कहते हैं, सच्चा प्यार वह है, जो सिर्फ़ पास रहकर ही नहीं, बल्कि दूर रहकर भी अपने एहसास को ज़िंदा रखता है।

कॉलेज का ये सफ़र संकेत और श्रेया के लिए सिर्फ़ पढ़ाई, प्रोजेक्ट्स और इंटर्नशिप्स का नहीं था। ये सफ़र था एक-दूसरे को समझने, स्वीकार करने और रिश्ते को वक़्त की कसौटी पर परखने का।

इस सफ़र में उनके रिश्ते ने कई मोड़ देखे। शुरुआती दिनों की वह मासूमियत, पहली बहस की कड़वाहट और फिर धीरे-धीरे हर बात को समझने और संभालने की कोशिश।

पहला साल वह था, जब सब कुछ जादुई लगता था। हर मुलाकात एक नई कहानी लेकर आती थी।

लाइब्रेरी में घंटों साथ बैठना, कैंटीन में कॉफी शेयर करना और गार्डन में उन बेवजह की हंसी में खो जाना।

 

संकेत:

"श्रेया, ये पढ़ाई का प्रेशर तो तुम्हें रोबोट बना देगा। कभी तो मेरे साथ कैंपस की मस्ती एन्जॉय करो!"

 

श्रेया:

"तुम्हारी मस्ती को झेलने के लिए मुझे एक पूरा वीकेंड चाहिए। लेकिन जब तक ये प्रोजेक्ट ख़त्म नहीं हो जाता, मैं कहीं नहीं जा सकती।"

 

 

संकेत समझता था। वह कभी उसे मजबूर नहीं करता था। लेकिन उसकी बातें, उसकी मौजूदगी, हमेशा श्रेया के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काफ़ी थीं।

 

कॉलेज के दूसरे साल ने उनके रिश्ते को एक नया मोड़ दिया। 

 

श्रेया:

"संकेत, मुझे कल ऑफिशियली मेल आ गया। मुझे एक MNC में इंटर्नशिप मिल गई है!"

संकेत:

"अरे वाह! श्रेया, कन्ग्रैट्स !"

 

 

संकेत की मुस्कान सच्ची थी। वह जानता था कि श्रेया ने इस इंटर्नशिप के लिए कितनी मेहनत की है। ये उसकी ज़िन्दगी का एक बड़ा सपना था।

 

संकेत:

"चलो, अब तो पार्टी बनती है। तुम्हारी ट्रीट पेंडिंग है, मिस इंटर्नशिप क्वीन!"

 

श्रेया:

"जरूर, लेकिन... संकेत, ये इंटर्नशिप थोड़ी डिमांडिंग होगी। मुझे वीकेंड्स पर भी काम करना पड़ेगा। टाइम मैनेज करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है।"

 

 

श्रेया ने ये बात हल्के से कही, लेकिन संकेत के चेहरे पर हल्की चिंता की लहर दौड़ गई। उसने कुछ पल सोचा, फिर अपनी टोन को कैज़ुअल रखते हुए बोला—

 

संकेत:

"तो मतलब, अब तुम काम के चक्कर में मुझसे नहीं मिलोगी?"

 

श्रेया:

"संकेत, ऐसा मत कहो। ये इंटर्नशिप मेरे करियर के लिए बहुत ज़रूरी है। मुझे ख़ुद को साबित करना है।"

 

संकेत:

"पता है, श्रेया। मैं तुम्हारे पैशन को समझता हूँ। लेकिन अगर तुम्हारा पूरा वक़्त इस इंटर्नशिप में चला गया, तो हमारा टाइम...?"

 

 

संकेत की आवाज़ में एक नर्मी थी। वह जानता था कि श्रेया की इस सफलता में उसकी मेहनत का कितना बड़ा हाथ है। लेकिन दिल की बातें इतनी आसानी से समझाई नहीं जा सकतीं।

 

श्रेया:

"संकेत, मैं जानती हूँ कि ये आसान नहीं होगा। लेकिन मैं कोशिश करूंगी कि हम दोनों के लिए वक़्त निकाल सकूं। ये इंटर्नशिप सिर्फ़ कुछ महीने की है। उसके बाद सब नॉर्मल हो जाएगा।"

 

संकेत:

"कुछ महीने? यानी अब मुझे भी तुमसे 'अपॉइंटमेंट' लेना पड़ेगा?"

