अर्जुन की बात सुनकर ध्रुवी कुछ पल तक नफरत और गुस्से के मिले-जुले भाव से एकटक अर्जुन को देखती रही। फिर, लाचारी भरी खामोशी के बाद, गुस्से से उसने अर्जुन के हाथ से बैग लेकर अपने हाथ में थाम लिया। यहीं से शुरुआत होनी थी, ध्रुवी की जिंदगी के एक नए सफ़र की।
(करीब एक घंटे बाद)
ध्रुवी को अर्जुन के साथ आए हुए लगभग एक घंटा बीत चुका था। उसे रहने के लिए एक खास कमरा बताया गया था और वह पिछले एक घंटे से खामोशी से अपने कमरे में बैठी, अपने ही खयालों और सोच की उधेड़बुन में लगी हुई थी। वह सोच-सोचकर मुहाल होती जा रही थी कि कुछ ही अरसे में उसकी ज़िन्दगी किस तरह से पूरी तरह बदल गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ यह सब क्यों हो रहा है और कैसे उसकी ज़िन्दगी दुबारा सामान्य हो पाएगी। कुछ ही वक़्त में उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह बदल चुकी थी; उसकी पहचान तक छीनी जा रही थी। उसके अंदर इतनी बातें और कशमकश चल रही थीं कि उठते हुए जज़्बात उस पर हावी हो रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किससे अपने मन में चल रहे तूफ़ान को साझा करे और किस तरह अपने मन में उठ रहे जज़्बातों के तूफ़ान को रोके।
इस वक़्त ध्रुवी खुद को बहुत असहाय और बेबस महसूस कर रही थी। सब कुछ जानते हुए भी उसे अनजान बनकर बैठना पड़ रहा था। वह जानती थी कि सब कुछ गलत हो रहा है, फिर भी वह कुछ नहीं कर पा रही थी, सिवाय तमाशा देखने और अर्जुन के हाथों की कठपुतली बनने के। मगर ध्रुवी इतना भी जानती थी कि चाहे जो हो जाए, वह अपने कदम पीछे नहीं ले सकती। उसे यह करना ही था, हर हाल में। क्योंकि यह सिर्फ़ उसकी ज़िन्दगी का सवाल नहीं था। ध्रुवी अपने ही ख्यालों में लगी हुई थी कि तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई। ध्रुवी ने अंदर आने की इजाज़त दी तो हाथ में नाश्ते की ट्रे लिए हुए एक नौकरानी अंदर आई।
नौकरानी (ध्रुवी के सामने नाश्ते की ट्रे रखते हुए): “बाईसा, यह नाश्ता आपके लिए हुकुम साहब ने भेजा है। उन्होंने कहा है कि पहले कुछ खा लीजिए, फिर थोड़ा आराम करके आपको अपना काम करना है।”
ध्रुवी (बेरुखी से): “रख दो यहीं। जब मुझे भूख लगेगी मैं खा लूंगी।”
नौकरानी (नाश्ते की ट्रे टेबल पर रखते हुए): “ठीक है बाईसा, जैसे आपकी मर्ज़ी।”
इसके बाद नौकरानी ध्रुवी के कमरे से चली गई। न जाने कितनी देर तक ध्रुवी वैसे ही बैठी रही, शून्य को निहारते हुए, अपनी ही सोच में लगी रही। लगभग दो घंटे और बीत चुके थे। अब दोपहर के खाने का वक़्त हो चुका था। कुछ देर बाद वही नौकरानी वापस से खाने की ट्रे लेकर ध्रुवी के कमरे में आई, जिसे ध्रुवी ने रखने को कहकर वापस जाने को कहा।
नौकरानी (नाश्ते की ट्रे ज्यों की त्यों टेबल पर रखते हुए): “बाईसा, आपने अभी तक नाश्ता नहीं किया?”
ध्रुवी (अनमने ढंग से): “मैं कर लूंगी जब मेरा मन होगा।”
नौकरानी: “लेकिन बाई साहब, मैं तो आपके लिए खाना लेकर आई थी, मगर अभी तक तो आपने नाश्ता ही नहीं किया?”
ध्रुवी (थोड़ा चिढ़ कर): “मैंने कहा ना, जब मुझे भूख लगेगी तो मैं कर लूंगी। तुम जाओ यहां से।”
नौकरानी (अपना सर हां में हिलाते हुए): “ठीक है बाईसा।”
ध्रुवी (जाती हुई नौकरानी को टोक कर): “और सुनो?”
