आखिरकार वो खीजते बेड से उठ गयी और पिहू को ब्लैंकेट ओढ़ा कर कमरे से बाहर आ गयी और परेशान सी हाथ बांध इधर से उधर टहलने लगी।
तभी उसकी नजर राजश्री जी के कमरे की ओर चली गयी - "अभी आप वहां पर होती तो आपके पास आकर मैं अपनी हर परेशानी कह देती मां और यकीनन आप कोई हल भी बता देते, मन में मानो आज भारी तुफान मचा हो जो शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा है, हजारो बाते भगदड़ मचाऐ हुए है पर कुछ भी समझ नहीं आ रहा है क्या करूं क्या नहींं, सब सुलझने की जगह और उलझा लग रहा है मां, ऐसा महसूस हो रहा है कि सब छूट रहा हाथो से, लाख कोशिशों के बावजूद भी कुछ नहीं हो पा रहा है….एक पल का भी चैन नहीं। काश आप होती तो गोद में सर रखकर लेट जाती आप प्यार से सर सहलाते मेरा, पल भर के लिए ये सब भूलकर थोड़ा सा सुकून तो पाती पर नहीं आप (नम आखों से अपनी मां को याद करते हुए) नहीं हो यहां पर इस कमरे में सिवाये आपकी यादों के कुछ नहीं, मां आपका वो आंचल नहीं है जिसका साया हर मुश्किल से बचा लेता, मां आ जाओ ना मेरे पास (भरे गले से) आपकी अयू को आपकी जरूरत है, मां बहुत जरूरत है आपके प्यार की आपके साथ की!"
तभी प्रकाश जी पीछे से अयाना के कंधे पर हाथ रखते बोले - "मां नहीं पर मामा तो है ना!"
ये सुनते ही अयाना आखों के किन्नारे साफ कर उनकी ओर फट से मुड़ी - "मामा जी आप?"
प्रकाश जी हल्का सा मुस्कुराते हुए - "कितने ही आसूं छुपाने की कोशिश कर लो बेटा पता चल जाता है मुझे, और भूलो मत मामा हूं जिसमें मां दो बार आता है।"
ये सुनते ही अयाना मासूमियत से बोली - "मामा जी!"
तभी प्रकाश जी अपनी बाहें फैलाते है और वो "आप भी ना मामा जी" कहते उनके सीने से लग जाती है दोनों मामा भांजी एक दूजे से कुछ देर खामोशी से गले लगे रहे, एक दूजे से कुछ भी कहने की अभी दोनों में हिम्मत नहीं हो रही थी और कहते भी क्या सबकुछ तो उनके सामने ही था।
थोड़ी देर बाद अयाना प्रकाश जी से अलग हुई और बोली - "आप सोये नहीं मामा जी?"
प्रकाश जी - "सोई तो तुम भी नहीं, क्यों यहां बाहर टहल रही हो वो भी आधी रात को, नींद नहीं आ रही थी क्या?"
अयाना भौहें उचकाते हुए - "और अगर यही हम आपसे पूछे तो?"
प्रकाश जी - "मैं तो सो गया था वो गला सूखा तो पानी पीने के लिए उठा, देखा तो कमरे में पानी नहीं था, तुम्हारी मामी आज गुस्सें में पानी रखना जो भूल गयी थी (हंसते हुए) तो बस रसोई में पानी पीने जा रहा था, बाहर आया तो तुम पर नजर पड़ी तो यहां चला आया!"
अयाना - "ओह, सॉरी मामा जी, जो सब हुआ उस वजह से हम ध्यान ही नहीं दे पाए, अभी आपके लिए पीने को पानी लेकर आते है और साथ में जग में भी पानी भरकर ला देते है, जब आपको प्यास लगे तो उठकर फिर से किचन में ना जाना पड़े….अभी आए" कहकर आयना पानी लेने चली गयी।
अयाना थोड़ी देर में ही पानी लेकर वापस वहां आ गयी और प्रकाश जी की ओर पानी से भरा गिलास बढ़ाते हुए बोली - "लीजिए मामा जी (हल्का सा मुस्कुराते हुए) पीजिए ठंडा पानी!"
प्रकाश जी हां में सिर हिलाते हुए गिलास पकड़ लेते है - "तुमनें पिया?"
