मुंबई के एक फेमस स्कूल में क्लास 8th के सभी बच्चे एक बड़ी सी क्लास रूम में कंप्यूटर के आगे बैठकर कुछ काम कर रहे थे। तभी अचानक से, सामने रखे एक कंप्यूटर से तेज आवाज आई, और अगले ही पल एक चिंगारी के साथ कंप्यूटर से धुआँ और आग निकलने लगी।   जैसे ही, कोई दूसरा बच्चा यह बात समझ पाता एक के बाद एक करीब आठ कम्प्यूटरों से, तेज धुएं के साथ आग निकलने लगी। आसपास कहीं कुछ बच्चों को हल्की चोट आ गई और वह वक्त रहते वहां से हटकर पीछे चले गए। यह बात आग की तरह पूरी स्कूल में फैल गई और अभी तक टीचर्स, मैनेजमेंट और बच्चों के मां-बाप को भी यह बात पता चल गई थी। जिन बच्चों को हल्की-फुलकी चोट आई थी, उनके मां बाप तुरंत ही स्कूल पहुंच गए। इसके अलावा और भी कोई पेरेंट्स स्कूल में आए और स्कूल के मालिक आशुतोष और उसके बेटे आदित्य से कंप्लेन करते हुए बोले” ये सब क्या हैं? क्या हम लोग इतनी फीस इसलिए देते हैं कि आप लोग हमारे ही बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करें ?”

पेरेंट्स की बात सुनकर आदित्य ने मैनेजमेंट की तरफ से कहा” देखिए यह सब कुछ सिर्फ एक हादसा था और इसका हमें बहुत दुख हैं। मगर इसमें मैनेजमेंट की कोई गलती नहीं है हमारे स्कूल में मौजूद सभी इक्विपमेंट और सर्विसेज हाई क्लास है।”

पेरेंट्स आदित्य के जवाब से खुश नहीं थे क्योंकि पिछले साल ही मैनेजमेंट ने फीस को डेढ़ गुना ज्यादा बढ़ा दिया था और उसके बाद भी बच्चों के साथ इस तरह के हादसे, मां-बाप कैसे बर्दाश्त कर सकते थे। पेरेंट्स ने डिसाइड किया कि वे लोग पेरेंट्स एसोसिएशन के साथ मिलकर कोर्ट में इस मामले को लेकर जाएंगे। 

जल्दी पेरेंट्स एसोसिएशन ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए, ये केस लॉयर राकेश माधवानी को, सौंप दिया। 

जिस स्कूल में यह हादसा हुआ था, वह शहर का सबसे बड़ा स्कूल था। ऐसे में इस मामले का मीडिया तक जाना और अखबारों में आना आम बात थी। 

राकेश माधवानी ने तुरंत इस केस के बारे में पूरी डिटेल इकट्ठा करी और मैनेजमेंट के खिलाफ रिपोर्ट रजिस्टर हो गई। स्कूल मैनेजमेंट को समन भेज दिया गया।

जैसे ही आशुतोष जैन को उनके ऑफिस में उनके पिऊन ने आकर एक एनवेलप दिया, तो उसे एनवेलप को पढ़ते ही आशुतोष जैन का दिमाग खराब हो गया और उन्होंने गुस्से से कहा” जो बच्चे उस दिन घायल हुए थे उनके मां-बाप ने पेरेंट्स एसोसिएशन के साथ मिलकर, कोर्ट में हमारे खिलाफ केस कर दिया है।”

अपने डैड की बात सुनकर आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा” it's okay dad, क्या ही कर लेंगे ये लोग? यह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। और वैसे भी हमारा स्कूल मुंबई का सबसे बड़ी स्कूल है। आज इन्हें जो नाटक करना है कर ले कल को इन्ही लोगो को  अपने बच्चों को यही तो पढ़ाना होगा। आप चिंता मत कीजिए दो-चार दिन का नाटक है कुछ दिन में सब सही हो जाएगा। आप परेशान मत होइए मैं बेस्ट लॉयर को हायर करूंगा।” 

इतना कहकर आदित्य ने अपनी लॉयर मानसी राणा को कॉल मिला दिया।

कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया और जल्दी ही कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई। घायल हुए बच्चों के पेरेंट्स और पेरेंट्स एसोसिएशन के लोग राकेश माधवानी के साथ कोर्ट में मौजूद थे। वहीं दूसरी तरफ, स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से आदित्य और उसके पापा आशुतोष, अपनी वकील, मानसी राणा के साथ कोर्ट में आए थे।

