स्कूल पहुँचकर, रेबेका ने मेल्विन को गले लगाया। "थैंक्स मेल्विन, आज का सफर बहुत अच्छा रहा। तुम्हें साथ देखकर बहुत खुशी हुई। अब मैं क्लास के लिए लेट हो रही हूँ। तुम यहीं पास में हो न?" 

उसकी आवाज़ में एक मासूम खुशी थी, जो मेल्विन के दिल में एक गहरी चुभन पैदा कर रही थी। उसे पता था कि यह खुशी कितनी क्षणभंगुर हो सकती है।

"हाँ, बिल्कुल!" मेल्विन ने कहा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जिसमें चिंता और दृढ़ता का मिश्रण साफ झलक रहा था।

"तुम जाओ, मैं यहीं पास में थोड़ा काम निपटाता हूँ।" उसने रेबेका को अलविदा कहा, और हर वो मुस्कान दी जो उसके अंदर चल रहे तूफ़ान को छुपा सके।

रेबेका के स्कूल में घुसते ही मेल्विन ने खुद को पास की एक छोटी सी, पुरानी दुकान में छुपा लिया। दुकान का मालिक, एक बूढ़ा आदमी, उसे अजीब नज़र से देख रहा था, जैसे मेल्विन कोई संदिग्ध अपराधी हो। पर मेल्विन को इसकी परवाह नहीं थी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, हर धड़कन के साथ एक नया डर पैदा हो रहा था। उसे पता था कि खतरा कभी भी आ सकता है, और उसे रेबेका को हर कीमत पर सुरक्षित रखना था। उसकी आँखें स्कूल के गेट, आसपास की गलियों और हर राहगीर पर टिकी थीं। हर आती-जाती गाड़ी, हर अनजान व्यक्ति उसे संदिग्ध लग रहा था।

करीब ग्यारह बजे एक काली वैन स्कूल के गेट के सामने आकर रुकी। उसकी खिड़कियाँ काली थीं, अंदर कुछ भी दिख नहीं रहा था। मेल्विन की साँसें रुक सी गईं। वैन कुछ पल रुकी और फिर तेज़ी से निकल गई। क्या वह कोई खतरा था? क्या वे सिर्फ उसे डराने आए थे? मेल्विन के माथे पर पसीने की बूँदें झलकने लगीं। उसने अपनी मुट्ठी कस ली, उसके नाखून हथेली में धँस गए।

फिर एक आदमी दिखा, जो बस स्टॉप पर खड़ा था और बार-बार अपने फोन में कुछ चेक कर रहा था। वह स्कूल की ओर अजीब तरीके से देख रहा था, उसकी हरकतें असामान्य लग रही थीं। क्या वह सिंडिकेट का कोई गुर्गा था, जो अगले हमले की तैयारी कर रहा था? मेल्विन को लगा जैसे वह आदमी उसे जानता है, उसे महसूस कर रहा है। हर पल एक नया सवाल, एक नई आशंका उसके दिमाग में कौंध रही थी। उसे लग रहा था जैसे यह सिंडिकेट कोई सामान्य अपराधी नहीं, बल्कि शैतान का अवतार है, जो उसके हर कदम पर नज़र रखे हुए है।

दोपहर हो चुकी थी। धूप तेज़ थी, पर मेल्विन को पसीना डर के मारे आ रहा था, न कि गर्मी से। उसके दिमाग में बार-बार रात 9 बजे का समय घूम रहा था, जो खतरे का आखिरी पड़ाव था। उसे हर हाल में रेबेका को उस समय से पहले सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचाना था, या उस खतरे को जड़ से खत्म करना था। यह एक ऐसी अग्निपरीक्षा थी जिसमें उसकी सारी समझदारी और हिम्मत दांव पर लगी थी। उसे पता था कि सिंडिकेट उसे मानसिक रूप से तोड़ना चाहता है, उसे पल-पल मौत का इंतज़ार करवाना चाहता है। और यह इंतज़ार ही उसे मार रहा था, उसकी मानसिक शक्ति को खत्म कर रहा था, उसे अंदर ही अंदर खोखला कर रहा था।

