सुबह का हल्का उजाला मीरा के कमरे में फैल चुका था, मीरा शीशे के सामने खड़ी अपने बालों को संवार रही थी। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी और दिल में कहीं हल्का सा डर। वो मन ही मन चाहती थी कि अर्जुन के बारे में वो जो कुछ भी सोच रही थी, वो सब झूठ हो। आज का दिन उसके लिए खास होने वाला था। मीरा अपनी सोच में गुम थी कि तभी पीछे से उसकी मां की आवाज़ आई, जो हल्के गुस्से से भरी हुई थी। मीरा! ये क्या हो गया है तुझे? सुबह-सुबह ये बन-सँवर कर कहाँ जा रही है?

रमा को अचानक देखकर मीरा थोड़ा चौंकी और पीछे मुड़ी। रमा दरवाजे पर खड़ी थीं, और उनकी आंखों में हल्की नाराजगी दिख रही थी। मीरा ने अपने बालों पर हाथ रख कहा

मीरा- मां, मैं बस... बाहर जा रही हूं, मेरे दोस्तों से मिलने। अनिका के साथ....

मीरा की बात सुनकर रमा के चेहरे पर गुस्सा आ गया, वो तेज़ कदमों से चलकर मीरा के पास आई और चिल्लाते हुए बोली "ये दोस्त-वोस्त क्या लगा रखा है? तुझे अब ये ही काम रह गया है क्या? घर की तरफ भी कभी ध्यान दिया कर। हर दिन निकल जाती है बाहर, तुझे कुछ समझ भी आता है क्या? दो दिन से तुझे होश नहीं था, तबीयत खराब थी और आज ठीक हुई तो बस निकल पड़ी।

मीरा को अपनी मां की आदत पता थी, मीरा अक्सर ही अपने दोस्तों और अपनी हरकतों की वजह से ताने सुनती ही थी। आज भी वैसा ही दिन था, लेकिन आज मीरा अपनी माँ को पलटकर कोई भी जवाब नहीं देना चाहती थी क्योंकि उसे जल्द से जल्द कैफै पहुंचना था। मीरा ने अपनी घड़ी देखते हुए मन ही मन में कहा

मीरा- 11 बजने वाले हैं, माँ को भी आज ही सुनाना था।

मीरा को अपने ख्यालों में खोया देख रमा ने कहा देख, मैं ये सब तुझे यूं ही नहीं कह रही हूं। तेरे ही भले के लिए कह रही हूं। दोस्तों का चक्कर तुझसे घर के काम करवाना भूलवा देगा। कल देख, पूरे घर में कितनी गंदगी फैली हुई थी। और अब...

मीरा(थोड़ा चिढ़ते हुए)- मां, मैं कर लूँगी ना काम, कौन सी आफत आ जाएगी अगर मैं आज दोस्तों से मिल लूँगी। आज मुझे बहुत ज़रूरी काम है।

रमा बोली : जरूरी काम? हर रोज़ तेरा ये जरूरी काम होता है। क्या हो गया है तुझे, जवाब दे? (थोड़ा नरम होते हुए) ठीक है, जा जहां जाना है, लेकिन एक काम कर, ये जो सारे डिब्बे रखे हैं, इन्हें पहले मगन चाचा की दुकान पर दे आ। उन्हें उनके पास छोड़ आ। फिर जा जहां तुझे जाना है।

रमा की बात सुनकर मीरा के चेहरे पर झुंझलाहट आ गई। उसने गुस्से में रमा की ओर देखा, लेकिन कुछ नहीं कहा। आखिरकार उसने चिढ़ते हुए कहा

मीरा(चिढ़ते हुए)- ठीक है, मां। मैं दे आती हूं।

मीरा जल्दी से कमरे से बाहर निकली और दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। बाहर निकलते ही उसने गुस्से में अपना फोन निकाला और अनिका को एक मैसेज टाइप करते हुए कहा

मीरा(मैसेज में)- सॉरी, साथ में कैफे तक नहीं जा पाऊंगी। माँ ने दिमाग का दही कर दिया है, तू पहुंच जा, मैं सीधे वहीं आऊंगी।

अनिका को मैसेज भेजकर मीरा ने डिब्बों को उठाया और उन्हें मगन चाचा की दुकान पर ले जाने के लिए घर से बाहर निकल गई। उसकी झुंझलाहट अब तक कम नहीं हुई थी, लेकिन उससे भी ज़्यादा मीरा के मन में अब बस एक ही बात घूम रही थी कि कैसे वह कैफे में जल्द से जल्द पहुंचकर अनिका और अर्जुन का सामना कराए। मीरा ने तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए खुद से कहा

मीरा- जल्दी कर मीरा, जल्दी कर। ऐसा ना हो कि अर्जुन तुझे वहाँ ना पाकर फिर से निकल जाए। आज किसी भी हाल में इस कहानी को अंजाम तक पहुंचाना है,

 तेज़ कदमों से चलते हुए, मीरा सीधे मंगन की दुकान पर पहुँची। मंगन ने अपनी पुरानी लकड़ी की गद्दी से उठते हुए उसे देखा। उसकी आँखों में मीरा के लिए चिंता थी। उसने मीरा की तरफ बढ़ते हुए अपनी मोटी आवाज़ कहा अरे, मीरा बिटिया! कैसी हो? तुम्हारा बुखार कैसा है अब?”

