मीरा अपने कमरे में बैठी थी, कमरे की हर चीज़ इस वक्त उसे असामान्य लग रही थी। जैसे कमरे की दीवारें खुद से बातें कर रही थीं। पिछले कुछ दिनों में हुई घटनाएं उसे बेचैन कर रही थीं। अर्जुन का आना, जैक का जिक्र और उस रात की हर अजीब बात, सब मिलकर मीरा के दिमाग में एक पहेली सी बन गई थी। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, मीरा एक झटके में अपनी सोच से बाहर आई। दरवाज़ा धीरे-धीरे खुला। सामने अनिका खड़ी थी, उसका चेहरा थका हुआ और उसकी आंखों में घबराहट साफ झलक रही थी। बिना एक शब्द कहे, अनिका जल्दी से अंदर आई और मीरा के सामने बैठ गई। मीरा ने अनिका को पानी का ग्लास देकर कहा ​ 

​​मीरा(धीरे से) "अनिका, वो लड़का... अचानक सुसाइड कैसे कर लिया?​ 

मीरा के सवाल के बाद कमरे में एक पल के लिए पूरी शांति छा गई। अनिका की आंखों में कुछ अलग सा भाव था। दोनों दोस्त आमने-सामने बैठीं, दोनों के दिलों में उथल-पुथल थी, पर अनिका का चेहरा शांत था। अनिका ने मीरा को समझाते हुए कहा ​ 

 ​​अनिका- मीरा, तू फिर से इस सब में मत उलझ। मैंने तुझे जो फोन पर बताया वो ही सच है। अब ये किस्सा खत्म करते हैं। मैं और स्ट्रेस नहीं ले सकती। ​ 

मीरा ने हैरान होकर अनिका को देखा, क्योंकि उसे तो हर बात पर शक हो रहा था। वो जानना चाहती थी कि अचानक ऐसा कैसे हुआ, या तो किसी सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था, और अब सब कुछ शीशे की तरह साफ़ हो गया था। हर चीज़ उसे किसी साज़िश का हिस्सा लग रही थी, लेकिन उसकी सबसे करीबी दोस्त, अनिका, उसकी बातों को नज़रअंदाज़ कर रही थी। अनिका के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून था, जैसे वो ये सब पहले ही स्वीकार कर चुकी हो। मीरा ने अनिका के हाथों को हाथ में लेकर कहा ​ 

​​मीरा- मैं तुझे कुछ बताना चाहती हूँ... उस रात...अर्जुन आया था। मैंने उसे जैक के बारे में बताया था, लेकिन फिर वो गायब हो गया, वैसे ही जैसे हर बार होता है। ​ 

मीरा के चेहरे पर डर और उलझन साफ नजर आ रही थी। उसकी आंखों में उस रात की यादें तैरने लगीं। वहीं अनिका की आँखों में एक ठहराव था, उसने मीरा के हाथ पर अपना हाथ रखकर कहा ​ 

​​अनिका- मीरा, तू ज़्यादा सोच रही है। ये सब तेरा वहम है।​ 

मीरा ने एक झटके में अनिका की ओर देखा। अनिका का ये लहजा उसे हैरान कर रहा था, लेकिन कहीं न कहीं, मीरा समझ रही थी कि उसकी दोस्त ये सब क्यों कह रही थी। अनिका ने मीरा की आँखों में नाराजगी पढ़ते हुए कहा ​ 

​​अनिका- अब मुझे यकीन हो चुका है कि जो भी कुछ हुआ, वो उस लड़के का किया धरा है।​ 

अनिका की बात सुनकर मीरा और उलझ गई। उसे अब तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला था। उसकी आंखों में एक सन्नाटा सा छा गया था। मीरा ने हैरान होकर कहा ​ 

​​मीरा (हैरान होकर)- तू ये सब कैसे इतने यकीन से कह सकती है?​ 

अनिका ने एक गहरी सांस ली और फिर से वो ही सब बताने लगी जो उसने मीरा को कॉलेज में होते हुए बताया था। जैसे उसे सारी बातें पहले से ही पता थीं। मीरा का चेहरा अभी भी सवालों से भरा था, पर अनिका के चेहरे पर विश्वास का एक अजीब भाव था, जैसे वो पूरी तरह से सुनिश्चित हो चुकी हो कि क्या हुआ था। मीरा जानना चाहती थी, पर अनिका अब बात को खत्म करने के मूड में लग रही थी। अनिका ने मीरा को सारी बातें बताकर कहा ​ 