जज विभू अग्रवाल जैसे ही कोर्ट में आए, तो उन्हें देखकर सभी लोग अपनी अपनी जगह से खड़े हो गए। तभी, विभु अग्रवाल ने अपनी जगह बैठते हुए बाकी लोगों को बैठने का इशारा किया और केस फाइल में केस को पढ़ाते हुए कहा” केस की सुनवाई शुरू की जाए।”

जज साहेब की परमिशन के साथ राकेश माधवानी खड़े हुए और अपनी बात शुरू करते हुए बोले” 

राकेश: सर कहते हैं कि स्कूल एक ऐसी जगह हैं जहां बच्चों के भविष्य का निर्माण किया जाता हैं। पर आज शिक्षा सिर्फ एक व्यापार बन गया है इससे ज्यादा उसकी कोई अहमियत नहीं रह गई है। मां बाप अपने बाद सिर्फ स्कूल पर ही भरोसा करते हैं कि, वो लोग उनके बच्चों का पूरा ख्याल रखेंगे मगर, जब बच्चे स्कूल में पहुंचते हैं तो, वहां बच्चों के साथ खतरनाक स्टंट खेले जाते हैं।  और बच्चों की जिंदगी खतरे में डाली जाती है। उस दिन भी मैनेजमेंट की गलती की वजह से ही, उन सात आठ बच्चों को चोट आई थी। शुक्र था कि बच्चे सही समय पर पीछे हट गए और कंप्यूटर में कोई  बड़ा विस्फोट नहीं हुआ वरना शायद आज हम उन बच्चों को जिंदा भी नहीं देख पाते।”

जैसे ही राकेश ने अपनी बात कही तो अचानक ही उसे अपने बेटे अंशुल की याद आने लगी। 

अचानक से डिफेंस लॉयर मानसी खड़ी होते हुए बोली” 

मानसी: ऑब्जेक्शन मी लॉर्ड, राकेश बिना किसी सबूत के मेरे क्लाइंट पर इस तरह के आरोप नहीं लगा सकते हैं। मैनेजमेंट ने कहा ना कि वह सिर्फ एक टेक्निकल खराबी थी, इससे मैनेजमेंट का कोई लेना देना नहीं है और वैसे भी तकनीक पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। यह तो हम सब जानते हैं कि तकनीक इतनी विश्वसनीय नहीं होती है और यह कभी भी धोखा दे सकती है।”

मानसी की बात पर राकेश ने अपना पक्ष रखते हुए कहा” 

राकेश: मैं इस बात को पूरी तरह मानता हूं की तकनीक आज भी उतनी विश्वासनिय नहीं है जितने इंसान हैं। जानबूझकर गलती कर के तकनीक को गलत बताना बिल्कुल गलत है।….. जज साहेब आप की परमिशन से मैं मिस्टर आशुतोष जैन से कुछ सवाल करना चाहूंगा !”

राकेश को जज साहेब ने परमिशन दे दी और आशुतोष जैन कटघरे में आकर खड़े हो गए। 

राकेश ने आशुतोष की तरफ देखते हुए उनसे पूछा” 

राकेश: क्या यह सच है कि पिछले साल आप लोगों ने फीस को बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दिया था ?”

राकेश के तुरंत इस सवाल को पूछ लेने से आशुतोष एक बार के लिए थोड़ा सकपका गए पर फिर अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए बोले” हां। पिछले साल हमने सभी स्टैंडर्ड के बच्चों की फीस बढ़ा दी थी।”

राकेश ने फिर सवाल किया” 

राकेश: ऐसा क्यों किया क्या ऑलरेडी बच्चे बहुत अच्छी फीस नहीं दे रहे हैं ? उसके बाद भी आप उनकी फीस को डेढ़ गुना कर कर भी उन्हें एक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं दे सकते हैं ? आखिर इतना पैसा कहां इस्तेमाल हो रहा है?”