नौकरानी (ध्रुवी की ओर पीछे मुड़कर): “जी बाई साहब?”
ध्रुवी (बिना किसी भाव के): “कुछ वक़्त मुझे कोई भी डिस्टर्ब ना करे। मैं कुछ वक़्त अकेले रहना चाहती हूं।”
नौकरानी (अपना सर हां में हिलाते हुए): “ठीक है बाई साहब, जैसा आपका हुकुम।”
इतना कहकर वह नौकरानी ध्रुवी के कमरे से बाहर चली गई। जैसे ही वह कुछ कदम दूर आई, अर्जुन अपनी पैंट की पॉकेट में हाथ दिए हुए, उस नौकरानी के पास आ गया। नौकरानी ने अर्जुन को सामने देखकर अदब से अपना सर झुका लिया।
अर्जुन (ध्रुवी के कमरे की ओर इशारा करते हुए): “कुछ खाया उन्होंने?”
नौकरानी (अपना सर ना में हिलाते हुए): “नहीं हुकुम साहब, बाईसा ने कुछ नहीं खाया।”
अर्जुन (बिना किसी भाव के): “लेकिन क्यों?”
नौकरानी (अपना सर झुकाए हुए ही): “मालूम नहीं हुकुम साहब, मगर उन्होंने मुझसे सिर्फ इतना ही कहा कि जब उनका मन होगा तो वह खा लेंगी। (एक पल रुक कर) और उनका सुबह का नाश्ता भी यूँ ही टेबल पर वैसा का वैसा ही रखा है और अब खाने की प्लेट भी उन्होंने वहीं रखकर जाने के लिए कह दिया और कहा है कि अब कोई भी उन्हें डिस्टर्ब ना करे, वह कुछ देर अकेले रहना चाहती हैं।”
अर्जुन (गंभीर भाव से): “ठीक है, आप जाएं।”
नौकरानी (अपना सर हां में हिलाते हुए): “जी हुकुम साहब।”
इतना कहकर नौकरानी वहाँ से आगे बढ़ गई और अर्जुन की नज़रें ध्रुवी के कमरे के दरवाज़े पर ठहर गईं। कुछ देर अपनी जगह सोचते रहने के बाद, आखिर में अर्जुन ध्रुवी के कमरे की ओर बढ़ गया। उसने कमरे के दरवाज़े पर जाकर नॉक किया तो एक बार में ध्रुवी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। अर्जुन ने दोबारा नॉक किया तो इस बार ध्रुवी ने झल्ला कर आवाज़ दी और उसकी आवाज़ सुनकर आखिर में अर्जुन कमरे का दरवाज़ा खोलते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ।
ध्रुवी (दरवाज़े पर दस्तक सुनकर झल्ला कर): “मैंने कहा ना कि मुझे अकेले रहना है। जाओ यहां से, नहीं चाहिए मुझे कुछ।”
अर्जुन (गंभीर भाव से): “हम हैं, अर्जुन।”
अर्जुन ने ध्रुवी के कमरे के बाहर से ही आवाज़ देते हुए ध्रुवी को वहाँ खुद के होने की बात बताई। लेकिन दूसरी तरफ़ जब ध्रुवी ने अर्जुन की बात सुनी तो उसने कोई रेिस्पांस नहीं दिया और ना ही कोई जवाब दिया। अर्जुन ने इस बात को समझते हुए एक गहरी साँस ली और कमरे का दरवाज़ा खोलकर वह कमरे में दाखिल हुआ। तो देखा कि ध्रुवी अपने पैर सिकोड़े एक तरफ़ सोफ़े पर बैठी हुई थी और उसकी नज़रें बाहर खिड़की के बाहर लगातार एकटक शून्य को निहार रही थीं। दरवाज़ा खोलने पर अर्जुन के अंदर दाखिल होने के बाद भी ध्रुवी ने थोड़ी भी जहमत नहीं की कि एक बार वह अपनी नज़रें हटाकर अर्जुन की तरफ़ देखें। अर्जुन खामोश था, लेकिन वह ध्रुवी की नाराज़गी और गुस्से को समझ पा रहा था। ध्रुवी की तरफ़ से किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया ना मिलने पर वह खुद ही उसकी ओर बढ़ गया।
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