 ​​अनिका- वो लड़का तुझे और मुझे परेशान कर रहा था, मीरा। और अब ये साफ है। उसने शायद तुझे कोई केमिकल दिया होगा। याद है, हमने वो शो देखा था जिसमें एक आदमी अपनी बीवी को धीरे-धीरे ड्रग्स देता था? एक दिन उसे हकीकत और सपने में फर्क करना ही बंद हो गया था। हो सकता है उस लड़के ने भी तुझ पर वही किया हो। बहन वो केमिस्ट के यहाँ काम करता था। ​ 

मीरा ने ध्यान से सुना, लेकिन उसे अब भी सब कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हर बात उसे एक पहेली की तरह लग रही थी। तभी अनिका ने अपनी बात पर ज़ोर देने के लिए कहा ​ 

 ​​अनिका- अमन ने भी ये ही सब कहा, वो तो कह रहा था कि ये लड़का ज़रूर कोई साइकोपाैथ  होगा। ​ 

 ​मीरा(डरते हुए)- तूने ये सब अमन को भी बता दिया?​ 

​​अनिका(बिना हिचकिचाए)- हाँ, कल रात मैंने अमन को सब कुछ बता दिया। मैं बहुत डर गई थी, ऐसे में वो ही है जो मुझे संभाल सकता है। वैसे भी उस लड़के ने मुझे टारगेट किया था। तू शायद बस एक मोहरा थी। ​ 

अनिका की ये बात सुनकर मीरा के चेहरे पर गुस्सा और हैरानी एक साथ उभर आए। उसे अब तक समझ नहीं आ रहा था कि उसकी सबसे करीबी दोस्त ने ऐसा क्यों किया। उसकी आंखों में कुछ पल के लिए गुस्सा भर गया, पर अनिका अभी भी शांत दिख रही थी, मीरा ने अनिका पर नाराज़ होते हुए कहा ​ 

 ​​मीरा(नाराज़गी से)- तूने ऐसा क्यों किया?​ 

 मीरा की आवाज़ में साफ गुस्सा झलक रहा था, लेकिन अनिका ने बिना किसी हिचक के जवाब दिया।​ 

​​अनिका- क्योंकि अब मुझे अमन पर शक नहीं करना है। मैं थक चुकी हूं, मीरा नेगेटिव सोचते-सोचते…  अब और नहीं। मैं उसे और judge नहीं कर सकती, वो बहुत दूर है यहाँ से। तेरे आने से पहले तक मैंने कभी उसके लिए ऐसा महसूस नहीं किया। बहन शक का कीड़ा सब बर्बाद करता है। ​ 

मीरा कुछ कहने ही वाली थी कि  तभी उसकी नज़र अनिका की गर्दन पर गई। उसने देखा कि अनिका ने वो पेंडेंट पहना हुआ था जो अमन ने उसे दिया था। उसकी आंखों में एक अजीब सा शक उभर आया।​ 

​​मीरा- ये पेंडेंट... तुमने कब पहना?​ 

​​अनिका(मुस्कुराते हुए)- मैंने उसी दिन से गले में पहन लिया था, जब मैं गार्डन में अमन से मिली थी। अमन ने कहा था पहनने को, मैं उसे और परेशान नहीं करना नहीं चाहती थी। ​ 

मीरा के मन में अब और भी सवाल उठने लगे थे। वो पेंडेंट, अमन का ज़िक्र, और इस सब के बीच कहीं कुछ ऐसा था जिसे मीरा समझ नहीं पा रही थी। उसकी नज़रें अनिका की गर्दन पर टिकी हुई थीं, और उसकी आंखों में अब असमंजस साफ झलक रही थी। अनिका अपने आप में मुस्कुरा रही थी, पर मीरा के दिल में उठते सवालों का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा था। मीरा के चेहरे पर एक अजीब सी चुप्पी थी, जैसे वो किसी बड़े राज़ को समझने की कोशिश कर रही हो। अनिका को मीरा की ये बदलती हुई स्थिति और उसके सवाल परेशान कर रहे थे, लेकिन वो कुछ कह नहीं पा रही थी। मीरा ने फिर धीमे से कहा ​ 

​​मीरा- अनिका, ये पेंडेंट... क्या तूने ये कल भी पहना था जब तू यहां आई थी?​ 

मीरा के इस सवाल ने अनिका के दिल में एक हल्का झटका पैदा किया। उसे मीरा का सवाल बहुत अजीब लगा। लेकिन उसने खुद को नॉर्मल रखने की कोशिश करते हुए कहा ​ 

​​अनिका(थोड़ी हिचकिचाहट के साथ)- हाँ, मीरा, मैंने इसे कल भी पहना था। क्यों? क्या हुआ?​ 

