प्रभा ताई और विराज दोनों ही लापता थे। ऐसे में रिया और मुक्तेश्वर अब पूरे राजघराना के आगे अकेले खड़े थे।
कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। हवा में एक अजीब सी बेचैनी तैर रही थी। तकिए पर पड़ी प्रभा ताई की चिट्ठी मुक्तेश्वर की आंखों में खून उतार चुकी थी। रेनू की बताई बात ने जैसे उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खींच ली थी। लेकिन इसके बाद जो रेनू ने कहा, उसे सुन तो मुक्तेश्वर अपना आपा ही खो बैठा— “महल के सबसे पुराने तहखाने में किसी ने कल रात फिर दिया जलाया था। मैंने आज सुबह ही दो नौकरानियों को उस बारें में बात करते सुना।”
रेनू इसके आगे कुछ कहती उससे पहले ही मुक्तेश्वर ने एक झटके में प्रभा ताई की लिखी उस चिट्ठी को मुट्ठी में मरोड़ लिया और तेज़ी से नीचे की ओर भागा। उसके दिमाग में अब एक ही ख्याल था, कि कहीं बीस साल पुरानी कहानी राजघराना में फिर से तो नहीं दोहराई जाने वाली है, और अगर ऐसा हुआ तो… वो अपना सब कुछ खो बैठेगा।
महल के पुराने तहखाने में, उसी जगह जहां बीस साल पहले पहली बार "खून की रात" ने जन्म लिया था। अब एक और राज़ करवट ले रहा था। रात का दिया वहां अभी भी जल रहा था, जिसे देख मुक्तेश्वर की आखों में आग की ज्वाला दौड़ गई। वो धीरे-धीरे अंदर की तरफ बढ़ने लगा, लेकिन तभी पास से किसी के जमीन पर गिरने की आवाज़ आई।
मुक्तेश्वर आवाज सुनते ही चौक गया और बोला— “प्रभा ताई...? ये आप ही है ना प्रभा ताई…?”
मुक्तेश्वर आवाज लगाता रहा, लेकिन कहीं से कोई आवाज नहीं आई। दूसरी ओर उसके ठीक सामने रखा दिया झिलमिला रहा था और तभी उसकी रोशनी में एक परछाईं उभरती है। लेकिन ये प्रभा ताई नहीं थीं। ये कोई ऐसा था, जिसे देख मुक्तेश्वर के रोंगटे खड़े हो गए और वो चिल्लाकर बोला— "त...त...तुम यहां, इस वक्त…?”
मुक्तेश्वर की इस बात पर राज राजेश्वर ने तुरंत पलटकर कहा— “क्यों, क्या मैं यहां नहीं आ सकता… या फिर यहां कहीं आप कोई राज तो छिपाने नहीं आये… हाहाहाहा।”
राज राजेश्वर की ये बाते सुनकर मुक्तेश्वर का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और उसने आगे बढ़ते हुए कहा।
“अब और नहीं, राज राजेश्वर! अब तुम्हारी गंदी साजिशों का अंत होगा। प्रभा ताई ने सब सच उगल दिया है। तुम्हारी हर हरकत पर हम सबकी नज़र है। तुम्हें क्या लगता है, प्रभा ताई को कोर्ट में बयान देने से तुम रोक लोगें… नहीं राजे राजेश्वर वो कोर्ट में गवाही देने को तैयार हैं। बस तुम अब अपनी जिंदगी की उल्टी गिनती शुरु कर दो, तुमने मेरे बेटे को हाथ लगाकर उसे मेरी ही तरह रेस फिक्सिंग के केस में फंसाकर खुद अपनी मौत को न्यौता दिया है।”
मुक्तेश्वर की धमकी सुन राज राजेश्वर हँस पड़ा, एक ठंडी, कठोर हँसी… “गवाही? किसकी?” उसने पास रखी एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर बैठते हुए कहा और मुक्तेश्वर के चेहरे की तरफ बड़े गौर से देखने लगा।
“प्रभा ताई के साथ-साथ मेरे पास उस बूढ़ी नौकरानी की गवाही भी है राजे राजेशर, जो बीस साल तक तहखाने में छिपाकर रखी गई एक औरत की ममता निभा रही थी। लोग सोचेंगे कि वो पागल हो चुकी है। कौन मानेगा उसके शब्दों को? लेकिन तुम देखना कोर्ट में तुम्हारे फांसी के फंदे की पहली गांठ वहीं लगायेगी।”
मुक्तेश्वर की ये बात सुनने के बाद भी राज राजेश्वर के चेहरे पर शिकन तक नहीं आई। ऐसा लग रहा था, जैसे वो पहले से इन सबके लिए तैयार था। उसके चेहरे पर अभी भी हंसी और सुकून देख मुक्तेश्वर ने मुट्ठियाँ भींच ली।
“याद रखना राज राजेश्वर अब ये कोई पारिवारिक झगड़ा नहीं रहा… ये कानून की लड़ाई बन गई है। अब ये अदालत का मामला है। और तुम नहीं जानते, हमारे पास गवाहों की लिस्ट तैयार हो रही है। विराज ने केस तैयार कर लिया है। अब कोर्ट में सबूतों और गवाहों की बमबारी होगी, जिसमें तुम्हारी दुनिया और तुम्हारी अकड़ सब दुनिया के सामने टुकड़े-टुकड़े हो जायेगी।”
ये सुनते ही राज राजेश्वर के चेहरे का रंग उड़ गया… एकाएक वो लड़खड़ाती आवाज में बोला— “व...व...विराज?”