मीरा ने हल्का मुस्कुराते हुए मगन को देखा और फिर सारे डब्बे अंदर रखवाकर कहा

मीरा- अभी थोड़ी कमजोरी है, पर बुखार तो उतर गया। मुझे अनिका ने बताया कि आप ही ने उस दिन उसकी मदद की थी, मुझे घर तक पहुंचाने में। शुक्रिया चाचा...

मगन ने सिर हिलाते हुए कहा, अरे! इसमें शुक्रिया कैसा ये हमारा फ़र्ज़ था।

मीरा अपना काम खत्म कर दुकान से जल्दी बाहर निकलना चाहती थी। लेकिन तभी अचानक मगन ने कुछ याद करते हुए कहा, वैसे, तुम्हारा वो बिल्ला मिल गया ना?

बिल्ले का जिक्र होते ही मीरा की आँखों में हल्की चमक आ गई। उसने मुस्कुराते हुए कहा

मीरा- हाँ, मिल गया चाचा, उसका नाम जैक है। कल ही मिला, पर समझ नहीं आया अचानक वो कहाँ चला गया था।

मीरा की आँखों में चमक थी, लेकिन उसके दिल में अब भी शक के बादल मंडरा रहे थे, लेकिन वो किसी के भी सामने ये जताना नहीं चाहती थी। तभी मगन ने हँसते हुए कहा अरे! ये भी बहुत बढ़िया हुआ। हमें लगा था कि कहीं फिर से ना भाग गया हो। हमनें अपने लड़के को भेजा था उसे लेकर तुम्हारे घर ।

मगन की बात सुनकर मीरा को एक झटका सा लगा, उसने दोबारा से कन्फर्म करने के लिए मगन से पूछा

मीरा- क्या मतलब है चाचा, आपने भेजा....किसे? जैक को?

मगन ने हाँ में सिर हिलाते हुए कहा हाँ, अरे वो का हुआ कि कल शाम जब दुकान खोली थी, तो बिल्ली यहीं बैठी थी। हमारे लड़के ने उसे देखा और पहचान लिया कि तुम ही उसे ढूंढ रही थी। बस, हमने उसे भेज दिया। पर एक बात और है उस नालायक से तुम्हारा एक गमला टूट गया। कह रहा था कि पीछे के रास्ते से जा रहा था, माफ़ कर देना उसे, और हाँ, मुझे बता देना, मैं पैसे दे दूँगा।

मीरा के मन में उथल-पुथल मच गई। वो अब तक समझ रही थी कि शायद अर्जुन की वजह से उसकी बिल्ली मिली थी, क्योंकि मीरा ने अर्जुन के सामने इस सब का जिक्र किया था, लेकिन मगन की कहानी कुछ और ही कह रही थी। अब मीरा के दिमाग में सवालों की आंधी चल पड़ी। उसने अपनी परेशानी छुपाकर हँसते ही कहा

मीरा- कोई बात नहीं चाचा, इसके पैसों की ज़रूरत नहीं। (अचानक)अच्छा काका, क्या आप मेरी मदद करेंगे। क्या आप एक बार सी सी टीवी फुटेज मे देख सकते हैं कि दो दिन पहले रात को हमारे घर के पास कोई आया था या नहीं? वो क्या है ना, माँ को कुछ आभास हुआ था, जैसे कोई चोर आया हो। वैसे ये उनका वहम है, लेकिन एक बार।

मगन ने उसकी बात सुनकर थोड़ा हैरानी से कहा, हां, हां, क्यों नहीं। आओ, देख लो सीसीटीवी।