जैसे-जैसे दिन ढल रहा था, मेल्विन का तनाव बढ़ता जा रहा था। शाम के चार बजे, स्कूल की छुट्टी का समय हुआ। बच्चों की भीड़ बाहर निकलने लगी, उनकी हंसी-मजाक की आवाज़ें मेल्विन के तनाव को और बढ़ा रही थीं। रेबेका भी बाहर आई, मुस्कुराते हुए बच्चों से विदा ले रही थी। मेल्विन की आँखें चारों ओर घूम रही थीं, एक भी पल के लिए भी पलकें नहीं झपक रही थीं। उसे हर भीड़ में एक संभावित हमलावर दिख रहा था, हर खिलखिलाता बच्चा भी उसे अजीब लग रहा था। उसने रेबेका को देखा, जो बस पकड़ने के लिए बस स्टॉप की ओर बढ़ रही थी। मेल्विन ने भी सतर्कता से उसका पीछा किया, हर कदम पर नज़र रखते हुए, एक अदृश्य रक्षक की तरह, जिसका अस्तित्व सिर्फ उसे ही पता था।

बस स्टॉप पर भी वही बेचैनी थी। मेल्विन ने रेबेका के पास खड़े एक युवक को देखा, जो बार-बार अपने फोन में कुछ चेक कर रहा था और अजीब तरीके से मुस्कुरा रहा था, जैसे किसी खेल का मज़ा ले रहा हो, और वह मेल्विन को देख रहा हो। मेल्विन के शरीर में एक अजीब सी झुनझुनी दौड़ गई। क्या यह वही शख्स है? क्या खतरा अब बस कुछ पल दूर है? जैसे ही बस आई और रेबेका उसमें चढ़ी, मेल्विन भी तुरंत उसके पीछे चढ़ गया, बिना किसी की नज़र में आए, बिल्कुल एक साये की तरह। बस में भी उसने अपनी आँखें खुली रखीं, हर यात्री पर शक कर रहा था, हर चेहरे में उसे क्रूरता दिख रही थी। रात 9 बजे का साया अब और गहरा हो रहा था, हर साँस भारी लग रही थी, मानो हवा में ही कोई ज़हर घुला हो। 

रेबेका के घर पहुँचने पर मेल्विन ने राहत की साँस ली, पर वह राहत क्षणिक थी। खतरा अभी टला नहीं था। उसने रेबेका को छोड़ने के बहाने उसके अपार्टमेंट के अंदर तक जाने का फैसला किया। 

"मैं तुम्हें दरवाज़े तक छोड़ दूँ?" मेल्विन ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी जल्दबाज़ी थी।

"अरे, इसकी क्या ज़रूरत है?" रेबेका ने मुस्कुराते हुए कहा। "पर अगर तुम चाहते हो तो चलो।" उसकी इस मासूमियत ने मेल्विन के दिल में एक और दर्द पैदा किया।

लिफ्ट में भी मेल्विन हर कोने पर नज़र रखे हुए था। उसे लगा जैसे लिफ्ट की धीमी गति भी एक साज़िश का हिस्सा हो, जैसे हर ऊपर जाता फ्लोर उसे मौत के करीब ला रहा हो। रेबेका के अपार्टमेंट के दरवाज़े तक पहुँचते ही, मेल्विन ने दरवाज़े के आसपास, हॉल-वे में हर चीज़ को परखा। कोई निशान नहीं, कोई आहट नहीं। रेबेका ने चाबी घुमाई और दरवाज़ा खोला। जैसे ही वह अंदर जाने लगी, मेल्विन ने एक पल के लिए बाहर गलियारे में देखा। उसे लगा जैसे किसी की परछाई तेज़ी से कोने से गायब हुई हो। क्या यह सिर्फ उसका डर था, या सच में कोई वहाँ था? उसकी आँखें अब हर परछाई में दुश्मन देख रही थीं, हर आवाज़ उसे एक संकेत लग रही थी।

 

रेबेका अंदर चली गई। मेल्विन ने दरवाज़ा बंद कर दिया और अंदर से उसे लॉक कर दिया। उसने रेबेका को कसकर गले लगा लिया, जैसे उसे पता हो कि वह कितनी बड़ी मुश्किल से बचकर आई है। 

"रेबेका, तुम आज कहीं बाहर मत जाना। प्लीज़।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी विनती थी, एक बेबसी थी, जो रेबेका को समझ नहीं आई।

रेबेका ने हैरानी से उसकी ओर देखा। "पर क्यों? क्या हुआ?" उसकी आँखों में सवाल थे, पर मेल्विन उन्हें जवाब नहीं दे सकता था।

मेल्विन ने उसे कुछ नहीं बताया, बस इतना कहा, "बस, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। आज रात हम साथ रहेंगे।" 