राज राजेश्वर की घबरायट देख मुक्तेशर ने अपने शब्द दोहराते हुए कहा— “हाँ, विराज… अब तो वो भी एक गवाह है…”
मुक्तेश्वर ने आंखें तरेरते हुए आगे कहा— “वो अब सिर्फ रिया और गजेन्द्र का दोस्त नहीं… अब वो इस ‘कार्टेल’ के खिलाफ गवाही देने वाले हर गवाह की रक्षा भी कर रहा है।”
जहां एक तरफ मुक्तेश्वर सच के जल्द से जल्द सामने आने का ऐलान सबके सामने कर रहा था, तो वहीं दूसरी ओर, रिया विराज के घर में बिखरे सामान के बीच खड़ी, पुलिस को कॉल कर चुकी थी। लेकिन मन में डर साफ था — क्या विराज सुरक्षित है?
उसके दिमाग में लगातार ये सवाल घूम रहा था। कि इसी बीच, नीचे गिरा फोन बजने लगता है। रिया घबराते हुए रिसीवर उठाती है, वो हैलों बोलतीं... उससे पहले दूसरी ओर से आवाज आती है— “रिया,”
आवाज कांपती हुई थी— “मैं विराज हूं… मैं ठीक हूं… लेकिन… मेरे पीछे कोई पड़ा है। मुझे लगता है वो गजराज सिंह के आदमी है। मैं कुछ फाइलें लेकर जयपुर निकल रहा हूं, कुछ गवाहों को बचाने… और हां…”
“रिया, वो तहखाने से मिली गवाह ज़िंदा है।”
यह सुनते ही रिया की आंखों में चमक आ जाती है और वो पूछती है— “कौन? शारदा।...”
जवाब में विराज कहता है— “हां, शारदा...रेनू की मां… वो ज़िंदा है। और उसने बयान देने की हामी भर दी है।”
रिया ये सुनते ही अवाक रह जाती है और चौक कर कहती है— “हे भगवान, तूने एक बार फिर शारदा की रक्षा कर मुझपर बहुत बड़ा एहसान किया है।”
रिया की ये बात सुन विराज भी हां में सर हिलाता है और कहता है— शारदा को जिंदा रखने की लड़ाई में ही कल रात मुझे मेरे ही घर से भागना पड़ा। क्योकि अब गजराज किसी भी हद तक जा सकता है। तुम्हें प्रभा ताई का ध्यान रखना होगा, रिया।”
इतना कह विराज फोन काट देता है, रिया सुकून की सांस लेती है और वापस राजघराना जाने के लिए लौट जाती है। जहां वो देखती है कि मुक्तेश्वर हैरान-परेशान अपने कमरे में पागलों की तरह टहल रहा है। रिया तुरंत उसके पास जाती है और पूछती है…
"क्या हुआ अंकल आप इतना परेशान क्यों है, सब ठीक है ना यहां राजघरना में… वो सब छोड़िये और ये बताइये सबसे अहम गवाह प्रभा ताई ठीक है ना?”