अयाना - "हां पीकर ही आए है, आपको तो पता है हम कितना पानी पीते है।"
"हम्म" कहते प्रकाश जी ने भी पानी पी लिया और अयाना उनसे गिलास लेकर वहीं टेबल पर रख देती है और हाथ में पकड़े पानी से भरे जग को देखते बोली - "ये मैं कमरे में रख आती हूं।"
अयाना जाने लगी कि तभी प्रकाश जी “रूको” कहकर अयाना के हाथ से जग लेते है और वहीं टेबल पर रखते हुए बोले - "जाते वक्त इसे मैं ले जाऊंगा।"
अयाना उनकी ओर देखते - "सोना नहीं है क्या?"
प्रकाश जी - "मैं क्यों आया बाहर ये तो मैने बता दिया पर मेरा खरगोश क्यों बाहर था यह उसने अभी तक नहीं बताया है?"
ये सुनते ही अयाना अपनी नजरें झुका लेती है तभी अयाना का चेहरा अपने हाथों में भरते हुऐ प्रकाश जी बोले - "परेशान थी ना और उस वजह से नींद नहीं आ रही थी ना मेरे खरगोश को!"
अयाना उनकी ओर नम आखों से देखते हां में सिर हिला देती है - "सोने की कोशिश की पर जैसे ही आखं लगी हड़बड़ा कर उठ गयी, मेरे दिमाग में वहीं सब चल रहा है मामा जी।"
प्रकाश जी - "समझता हूं, एक बार ना मेरा पेपर था, मेरी तैयारी भी थी पर उस दिन मुझे बेटा बहुत डर लग रहा था, यहां तक कि सब कुछ रेडी होते हुए भी मैने एग्जाम देने से मना कर दिया, सब डांट रहे थे मुझे बावला हो गया है, पढ़ा नहीं होगा, साल बर्बाद होगा और मैं जाकर कमरें में एक कोने में बैठ गया पर पता है बेटा फिर क्या हुआ?"
अयाना - "क्या हुआ?"
प्रकाश जी राजश्री जी को याद करते - "जीजी मेरे पास आई और बोली….मन के जीते जीत है और मन के हारे हार, अब तुम कहोगी कि ये तो मां का फेवरेट डॉयलॉग है (हंसते हुए) पर ये सच है बेटा उनकी कही ये लाइन मैने उस दिन मन में बैठा ली जैसे पत्थर की लकीर, जीजी ने जो समझाया अच्छे से समझा। और फिर बिना डरे पेपर भी अच्छे से दिया मैनें और बहुत अच्छे नंबर से पास भी हुआ, चाहे कोई परीक्षा हो कोई परेशानी हो जब हमारा मन मजबूत होता है ना तो हम हर परीक्षा को पास कर सकते है हर परेशानी से लड़ सकते है उसका हल मिल जाता है, पर जब पहले ही मन से हार मान ली हमनें तो हमारी हार तो निश्चित ही है ना!"
"सोच लिया हमनें कि कुछ नहीं होगा तो सच में हमसे कुछ भी नहीं होगा, मन हार गया हमारा, तो फिर जीत कैसे होगी, हमें पता ही नहीं अंजाम का पहले ही हम तो डर कर पीछे हट गये बेटा, ये तो ठीक नहीं है ना, तो मां और मामा की ये बात तुम हमेशा याद रखना बिना सामना किए पहले मत हारना, हम ठान ले तो बेटा कुछ भी हासिल कर सकते है, परेशानियां तो आती जाती ही रहती है खुद को चट्टान की भांति अंदर से मजबूत बनाओ जो आपको कोई तोड़ न सके।"
"और मामी की बात को दिल पर मत लेना तुम अच्छे से जानती हो उनको, जीजी की कही इस बात को मैने आज फिर मान ली, हां परेशान हुआ पर हारा नहीं बेटा, कभी नहीं हारा और हार भी कैसे सकता हूं जब मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा है, है ना….तो पहले ही अंजाम का सोचकर परेशान नहीं होना है, जो अंजाम हम सोच रहे है वो नहीं भी तो हो सकता है बुरे की जगह अच्छा भी हो सकता है, हर ढलती शाम के बाद सवेरा होता है, हर नयी सुबह उम्मीद की एक नयी किरण लाती है, और ये बात मेरा खरगोश जानता है, है ना!"