उसके पास रात 9 बजे तक का समय था, और वह जानता था कि इस वक्त तक उसे रेबेका को अपने पास सुरक्षित रखना होगा। उसने हर बात को सामान्य रखने की कोशिश की। उन्होंने साथ में खाना खाया, थोड़ी देर टीवी देखा, पर मेल्विन का ध्यान हर पल घड़ी पर था। 8 बज गए, 8:30, 8:45... हर मिनट उसके लिए एक सदी जैसा था। रेबेका ने उसकी बेचैनी महसूस की, पर वह समझ नहीं पा रही थी कि यह बेचैनी किसी जानलेवा खतरे के कारण है। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो उसे एक पल के लिए भी चैन नहीं लेने दे रही थी। 

जैसे-जैसे 9 बजे का समय करीब आ रहा था, मेल्विन के दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी। उसने रेबेका का हाथ कसकर पकड़ा, उसकी हथेली पसीने से भीगी हुई थी। 8:58... 8:59... उसके कानों में सिर्फ घड़ी की टिक-टिक की आवाज़ गूँज रही थी, और नितिन के शब्द— "रात 9 बजे खतरे का आखिरी वक्त है। खतरा उससे पहले भी हो सकता है।"

घड़ी ने रात के 9 बजा दिए। मेल्विन की साँसें अटक गईं। उसने गहरी साँस ली, रेबेका की ओर देखा। वह ठीक थी। कोई धमाका नहीं हुआ, कोई हमला नहीं हुआ। नितिन ने कहा था कि अगर 9 बजे तक कुछ नहीं हुआ, तो सब ठीक है। उसे लगा जैसे उसके शरीर से एक बड़ा बोझ हट गया हो, एक असहनीय भार उतर गया हो। एक पल को उसके चेहरे पर सच्ची राहत दिखी, एक ऐसी राहत जो इतनी तीव्र थी कि आँखों में आँसू ला सकती थी। उसने रेबेका को कसकर गले लगाया। 

"तुम ठीक हो, रेबेका। तुम ठीक हो।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी कंपन थी, जो खुशी और भय के मिश्रण से पैदा हुई थी। रेबेका उसकी अजीब हरकत से हैरान थी।

"हाँ मेल्विन, मैं ठीक हूँ। तुम्हें क्या हुआ है? तुम आज इतने अजीब क्यों हो?"

"कुछ नहीं, बस... आज का दिन बहुत तनाव भरा था।" मेल्विन ने एक नकली मुस्कान दी, जो उसके अंदर के दर्द को छुपा रही थी। अब वह आश्वस्त था। खतरा टल गया था। उसने रेबेका से जल्द मिलने का वादा किया, एक ऐसा वादा जिसकी पवित्रता को वह नहीं जानता था कि वह निभा पाएगा या नहीं, और अपने घर की ओर चल पड़ा। 

रात के अंधेरे में, उसके कदम हल्के थे, क्योंकि उसे लगा कि उसने रेबेका को बचा लिया है। उसके मन में एक जीत का भाव था, एक ऐसा भाव जो अब कड़वाहट में बदलने वाला था। घर पहुँचते ही, उसने चाबी घुमाई। दरवाज़ा खुल गया। अंदर अंधेरा था। एक अजीब सी खामोशी थी, जो दिल दहला देने वाली थी, ऐसी खामोशी जो चीख-चीखकर किसी अनहोनी की सूचना दे रही थी, किसी भयानक घटना की गवाह थी। 

"माँ?" उसने आवाज़ दी। उसकी आवाज़ अँधेरे में गूँज कर वापस आ गई, मानो दीवारें भी सिसक रही हों, उसके दर्द में शामिल हो रही हों। कोई जवाब नहीं। 

वह हॉल से गुज़रा और रसोई में गया। वहाँ भी कोई नहीं था। उसके दिल में एक अजीब सी आशंका ने जन्म लिया, एक ठंडी लहर उसकी रीढ़ से होकर गुज़री, जो उसके पूरे शरीर को सुन्न कर रही थी, उसे अंदर तक जमा रही थी। तभी उसकी नज़र माँ के कमरे पर पड़ी, जिसका दरवाज़ा हल्का खुला हुआ था। अंदर से एक अजीब सी, धातु जैसी, भयानक बदबू आ रही थी – खून की। मेल्विन का दिल धड़कना भूल गया। उसके पूरे शरीर में खून जम सा गया। उसने डरते-डरते दरवाज़ा खोला, उसकी आँखें अँधेरे में किसी अनहोनी को ढूँढ रही थीं, जो शायद पहले से ही घटित हो चुकी थी, सबसे भयानक रूप में।