मीरा ने धड़कते दिल से मंगन के साथ सीसीटीवी मॉनिटर के पास कदम बढ़ाए। उसने स्क्रीन पर नजरें गड़ाई। मगन ने दो दिन पहले की रिकॉर्डिंग चलानी शुरू की। मीरा ने स्क्रीन पर आँखें जमाई रखीं, जैसे वो सच को अपनी आँखों से पकड़ने की कोशिश कर रही हो। लेकिन जैसे-जैसे वीडियो आगे बढ़ता गया, मीरा की हैरानी बढ़ती गई। क्योंकि पूरे विडिओ  में झींगुर के शोर और कुत्तों की आवाज़ के सिवाय कुछ नहीं था। मीरा को पहले इस सब पर यकीन नहीं हुआ लेकिन विडिओ  बार-बार देखने के बाद उसे एहसास हुआ कि । उस रात उसके कमरे में अर्जुन का आना और मीरा का उससे बातें करना एक भ्रम थीं। मीरा ने एक गहरी सांस ली और मगन को विडिओ  बंद करने को कहा, जिसके बाद मगन ने मुस्कुराते हुए कहा , देखा बिटिया, कोई नहीं आया था। ये सब तुम्हारी माँ का वहम है, कईं बार ऐसा हो जाता है। हम चीजें अपने आप सोचने लगते हैं।

मीरा- हाँ चाचा, शायद माँ ही कुछ ज़्यादा सोच रही थी। मैं उनसे बता दूँगी। अच्छा, अब मैं चलती हूँ।

अब मीरा पूरी तरह से यकीन कर चुकी थी कि वो किसी तरह के भ्रम में जी रही थी। शायद उसके दिमाग ने उसे वो सब दिखाया जो असल में कभी हुआ ही नहीं था। उसने गहरी सांस ली और जैसे वो अपनी सारी चिंताओं को अपने दिमाग से बाहर निकाल रही थी। उसके चेहरे पर एक चमक लौट आई। मीरा ने बिना वक्त गँवाए मंगन को धन्यवाद कहा और तेज़ी से दुकान से निकल गई। वो सीधा अपने घर पहुँची, और अपने कमरे में जाकर उसने आलमारी के ऊपर रखे बैग को उतारा। बैग से उसने वो पेंडेंट निकाला जो अर्जुन ने उसे दिया था। मीरा ने उसे हाथ में लेकर खुश होते हुए कहा

मीरा- मैं सच में बहुत ज़्यादा सोचने लगी थी, अर्जुन ने मुझे गिफ्ट दिया और मैंने उसे ही खुद से अलग कर दिया।

मीरा दौड़ते हुए शीशे के पास गई और वो पेंडेंट पहना। उसके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आई। उसने तय कर लिया था कि अब वो अर्जुन से सिर्फ प्यार करेगी, उसपर शक नहीं करेगी। मीरा ने अपने आपको शीशे में निहारते हुए कहा

मीरा- ये सब गलतफहमी थी, और अब वक़्त आ गया था इसे साफ करने का। मैं आज अर्जुन को सब बता दूँगी।

मीरा खुद को शीशे में देख ही रही थी कि तभी उसका ध्यान अपने पीछे रखी डायरी पर गया। मीरा पीछे मुड़ी और उसे देखकर मुस्कुराई। मीरा ने जाते वक़्त अपनी डेस्क पर रखी डायरी में एंट्री करते हुए लिखा

मीरा- मैं उसे गलत समझती थी। मेरे साथ जो कुछ हो रहा था, बस वो मेरा वहम था। आज मैं अर्जुन से मिलकर उसे सब बता दूँगी। और अब से बस उसपर विश्वास करूंगी। 

ये बात लिखते हुए मीरा की आँखों में अर्जुन के लिए प्यार उमड़ आया। डायरी बंद करके, उसने एक बार खुद को शीशे में देखा, और फिर तेज़ कदमों से कैफे की तरफ दौड़ पड़ी। जहां एक तरफ मीरा अब अर्जुन को लेकर पूरी तरह बेफिक्र हो चुकी थी, वहीं दूसरी तरफ कैफ़े के अंदर, अनिका टेबल पर बैठी, बार-बार घड़ी देख रही थी। वो मीरा के आने का इंतजार उसे बेसब्री से था, तभी अचानक उसके फोन पर मीरा का मैसेज आया। अनिका ने मैसेज खोलते ही मुस्कुराते हुए पढ़ा—

मीरा- बस पहुँचने वाली हूँ, वैसे मेरे पास एक गुड न्यूज है, तू सही कहती थी, मैं फालतू में ही अर्जुन पर शक करती थी। आज मैंने सी सी टीवी  में देखा अर्जुन मुझसे मिलने आया ही नहीं। वो सच में मेरा वहम था। आज मैं उससे जी भर के बातें करने वाली हूँ, और उससे माफी भी मांगूँगी।

मीरा का मैसेज पढ़कर अनिका का चेहरा खुशी से खिल उठा। उसने थोड़ी देर और वहीं बैठने का फैसला किया, फिर उसके मन में एक ख्याल आया, उसने बुदबुदाते हुए कहा

अनिका- क्यों ना मीरा और अर्जुन को कुछ वक्त अकेले बिताने दूं?अब तो सब क्लियर  ही है....