राकेश के सवाल पर आशुतोष ने थोड़ा रूड होते हुए कहा” मैं यह बताना बिल्कुल जरूरी नहीं समझता कि, मैनेजमेंट किस पैसे को कहां खर्च कर रहा है। आपकी तसल्ली के लिए बता दूं कि हम ज्यादातर सभी पैसा, इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।”

आशुतोष की बात सुनकर राकेश के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। तभी आशुतोष ने अपनी तरफ से आगे कहा” देखिए हम मानते हैं उस दिन बच्चों के साथ कोई बड़ा हादसा होते-होते टला था, पर उसने हमारी क्या गलती? यह तो किसी के साथ भी हो सकता है। शायद हमारे साथ भी हो सकता है। और हमारे साथ होता है तो हम क्या करें ? किसके पास जाए कंप्लेंट करने?....... यह सिर्फ एक टेक्निकल इशू था इससे ज्यादा कुछ नहीं इस बात को इतना बढ़ाने की जरूरत है ही नहीं। फिर भी अगर पेरेंट्स नाराज है तो, हम बच्चों को कम्पनसेट कर सकते हैं।”

राकेश जो काफी ध्यान से आशुतोष जैन की बात सुन रहा था उसे भी आशुतोष के पॉइंट सही लगे। पर तभी उसकी लास्ट बोली हुई लाइन ने, जैसे राकेश की सोच को ही बदल दिया और उसने आशुतोष से क्रॉस क्वेश्चन करते हुए कहा”

राकेश:  इसका मतलब आप मानते हैं कि आपकी तरफ से गलती हुई है इसलिए आप कंपनसेट करना चाहते हैं? और चाहते हैं कि जल्द से जल्द यह कैसे बंद हो जाए ? क्या मैं सही कह रहा हूं मिस्टर जैन?”

राकेश का ये क्रॉस क्वेश्चन सुन कर तो, जैसे आशुतोष की जबान ही लड़खड़ा गई थी। उसने नहीं सोचा था कि उसकी बोली हुई बातों का इस तरीके से राकेश मतलब निकाल लेगा।

इधर आदित्य भी अपने पापा की बोली हुई बात पर पछता रहा था। वह बिल्कुल नहीं चाहता था कि किसी भी तरीके से सामने वाले को यह लगे कि वह लोग डरे हुए हैं या फिर इस केस को जल्द से जल्द बंद करना चाहते हैं। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उनके ऊपर प्रेशर बढ़ जाएगा। 

आदित्य ने जल्दी से आंखों से अपने पापा को कुछ इशारा किया और अगले ही पल आशुतोष ने बात पलटते हुए कहा” नहीं नहीं आप मेरी बातों को गलत मतलब निकल रहे हैं मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। मैं तो बस…..”

आशुतोष आगे कुछ बोल पाता उससे पहले ही राकेश ने थोड़ी कड़क आवाज में उससे कहा” 

राकेश : अब आप जा सकते हैं मिस्टर जैन।”

अपनी इस तरह इंसल्ट होता हुआ देखकर आशुतोष गुस्से में वहां से नीचे आ गए और अपनी जगह पर आकर बैठ गए। 

राकेश जज साहेब की तरफ देखते हुए कहता है” 

राकेश: मामला साफ है मी लॉर्ड। बच्चों और पेरेंट्स से ज्यादा फीस लेकर भी स्कूल मैनेजमेंट उन्हीं की जान खतरे में डाल रहा है। अगर इस पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो, आगे जाकर और भी स्कूलों में इस तरह के हादसे होते रहेंगे। मैं कोर्ट से दरखास्त करता हूं कि हमें कुछ समय की मोहलत और इजाजत दे ताकि, मैं पुलिस के साथ मिलकर उन सभी सुरक्षा पैमानों को देख सकूं जो स्कूलों को फॉलो करने चाहिए।”

राकेश की बात सुनकर मानसी ने ऑब्जेक्ट करते हुए कहा “ 

मानसी: आय ऑब्जेक्ट मी लॉर्ड । हम किसी को भी स्कूल के मैनेजमेंट तक यू ही नहीं पहुंचने दे सकते हैं। आफ्टर ऑल , हर स्कूल के कुछ रूल्स और रेगुलेशन होते हैं। अगर इस तरीके से स्कूल में घुसकर चार्ज पड़ताल की जाएगी तो स्कूल की काफी बदनामी होगी और इससे स्कूल के गुडविल खराब हो सकती है।”