रिया का ये सवाल सुनते ही मुक्तेश्वर टूट जाता है और फूट-फूट कर रोने लगता है— “नहीं बेटा रिया, यहां कुछ ठीक नहीं है। ना तो प्रभा ताई मिल रही है और ना ही उस पुराने तहखाने में वो लाल डायरी।”
ये सुनते ही रिया के कदम लड़खड़ा जाते हैं और वो वहीं औंधे मुंह बेहोश होकर गिर जाती है। दूसरी ओर महल के बाहर, रघुवीर एक पुराने तहखाने से निकलते किसी छाया की निगरानी कर रहा था। उसी समय, एक घबराई हुई महिला रोती हुई बाहर निकलती है। दरअसल ये कोई ओर नहीं प्रभा ताई थी, जो इस वक्त उसके पैर पकड़कर गिड़गिड़ा रही थी।
“मैं सच कहती हूं, मैं अपना मुंह नहीं खोलूंगी। मुझे कुछ मत करना… मैं कोर्ट में कोई बयान नहीं दूंगी।”
प्रभा ताई अपने ही घर के एक मामूली से नौकर के पैरों में नाक रगड़कर गिड़गिड़ा रही थी, पर उस जालिम के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। लेकिन तभी दो नकाबपोश आदमी उनके सामने आ खड़े हुए और बोलें— “हुकुम का आदेश है, आपकी ज़ुबान हमेशा के लिए बंद कर दी जाए।”
ये सुनते ही प्रभा ताई का चेहरा डर से सफेद पड़ जाता है। और एकाएक प्रभा ताई पीछे हटती हैं, पर तभी एक बाइक पर हेलमेट लगाए कोई आता है और दोनों हमलावरों को धक्का देकर प्रभा ताई को बचा लेता है। इसके बाद वो प्रभा ताई को बाइक पर बैठाकर अपने साथ वहां से लेकर भाग जाता है।
जैसे ही वो एक सुरक्षित जगह पर पहुंचते है, वो शख्स प्रभा ताई से पूछता है— “आप ठीक हैं?”
इतना कहते-कहते वो हेलमेट उतारता है। प्रभा ताई उसे देख चौकते हुए पूछते है- "तुम कौन हो, और तुमने मुझे उन लोगों से क्यों बचाया?"
तभी उस शख्स ने अपना नाम और पहचान दोनों प्रभा ताई को बताई, "मेरा नाम भानूप्रताप है। दरअसल मैं आपके भतीजे गजेन्द्र के साथ उसी जेल की सेल में बंद हूं। कल मुझे मेरे केस में बेल मिल गई, जिसके बाद मैं बाहर आ गया। गजेन्द्र ने मुझे जेल में अपने पूरे परिवार की फोटों दिखाई थी, जिसके वजह से मैं आपकों पहचान गया और उन गुंडो से बचा लाया। पर मेरे एक बात समझ नहीं आई कि वो लोग आपके पीछे पड़े क्यों थे?”
प्रभा ताई भानूप्रताप को नहीं जानती थी, ऐसे में उन्होंने उसके इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और बात को टालते हुए बोलीं— “लंबी कहानी है बेटा, कभी फुर्सत में बताउंगी। फिलहाल मुझे मेरे घर राजघराना जाना है, क्या तुम मुझे वहां छोड़ सकते हों”
“बिलकुल आंटी जी, क्यों नहीं… चलिये” उसने इतना कहा और प्रभा ताई को बाइक पर बैठाकर तेज़ी से वहां से निकल पड़ा। कुछ आधे घंटे में ही उसने प्रभा ताई को राजघराना महल की दहलीज़ पर छोड़ दिया।
जहां महल के अंदर, गजराज सिंह अपने कमरे में अकेले बैठा था। हाथ में वही पुराना राजघराना का जंग खाया हुआ सिंहासन का ताज और सामने रखी एक तस्वीर, जिसमें वो अपने दोनों बेटों मुक्तेश्वर और राज राजेश्वर के साथ खड़ा था। उस तस्वीर को देख वो खुद से बड़बड़ा रहा था।
“मैंने क्या चाहा था? और क्या हो गया। कभी सोचा था कि एक वारिस… एक सिंहासन का रक्षक…मेरा बुढ़ापा तो चैन से कटेगा, लेकिन मेरे ही खून ने मेरी ही जड़ें काटीं।”
एक बार फिर रघुवीर गजराज के इन पलों में अपना नया धमाका लेकर आ जाता है और कहता है— “हुकुम, खबर है कि प्रभा ताई बच गईं… और उन्हें जयपुर कोर्ट पहुंचाया जा रहा है।”
गजराज का चेहरा ये सुनते ही फीका पड़ जाता है और वो दीवार पर हाथ मारते हुए चिल्ला उठा— “अब कोई राह नहीं बची..."अब या तो हम... या वो!"
