विराज की आंखों में सुलगती आग ने अंधेरे कमरे की नमी को भी तपिश दे दी थी। सामने बैठी प्रभा ताई कांप रही थीं, मगर उनके चेहरे पर अब डर से ज़्यादा हैरानी और सवाल थे, कि जिस विराज को वो मर चुका समझ रही थीं, वो उनके सामने खड़ा है, ज़िंदा… और पहले से कहीं ज़्यादा गुस्सैल अवतार में आखिर, क्यों?
तभी विराज ने कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन प्रभा ताई का डर थोड़ा कम हो गया— “हमारे पास अब ज़्यादा वक़्त नहीं है। गजराज को यकीन है कि तुम मर चुकी हो, और यही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है। अब हमें इस भ्रम को बनाए रखना होगा… जब तक हम कोर्ट के सामने सब कुछ नहीं ला देते।”
प्रभा ताई ने थरथराती आवाज़ में पूछा— “ओह, तो ये सारी साजिश तुमने मुझे मेरे पापा और भाई की नजरों में मरा हुआ दिखाने के लिये की थी। पर बेटा… कोर्ट तक पहुंचेंगे कैसे? हर रास्ता बंद है, और हर मोहरा खरीदा जा चुका है…”
प्रभा ताई की ये बात सुन विराज मुस्कराया और बोला— “हर मोहरा नहीं…”
दूसरी ओर, राजगढ़ के आलीशान महल राजघराना का नजारा ही कुछ ओर था। राज राजेश्वर चमड़े की कुर्सी पर बैठा, व्हिस्की का गिलास हल्के-हल्के घुमा रहा था। सामने टीवी पर न्यूज़ फ्लैश हो रही थी…
“राजघराना के मालिक गजराज सिंह की 45 साल की बेटी प्रभा देवी लापता, पुलिस को अब तक कोई सुराग नहीं मिला है। सूत्रों के अनुसार, केस से जुड़े गवाहों पर लगातार हो रहे हैं हमले…” दरअसल प्रभा ताई अपने ही भाई मुक्तेश्वर सिंह के बेटे गजेन्द्र सिंह के रेस फिक्सिंग केस की सबसे अहम गवाह थी। सूत्रों की माने तो इस केस में मेन आरोपी भी राजघराना के ही सदस्य है, जिनमें चाचा राज राजेश्वर का नाम सामने आया है।
ये सुनते ही राज राजेश्वर ने टीवी बंद कर दिया, और रेनू की तस्वीर को नज़रों से घूरते हुए अपने सबसे करीबी नौकर भीखूं से पूछा— "वो लड़की अब कहां है?"
जवाब में भीखूं ने कहा— “छोटे साहब, रेनू को दो घंटे पहले ही बाड़मेर की ओर निकलते देखा गया था।”
ये सुन राज राजेश्वर और भी तिलमिला उठा, “उसकी ज़ुबान खुलने से पहले बंद होनी चाहिए, और उस भोंसले के वकील का क्या हुआ?”
भीखूं ने मुस्कराते हुए कहा— “उसे हमने काबू में ले लिया है सर। कल तक वो कोर्ट में केस वापस ले लेगा।”
“बहुत खूब भीखूं, देखा मैनें बिना किसी का खून बहाकर… कैसे अपने दायें हाथ से इस पूरे तमाशे को संभाल रखा है। अब तुम ही बताओं मेरे अलावा और कौन है, जो इस राजघराना की गद्दी पर बैठने का हकदार है…हाहाहाहा।”
राज राजेश्वर अपने पिता की गद्दी पर कब्जा जमायें अपनी चालों पर दहाड़े मार-मारकर हंस रहा था, लेकिन उसकी ये हंसी ज्यादा देर तक नहीं टिकी, क्योंकि तभी उसका फोन बजा। दूसरी ओर से आवाज़ आई…
“गजेन्द्र के केस मे गवाहों की लिस्ट जज को पर्सनल लेवल पर जमा की गई है। लगता है इस केस में कोई बड़ा आदमी अब गजेन्द्र की मदद कर रहा है, जिसके बाद केस इंटर्नल लेवल पर भी री-ट्रायल के लिए मंजूर किया गया है और वो अब कोर्ट में अपना पक्ष रख सकता है।”
ये सुनते ही राज राजेश्वर के हाथ से फोन छूटते-छूटते बचा और उसके चेहरे का रंग सफेद पड़ गया। फोन कटते के साथ ही वो भीखूं पर चिल्लाया, “ये सब हो क्या रहा है…? और ये सच कैसे हो सकता है?”