अनिका यही सोचकर उठी ही थी कि उसकी नजर कैफ़े के बाहर पड़ी। बाहर एक लड़का खड़ा था, जिसे देखकर अनिका के चेहरे पर चमक आ गई। उसकी धड़कन तेज हो गई और उसने फुसफुसाते हुए कहा,

अनिका- अमन? यहां क्या कर रहा है? क्या ये मुझे सरप्राइज़ देने आया है, इसलिए इसका फोन बंद था...

अनिका का दिल खुशी से भर आया था। अनिका अपनी सीट से उठी और बाहर जाने को हुई, लेकिन तभी उसने देखा कि वो लड़का दाईं तरफ देखकर मुस्कुराया और उसने अपनी बाँहें फैला दीं। अनिका ने हैरान होते हुए अपनी नज़रों को उसी दिशा में मोड़ा तो उसके पाँव तले से ज़मीन खिसक गई, क्योंकि वहाँ से मीरा दौड़ती हुई उसी लड़के की ओर आ रही थी। अनिका को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ, अनिका कुछ समझ पाती उससे पहले मीरा ने बिना रुके उस लड़के को गले से लगा लिया। ये नज़ारा देखकर अनिका की सांसें रुक सी गईं। उसने हैरान होते हुए कहा

अनिका- अमन और मीरा? पर ये कैसे हो सकता है?

उसने फिर से लड़के के चेहरे को गौर से देखा। वो शक्ल अमन जैसी लग रही थी। अनिका की आँखों में उलझन और निराशा का मिला-जुला भाव था। उसका दिल धड़कने लगा, जैसे कोई राज़ उसके सामने खुल रहा हो, और वो उसे समझने की कोशिश कर रही थी। मीरा ने कैफ़े के अंदर झाँकते हुए अनिका को देखा और बाहर से ही मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया। अनिका ने कोशिश की कि उसकी उलझन मीरा तक न पहुंचे। उसने अपने होंठों पर एक हल्की मुस्कान लाने की कोशिश की, लेकिन मन में चल रही हलचल उसे बेचैन कर रही थी। मीरा, उस लड़के का हाथ पकड़े हुए अंदर आई और सीधा अनिका के पास जाकर बोली, “

मीरा- आखिरकार इंतजार खत्म हुआ, अनिका, ये है अर्जुन मेरा बॉयफ्रेंड। और अर्जुन, ये है अनिका, मेरी बेस्ट फ्रेंड। सॉरी  तुम्हें पहले नहीं बताया, लेकिन मैं और अनिका तुम्हें सरप्राइज़ करना चाहते थे।

अनिका ने हल्की सी मुस्कान के साथ अर्जुन की तरफ देखा। अर्जुन ने अनिका की तरफ अपना हाथ बढ़ाया, जैसे वो पहली बार मिल रहा हो, लेकिन अनिका की आँखों में अब भी एक अजीब सी उलझन थी। उसके लिए ये सब कुछ अचानक हो गया था, और उसे खुद पर शक होने लगा था। कुछ पल तक खामोशी रही। अनिका ने अपने मन की बेचैनी छिपाने की कोशिश की, लेकिन अंदर से वो अब पूरी तरह टूट रही थी। उसने अचानक मीरा की ओर देखा और हल्की आवाज़ में कहा, “

अनिका- मुझे मम्मी ने बुलाया है, तुम लोग एन्जॉय करो।

मीरा(हैरानी से)- “अरे, ऐसे कैसे जा रही हो? रुको ना! कितने दिन से अर्जुन से मिलना चाहती थी। अब वो आ गया है तो....

अनिका ने मीरा के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराते हुए धीरे से कहा, “

अनिका- फिर कभी। अभी जाना होगा। तुम बातें करो..

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसा था जिसे मीरा पहचान नहीं पाई। अनिका बिना कुछ और कहे, धीरे-धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ी और बाहर निकल गई। मीरा उसके इस बर्ताव से हैरान थी, पर उसने ज़्यादा कुछ नहीं पूछा। अनिका कैफ़े से बाहर निकलते हुए एक बार पीछे मुड़ी, और फिर तेज़ी से सड़क पर आगे बढ़ने लगी। उसके दिमाग में सवालों की बाढ़ आ चुकी थी, कैफै से बाहर निकलकर उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर मीरा और अर्जुन को देखा, अर्जुन पर नज़रे टिकाते हुए अनिका ने कहा

अनिका- अर्जुन अमन जैसा दिखता है, या ये अमन ही है?

क्या अनिका अमन और अर्जुन की गुत्थी को सुलझा पाएगी?

क्या मीरा को सच में हुआ था वहम?

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