गजराज के गुस्से की ये गूंज महल के कोनों तक फैल गई, जैसे पुराने पापों की गूंज अतीत से लौटकर अब वर्तमान को चीरने लगी हो। और इस लड़ाई में गजराज चारों कोनों से घिर चुका था। इसी बीच, महल के मुख्य द्वार पर किसी नौकर ने दस्तक दी, और कुछ ऐसा कहा, जिसे सुन गजराज और रघुवीर दोनों के चेहरे खिल उठें।
“हुकुम… बाहर कोई महिला बेहोश पड़ी है… लगता है प्रभा ताई हैं।”
गजराज का चेहरा खिलखिला उठा और वो हंसते हुए बोला— “क्या…? लगता है भगवान भी हमारे ही साथ है, चलों जल्दी... प्रभा की खातिरदारी का एक और मौका मिला है।”
इतना कह गजराज ने रघुवीर को इशारा किया और दोनों तेज़ी से बाहर की ओर भागे। लेकिन जब तक वे पहुंचे… वहां सिर्फ एक पुराना पायदान पड़ा था… और एक लाल रंग की साड़ी का टुकड़ा।
प्रभा ताई फिर से लापता थीं।
वहीं लगातार विराज की तलाश में जुटी रिया यहां-वहां हर जगह उसे तलाश चुकी थी। विराज ने उसे फोन कर जाने की बात दो दिन पहले बताई थी, लेकिन उसके बाद से ना उसका पता चल रहा था और ना ही उसका फोन लग रहा था। वहीं उसके मोबाइल का सिग्नल आखिरी बार नागौर हाईवे के पास पिंग हुआ था। रिया और मुक्तेश्वर, दोनों प्रभा ताई और विराज के गायब होने की खबर पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज करवा चुके थे, लेकिन अब तक कोई सुराग नहीं मिला था।
रिया ने कांपती आवाज़ में कहा— “अब तो ऐसा लग रहा है कि जैसे कोई हमें बारी-बारी से मिटा रहा है… कोई है, जो नहीं चाहता कि गवाह अदालत तक पहुंचे।”
ये सुनते ही मुक्तेश्वर का चेहरा पत्थर सा हो गया था और वो बोला— “अब हम सिर्फ गवाही नहीं दे रहे रिया… अब हम अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी बाज़ी खेल रहे हैं। हमारी लड़ाई राजघराना के रहस्यों से है… तो समझ लो कि ये खेल मौत के खेल से कम नहीं।”
रिया ये सब सुनते ही थोड़ा सहम जाती है और उसे विराज की चिंता सताने लगती है। कि उसी पल, विराज की मां का फोन आया, उन्होंने कांपती आवाज़ में सिर्फ एक बात कही, "रिया… कोई आज सुबह मेरे घर आया था… विराज की डायरी लेकर… और उसने कहा—
‘अब गवाह ज़िंदा नहीं… सिर्फ राज बाकी है।’
विराज की मां की ये बात सुनते ही रिया के हाथ से फोन गिर पड़ा।
राजघराना के महल में, गजराज सिंह अपनी कुर्सी से उठते हुए किसी से फोन पर बात करते हुए बोला— “एक-एक करके सारे मोहरे हटाओ… खेल अब मेरे हाथ में है। ये लड़ाई सच-झूठ से परे अब सत्ता और बाप-बेटे की है। बेटा मेरी बरसों पुरानी इज्जत मिट्टी में मिलाना चाहता है, और मैं ऐसा हरगिज होने नहीं दूंगा।”
जहां एक तरफ गजराज अपनी जीत का जश्न मना रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ एक सुनसान हवेली का दरवाज़ा खुलता है, जिसके अंदर लाल दीया जल रहा था। ध्यान से देखने पर नजर आया कि वहां दीवार पर एक पुराना पोस्टर चिपका था, जिस पर लिखा था—
“राज राजेश्वर फॉर चेयरमैन - The Revival of Rajgharana”
उस पोस्टर के पास ही एक कुर्सी भी रखी हुई थी, जिस पर कोई बैठा था। कुर्सी पर बैठे शख्स के हाथ-पैर सब बंधे हुए थे और उसकी आँखों पर पट्टी बंधी है… वो कांपती आवाज़ में गिड़गिड़ाती है और कहती है— “मुझे जाने दो… मैंने कुछ नहीं कहा…”
तभी उसके बाई ओर से आवाज आई, “तूने कुछ नहीं कहा और ना ही किया… लेकिन तू बहुत कुछ जानती है। और हम नहीं चाहते कि इतिहास फिर से लिखा जाये… तो ऐसे में तेरा मरना जरूरी है।”
इतना कहते-कहते वो शख्स कुर्सी के करीब-बहुत करीब चला जाता है। कुर्सी पर बंधी वो औरत सामने खड़े शख्स की खूशबू से उसे पहचान जाती है और चिल्लाकर कहती है— व...व...विराज तुम, यहां...। इसका मतलब तुम भी…
और उसी पल, विराज उस अंधेरे को चीरता हुआ धीरे-धीरे सामने आता है। उसके चेहरे पर चोट के निशान हैं, होंठ फटे हुए… लेकिन उसकी आंखों में वही आग जल रही है। वो प्रभा ताई की तरफ बढ़ा और धीमे से बुदबुदाया— "तुम सबको लगता है गवाह मर गया...पर याद रखो…गवाह ज़िंदा है।"
आखिर क्या करने वाला है विराज? आगे क्या होगा रिया के साथ?
क्या इस बार सहीं-सलामत कोर्ट तक पहुंच पायेंगी प्रभा ताई?
ऐसा कौन सा सच है, जो अब तक नहीं आया बाहर?
जानने के लिए पढ़ते रहिये राजघराना का अगला भाग।
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