 

श्रेया:

"ओह प्लीज! तुम हमेशा मेरी प्रायोरिटी हो। बस, थोड़ी एडजस्टमेंट करनी पड़ेगी।"

 

 

श्रेया के लहजे में प्यार था। वह जानती थी कि संकेत के साथ बिताए हर पल की क़ीमत क्या है। लेकिन साथ ही, वह अपने सपनों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती थी।

 

संकेत:

"मैं जानता हूँ, श्रेया। तुम्हारे सपने सिर्फ़ तुम्हारे नहीं हैं, वह तुम्हारे पापा के भी हैं। मैं कभी नहीं चाहता कि तुम अपने सपनों से समझौता करो। बस, इतना कह रहा हूँ कि कभी-कभी मुझे भी मिस कर लिया करो।"

 

श्रेया:

"संकेत, तुम मुझे हर पल याद हो और यही यादें मुझे हर मुश्किल वक़्त में स्ट्रॉन्ग बनाती हैं। लेकिन मैं वादा करती हूँ, हम वक़्त निकाल लेंगे। ये वक़्त भी गुजर जाएगा।"

 

 

इस बातचीत में छुपे थे दो दिलों के अनकहे वादे।

श्रेया का प्यार उसकी जिम्मेदारियों से कम नहीं था और संकेत का प्यार उसकी समझ से कम नहीं था।

प्यार सिर्फ़ बड़े-बड़े वादों में नहीं, बल्कि इन छोटे-छोटे समझौतों में भी होता है।

संकेत ने श्रेया की जिम्मेदारियों को समझा। उसने महसूस किया कि प्यार में हर बार अपनी इच्छाओं को ऊपर रखना ज़रूरी नहीं।

वहीं, श्रेया ने भी अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश की कि वह संकेत के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त बिता सके।

 

 

 

संकेत:

"हैलो? तुम अभी तक जाग रही हो?"

 

श्रेया:

"सॉरी, मैं बस तुम्हारी आवाज़ सुनना चाहती थी। आज काम इतना ज़्यादा था कि दिन में बात ही नहीं कर पाई।"

 

संकेत:

"कोई बात नहीं। तुम्हारी आवाज़ सुनकर मेरी नींद और अच्छी हो जाएगी।"

 

उनकी रात की ये छोटी-छोटी बातें, उनके रिश्ते को दिनभर की दूरियों के बावजूद करीब बनाए रखती थीं।

संकेत भी श्रेया के साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूँढ ही लेता था! जैसे श्रेया को सरप्राइज़ देने के ऑफिस के नीचे कॉफी शॉप पर पहुँच जाना!

 

 

श्रेया:

"संकेत? तुम यहाँ?"

 

संकेत:

"तुम्हारे ऑफिस के बाहर से गुजर रहा था, तो सोचा तुम्हारी फेवरेट कॉफी लेकर आता हूँ। वैसे भी, अब मैं अपने लिए टाइम 'रिज़र्व' कर ही सकता हूँ, है ना?"

 

श्रेया:

"तुम पागल हो। लेकिन यही तो तुम्हारी सबसे अच्छी बात है।"

 

संकेत:

"कल का दिन फ्री है न? एक छोटा-सा प्लान बनाया है, लेकिन अगर तुम बिजी हो, तो कोई बात नहीं।"

 

श्रेया:

"संकेत, मुझे सच में बहुत अफ़सोस है। एक क्लाइंट मीटिंग है। अगले हफ्ते पक्का।"

 

 

ये छोटे-छोटे पल, जब वह एक-दूसरे को मिस करते थे, उनके रिश्ते की असली परीक्षा थी।

 

लेकिन श्रेया को भी ये एहसास था कि संकेत कितना समझदार और सपोर्टिव है। इसलिए वह अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश करती थी कि उसे खुश रख सके।

 

 

श्रेया:

"संकेत, मैं फ्री हो गई हूँ। अभी आओ न कैंपस गार्डन में। थोड़ी देर बातें करेंगे।"

 

संकेत:

"क्या बात है! लगता है आज मेरी मेहनत रंग लाई। बस, 15 मिनट में पहुँच रहा हूँ और हाँ मेरे साथ मेरा बेस्ट फ्रेंड राज भी है।"

 

 

कैंपस गार्डन। शाम का वक्त, हल्की ठंडी हवा चल रही है। आसमान नारंगी और गुलाबी रंगों से रंगा हुआ है। गार्डन में कुछ स्टूडेंट्स टहल रहे हैं, लेकिन एक कोने में गुलमोहर के पेड़ के नीचे श्रेया खड़ी है, अपने फ़ोन को हाथ में लिए। वह बेसब्री से संकेत का इंतज़ार कर रही है और तभी...

 

संकेत:

"ओए श्रेया! इधर देखो, हम आ गए। तो ये है राज... मेरा बचपन का दोस्त, मेरा बेस्ट फ्रेंड और राज, ये है श्रेया। मेरी लाइफ की सबसे ख़ास इंसान।"

 

राज:

"हाय, श्रेया। तुम्हारे बारे में बहुत सुना है। फाइनली, आज मुलाकात हो ही गई।"

 

श्रेया:

"हाय, राज। संकेत ने भी तुम्हारे बारे में ख़ूब बातें की हैं। अच्छा लगा तुमसे मिलकर।"

 

पहली नज़र में, राज के लिए श्रेया बस एक और दोस्त थी। लेकिन जैसे ही उसकी नजरें श्रेया के चेहरे पर टिकीं, उसे कुछ अलग महसूस हुआ।

श्रेया की मुस्कान में एक सादगी थी, लेकिन उसकी आंखों में एक गहराई। एक ऐसा आत्मविश्वास, जो बिना कुछ कहे भी अपने आसपास का ध्यान खींच ले।