भीखूं ये सुनते ही राज राजेश्वर को संभालने की कोशिश करता है, “छोटे साहेब, लगता है किसी ने अंदर से मदद की है।”
ऐसे में राज राजेश्वर का गुस्सा अचानक पल भर में ही ना जाने कैसे गायब हो गया और वो राजकुर्सी पर पीठ टिकाते हुए बोला— “तो खेल शुरू हो चुका है…अब भले ही मौत आ जाये, लेकिन हार नहीं मानूंगा और ना ही इस कुर्सी पर किसी और को बैठने दूंगा।”
राजघराना महल दो हिस्सों में बंट चुका था। पहले हिस्से में राज राजेश्वर कुर्सी के लिए सबकों मारने को तैयार था और इसमें उसकी मदद गजराज सिंह कर रहा था। जो अपनी इज्जत के नाम पर राजेश्वर की सच्चाई दुनिया से छिपाना चाहता था।
दूसरा हिस्सा गजेन्द्र के इंसाफ और रेनू के हक का था, जो गजराज की रखैल शारदा की बेटी थी। रेनू रिया के साथ तहखाने में दीवार पर टंगी पुरानी तस्वीरों को देखते हुए, अब भी विराज के शब्दों को याद कर रही थी— “शारदा ज़िंदा है, और उसने बयान देने की हामी भर दी है...”
उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि इस पुराने महल के अंदर इतने रहस्य दफन हैं। तभी कमरे में मुक्तेश्वर तेज़ी से घुसा और बोला— “रिया… बड़ी खबर है! भोंसले के केस का री-ट्रायल कोर्ट ने मंजूर कर लिया है। अब गजेन्द्र को फिर से अदालत में सुनवाई का मौका मिलेगा।”
रिया की आंखों में उम्मीद की चमक लौट आई। “मतलब… अब हम पीछे नहीं हटेंगे। चाहे कुछ भी हो जाये, हम कोर्ट तक ज़रूर पहुंचेंगे। विराज को पता है?”
मुक्तेश्वर ने सिर हिलाया, “हां, उसने ही ये चाल चली है… सबूत और गवाहों की पूरी लिस्ट बनाकर कोर्ट में भेज दी थी, नाम किसी और का लगाया, ताकि किसी को शक न हो।”
ठीक इसी समय नागौर हाईवे के एक ढाबे पर विराज, एक पुरानी जीप के बोनट पर बैठा, सामने बैठे भानूप्रताप से बात कर रहा था, “गजेन्द्र के साथ तुम्हारा रिश्ता क्या है?”
“वो और मैं जेल के एक ही सेल में बंद थे और हमारी कहानी भी लगभग एक ही है। उसने भी अपनों से धोखा खाया है और मैंने भी। इसलिए वो मेरे लिए मेरे भाई जैसा है।”
भानूप्रताप ने आगे नम आंखों से कहा— “एक बार तो उसने मेरी जान भी बचाई थी, जिसके बाद मैंने कसम खा ली थी, कि उसके लिए इस जान को भी गवाना पड़े तो कोई गम नहीं।”
विराज ने गंभीरता से उसकी तरफ देखा, “हमें शारदा और प्रभा ताई को कोर्ट तक सुरक्षित पहुंचाना है… ये काम किसी अपने से ही होगा और अभी जो कुछ तुमने मुझे बताया, उसे सुनने के बाद मुझे तुम पर पूरा यकीन हो गया है।”
विराज का भरोसा जीतने के बाद भानूप्रताप के चेहरे पर हंसी दौड़ गई और वो खिलखिलाते हुए बोला— “तो समझ लो, ये हाथ अब कानून के लिए उठेगा…और गजेन्द्र को इंसाफ दिलाकर ही रूकेगा।”