अयाना उसी पल प्रकाश जी के सीने से लग गयी - "मामा जी तुसी ग्रेट हो!"
प्रकाश जी हैरान होते - "अब मैने क्या किया?"
अयाना प्रकाश जी से अलग हुई - "तभी मैं सोचूं आज मेरे मामा श्री ने मुझे अभी तक कोई सीख क्यों नहीं दी, अब समझ आया कि वो मेरे लिए अच्छी सी सीख रेडी कर रहे थे जो वो अपने खरगोश को अच्छे से समझा सके और तभी ऊपर की ओर देखते खुश होते बोली - "थैंक्यू मां!"
प्रकाश जी - "मां को थैंक्यू क्यों?"
अयाना - "हां तो आज वाली सीख आपको उन्होनें ही तो दी थी पर ये थैंक्यू उस सीख के लिऐ नहीं था।"
प्रकाश जी - "तो ?"
अयाना मुस्कुराते हुए - “ये थैंक्यू मां को इसलिए क्योकि उनकी वजह से ही तो मुझे ये डबल मां मिली (कंधे उचकाते प्रकाश जी की ओर इशारा करते) मा मा!” ये सुनकर प्रकाश जी हंस पड़े और अयाना भी हंस पड़ी।
प्रकाश जी अयाना के सिर पर हाथ रखते हुए - "हंसती रहा करो अच्छी लगती हो।"
अयाना मुस्कुराते हुए - "मुस्कुराने से सब कितना आसान और सही लगता है ना मामा जी!"
प्रकाश जी - "हम्म....क्योकि रोना परेशान होना तो प्रोब्लम का सोल्यूशन नहीं होता है ना बेटा, इसलिए मुस्कुरा कर सोल्व करते है ना।"
अयाना प्रकाश जी को सेल्यूट करते हुए - "हम्म यू आर राइट मामा जी!"
प्रकाश जी - "जाओ अब और सो जाओ कल क्या करना है ये सुबह का सुबह देखेंगे ठीक है!"
अयाना पानी का जग टेबल से लेकर उनकी ओर बढ़ाते हुए - "आप भी अब आराम कीजिए, गुड नाईट!"
प्रकाश जी भी "गुड नाईट और सो जाना" बोल कर अपने कमरे की ओर बढ़ गये अयाना उनको जाते देखते रही और फिर वो भी अपने कमरें में चली जाती है।
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(अगली सुबह)
सब आंगन में ही बैठे थे अयाना सबके लिए चाय लेकर आती है - "लीजिए.....सब गर्मा गर्म चाय पीजिए!"
पिहू - "आप भी पिओ ना अयू दी!"
अयाना - "वो तो मैं तुम्हारे हाथ की पीऊंगी अगर पिलाओ तो!"
पिहू - "अभी लेकर आती हूं दी, एंड सॉरी हां वो कल देर से सोई तो सुबह उठ नहीं पाई वरना मैं आपको कब का चाय पिला देती।"
अयाना पिहू के गाल पर हाथ रख मुस्कुराते हुए - "इट्स ओके, पहले तुम अपनी चाय पीकर जाओ और फिर मेरे लिए लेकर आना ओके!"
पिहू मुस्कुराते हुए - "जैसा आप कहे!"
तभी अयाना सविता जी की ओर देखते बोली - "कैसी चाय बनी है मामी, मैने आज की तारीक में ही बनाई है, पीकर बताइए ना....कैसी है कोई गड़बड़ तो नहीं हो गयी ना!"
प्रकाश जी चाय का घूंट भर गंदा सा मुंह बनाते - "ओह हो ये क्या चाय बनाई है बेटा, इसमे तो ना मीठा है और ना ही चाय...चाय है या गर्म पानी!"
अयाना मासूमियत से - "सच में.…पर ये कैसे हो गया मामा जी?"
पिहू भी घूंट भर - "सच में अयू दी बहुत खराब चाय बनी है, बे स्वाद, अब तो आपको मम्मी की डांट ही पड़ेगी दी (बेचारगी भरी नजर से अयाना को देखते हुए) पक्का है ये, रेडी हो जाओ!"