राज का मन, जो अक्सर रंगों और रेखाओं की दुनिया में खोया रहता था, अचानक इस मुलाकात में पूरी तरह मौजूद था।

बातें करते हुए तीनों गुलमोहर के पेड़ के नीचे बैठ गए।

 

संकेत:

"वैसे, श्रेया, राज सिर्फ़ एक आर्टिस्ट नहीं है। ये फिलॉसॉफर भी है। हर चीज़ में मतलब ढूँढता है। तो अगर ये तुमसे कुछ ज़्यादा सवाल पूछे, तो बुरा मत मानना।"

 

राज:

"अरे, ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन हाँ, मैं इंसानों की कहानियाँ जानने में इंटरेस्टेड ज़रूर हूँ। श्रेया, तुम और संकेत... तुम दोनों की कहानी कैसी है?"

 

श्रेया:

"हमारी कहानी? बहुत सिंपल है। हम मिले, दोस्त बने और धीरे-धीरे... सब कुछ बदल गया।"

 

 

श्रेया की आवाज़ में एक सच्चाई थी। राज ने महसूस किया कि इस रिश्ते में सिर्फ़ प्यार नहीं, बल्कि एक गहरी समझ भी थी।

लेकिन वहीं, श्रेया की हर बात, उसकी हर छोटी-छोटी हरकत, राज के दिल में एक हल्की-सी हलचल पैदा कर रही थी।

 

 

संकेत:

"अरे राज, अपना स्केचबुक दिखा न! श्रेया को भी देखना चाहिए कि तुम कितने टैलेंटेड हो।"

 

 

राज ने थोड़ी झिझक के साथ अपनी स्केचबुक निकाली। उसमें से एक पेज पर एक खूबसूरत पेड़ का स्केच है, जिसके नीचे एक लड़की बैठी है।

 

श्रेया:

"वाह, राज! ये तो कमाल है। तुम्हारे स्केच में इतनी गहराई है। ये लड़की कौन है?"

 

राज:

"कोई ख़ास नहीं। ये तो बस... जो मैंने महसूस किया, उसे पेंट कर दिया।"

 

 

राज ने वह जवाब तो दे दिया, लेकिन उसके मन में हलचल और बढ़ गई थी।

श्रेया की तारीफ सुनकर उसका दिल थोड़ा तेज़ धड़कने लगा।

क्या ये उस लड़की के लिए एक पलभर की कशिश थी, जिसे उसने अभी-अभी पहली बार देखा था?

 

संकेत:

"अरे वाह, देखो राज! श्रेया भी तेरे टैलेंट की फैन हो गई। अब तो तुझे अपने फेमस होने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।"

 

इस बात पर तीनों हंस तो दीये, लेकिन राज कि हंसी में एक अजीब एहसास छुपा हुआ था! संकेत और श्रेया हंसी-मजाक में व्यस्त थे तब राज चुपचाप श्रेया को देखता रहा। उसकी आंखों में जैसे एक नई जिज्ञासा थी।

 

 

राज का मन हर बार की तरह उसकी कला में डूबने के लिए तैयार था। लेकिन इस बार, उसकी नजरें बार-बार श्रेया की ओर खिंच रही थीं।

वो उसकी बातों को, उसकी मुस्कान को, उसकी आवाज़ की नर्मी को महसूस कर रहा था।

और पहली बार... उसने अपने भीतर एक ऐसी भावना को जन्म लेते हुए पाया, जो उसे अब तक अजनबी थी।

 

श्रेया:

"राज, तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लगा और हाँ, तुम्हारे स्केचेज़ कमाल के हैं।"

 

राज:

"तुमसे मिलकर भी बहुत अच्छा लगा, श्रेया। उम्मीद है, जल्दी ही फिर मिलेंगे।"

 

संकेत:

"अरे, मिलेंगे क्यों नहीं? अब तो राज हमारा परमानेंट गार्डन मेंबर है।"

 

 

श्रेया और संकेत धीरे-धीरे आगे बढ़ गए, लेकिन राज पीछे रह गया। वह एक पल के लिए रुक और उसने अपनी स्केचबुक को कसकर पकड़ लिया और उसकी आंखों में हल्की बेचैनी झलक आई।

राज का दिल हल्के-हल्के धड़क रहा था।

उसके मन में एक नया एहसास पैदा हो रहा था—एक ऐसा एहसास, जिसे वह कभी चाहकर भी नकार नहीं सकता था।

श्रेया के साथ बिताए ये कुछ पल उसके लिए जैसे किसी नई कहानी की शुरुआत बन गए थे।

लेकिन... क्या राज अपने इस नए एहसास को समझ पाएगा?

क्या ये सिर्फ़ एक पलभर का आकर्षण था, या कुछ और?

और सबसे बड़ा सवाल—क्या संकेत और श्रेया के रिश्ते के बीच ये नई भावना कभी कोई खलल पैदा करेगी?

जानने के लिए पढ़ते  रहिए... "कैसा ये इश्क़ है"।

 

 

 

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