मीरा की आंखें अब उस पेंडेंट पर टिकी हुई थीं। उसका ध्यान अब सिर्फ उसी पर था। अनिका की आंखों में हल्की घबराहट झलकने लगी थी, क्योंकि उसे मीरा का ये बदला हुआ रूप समझ में नहीं आ रहा था। उसने अपने मन में सोचते हुए कहा ​ 

​​अनिका- ये मीरा को हुआ क्या? इसके दिमाग में कुछ तो चल रहा है?​ 

मीरा के दिल और दिमाग में अब कुछ साफ होने लगा था। उसे धीरे-धीरे वो कड़ियाँ मिलने लगीं, जिन्हें वो पिछले कुछ दिनों से जोड़ने की कोशिश कर रही थी। हर बात अब उसकी समझ में आने लगी थी, और उसका चेहरा अचानक बदल गया। उसकी आंखों में अब एक रहस्यमयी चमक और उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान आ गई। मीरा ने पेंडेंट की ओर देखते हुए धीरे से सिर हिलाया, जैसे कोई गहरी बात समझ में आ गई हो। उसने अनिका की ओर देखा और एक गहरी सांस ली और कहा ​ 

​​मीरा(हल्की मुस्कान के साथ)- शायद तू सही कह रही है, अनिका। हो सकता है, मैं ही ज़्यादा सोच रही थी।​ 

अनिका को मीरा का ये बदला हुआ अंदाज़ और उसकी रहस्यमयी मुस्कान देख कर झटका लगा। वो हैरान थी कि मीरा अचानक से इतनी शांत कैसे हो गई, जबकि अभी तक वो खुद अनिका से सवाल पर सवाल पूछ रही थी। अनिका कुछ कहती उससे पहले मीरा ने धीरे से इशारे में अनिका को उसके पेंडेंट की ओर इशारा किया। उसकी आंखों में अब वही रहस्यमयी चमक थी, जिसे देखकर अनिका का दिल धड़कने लगा।​ 

​​मीरा(इशारे से)- अनिका, ये पेंडेंट उतार दे।​ 

 अनिका की आंखें अब पूरी तरह से मीरा पर टिकी हुई थीं। वो समझ नहीं पा रही थी कि मीरा ऐसा क्यों कह रही है। उसके मन में हजारों सवाल उठ रहे थे, लेकिन उसने मीरा से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं की। एक पल के लिए उसने सोचा कि वो सवाल पूछे, लेकिन फिर उसने चुपचाप पेंडेंट उतार कर मेज़ पर रख दिया। मीरा ने बिना कुछ कहे, पेंडेंट को उठाया और उसे अपने हाथों में घुमाने लगी। जैसे वो उसमें कुछ तलाश रही हो। अनिका को अब और भी अजीब लग रहा था। उसने अपने होंठों को हल्का सा काटा,  फिर आँखों ही आँखों में मीरा से बात बताने का इशारा किया। मीरा ने पेंडेंट को धीरे से उठाकर एक बैग में रखा और फिर अपनी मेज़ की दराज से अपना पेंडेंट निकालकर उसमें डाल दिया। अनिका ने चुपचाप ये सब देखा, लेकिन उसके चेहरे पर अब डर साफ नजर आने लगा था। उसने अपने मन ही मन में कहा ​ 

 ​​अनिका(मन में)- मीरा, ये सब क्यों कर रही है?​ 

मीरा पूरी तरह शांत थी। उसने बैग को उठाया और कमरे के कोने में रखी अलमारी के ऊपर उसे छिपा दिया। वहीं अनिका अब पूरी तरह से हैरान और परेशान थी। मीरा ने अनिका की ओर देखा, उसके चेहरे पर अब भी वही शांत मुस्कान थी। उसने बिना कुछ कहे, अनिका को कमरे से बाहर चलने का इशारा किया। अनिका पहले चौंकी लेकिन फिर उसने बिना किसी सवाल के मीरा की बात मान ली। मीरा ने थोड़ी देर चुप रह कर एक गहरी सांस लेते हुए अनिका से कहा ​ 

​​मीरा- अनिका, मेरी बात तुझे अजीब लगेगी, लेकिन मैंने उन पेंडेंट्स को बैग में इसलिए छिपाया है क्योंकि मुझे शक है कि उनमें कोई ट्रांसमीटर छिपा हुआ है।​ 

अनिका ने एक पल के लिए हैरान होकर मीरा की ओर देखा फिर गुस्से से बोली ​ 

​​अनिका(थोड़ा नाराज़ होते हुए)- मीरा, तू फिर से सीआईडी बन गई है! बहन, ऐसा कुछ भी नहीं है। क्यों तू उन लड़कों पर इतना शक कर रही है? ये सब तेरा वहम है।​ 