ये सुनते ही सविता जी तीनों की ओर देखती है और घूरते हुए बोली - "हो गया तुम सबका, एक काम करो तुम (अयाना की ओर देखते) रसोई में वापस जाकर, इन दोनों की चाय में नमक डाल कर इनको वापस ला दो और देखना तब भी ये दोनों तुम्हारी चाय की तारीफ ही करेगें चाहे वो कड़वी ही हो, वो तब भी शहद सी मिठ्ठी लगेगी इन दोनों को, बात कर रहे है खराब चाय बनी है। एक चाय ही तो है जो ये सबसे अच्छी बनाती है, फालतू का मेरे सामने नाटक करने की जरूरत नहीं है जैसे मैं कुछ नही जानती हूं हमेशा इसका बचाव करने वाले चले है इसके खिलाफ बोलने रहने दो (प्रकाश जी और पिहू से) आप दोनों से ना होगा जी!"
ये सुनते ही प्रकाश जी और पिहू दोनों इधर उधर देखने लगे, अयाना भी मंद-मंद हंस रही थी तभी सविता जी फिर बोली - "जोर से हंस लो तुम और देखो कैसे नजरें चुरा रहे है ये दोनों?"
तभी अयाना - "पर मामी जी ये सच भी तो हो सकता है ना, आज खराब बनी हो चाय....और देखिए आपने हाथ में पकड़ा है चाय का कप, पी तो नहीं!"
प्रकाश जी - "यकीन नहीं तो खुद चेक कर लो।"
पिहू - "और क्या अभी के अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा आईमीन चाय का पता लग जाएगा"
सविता जी चाय के कप की ओर देखते - "देखकर बता सकती हूं मैं इस चाय में कोई कमी नहीं, यह रोज जैसी ही है।"
तभी अयाना उनके पास जाकर जमीन पर बैठते हुए बोली - "पीकर भी बता दीजिए ना!"
अयाना समेत.…प्रकाश जी पिहू भी एकटक सविता जी की ओर देखने लगे सविता जी चाय का घूंट भरती है और तीनों की ओर देखते बोली - "मीठा भी सही है, चायपत्ती भी ठीक है और स्वाद भी वैसा ही है।"
ये सुनते ही प्रकाश जी चाय पीते - "हां एकदम मजेदार चाय घूंट-घूंट पर स्वाद ही स्वाद!"
पिहू भी चाय पीते - "यस.....बेस्ट चाय है जिसमें कोई कमी नहीं है।"
सविता जी अयाना से - "देखा.....मार गए ना पलटी?"
"हम्म"अयाना ने कहा और सविता जी के हाथ पर हाथ रखते हुए बोली - "एम सॉरी मामी, हमें माफ कर दीजिए और चिंता मत कीजिए हम सब मिलकर कोई न कोई हल ढूंढ ही लेगें और इस सब से बाहर जल्द निकल जाएगें।"
सविता जी - "मैं क्यों चिंता करने लगी, तुम और तेरे मामा हो ना…आप दोनों के रहते मुझे क्या जरूरत चिंता करने की?"
पिहू - "राइट मम्मी और गाईज सविता मिश्रा जी चिंता करने वालो में नहीं चिंता देने वालों में से है, है ना मम्मी?"
सविता जी चाय का कप छोड़ - "रूक तुझे अभी बताती हूं।"
तभी अयाना सविता जी को रोक लेती है और पिहू को आंख दिखाते हुए - "पिहू?"
पिहू अपने कान पकड़ सविता जी की ओर आते - "सॉरी मम्मी मजाक कर रही थी।"
सविता जी हाथ दिखाते हुए - “पिटोगी तुम किसी दिन…”
पिहू अयाना के पीछे छिपते हुए - "अयू दी के रहते कभी नहीं!"
अयाना - "सॉरी मामी!"
सविता जी - "चढ़ा लो सर पर!"
तभी प्रकाश जी उठकर उनकी ओर आते बोले - "बेटियां होती ही सर पर चढ़ाने को है सविता जी, और तभी मुंह से फूंकते फिर बोले - “बेटियां क्या यहां तो मेरी बीवी भी मेरे सर पर चढ़ी हुई है, इतना कि सीधा तांडव करती है....उफ्फ!”
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