दूसरी ओर जयपुर कोर्ट के पास राज राजेश्वर अपनी नई चाल चलता है। जहां राज राजेश्वर का ड्राइवर किसी को छिपकर एक पैकेट थमाता है।दरअसल ये कोई मामूली आदमी नहीं राघव भोंसले के वकील का असिस्टेंट है। वो उसे पैकेट देने के साथ ही एक काम भी बताता है।
“ये लो… और अगली सुनवाई में केस वापस लेने की अर्जी डाल देना।”
राघव भोंसले का सहायक वो लिफाफा लेने से मना कर देता है “आप जानते है ना कि गजेन्द्र पर लगा रेस फिक्सिंग का आरोप अब देशद्रोह का मुद्दा बन गया है, तो फिर केस कैसे वापस लिया जा सकता है? अब इस केस का फैसला कोर्ट और सबूतों के आधार पर टिका है, राज राजेश्वर जी को बता देना।”
इतना कहकर जहां राघव भोंसले का वकील चला जाता है, तो वहीं दूसरी ओर राज राजेश्वर का ड्राइवर भी वो नोटों की गड्डी लेकर राजघराना वापस लौट आता है।
अपनी इस चाल के नाकाम होने पर राज राजेश्वर का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच जाता है। रोज की तरह आज भी देर शाम का अंधेरा पूरे राजघराना महल पर छा गया, जिसके बाद चारों ओर एक सन्नाटा सा है। ये सन्नाटा राजघराना पर किसी आने वाली तुफान के दस्तक जैसा था।
वहीं रिया बालकनी से आसमान की ओर देख रही थी। उसके हाथ में विराज की एक पुरानी तस्वीर थी। तभी पीछे से मुक्तेश्वर आता है और कहता है— “जल्द ही गजेन्द्र के केस में फाइनल सुनवाई की तारीख आ जायेगी। उस दिन अहम गवाहों की भी पेशी होगी...क्या तुम तैयार हो?”
रिया मुस्कराती है, “अब डर नहीं लगता अंकल… अब सिर्फ सच की भूख है… और एक-एक गवाह की कसम, अब ये कहानी अधूरी नहीं रहेगी।”
रिया की जिद्द और विराज की हिम्मत देख मुक्तेश्वर ने भी सर हिलाया और बोला— “सच शुरुआत में हमारे लिए मील के पत्थर जैसा था, लेकिन तमाम गवाहों का हमारे साथ होने के बाद अब ये दायें हाथ का खेल बन गया है। अब हमारी जीत और झूठ की सारी बिसात उलटना निश्चित है।”
रिया को ये सुनकर सुकून मिला, लेकिन उसके चेहरे पर हल्की चिंता की रेखाएं फिर भी थीं। वो बालकनी से मुड़ी और धीमी आवाज़ में बोली— “अंकल, ये खेल जितना साफ दिख रहा है, उतना है नहीं। कोई है, जो हम से एक कदम आगे सोच रहा है।”
रिया से इस तरह के बोल सुनकर मुक्तेश्वर चौंक जाता है, “तुम्हारा मतलब क्या है रिया?”
इसके बाद रिया अपनी नजर चारों तरफ घूमाती है। उसके बाद वो अपनी जेब से अपना मोबाइल निकालकर, एक स्क्रीनशॉट दिखाते हुए कहती है—
“ये देखिए… ये मैसेज मुझे अभी कुछ देर पहले आया है।”
“Next target: तुम्हारा भरोसा... Beware. – R”
“आखिर ये R है कौन, ये हमारी मदद करना चाहता है या हमें डराना? जब भी हम भरोसे के आखरी मोड़ पर होते है, ये अपना शक का पासा फेंकने आ जाता है?”
