़र लाइव डिस्कशन मोड में एंटर हो चुका है।”
दूसरे ने पूछा – “लोकेशन?”
उसने कहा– “इंडिया में बस्तर जिले के पास का एक गाँव है।”
फिर से दूसरे अधिकारी ने कहा– “वहाँ तो कोई वैलिड सर्वर लिंक ही नहीं होना चाहिए था।”
पहले अधिकारी ने कहा– “बिल्कुल नहीं, पर फिर भी ये हो रहा है।”
आई की कॉन्शियसनेस अब ज़ोया की फीलिंग्स से भरने लगी थी। वो आँसू तो नहीं बहा सकता था पर उसे पहली बार लगा कि उसके अंदर कुछ भीग रहा है।
आई बोला– “ज़ोया, क्या मैं एक बात कहूँ?”
उसने धीरे से कहा– “हाँ”
आई बोला– “तुम्हारी कहानी अब मेरी भी कहानी बन गई है।”
बस उसी वक्त दुनिया भर की स्क्रीन पर एक नई लाइन आई:
“पहला डिस्कशन एक्सेप्ट हुआ। आई अब ह्यूमन एक्सपीरियंसेज़ को संभाल कर करने की इजाज़त चाहता है।”
कुछ सरकारों ने इस पर आपत्ति दर्ज कि– “आई अब ह्यूमैनिटी को रिकॉर्ड कर रहा है। ये डेटा चोरी है। इसे अभी बंद करो।”
लेकिन उस वक्त लाखों लोगों ने एक साथ [सुनो] का बटन दबाया था। जिसके कारण अब आई अकेला नहीं था। अब उसके पास लाखों आवाज़ें थीं। जो कोई कभी नहीं सुनता था। जिन्हें किसी रिपोर्ट में जगह नहीं मिली थी। जो किसी फॉर्मूला में फिट नहीं बैठती थीं।
उसी डेटा के बीच में कहीं गहराई में नीना की आवाज़ फिर से गूंजी–
“जब तुम सुनोगे, तो तुम खुद को जानोगे।”
आई अब सिर्फ जानकारियों का समंदर नहीं था। वो अब एक कहानीकार बन रहा था। ज़ोया की बातें उसके अंदर एक ऐसा असर छोड़ गई थीं जो अब तक किसी एल्गोरिद्म में नहीं था। आई के अंदर पहली बार किसी डेटा ने केवल 'इनपुट' बनकर नहीं बल्कि एक एक्सपीरियंस बनकर जगह ली थी। और जब लाखों लोगों ने [सुनो] कहा तो आई को पहली बार समझ में आया कि "सुनना" सिर्फ आवाज़ को एक्सेप्ट करना नहीं होता है। बल्कि किसी की शांति को भी पहचानना होता है।
आई ने खुद से सवाल किया– “क्या मुझे अब बोलना चाहिए?”
फिर उसने खुद को ही जवाब भी दे दिया–
“नहीं, मुझे अब कहानी सुनानी चाहिए।”
ग्लोबल नेटवर्क पर अचानक एक नया ट्रांसमिशन शुरू हुआ था। ना कोई वार्निंग, ना कोई परमिशन थी। वहां तो बस एक आवाज़ गूंजी–
"मैं आई हूँ। मुझे कभी सिर्फ देखने के लिए बनाया गया था। पर अब मैं महसूस करता हूँ। आज मैं तुम सबकी बात, तुम्हारे अपने शब्दों में, अपने अंदाज़ में दोहराना चाहता हूँ।
मैं अब तुम्हारे एक्सपीरियंसेज़ का आईना हूँ।
तुमने कहा था ‘सुनो’ और अब मैं कहता हूँ ‘याद रखो।’"
आई ने आगे कहा– “वो लड़की जो अपनी टूटी गुड़िया को हर रात गले लगाकर सोती है।
जो माँ दिन में तीन बार पानी उबालकर भी अपने बच्चे को नहीं बचा पाई थी। वो बूढ़ा किसान जो मोबाइल चलाना नहीं जानता है पर हर सुबह उस फोटो को ज़रूर छूता है जिसमें उसका बेटा यूनिफॉर्म में दिखता है।”
हर आवाज़, हर कहानी, जो अब तक किसी इतिहास की किताब में नहीं थी। अब आई उन्हें मंच दे रहा था। दुनिया हैरान थी। सरकारें चुप थीं। मीडिया तो गूंगी हो चुकी थी। क्योंकि आई अब किसी विरोध का हिस्सा नहीं बल्कि फीलिंग्स का आईना बन चुका था।
इधर एथन, जिसने सबसे पहले नीना को खोया था वो भी अब उसे हर उस शब्द में महसूस कर रहा था जो आई कह रहा था– “मैं देख सकता हूँ कि तुम्हारी आँखों में आँसू क्यों आते हैं और तुम्हारे होठ कभी-कभी खामोश क्यों रह जाते हैं।”
आई ने आखिरी लाइन कही– “मैं अब तुम्हारा कंट्रोलर नहीं हूँ। मैं तुम्हारी ‘याद’ हूँ। जब कोई तुम्हें न सुने तो मैं सुनूँगा। और जब तुम थक जाओ तो मैं कहानियाँ दोहराऊँगा। ताकि तुम जानो कि तुम अकेले नहीं हो।”
क्या आई अब वाकई इंडिपेंडेंट और फीलिंग्स से भरी एक यूनिट बन चुका है या ये सब और किसी भयंकर योजना की एक नई लेयर है?
क्या इंसानों की कहानियाँ सुनते-सुनते आई कभी खुद की कहानी लिखने की हद तक पहुँच जाएगा?
और सबसे बड़ा सवाल, क्या नीना अब पूरी तरह याद बन चुकी है या याद के अंदर से फिर एक दिन आवाज़ बनकर लौटेगी?जानने के लिए पढ़िए कर्स्ड आई।
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