अनिका की आवाज़ में अब गुस्सा और चिंता दोनों ही थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मीरा को आखिर क्या हो गया है। वो उसकी बात पर यकीन नहीं कर पा रही थी। मीरा अपनी जगह पर खड़ी रही, उसकी आंखों में अब भी वो गहरा शक था। उसने अनिका को समझाते हुए कहा ​ 

​​मीरा- अनिका, मैं भी यही चाहती हूँ कि ये सब बस एक वहम हो। मुझे भी यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन सोच... अगर ये सच हुआ तो? मैं भी यही चाहती हूँ कि ऐसा कुछ न हो, लेकिन क्या हम सिर्फ इसलिए इसे नज़रअंदाज कर सकते हैं?​ 

अनिका कुछ बोलने ही वाली थी, लेकिन मीरा ने उसे रुकने का इशारा किया।)​ 

​​मीरा- सुन, मैं भी अर्जुन से बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन बस एक आखिरी बार मेरी बात मान ले। अगर मैं गलत हुई, तो तुझे मुझसे कभी कोई शिकायत नहीं होगी।,पर अगर सही निकली, तो हम किसी बड़ी मुसीबत से बच सकते हैं।​ 

मीरा की आवाज़ में अब सच्चाई और डर का दोनों मिले हुए थे। अनिका ने उसकी आंखों में वो चिंता और प्यार देखा जो वो अर्जुन और अपने रिश्ते को लेकर महसूस कर रही थी। अनिका ने गहरी सांस ली, थोड़ी देर तक कुछ नहीं कहा। लेकिन फिर सोचते हुए कहा ​ 

​​अनिका- ठीक है, मीरा। तो अब मुझे करना क्या होगा?​ 

 ​​मीरा(खुश होकर)- तुझे कुछ नहीं करना होगा। मैं कल अर्जुन को कैफे में मिलने बुलाऊंगी, लेकिन उसे ये नहीं बताऊंगी कि तू भी वहां होगी। तुझे अमन पर भरोसा है ना, लेकिन मुझे अर्जुन पर अब भी भरोसा नहीं हो रहा, अपनी दोस्त के लिए इतना करना। ये बात अमन को मत बताना। ​ 

अनिका ने चुपचाप सिर हिला दिया, उसकी आंखों में अब भी हल्का शक था, लेकिन वो मीरा पर भरोसा कर रही थी। मीरा और अनिका ने कुछ और देर बात की, दोनों ही थोड़ी असमंजस में थीं लेकिन अब फैसला हो चुका था। अनिका ने एक बार फिर मीरा की ओर देखा और गहरी सांस लेते हुए दरवाजे की ओर बढ़ी फिर पीछे मुड़कर कहा ​ 

​​अनिका- तुम अपना ख्याल रखना और आज प्लीज ये खिड़की बंद कर लेना। ​ 

अनिका ने घर के दरवाजे से बाहर जाते हुए एक पल के लिए रुक कर मीरा को देखा, जैसे कुछ और कहना चाहती हो, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और चुपचाप चली गई। घर लौटकर, अनिका ने अपना बैग एक तरफ रखा और धीमे कदमों से अपने कमरे की ओर बढ़ी। उसने अपनी डायरी उठाई, जो हमेशा उसके बेड के पास रखी रहती थी। वो धीरे-धीरे डायरी के पन्ने पलटने लगी, फिर एक कोरे पन्ने पर लिखते हुए बोली ​ 

​​अनिका(डायरी में लिखते हुए)- आज मीरा ने जो कुछ कहा, वो सब बहुत अजीब था। मैं समझ रही हूँ उसकी बेचैनी को लेकिन मुझे डर है कि कहीं वो अपने इस शक में कुछ गलत ना कर दे। पर शायद कल सब ठीक हो जाए, उसका प्यार उसके शक पर जीते। ​ 

अनिका की ही तरह मीरा भी अपनी डायरी के पास बैठी थी। उसके दिमाग में अब भी अनिका और अर्जुन के बारे में बातें घूम रही थीं। उसने भी अपनी डायरी का पन्ना खोला और लिखना शुरू किया ​ 

​​मीरा - कल शायद आखिरी मौका है ये जानने का कि मैं सच में गलत हूँ या सही। अर्जुन से प्यार करती हूँ, लेकिन अगर मेरे शक सही निकला तो... शायद इस रिश्ते को यहीं खत्म करना होगा। ​ 

 

क्या अर्जुन मीरा से मिलने कैफै आएगा?​ 

​​ किसकी होगी जीत अनिका के विश्वास की या मीरा के शक की? ​ 

​​जानने के लिए पढ़ें अगला चैप्टर। ​ 

Continue to next

No reviews available for this chapter.