अंदर का नज़ारा देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसकी माँ ज़मीन पर पड़ी थीं, अचेत। उनकी आँखें खुली थीं, उनमें एक अजीब सी खालीपन थी, मानो वे कुछ कहना चाहती हों, पर कह नहीं पा रही हों। उनके चारों ओर खून बिखरा हुआ था, दीवारों पर भी खून के छींटे थे, जो किसी खूनी खेल की कहानी कह रहे थे, एक ऐसी कहानी जो मेल्विन को अंदर तक झकझोर रही थी। पास ही एक छोटा सा, धारदार हथियार पड़ा था, जिस पर खून लगा था, जो किसी हत्यारे का प्रतीक था, एक ऐसी सच्चाई का प्रतीक जिसे मेल्विन स्वीकार नहीं कर पा रहा था। मेल्विन चीख पड़ा। उसकी चीख पूरे घर में गूँज गई, पर उसे सुनने वाला अब कोई नहीं था, सिवाय उसकी मृत माँ के। उन्होंने उसकी माँ को मार दिया था। सिंडिकेट ने उसे मात दे दी थी, एक ऐसी मात जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी, एक ऐसी मात जो उसे अंदर तक तोड़ चुकी थी।

उसे याद आया, सुबह माँ ने उससे बात करने की कोशिश की थी। उनकी चिंता भरी आवाज़, उनके हाथ पकड़ने की कोशिश... और उसने उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया था, एक ऐसे समय में जब शायद उन्हें उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, जब वह उसे बचा सकती थीं। उसने सिर्फ़ रेबेका को बचाने की सोची थी, और इस प्रक्रिया में, उसने अपनी माँ को भुला दिया था, उन्हें खतरे के मुँह में अकेला छोड़ दिया था। सिंडिकेट ने उससे बदला ले लिया था, सबसे दर्दनाक तरीके से। उन्होंने उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी पर वार नहीं किया था, बल्कि उसे उस चीज़ से वंचित कर दिया था जिसे वह सबसे ज़्यादा प्यार करता था और जिसकी सुरक्षा के बारे में उसने सोचा भी नहीं था। मेल्विन अब सुबह अपनी माँ को नज़रअंदाज़ करने के कारण गहरे दुख, पछतावे और अपराधबोध से भर गया था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे, और उसके कानों में सिर्फ़ माँ की सुबह की आवाज़ गूँज रही थी – "तुम मुझे कुछ बताते क्यों नहीं?" यह सवाल एक तेज़ चाकू की तरह उसके दिल में उतर रहा था, उसे हर पल काट रहा था।

पर मेल्विन की परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई। इस भयानक सदमे और दर्द के बीच, उसे अचानक याद आया कि उसने ‘मी’ को भी अपनी माँ के साथ ही घर में छोड़ा था। ‘मी’ जो अभी भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी, और जिसे घर में सुरक्षित रहने के लिए कहा गया था। वह भी खतरे में थी! ‘मी!’ मेल्विन ने एक और चीख मारी, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी दहशत थी, जो उसके अंदर के डर को उजागर कर रही थी। वह पागलों की तरह घर के हर कोने में मी को ढूंढने लगा। रसोई में, बेडरूम में, हॉल में, बाथरूम में... उसने हर जगह देखा। हर अलमारी खोली, हर बिस्तर के नीचे झाँका, उसका दिमाग तेज़ी से काम कर रहा था, हर संभावना को तलाश रहा था, हर उम्मीद को पकड़ने की कोशिश कर रहा था। लेकिन मी कहीं नहीं थी। वह गायब थी।

मेल्विन के सिर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा। माँ की मौत का सदमा अभी उसे पूरी तरह से महसूस भी नहीं हुआ था कि मी के गायब होने ने उसे और भी ज़्यादा तोड़ दिया। सिंडिकेट ने उससे सब कुछ छीन लिया था – उसकी माँ, उसकी शांति, और अब मी, जिसे वह बचाने की कोशिश कर रहा था। उसके दिमाग में एक ही बात घूम रही थी: क्या सिंडिकेट ‘मी’ को ले गया था? और अगर हाँ, तो उसके साथ अब क्या होगा?  मेल्विन का पूरा संसार एक पल में ढह गया था, वह अपने ही घर में, अपनी ही तबाही के बीच अकेला खड़ा था। उसके पास अब कुछ नहीं बचा था, सिवाय बदले की आग के।

 

 

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