मानसी की बात पर जज साहब ने कुछ देर सोचते हुए कहा” डिफेन्स लॉयर की बात सही हैं। हम लोग स्कूलों में इस तरीके से जांच के आदेश नहीं दे सकते हैं।” 

जज साहब की बात सुनकर मानसी और उसके क्लाइंट्स के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वही राकेश और पेरेंट्स थोड़ा सा उदास हो गए। तभी, जज साहेब ने आगे कहा” पर इसका यह मतलब नहीं की स्कूल की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। कोर्ट स्कूल मैनेजमेंट को आदेश देती है कि पिछले साल से लेकर अब तक की फाइनेंशियल रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें। जिससे यह साबित हो सके की मैनेजमेंट अपनी जगह सही है।”

जैसे ही राकेश ने यह बात सुनी तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और आदित्य और आशुतोष थोड़े परेशान से हो गए। 

कोर्ट ने सब लोगों को दो दिन में अपने आदेशों का पालन करने का आर्डर दिया और साथ ही दो दिन बाद फिर से सुनवाई शुरू करने की बात कही। 

जल्दी ही कोर्ट की सुनवाई खत्म हो गई और सब लोग अपने घर चले गए। 

इसी तरह 2 दिन बीत गए। मगर राकेश को कुछ भी पक्का सबूत नहीं मिला था। अपने ऑफिस में बैठा राकेश परेशान सा कुछ सोच ही रहा था कि तभी, उसके फोन पर एक कॉल आया। अनजान नंबर से कॉल आता हुआ देखकर राकेश को एक बार के लिए शक हुआ कि कहीं, स्कूल मैनेजमेंट में से तो कोई उसे कॉल नहीं कर रहा है? कुछ सोच कर उसने फोन उठाया और ऑटो रिकॉर्डिंग पर लगाते हुए कहा” हेलो कौन बात कर रहा है ?”

राकेश के इतना बोलते ही सामने से करीब 45 साल की उम्र के एक आदमी की आवाज आई” मेरा नाम रितेश वाडियाल है और मैं उसी स्कूल का प्रिंसिपल हूं जिसके खिलाफ अभी कोर्ट में केस चल रहा है। मैं आपको कुछ बहुत जरूरी बात बताना चाहता हूं। “

रितेश वाडियाल की बात सुनकर राकेश थोड़ा सा हैरान हो गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि स्कूल का प्रिंसिपल उसकी मदद क्यों करना चाहता है?

उसने कुछ सोचते हुए कहा” बताइए! क्या बताना चाहते हैं आप मुझे?”

रितेश वाडियाल ने कहा” असल में मैं इस स्कूल का पिछले 15 सालों से प्रिंसिपल हूं। स्कूल का हर एक बच्चा मेरे लिए मेरे बच्चों की तरह है। स्कूल में सब बच्चे मुझे बहुत मानते हैं और बहुत प्यार भी करते हैं। पेरेंट्स को भी पूरा भरोसा है कि मेरे प्रिंसिपल रहते यह स्कूल और यहां के बच्चे सुरक्षित हैं। 

पर इसी का फायदा, मैनेजमेंट में आशुतोष और उसके बेटे आदित्य ने उठाया है। शुरू में मुझे लग रहा था कि मैनेजमेंट स्कूल के भलाई के लिए ही सब कुछ कर रहा है इसलिए मैं हमेशा उनके साथ खड़ा रहता था। पर तभी एक दिन मुझे कुछ ऐसा पता चला जिसके बाद मेरे समझ में आ गया कि यह लोग मिलकर बहुत बड़ा स्कैम कर रहे हैं। मैं मैनेजमेंट के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार हूं। मैं किसी भी बच्चे के साथ अब अन्याय नहीं होने दूंगा।”

प्रिंसिपल की बात सुनकर राकेश एकदम हैरान रह गया। इसका मतलब उसका शक सही था स्कूल मैनेजमेंट कोई बहुत बड़ा स्कैम कर रहा है। पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि, सिर्फ सुनवाई से एक दिन पहले रात को प्रिंसिपल उसे कॉल क्यों कर रहा था ? क्या सच में बस का साथ देने के लिए तैयार था या फिर यह कोई बहुत बड़ी साजिश थी? जानने के लिए पढ़ते रहिए 

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