मुक्तेश्वर की ये बात सुन रिया बोली— “ये या तो राज राजेश्वर है या फिर रेनू… क्योंकि इस समय राघव भोसले तो जेल में है।”
रिया के इस शक के बाद उस कमरे में एक लंबा सन्नाटा पसर जाता है। तभी पीछे दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आती है , जिसे सुन दोनो चौंक जाते है। हालांकि थोड़े इंतजार के बाद रिया दरवाज़ा खोल देती है।
दरवाजा खुलता है तो सामने एक घायल, लहूलुहान लड़के को खड़ा देख रिया और मुक्तेश्वर की आंखें फटी की फटी रह जाती है। वो घयाल लड़का अपना नाम भानूप्रताप बताता है, उसके कपड़े फटे हुए, और माथे पर गहरी चोट थी। रिया उसके नाम के बाद उसकी चोट को लेकर सवाल करती है, जिसके जवाब में वो
“विराज…”
बस इतना ही बोल पाता है और औंधे मुंह जमीन पर गिर जाता है। मुक्तेश्वर और रिया उसे उठाकर कमरे के अंदर ले आते है। इसके बाद पानी के छीटे उसके मुंह पर डाल जैसे-तैसे उसे होश में लाया जाता है, जिसके बाद रिया दुबारा पुछती है।
"तुम क्या कह रहे थे, विराज… क्या हुआ विराज को?”
आधी बेहोशी की हालत में भानूपताप एक ही बात दोहराता रहता है— “वो… उसे ले गए… वो शारदा… गजेन्द्र की गवाह को उठा ले गए…”
रिया को जैसे ही उसके टूटे-फूटे शब्दों का मतलब समझ आता है, उसकी आंखों में डर का आलम दौड़ जाता है और वो कांपती हुई आवाज में कहती है— “कौन…? और कैसे? वो तो विराज के साथ सुरक्षित थी ना..? फिर कैसे ?”
भानूप्रताप खुद को संभालता है और कांपते हुए जवाब देता है— “वो हेलमेट वाला आदमी… पर इस बार अकेला नहीं था। राज राजेश्वर के लोग भी थे… और किसी ने अंदर से उन्हें लोकेशन दी थी शायद…”
ये सुन रिया का गुस्सा सांतवे आसमान पर पहुंच जाता है वो अपने दांत भींच मुक्तेश्वर की तरफ देखती है— “मतलब हमारा शक सही था। ‘R’ अब सिर्फ नाम नहीं, एक परछाईं बन चुका है, जो हमारी हर चाल से वाक़िफ है। वो हमसे हर कदम पर दो कदम आगे है मुक्तेश्वर अंकल।”
भानूप्रताप दर्द से कराहते है, “लेकिन मैं आज उसका पीछा कर रहा था… आखिरी बार उसे मैंने कुलधरा के खंडहरों की तरफ जाते देखा… वो जगह सुनसान है… और मैंने सुना है उन खंड़हरों में जाना वाला कोई भी शख्स आज तक जिंदा नहीं लौटा है। ऐसे में मुझे शक है कि अब शारदा भी कभी लौटेंगी या नहीं, क्योंकि वो शारदा को अपने साथ उन्हीं खंडहरों में ले गया है।”
भानूप्रताप की ये सारी बातें सुन मुक्तेश्वर अंदर तक टूट गया था, लेकिन फिर भी उसने कुछ जाहिर नहीं किया और गहरी सांस लेकर खड़ा होकर बोला— “इससे पहले कि फिर कोई लाश मिले, हमें खुद कुलधरा के उन खंडहरों में शारदा को ढूंढने जाना होगा। ये लड़ाई अब आमने-सामने की हो चुकी है। या तो वो, या हम...चलों रिया।”
रिया धीरे से उठती है, और विराज की तस्वीर को जेब में रखती है — "अब बस एक सवाल है... राज राजेश्वर हमारा दुश्मन है, ये तो तय हो चुका है… लेकिन क्या गजराज सिंह अब भी सिर्फ अपनी इज्जत बचाने के लिए खेल रहा है… या उसके हाथ में भी कोई ऐसा पत्ता है… जो हमें आज तक दिखा ही नहीं? अंकल हम इस केस में गजेन्द्र को इंसाफ तो दिला पायेंगे ना?"
रिया का ये सवाल सुन मुक्तेश्वर एक लाइन में जवाब देता है— "हम नहीं रिया… इस बार खुद गजेन्द्र की किस्मत, उसकी हिम्मत और उसका सच… उसे इंसाफ दिलाएगा। और हम बस उसका रास्ता साफ करेंगे।"
आखिर क्या करने वाला है मुक्तेश्वर?
क्या रिया का डर होगा सच साबित?
आखिर कहां गयाब है विराज और सबसे अहम गवाह शारदा?
कौन है ये हैलमेट वाला आदमी, जिसने आते ही बिगाड़ दिया है पूरा खेल?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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